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एमबीबीएस छात्रों के लिए राहत भरी खबर आई है। राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) ने स्पष्ट किया है कि नेशनल एग्जिट टेस्ट (NExT) फिलहाल अगले तीन से चार साल तक लागू नहीं की जाएगी। यह वही परीक्षा है जिसे एमबीबीएस की डिग्री पूरी करने के बाद मेडिकल प्रैक्टिस लाइसेंस और पीजी कोर्स (MD/MS) में प्रवेश के लिए अनिवार्य किया जाना था।

 

यह जानकारी एनएमसी के अध्यक्ष डॉ. अभिजात शेठ ने एक प्रमुख मीडिया संस्थान को दिए साक्षात्कार में दी। उन्होंने कहा कि आयोग फिलहाल परीक्षा के ढांचे, प्रक्रियाओं और कानूनी पहलुओं पर काम कर रहा है, इसलिए इसे जल्द लागू करना संभव नहीं है।

 

नई दिल्ली में हुई अहम बैठक

इस फैसले से पहले एनएमसी अध्यक्ष डॉ. शेठ की मुलाकात फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया मेडिकल एसोसिएशन (FAIMA) के प्रतिनिधियों से हुई। बैठक में छात्रों और डॉक्टरों की ओर से उठाई गई चिंताओं पर चर्चा के बाद यह निर्णय लिया गया कि परीक्षा को फिलहाल स्थगित रखा जाएगा।

 

क्या है NExT परीक्षा?

NExT (National Exit Test) एक राष्ट्रीय स्तर की परीक्षा है, जिसे राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (NMC) द्वारा शुरू करने की योजना है। इसका उद्देश्य देशभर में मेडिकल शिक्षा और डॉक्टरों की योग्यता को एक समान मानक पर लाना है।

 

इस परीक्षा के जरिए —

- एमबीबीएस छात्रों को मेडिकल प्रैक्टिस की अनुमति (लाइसेंस) मिलेगी।

- एमडी/एमएस (पोस्टग्रेजुएट कोर्स) में प्रवेश इसी परीक्षा के अंकों के आधार पर होगा।

- विदेश से MBBS करने वाले छात्रों (FMGs) के लिए यह भारत में प्रैक्टिस करने की पात्रता परीक्षा के रूप में काम करेगी।

 

यानि एक ही परीक्षा तीन काम करेगी — मेडिकल लाइसेंस, पीजी एडमिशन और योग्यता मूल्यांकन।

 

क्यों टली परीक्षा?

पहले इस परीक्षा को अगस्त 2025 से लागू किए जाने की योजना थी। लेकिन कानूनी और तकनीकी चुनौतियों के चलते इसकी समयसीमा को आगे बढ़ा दिया गया है। एनएमसी ने 2019 बैच के छात्रों के लिए 2023 में NExT आयोजित करने की घोषणा की थी, पर छात्रों ने इसे NMC अधिनियम 2019 का उल्लंघन बताते हुए विरोध किया। विरोध के बाद परीक्षा को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया था।

 

छात्रों और डॉक्टरों की प्रतिक्रिया

एनएमसी के ताजा फैसले का छात्र संगठनों और डॉक्टर संघों ने स्वागत किया है। उनका कहना है कि जब तक परीक्षा की प्रक्रिया, सिलेबस और मूल्यांकन प्रणाली पूरी तरह स्पष्ट नहीं हो जाती, तब तक इसे लागू करना छात्रों के हित में नहीं होगा।

 

आगे क्या?

डॉ. शेठ ने कहा कि एनएमसी आने वाले वर्षों में परीक्षा की रूपरेखा को मजबूत बनाने पर काम कर रहा है। आयोग का लक्ष्य है कि भविष्य में NExT को एक एकीकृत, पारदर्शी और निष्पक्ष परीक्षा प्रणाली के रूप में लागू किया जाए, जिससे पूरे देश में मेडिकल शिक्षा का स्तर बेहतर हो।   

 

राजस्थान के 25 वर्षीय युवा उद्यमी स्पर्श अग्रवाल ने भारत को एआई तकनीक की नई ऊंचाई पर पहुंचा दिया है। उनकी स्टार्टअप Pixa AI ने हाल ही में दुनिया के शुरुआती स्पीच-टू-स्पीच फाउंडेशनल एआई मॉडल्स में से एक Luna AI लॉन्च किया है — जो न सिर्फ बात कर सकता है बल्कि गाना, फुसफुसाना, रुकना और भावनात्मक रूप से प्रतिक्रिया देना भी जानता है।

 

सबसे बड़ी बात यह है कि स्पर्श ने यह उपलब्धि बिना किसी बड़ी टेक इंफ्रास्ट्रक्चर या वेंचर कैपिटल फंडिंग के हासिल की।

 

क्या है Luna AI?

Pixa AI के तहत विकसित Luna एक ऐसा एआई मॉडल है जो सीधे ऑडियो को प्रोसेस करता है और मानवीय भावनाओं जैसी प्राकृतिक आवाज पैदा करता है। इससे बातचीत अधिक जीवंत, तेज और प्रभावशाली हो जाती है।

 

स्पर्श अग्रवाल के मुताबिक, “Luna AI टोन, पॉज़ और एक्सप्रेशन बदल सकती है — यही इसकी सबसे बड़ी खासियत है। यह केवल बोलती नहीं, बल्कि इंसान की तरह महसूस कराती है।”

 

केंद्रीय आईटी मंत्री ने की सराहना 

हाल ही में स्पर्श अग्रवाल ने केंद्रीय आईटी मंत्री अश्विनी वैष्णव से मुलाकात की। मंत्री ने इस नवाचार की सराहना करते हुए कहा कि ऐसे नवयुवक भारत के एआई भविष्य की नई पहचान हैं।

 

लॉन्च के बाद स्पर्श ने ‘एक्स’ (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा — “हर कोई पूछता है – भारत का एआई कहां है? आज जवाब हमारे पास है। मिलिए Luna से — जो ऑडियो, म्यूजिक और स्पीच को एकीकृत करने वाला दुनिया का पहला स्पीच-टू-स्पीच फाउंडेशनल एआई मॉडल है।”

 

उद्योग जगत ने भी दी सराहना

HCL के को-फाउंडर अजय चौधरी ने एक्स पर लिखा — “स्पर्श ने भारत का पहला ऐसा शानदार प्रोडक्ट बनाया है!”

 

वहीं, वॉयस एआई विशेषज्ञ सुदर्शन कामथ ने कहा — “ऐसे डीप-टेक फाउंडर्स को हमें और प्रोत्साहन देना चाहिए, जो एआई को उसकी मूल संरचना से समझते हैं।”

 

OpenAI से बेहतर प्रदर्शन

बेंचमार्क रिपोर्ट्स के मुताबिक, Luna AI ने OpenAI के GPT-4 TTS और ElevenLabs जैसे अंतरराष्ट्रीय सिस्टम्स की तुलना में 50% कम लेटेंसी और अधिक प्राकृतिक आवाज का प्रदर्शन किया है।

 

स्पर्श ने बताया — “मेरे पास कोई बड़ा रिसर्च लैब या करोड़ों डॉलर की फंडिंग नहीं थी। मैंने GPUs उधार लिए, क्लाउड क्रेडिट्स जुटाए और अपने क्रेडिट कार्ड से खर्च उठाया। यह साबित करता है कि वर्ल्ड-क्लास टेक्नोलॉजी भारत से भी बन सकती है।”

 

निवेशकों और विशेषज्ञों का भरोसा

IIT-BHU से स्नातक स्पर्श अग्रवाल की टीम में नितीश कार्तिक, अपूर्व सिंह और प्रत्युष कुमार शामिल हैं। Pixa AI को उद्योग जगत के नामचीन निवेशकों — कुनाल शाह (CRED), कुनाल कपूर (Actor & Entrepreneur) और निखिल कामत (Zerodha) — का समर्थन मिला है।

 

कंपनी का लक्ष्य है कि Luna AI को मनोरंजन, वेलनेस और ऑटोमोटिव क्षेत्रों के लिए एक “वॉयस लेयर” के रूप में विकसित किया जाए।

 

भारत को ‘इमोशनली इंटेलिजेंट एआई’ का केंद्र बनाना

स्पर्श अग्रवाल को WTFund के लिए 15,000 से अधिक आवेदकों में से एकमात्र सोलो फाउंडर के रूप में चुना गया था। उनका कहना है कि Luna के जरिए वे भारत को “Emotionally Intelligent AI Innovation” का वैश्विक केंद्र बनाना चाहते हैं।

 

देश के प्रमुख चिकित्सा संस्थान एम्स (AIIMS) में अब जल्द ही मरीजों से लेकर मेडिकल छात्रों तक के लिए हिंदी प्रमुख भाषा के रूप में इस्तेमाल होती दिखाई देगी। केंद्र सरकार ने एम्स को निर्देश दिया है कि संस्थान में शिक्षण, शोध और दैनिक कामकाज में हिंदी को प्राथमिकता दी जाए। इसका उद्देश्य स्वास्थ्य सेवाओं को आम लोगों के लिए अधिक सुलभ और समझने योग्य बनाना है।

 

मंत्रालय का आदेश: मेडिकल शिक्षा और शोध अब हिंदी में भी

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से जारी निर्देशों के अनुसार, एम्स में मेडिकल की पढ़ाई के लिए हिंदी में प्रकाशित किताबें खरीदी जाएंगी और छात्रों को हिंदी माध्यम में अध्ययन के लिए प्रोत्साहित किया जाएगा। इसके साथ ही, मेडिकल शोध कार्य भी हिंदी में करने को बढ़ावा दिया जाएगा।

 

मंत्रालय ने स्पष्ट किया है कि इस पहल का मकसद केवल भाषा परिवर्तन नहीं, बल्कि स्वास्थ्य सेवाओं में पारदर्शिता और पहुंच को बढ़ाना है। मरीजों के लिए भी अब डॉक्टर प्रिस्क्रिप्शन (पर्ची) पर दवाइयों के नाम और निर्देश हिंदी में लिख सकेंगे, ताकि ग्रामीण और गैर-अंग्रेजीभाषी मरीजों को समझने में परेशानी न हो।

 

दैनिक कामकाज भी हिंदी में

एम्स के हिंदी अनुभाग ने सभी विभागों को निर्देश जारी किए हैं कि वे अपने कार्यालयी कार्य में हिंदी का अधिकतम उपयोग करें। इसके तहत—

- लैटरहेड, विजिटिंग कार्ड और आधिकारिक दस्तावेज अब द्विभाषी (हिंदी-अंग्रेजी) होंगे।

- फाइलों पर नोटिंग और प्रविष्टियां संभव हो तो हिंदी में की जाएंगी।

- डॉक्टरों और कर्मचारियों की सेवा पुस्तिकाएं भी हिंदी में दर्ज करने के निर्देश दिए गए हैं।

- बैठकों में अंग्रेजी का प्रयोग घटाने पर भी जोर दिया गया है।

 

एम्स को यह भी कहा गया है कि इस दिशा में हुई प्रगति की रिपोर्ट नियमित रूप से मंत्रालय को भेजी जाए।

 

वैकल्पिक व्यवस्था, दबाव नहीं

हालांकि मंत्रालय ने यह भी स्पष्ट किया है कि मेडिकल शिक्षा को हिंदी में करना फिलहाल वैकल्पिक रहेगा। छात्रों पर हिंदी में पढ़ाई करने का दबाव नहीं बनाया जाएगा। अधिकांश विषयों में ‘हिंग्लिश’ यानी हिंदी और अंग्रेजी के मिश्रण का उपयोग होगा ताकि छात्रों को समझने में दिक्कत न हो।

 

एम्स में पढ़ने वाले कुछ छात्रों का कहना है कि पूरी तरह हिंदी में मेडिकल शिक्षा देना चुनौतीपूर्ण है। कई मेडिकल टर्म्स जैसे हार्ट, लिवर, ब्रेन, ब्लड आदि आम बोलचाल में भी अंग्रेजी में ही प्रयोग होते हैं। उदाहरण के तौर पर, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में जहां मेडिकल शिक्षा आंशिक रूप से हिंदी में दी जा रही है, वहां भी ‘हार्ट’ शब्द को ‘हृदय’ से नहीं बदला गया है।

 

चुनौतियों से इनकार नहीं

एम्स प्रशासन फिलहाल इस मुद्दे पर खुलकर टिप्पणी करने से बच रहा है। संस्थान के वरिष्ठ अधिकारियों के अनुसार, हिंदी में मेडिकल किताबों की सीमित उपलब्धता और गैर-हिंदीभाषी छात्रों की उपस्थिति इस प्रक्रिया की सबसे बड़ी चुनौती हैं। दक्षिण भारत से आने वाले कई छात्रों के लिए हिंदी में पढ़ाई करना आसान नहीं होगा।

 

फिर भी, मंत्रालय का मानना है कि यह कदम आने वाले समय में स्वास्थ्य सेवाओं को स्थानीय भाषाओं से जोड़ने की दिशा में ऐतिहासिक परिवर्तन साबित हो सकता है।

 

एम्स में हिंदी को बढ़ावा देने की यह पहल केवल भाषा का बदलाव नहीं, बल्कि चिकित्सा को आमजन की समझ की भाषा में लाने की कोशिश है। यदि यह प्रयोग सफल होता है, तो भविष्य में देश के अन्य चिकित्सा संस्थान भी मातृभाषा आधारित चिकित्सा शिक्षा की दिशा में कदम बढ़ा सकते हैं।

 

 



नेशनल लॉ यूनिवर्सिटीज़ (NLUs) के कंसोर्टियम की एडवाइजरी बोर्ड, जिसकी अध्यक्षता न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा कर रही हैं, ने कॉमन लॉ एडमिशन टेस्ट (CLAT) में मध्यम और दीर्घकालिक सुधारों की सिफारिश के लिए एक विशेषज्ञ समिति (Expert Committee) का गठन किया है।

इन सुधारों को वर्ष 2027 से आयोजित होने वाली स्नातक (UG) और स्नातकोत्तर (PG) दोनों परीक्षाओं में लागू किया जाएगा।



समिति की संरचना

इस विशेषज्ञ समिति में भारत और विदेश के प्रमुख विधि शिक्षाविद शामिल हैं:

 

- प्रो. देव सैफ गैंजी, प्रोफेसर ऑफ लॉ, सेंट हिल्डा कॉलेज, यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड (सह-अध्यक्ष)

 

- प्रो. तरुणाभ खैटन, प्रोफेसर ऑफ पब्लिक लॉ, एलएसई स्कूल ऑफ लॉ (सह-अध्यक्ष)

 

- प्रो. श्यामकृष्ण बालगणेश, सोल गोल्डमैन प्रोफेसर ऑफ लॉ, कोलंबिया लॉ स्कूल

 

- प्रो. प्रीतम बरुआ, प्रोफेसर एवं डीन, स्कूल ऑफ लॉ, बीएमएल मुंजाल यूनिवर्सिटी

 

- प्रो. सुरभि रंगनाथन, प्रोफेसर ऑफ इंटरनेशनल लॉ, यूनिवर्सिटी ऑफ कैम्ब्रिज



समिति का उद्देश्य और कार्यक्षेत्र

इस समिति का उद्देश्य CLAT परीक्षा की शैक्षणिक गुणवत्ता, निष्पक्षता और प्रासंगिकता को मजबूत बनाना है। इसके तहत समिति निम्न बिंदुओं पर कार्य करेगी:

 

- CLAT (UG और PG) के प्रश्नों की गुणवत्ता और डिज़ाइन की समीक्षा, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि परीक्षा भावी कानून छात्रों की वास्तविक योग्यता और क्षमताओं का सटीक मूल्यांकन करे।

 

- परीक्षा ढांचे की समीक्षा, जिसमें सेक्शन का संतुलन, प्रश्नों का प्रारूप और मूल्यांकन प्रणाली शामिल होगी।

 

- सिलेबस (Syllabus) का पुनर्मूल्यांकन, ताकि यह भारत में विधि शिक्षा के उद्देश्यों और शिक्षण दृष्टि से प्रासंगिक बना रहे।

 

- अंतरराष्ट्रीय तुलनात्मक अध्ययन, जैसे अमेरिका की LSAT और ब्रिटेन की LNAT परीक्षाओं का विश्लेषण, ताकि उनसे मिलने वाली सर्वोत्तम प्रक्रियाओं को CLAT में शामिल किया जा सके।



जन सुझावों के लिए आमंत्रण

पारदर्शिता और व्यापक भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए समिति ने इन विषयों पर सार्वजनिक सुझाव, टिप्पणियां और प्रतिक्रियाएं आमंत्रित की हैं। इच्छुक व्यक्ति अपने सुझाव Google Form के माध्यम से भेज सकते हैं। सुझाव भेजने की अंतिम तिथि 15 अक्टूबर 2025 से 4 नवंबर 2025 तक निर्धारित की गई है।

 

राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) ने सरकार के निर्देश के बाद अब साइंस पाठ्यक्रम में आयुर्वेद को शामिल कर लिया है। कक्षा 6 से 8 तक की ‘Curiosity’ नामक नई विज्ञान की किताबों में आयुर्वेद से जुड़े अध्याय जोड़े गए हैं, जिनका उद्देश्य विद्यार्थियों को भारत की प्राचीन वैज्ञानिक और चिकित्सा परंपराओं से परिचित कराना है।

 

कक्षा 8 की किताब में समग्र स्वास्थ्य पर फोकस

एनसीईआरटी के निदेशक दिनेश प्रसाद सकलानी ने बताया कि आयुर्वेदिक सिद्धांतों को जोड़ने का मकसद समग्र (Holistic) शिक्षा को प्रोत्साहित करना है।

कक्षा 8 की साइंस किताब ‘Curiosity’ के तीसरे अध्याय में आयुर्वेद को शरीर, मन और पर्यावरण के संतुलन के रूप में प्रस्तुत किया गया है। इसमें दिनचर्या (Dinacharya), ऋतुचर्या (Ritucharya) जैसी जीवनशैली प्रथाओं का उल्लेख करते हुए छात्रों को पौष्टिक भोजन, नियमित व्यायाम और मानसिक सजगता अपनाने के लिए प्रेरित किया गया है।

 

कक्षा 6 में पदार्थों का वर्गीकरण आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से

कक्षा 6 की किताब में आयुर्वेद के अनुसार पदार्थों के वर्गीकरण की चर्चा की गई है, जो ‘अष्टांग हृदय सूत्र स्थान’ जैसे ग्रंथों में वर्णित बीस विरोधी गुणों (गुण) के सिद्धांत पर आधारित है। इसका उद्देश्य विद्यार्थियों में स्वास्थ्य, पोषण और प्रकृति के प्रति संतुलित दृष्टिकोण विकसित करना है।

 

उच्च शिक्षा में भी होगा विस्तार

एजुकेशन टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, एनसीईआरटी अब उच्च कक्षाओं के साइंस सिलेबस में भी संशोधन की योजना बना रहा है। वहीं, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) उच्च शिक्षा के लिए आयुर्वेद-केन्द्रित नए पाठ्यक्रम तैयार करेगा।

 

एनसीईआरटी और यूजीसी का संयुक्त प्रयास

केंद्रीय आयुष मंत्री प्रतापराव जाधव ने कहा कि एनसीईआरटी और यूजीसी मिलकर स्कूल से लेकर विश्वविद्यालय स्तर तक के लिए समग्र स्वास्थ्य आधारित कोर्स मॉड्यूल तैयार करेंगे।

उन्होंने बताया कि गोवा, मध्य प्रदेश, उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में पहले ही भारतीय ज्ञान प्रणाली को शिक्षा का हिस्सा बनाया जा चुका है।

 

मंत्री ने यह भी कहा कि अब आयुर्वेद-संबंधी विषय शिक्षकों के प्रशिक्षण कार्यक्रमों में भी शामिल किए जा रहे हैं। इसके लिए ओरिएंटेशन सेशन, वर्कशॉप और हैंडबुक तैयार की जा रही हैं, ताकि शिक्षक इस नई पहल को प्रभावी ढंग से लागू कर सकें।



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NCERT adds Ayurveda chapters to science textbooks, familiarizing students with ancient medical traditions



12.

Category- News

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CLAT परीक्षा में बड़े बदलाव की तैयारी: NLU कंसोर्टियम ने बनाई विशेषज्ञ समिति, 2027 से लागू होंगे सुधार

 

नेशनल लॉ यूनिवर्सिटीज़ (NLUs) के कंसोर्टियम की एडवाइजरी बोर्ड, जिसकी अध्यक्षता न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा कर रही हैं, ने कॉमन लॉ एडमिशन टेस्ट (CLAT) में मध्यम और दीर्घकालिक सुधारों की सिफारिश के लिए एक विशेषज्ञ समिति (Expert Committee) का गठन किया है।

इन सुधारों को वर्ष 2027 से आयोजित होने वाली स्नातक (UG) और स्नातकोत्तर (PG) दोनों परीक्षाओं में लागू किया जाएगा।



समिति की संरचना

इस विशेषज्ञ समिति में भारत और विदेश के प्रमुख विधि शिक्षाविद शामिल हैं:

 

- प्रो. देव सैफ गैंजी, प्रोफेसर ऑफ लॉ, सेंट हिल्डा कॉलेज, यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड (सह-अध्यक्ष)

 

- प्रो. तरुणाभ खैटन, प्रोफेसर ऑफ पब्लिक लॉ, एलएसई स्कूल ऑफ लॉ (सह-अध्यक्ष)

 

- प्रो. श्यामकृष्ण बालगणेश, सोल गोल्डमैन प्रोफेसर ऑफ लॉ, कोलंबिया लॉ स्कूल

 

- प्रो. प्रीतम बरुआ, प्रोफेसर एवं डीन, स्कूल ऑफ लॉ, बीएमएल मुंजाल यूनिवर्सिटी

 

- प्रो. सुरभि रंगनाथन, प्रोफेसर ऑफ इंटरनेशनल लॉ, यूनिवर्सिटी ऑफ कैम्ब्रिज



समिति का उद्देश्य और कार्यक्षेत्र

इस समिति का उद्देश्य CLAT परीक्षा की शैक्षणिक गुणवत्ता, निष्पक्षता और प्रासंगिकता को मजबूत बनाना है। इसके तहत समिति निम्न बिंदुओं पर कार्य करेगी:

 

- CLAT (UG और PG) के प्रश्नों की गुणवत्ता और डिज़ाइन की समीक्षा, ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि परीक्षा भावी कानून छात्रों की वास्तविक योग्यता और क्षमताओं का सटीक मूल्यांकन करे।

 

- परीक्षा ढांचे की समीक्षा, जिसमें सेक्शन का संतुलन, प्रश्नों का प्रारूप और मूल्यांकन प्रणाली शामिल होगी।

 

- सिलेबस (Syllabus) का पुनर्मूल्यांकन, ताकि यह भारत में विधि शिक्षा के उद्देश्यों और शिक्षण दृष्टि से प्रासंगिक बना रहे।

 

- अंतरराष्ट्रीय तुलनात्मक अध्ययन, जैसे अमेरिका की LSAT और ब्रिटेन की LNAT परीक्षाओं का विश्लेषण, ताकि उनसे मिलने वाली सर्वोत्तम प्रक्रियाओं को CLAT में शामिल किया जा सके।



जन सुझावों के लिए आमंत्रण

पारदर्शिता और व्यापक भागीदारी को प्रोत्साहित करने के लिए समिति ने इन विषयों पर सार्वजनिक सुझाव, टिप्पणियां और प्रतिक्रियाएं आमंत्रित की हैं। इच्छुक व्यक्ति अपने सुझाव Google Form के माध्यम से भेज सकते हैं। सुझाव भेजने की अंतिम तिथि 15 अक्टूबर 2025 से 4 नवंबर 2025 तक निर्धारित की गई है।

 

असम की तेजपुर यूनिवर्सिटी टीचर्स एसोसिएशन (TUTA) ने विश्वविद्यालय प्रशासन पर वित्तीय अनियमितताओं और स्थानीय भाषा की उपेक्षा के गंभीर आरोप लगाए हैं। एसोसिएशन का दावा है कि पिछले दो वित्तीय वर्षों (2024–25 और 2025–26) में विश्वविद्यालय ने एक भी असमिया पुस्तक नहीं खरीदी, जबकि इसके लिए राशि स्वीकृत थी।

 

दिल्ली के चुनिंदा प्रकाशकों को फायदा पहुंचाने का आरोप

टीयूटीए ने कहा कि कुलपति प्रो. शंभू नाथ सिंह ने केवल कुछ सीमित दिल्ली-स्थित प्रकाशकों से ही किताबें खरीदने की अनुमति दी, जिससे संपूर्ण प्रक्रिया में पारदर्शिता की कमी रही। संगठन ने इसे “सार्वजनिक निधियों के दुरुपयोग और पक्षपात” का मामला बताते हुए उच्च स्तरीय जांच की मांग की है।

 

6.5 करोड़ की ग्रांट में 4.56 करोड़ खर्च सिर्फ पुस्तकों पर

यूजीसी से विश्वविद्यालय को पूंजीगत परिसंपत्तियों (Capital Assets) के लिए 6.5 करोड़ रुपये का आवंटन मिला था। इसमें से 5.72 करोड़ किताबों और जर्नल्स की खरीद के लिए स्वीकृत किए गए, जिनमें से 4.56 करोड़ रुपये खर्च भी कर दिए गए। इसके बावजूद असमिया विभाग के लिए स्वीकृत 2.91 लाख रुपये से 146 पुस्तकों की खरीद नहीं की गई।

 

“स्थानीय भाषा की उपेक्षा विश्वविद्यालय की नीयत पर सवाल”

टीयूटीए ने कहा, “लगातार दो वर्षों तक असमिया भाषा की एक भी किताब न खरीदना, विश्वविद्यालय प्रशासन की प्राथमिकताओं और संवेदनशीलता पर गंभीर सवाल उठाता है।”

 

एसोसिएशन के मुताबिक, अधिकतर भुगतान उन दिल्ली-स्थित प्रकाशकों को गया जो असमिया पुस्तकों की आपूर्ति नहीं करते।

 

कुलपति पर हितों के टकराव और सीमित सप्लायर नीति का आरोप

टीयूटीए ने कुलपति पर आरोप लगाया कि उन्होंने विक्रेताओं के चयन को व्यक्तिगत रूप से प्रभावित किया और कई पंजीकृत व योग्य सप्लायरों को दरकिनार कर दिया।

संगठन ने इसे “जानबूझकर की गई सीमित सप्लायर नीति” बताते हुए कहा कि यह न केवल हितों के टकराव और पक्षपात का उदाहरण है, बल्कि सार्वजनिक धन के संभावित दुरुपयोग की ओर भी इशारा करता है।

 

“सांस्कृतिक उपेक्षा” का प्रतीक

टीयूटीए ने इसे “सांस्कृतिक और भाषाई उपेक्षा” करार देते हुए कहा कि असम के एक केंद्रीय विश्वविद्यालय में असमिया पुस्तकों की अनुपस्थिति, क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व और समावेशन की भावना को कमजोर करती है।

 

विरोध और तनाव का माहौल

सितंबर मध्य से कैंपस में विरोध प्रदर्शन जारी है। छात्रों ने कुलपति पर गायक जुबिन गर्ग के निधन पर असंवेदनशीलता दिखाने का आरोप लगाया था।

22 सितंबर को छात्रों और कुलपति के बीच तीखी बहस के बाद स्थिति इतनी बिगड़ी कि कुलपति को परिसर छोड़ना पड़ा।

इसके बाद टीयूटीए, गैर-शैक्षणिक कर्मचारी और छात्र संगठनों ने मिलकर संयुक्त आंदोलन शुरू किया।

 

पर्यावरणीय नुकसान के आरोप भी सामने आए

हाल ही में टीयूटीए और छात्रों ने कथित वनों की कटाई और पर्यावरणीय क्षति के खिलाफ रैली निकाली। आरोप है कि प्रशासन ने “सौंदर्यीकरण” के नाम पर पीले बांस सहित कई पेड़ों की कटाई करवाई और अत्यधिक घास लगाने का आदेश दिया, जिससे पर्यावरणीय असंतुलन की स्थिति बनी है।

 

कुलपति का जवाब: “तथ्यों को गलत ढंग से पेश किया गया”

आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए प्रो. शंभू नाथ सिंह ने कहा, “कुछ लोगों ने शायद अनजाने में तथ्यों को गलत प्रस्तुत किया है। मैं सभी हितधारकों के साथ संवाद के लिए पूरी तरह तैयार हूं — संवाद ही समाधान का सबसे अच्छा रास्ता है।”



असम के इस केंद्रीय विश्वविद्यालय में उठे ये आरोप न केवल वित्तीय पारदर्शिता पर सवाल खड़े करते हैं, बल्कि स्थानीय भाषा और सांस्कृतिक पहचान की उपेक्षा के गहरे संकट को भी उजागर करते हैं। विश्वविद्यालय समुदाय अब स्वतंत्र जांच और जवाबदेही की मांग पर अडिग है।

 

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Scam at Tezpur University: Delhi publishers benefited in book purchases worth crores



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Category- University Updates (University Profile)

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सरस्वती ग्रुप ऑफ कॉलेज: मेडिकल एजुकेशन का एक प्रतिष्ठित नाम 

 

सरस्वती ग्रुप ऑफ कॉलेजे (SGC), मोहाली, पंजाब उत्तर भारत का एक प्रतिष्ठित बहुविषयक मेडिकल संस्थान है, जो आयुर्वेद, नर्सिंग, फार्मेसी और पैरामेडिकल साइंसेज़ में प्रोफेशनल एजुकेशन प्रदान करता है। वर्ष 2004 में सरस्वती प्रोफेशनल एंड हायर एजुकेशन सोसाइटी द्वारा स्थापित यह संस्थान स्वास्थ्य शिक्षा के क्षेत्र में शैक्षणिक उत्कृष्टता, व्यावहारिक कौशल और समग्र विकास को प्रोत्साहित करने के लिए समर्पित है। 

 

इतिहास और स्थापना

2004 में स्थापित SGC मोहाली ने वर्षों में खुद को एक अग्रणी मल्टी-डिसिप्लिनरी इंस्टीट्यूशन के रूप में विकसित किया है। कॉलेज का उद्देश्य उच्चस्तरीय शैक्षणिक कार्यक्रमों और उद्योग से मजबूत संबंधों के माध्यम से वैश्विक स्तर पर सक्षम स्वास्थ्यकर्मी तैयार करना है।

 

रैंकिंग और उपलब्धियां

हालांकि राष्ट्रीय स्तर पर इसकी सटीक रैंकिंग सार्वजनिक रूप से प्रकाशित नहीं है, लेकिन कॉलेज की साख उसके अनुभवी फैकल्टी, 15 से अधिक अंतरराष्ट्रीय संस्थानों से सहयोग और मजबूत शोध प्रकाशनों से साबित होती है।

संस्थान को NCTE, INC, PCI, AICTE जैसी मान्यता प्राप्त नियामक संस्थाओं से अनुमोदन प्राप्त है, और यह गुरु रविदास आयुर्वेद यूनिवर्सिटी तथा बाबा फरीद यूनिवर्सिटी ऑफ हेल्थ साइंसेज से संबद्ध है।

 

कोर्सेस और प्रोग्राम्स

SGC में 22 से अधिक पाठ्यक्रम संचालित हैं — स्नातक, स्नातकोत्तर, डिप्लोमा और सर्टिफिकेट स्तर पर। प्रमुख कोर्सेस में शामिल हैं:

- BAMS (आयुर्वेद)

- B.Sc नर्सिंग (रेगुलर और पोस्ट बेसिक)

- GNM (जनरल नर्सिंग एंड मिडवाइफरी)

- ANM (ऑक्सिलियरी नर्सिंग एंड मिडवाइफरी)

- B.Pharm और D.Pharm (फार्मेसी)

- BPT (फिजियोथेरेपी)

- B.Sc इन फॉरेंसिक साइंस, डायलेसिस टेक्नोलॉजी, मेडिकल लैब टेक्नोलॉजी, रेडियोलॉजी एंड इमेजिंग, ऑप्टोमेट्री, न्यूट्रिशन एंड डाइटेटिक्स, बायोटेक्नोलॉजी

- M.Sc इन नर्सिंग, मेडिकल लैब टेक्नोलॉजी, रेडियोलॉजी, फार्मास्युटिकल साइंसेज़, बायोकैमिस्ट्री

- डिप्लोमा कोर्सेज इन एलिमेंट्री टीचर ट्रेनिंग, आयुर्वेद, और फार्मेसी

 

फैकल्टी और इंफ्रास्ट्रक्चर

SGC में 15 से अधिक पीएचडी धारक प्रोफेसर और कई डॉक्टरेट कर रहे शिक्षक हैं। उनके शोध-पत्र राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय जर्नल्स में प्रकाशित हैं।

कॉलेज 30 एकड़ से अधिक क्षेत्र में फैला हुआ है, जिसमें Wi-Fi क्लासरूम, अत्याधुनिक लैब्स, सेमिनार हॉल, समृद्ध लाइब्रेरी, हॉस्टल, जिम और 24x7 सुरक्षा व्यवस्था शामिल हैं।

 

कॉलेज का इंफ्रास्ट्रक्चर सिद्धांत और व्यवहारिक प्रशिक्षण का संतुलन बनाता है, जिससे छात्र स्वास्थ्य क्षेत्र में करियर के लिए पूरी तरह तैयार होते हैं।

 

कैंपस लाइफ और सुविधाएं

चंडीगढ़-लुधियाना नेशनल हाईवे पर स्थित SGC का कैंपस जीवंत और ऊर्जा से भरा है। यहां सांस्कृतिक, खेल और प्रोफेशनल गतिविधियों से छात्रों का समग्र विकास होता है। कॉलेज में लड़कों और लड़कियों के लिए अलग हॉस्टल, परिवहन सुविधा, कैफेटेरिया और 24 घंटे चिकित्सा सहायता उपलब्ध है।

 

कौन करें SGC का चयन?

जो छात्र आयुर्वेद, नर्सिंग, फार्मेसी या पैरामेडिकल साइंसेज़ के क्षेत्र में करियर बनाना चाहते हैं और उन्हें आधुनिक सुविधाओं, शोध-अवसरों और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की तलाश है — उनके लिए सरस्वती ग्रुप ऑफ कॉलेजेज, मोहाली एक बेहतरीन विकल्प है।

 

सरस्वती ग्रुप ऑफ कॉलेजेज, मोहाली न केवल छात्रों को सफल करियर के लिए तैयार करता है, बल्कि उन्हें वैश्विक दृष्टिकोण वाले जिम्मेदार स्वास्थ्यकर्मी बनने की दिशा में मार्गदर्शन भी देता है।

यह संस्थान अपने मजबूत फैकल्टी, अत्याधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर और जीवंत कैंपस लाइफ के साथ चिकित्सा शिक्षा के क्षेत्र में एक उत्कृष्ट विकल्प के रूप में उभरता है।  

आरआर इंस्टीट्यूशन्स के प्रिंसिपल डॉ. जनार्दन जी. शेट्टी से बातचीत

 

आरआर ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशन्स (RR Group of Institutions) बेंगलुरु में स्थित एक निजी विश्वविद्यालय है। यह संस्थान अपने नवाचार, आधुनिक शिक्षण पद्धति और प्लेसमेंट-उन्मुख कोर्सेज़ के लिए प्रसिद्ध है। 27 एकड़ के विशाल परिसर में स्थित यह विश्वविद्यालय पारंपरिक तथा भविष्योन्मुखी शिक्षा का बेहतरीन संगम प्रस्तुत करता है।

 

जैसे-जैसे वैश्विक अर्थव्यवस्था तेजी से बदल रही है, बिज़नेस स्कूल केवल शिक्षा के केंद्र नहीं रह गए हैं, बल्कि वे अब भविष्य के नेताओं, उद्यमियों, और नवोन्मेषकों की प्रयोगशालाएँ बन चुके हैं। आरआर इंस्टीट्यूशन्स भी अपने नवोन्मेषी कार्यक्रमों के माध्यम से ऐसे नेताओं को तैयार कर रहा है जो उद्योग जगत और समाज – दोनों पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकें। आरआर इंस्टीट्यूशन्स के प्रिंसिपल डॉ. जनार्दन जी. शेट्टी ने एड-इनबॉक्स (Edinbox) के साथ एक विशेष बातचीत में आधुनिक प्रबंधन शिक्षा के दृष्टिकोण, नवाचार, वैश्विक नेटवर्किंग और छात्रों के करियर अवसरों पर अपने विचार साझा किए।

 

उन्होंने बताया कि कैसे RRIMS और RRIAS छात्रों को न केवल अकादमिक उत्कृष्टता बल्कि लीडरशिप, उद्यमिता और वैश्विक दृष्टिकोण के साथ तैयार करते हैं, ताकि वे उद्योग और समाज दोनों में सकारात्मक प्रभाव डाल सकें। प्रस्तुत हैं डॉ. जनार्दन जी. शेट्टी से बातचीत के मुख्य अंश:

 

प्रश्न: डॉ. शेट्टी, आज की बदलती वैश्विक अर्थव्यवस्था में आरआर इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज़ (RRIMS) और आरआर इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज़ (RRIAS) बिज़नेस स्कूलों की भूमिका को किस तरह देख रहे हैं?

- आज के समय में बिज़नेस स्कूल केवल बैलेंस शीट पढ़ाने या सप्लाई चेन सिखाने तक सीमित नहीं हैं। RRIMS और RRIAS में हमारा उद्देश्य ऐसे नेताओं को तैयार करना है जो परिवर्तन प्रबंधन, स्थिरता (sustainability) और जटिल समस्याओं को हल करने में सक्षम हों।

 

हमारा पाठ्यक्रम लीडरशिप एजुकेशन को डेटा एनालिटिक्स, लॉजिस्टिक्स, हेल्थकेयर मैनेजमेंट, BFSI, एंटरप्रेन्योरशिप और ट्रांसनेशनल स्ट्रैटेजी जैसे प्रमुख क्षेत्रों के साथ जोड़ता है। इससे हमारे विद्यार्थी वैश्विक स्तर पर व्यापारिक चुनौतियों को सामाजिक दृष्टि से भी समझते हैं और उनका समाधान कर पाते हैं।

 

प्रश्न: RRIAS और RRIMS का पाठ्यक्रम अकादमिक नवाचार और प्रैक्टिकल लर्निंग के दृष्टिकोण से कैसे अलग है?

- हमारे यहाँ शिक्षा का दृष्टिकोण केवल पारंपरिक नहीं है। RRIAS और RRIMS में हम अकादमिक गहराई के साथ-साथ वास्तविक जीवन अनुप्रयोग पर भी समान रूप से ध्यान देते हैं। डेटा एनालिटिक्स, सप्लाई चेन मैनेजमेंट, हेल्थकेयर मैनेजमेंट, BFSI, एंटरप्रेन्योरशिप, और ग्लोबल स्ट्रैटेजी जैसे कोर्स छात्रों को व्यवसायिक समस्याओं का समाधान करने के साथ-साथ उनके सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभाव को समझने में भी सक्षम बनाते हैं।

 

प्रश्न: RRIAS और RRIMS में छात्रों को किस तरह सिखाया जाता है?

- हमारा शिक्षण तरीका रियल-लाइफ लर्निंग पर आधारित है। हम केस स्टडीज़, कंसल्टिंग प्रोजेक्ट्स, कैपस्टोन असाइनमेंट्स, इंटर्नशिप्स और ग्लोबल इमर्शन प्रोग्राम्स के माध्यम से छात्रों को वास्तविक परिस्थितियों में सीखने का अवसर देते हैं। हमने पाठ्यक्रम में टेक्नोलॉजी इंटीग्रेशन को भी शामिल किया है।

 

छात्र अब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ब्लॉकचेन, मशीन लर्निंग, साइबर सिक्योरिटी, क्लाउड कंप्यूटिंग, डेटा साइंस, SAP, पायथन, प्रोजेक्ट मैनेजमेंट, एथिक्स और फिनटेक जैसे आधुनिक विषयों का अध्ययन करते हैं — जिससे वे उद्योग की तेज़ी से बदलती ज़रूरतों के अनुरूप रह सकें।

 

प्रश्न: RRIAS और RRIMS किस तरह वैश्विक नेटवर्क का निर्माण कर रहे हैं?

- हमारे संस्थान छात्रों को ग्लोबल नेटवर्किंग प्लेटफ़ॉर्म प्रदान करते हैं — जहाँ वे प्रोफेशनल्स, एलुमनाई, फैकल्टी और इंडस्ट्री पार्टनर्स से जुड़ सकते हैं। यह नेटवर्क छात्रों को मेंटॉरशिप, करियर अवसरों और अंतरराष्ट्रीय सहयोग के दरवाज़े खोलता है।

 

हमारे यहाँ भारत के अलग-अलग राज्यों से आए छात्र विविधता और ग्लोबल माइंडसेट का वातावरण बनाते हैं। यह उन्हें इंक्लूसिव लीडरशिप और बहुआयामी दृष्टिकोण विकसित करने में मदद करता है।

 

प्रश्न: आरआर इंस्टीट्यूशन्स से ग्रेजुएट होने के बाद छात्रों के लिए कौन-से करियर अवसर उपलब्ध हैं?

- हमारा लक्ष्य है कि छात्रों का शिक्षा में किया गया निवेश शीघ्र ही उनके करियर में फायदेमंद साबित हो। हमारे MBA और डिग्री प्रोग्राम्स के छात्र मार्केटिंग, सप्लाई चेन, प्रोजेक्ट मैनेजमेंट, कंसल्टिंग, फाइनेंस, टेक्नोलॉजी और उद्यमिता (Entrepreneurship) जैसे क्षेत्रों में बेहतरीन अवसर प्राप्त करते हैं। उन्हें न केवल प्रतिस्पर्धी वेतन बल्कि व्यक्तिगत विकास, वैश्विक दृष्टिकोण, और लाइफटाइम नेटवर्क जैसी अमूल्य सीख मिलती है।

 

प्रश्न: आरआर इंस्टीट्यूशन्स का कैंपस जीवन कैसा है?

- 27 एकड़ में फैला हुआ आरआर इंस्टीट्यूशन्स कैंपस पिछले 32 वर्षों से उत्कृष्ट शिक्षा का केंद्र रहा है। यहाँ इंजीनियरिंग, मैनेजमेंट, कॉमर्स, मेडिकल, पैरामेडिकल, फार्मेसी, नर्सिंग, पॉलीटेक्निक, और प्री-यूनिवर्सिटी (UKG से PhD तक) के कोर्स संचालित हैं।

 

हम आधुनिक, जुड़ी हुई दुनिया की ज़रूरतों के अनुरूप लगातार विकसित हो रहे हैं।

हमारे यहाँ शिक्षा केवल डिग्री प्राप्त करने तक सीमित नहीं, बल्कि छात्रों को वैश्विक दृष्टिकोण, नैतिक नेतृत्व, और भविष्य के निर्माण की क्षमता से सशक्त बनाना ही हमारा उद्देश्य है।

 

सुनील श्रीवास्तव हिंदी पत्रकारिता और साहित्य की दुनिया का एक जाना-पहचाना नाम हैं। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से भूगोल में परास्नातक और एल.टी. की शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने 1972 में माया पत्रिका से पत्रकारिता की शुरुआत की।  पांच दशकों से अधिक लंबे करियर में वे माया, धर्मयुग, नूतन कहानियां, हितवाद, ज्ञानयुग, प्रभात खबर, लोकमत समाचार, मनोरमा जैसी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं के संपादकीय विभाग में सक्रिय रहे। वे प्रभात खबर, लोकमत समाचार, राजवार्ता और मनोरमा के संपादक भी रहे।

पत्रकारिता के साथ-साथ वे शिक्षा के क्षेत्र में भी बेहद सक्रिय रहे। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के सेंटर ऑफ मीडिया स्टडीज़ में बारह वर्षों तक अध्यापन करने के अलावा, रांची विश्वविद्यालय, माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय (भोपाल), उत्तर प्रदेश राजर्षि टंडन ओपन यूनिवर्सिटी (प्रयागराज) और भारती विद्या भवन (प्रयागराज) सहित कई संस्थानों में अतिथि प्रवक्ता के रूप में योगदान दिया।

साहित्य सृजन के क्षेत्र में भी उनकी गहरी पकड़ है। उन्होंने ताकि सनद रहे, खोया हुआ ठहराव, उन गलियों से गुजरते हुए जैसे कहानी संग्रह, नदी को बहने दो, सुनरी, जुड़ने का एहसास, सुक्खू नचनियां जैसे उपन्यास और सड़क में तब्दील होती पगडंडियाँ जैसा कविता संग्रह रचे हैं। धर्मवीर भारती और अमरकांत जैसे साहित्यिक हस्तियों पर संपादन कार्य भी किया है। उनकी रचनाएं धर्मयुग, साप्ताहिक हिन्दुस्तान, नई कहानियां और अन्य प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में प्रकाशित हुईं। साथ ही, रेडियो और दूरदर्शन से भी उनकी कहानियां और वार्ताएं प्रसारित होती रही हैं।

अपने योगदान के लिए उन्हें हेरम्ब मिश्र स्मृति पत्रकारिता शिखर सम्मान से सम्मानित किया गया। वर्तमान में वे स्वतंत्र पत्रकारिता कर रहे हैं और साहित्यिक लेखन से सक्रिय रूप से जुड़े हुए हैं।  साहित्य, मीडिया शिक्षा और पत्रकारिता समेत उनकी इस क्षेत्र में उपलब्धियों और मौजूदा दौर की परिस्थितियों-चुनौतियों पर उनसे लम्बी बातचीत की एड इनबॉक्स के संपादक रईस अहमद 'लाली' ने। प्रस्तुत हैं प्रमुख अंश:   

आपने 1972 में माया पत्रिका से पत्रकारिता की शुरुआत की। उस दौर की पत्रकारिता और आज की पत्रकारिता में सबसे बड़ा अंतर आप किस रूप में देखते हैं?
- 1972 में जब मैंने माया से अपने करियर की शरुआत की तो अब की पत्रकारिता से वह बहुत अलग था। तब भाषा और नैतिकता पर काफी गंभीरता से गौर किया जाता था। तब हम बलात्कार जैसे शब्द नहीं लिख सकते थे, उसकी जगह पर मुंह काला किया या कुछ दूसरे शब्दों का प्रयोग होता था। हमारे वरिष्ठ कहते थे कि जब हम बलात्कार लिखते हैं तो हमारे मष्तिष्क में एक दृश्य उभरता है जो समाज के लिए घातक है। हम किसी अपराधी को सीधे अपराधी नहीं लिख सकते थे, कथित अपराधी लिखते थे। माया में तब कहानियां प्रकाशित होती थीं, जिनमें सभी भाषाओं की कहानियां होती थीं, बाद में माया में समय के साथ बहुत कुछ बदला और वह पूरी तरह राजनीतिक हो गयी। 
आज की पत्रकारिता सभी देख रहे हैं। हर तरफ गिरावट दर्ज की जा रही है। भाषा से लेकर समाज के प्रति प्रतिबद्धता तक कटघरे में है। आज मैं पत्रकारिता में नैतिकता की गिरावट, भाषा की विद्रूपता और पत्रकारिता के प्रति जूनून की कमी देखता हूँ। राजनीति सर चढ़ कर बोल रही है। जातिवाद का खतरनाक सोच समाज को बाँट रहा है जिसमें पत्रकारिता भी गहराई से शामिल है। व्यावसायिकता के गिरफ्त में पत्रकारिता पूरी आ गयी है और उसमें भी वही दोष आ गए हैं जो व्यवसाय में होते हैं। 

आप प्रभात खबर, लोकमत समाचार, राजवार्ता और मनोरमा जैसे प्रकाशनों के संपादक रहे। संपादन के अनुभव ने आपके भीतर पत्रकारिता की कौन-सी नई दृष्टि विकसित की?
- प्रभात खबर हो या लोकमत समाचार ये समाचार पत्र थे जब कि राजवार्ता और मनोरमा का आकाश दूसरा था। पाठक भी अलग थे। हाँ, प्रभात खबर और लोकमत समाचार समाज के प्रति जिम्मेदार थे। रांची जो एक आदिवासी बहुल, झारखंड आन्दोलन अपने चरम पर था। वहां से भाजपा समर्थक अखबार रांची एक्सप्रेस पहले से निकल रहा था। इसलिए प्रभात खबर के समक्ष एक चुनौती तो थी जिसे उसने बहुत सीमा तक पूरा भी किया, लेकिन बाद में पटना से हिन्दुस्तान और नवभारत टाइम्स के आने से स्थिति में बदलाव आया जिसका मुख्य कारण प्रभात खबर के प्रबन्धन का आर्थिक रूप से कमजोर होना था। प्रभात खबर हिन्दी का पहला अखबार था, जिसने समाचार के साथ विचार देना प्रारम्भ किया था। इसके साथ ही यह हिन्दी का पहला अखबार था जो अपना साहित्य परिशिष्ट पत्रिका की आकार में बत्तीस पृष्ठ का प्रकाशित करता था, इसलिए यह समाज के हर वर्ग में पढ़ा जाता था। लेकिन बाद में मालिकों के आपसी झगडे में इसका बहुत नुक्सान हुआ और अंत में उषा मार्टिन के हाथों बेच दिया गया। उसकी कहानी अलग है। 
लोकमत समाचार अहिन्दी भाषी क्षेत्र में एक चुनौती के साथ निकला था। नागपुर में नवभारत एक पुराना अखबार था। उसके साथ लोकमत समाचार का सीधा टक्कर था, लेकिन लोकमत का नेटवर्क बहुत बड़ा था। लोकमत मराठी का पूरे महारष्ट्र में एकाधिकार था और आज भी है। उसका लाभ लोकमत समाचार को मिला, साथ ही लोकमत समाचार ने अपने परिशिष्टों के भी अन्य समाचार पत्रों से अलग रखा। रविवारीय परिशिष्ट लोकरंग के साथ महिलाओं के लिए अलग अंतराल और फिल्म के लिए अलग परिशिष्ट रखे। भाषा पर अधिक बल दिया जिससे मराठी भाषी भी समझ सकें। बहुत जल्दी ही लोकमत समाचार पाठकों के बीच लोकप्रिय हो गया। पहले पृष्ठ पर 25/4 से ज्यादा विज्ञापन नहीं लेते थे। विज्ञापन और पठनीय सामग्री का अनुपात भी नियमानुसार ही होता था। आज लोकमत समाचार महाराष्ट्र का सबसे अधिक बिकने वाला हिन्दी अखबार हो गया है लेकिन उसके साथ भी वही सब जुड़ गया है जो आज की पत्रकारिता के साथ जुड़ गया है। 
खरब प्रबन्धन के कारण राजवार्ता का सिर्फ एक अंक निकला था, वह भी दो वर्ष बाद। लेकिन मनोरमा बंद होने के बाद दोबारा लगभग पांच वर्षों तक निकला लेकिन अपने पुराने गौरव को प्राप्त नहीं कर सका क्योंकि उसके पास जो पुराने संसाधन थे भैयन के आपसी लड़ाई में समाप्त हो गया था। सत्य कथा अन्य दो भाइयों के पास आ गया था और मनोहर कहानिया दो भाइयों के पास और मनोरमा तथा माया विभाजन के कारण सब कुछ तहस नहस हो गया था। 
मैंने इतने संस्थानों में काम करने के बाद एक बात स्पष्ट रूप से देखा था कि यदि आप को सफल पत्रकार होना है तो प्रबन्धन के प्रिय बने रहिये। चाटुकारिता और लाइजिनिंग में समय ज्यादा दीजिये। बाकी अखबार निकालने का काम तो स्टाफ कर ही लेगा। मैंने यही काम कभी नहीं किया। 
मालिकों का राजनीति में प्रवेश शुरू हो चुका था। राज्यसभा में जाना उनका उद्देश्य हो गया था, और यही प्रबल इच्छा पत्रकारों में भी हो गयी थी। कुछ ने सफलता भी अर्जित की जिनका नाम लेने की ज़रुरत मैं नहीं समझता। मैंने अपने को राजनीति से अलग हर क्षेत्र में अपनी जगह बनाने की कोशिश की, कहाँ तक सफल हो पाया इसका अनुमान मैं नहीं लगा सकता। 

वर्तमान में भारत में पत्रकारिता शिक्षा की स्थिति कैसी है?
- पत्रकारिता की शिक्षा भी व्यावहारिक नहीं रह गयी है। विज्ञान में जैसे थ्योरी और प्रैक्टिकल होता था, वैसे ही आज पत्रकारिता की शिक्षा में भी है। व्यवसायिक सिक्षा तो हो गयी है लेकिन व्यावहारिक ज्ञान की कमी है। संस्थानों से निकलकर छात्र भटक रहे हैं। शिक्षा तो उन्हें सैद्धांतिक रूप में रिपोर्टंग, लेखन, विज्ञापन, प्रबन्धन, न्यू मीडिया आदि का ज्ञान तो दिया जाता है लेकिन व्यावहारिक ज्ञान उन्हें नहीं मिल पाता। पहले संगीत और पत्रकारिता में अनुभवी अध्यापकों की नियुक्ति होती थी, लेकिन आज यूजीसी के मानक के अनुसार अध्यापक रखे जाते हैं जो किताबी ज्ञान तो दे देते हैं लेकिन व्यावहारिक ज्ञान नहीं दे पाते क्योंकि उनके पास यह है ही नहीं।

हिंदी पत्रकारिता में वर्तमान समय में आपको सबसे बड़ी चुनौती क्या दिखाई देती है?
- हिन्दी पत्रकारिता की सबसे बड़ी चुनौती भाषा, कंटेंट और कमिटमेंट की है। जूनून कहीं नहीं दिखाई देता। ईमानदारी भी नहीं दिखाई देती। महानगरों के पत्रकार छोटे शहरों के पत्रकारों को पत्रकार मानते ही नहीं। यही नहीं, हिन्दी पत्रकारिता भी सेलेक्टिव हो गयी है। 

डिजिटल मीडिया और सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव को ध्यान में रखते हुए पाठ्यक्रम में क्या बदलाव किए जा सकते हैं?
-  डिजिटल और सोशल मीडिया का प्रभाव बढ़ रहा है और बढ़ेगा आगे भी, इसकी कोई सीमा तय नहीं की जा सकती। हाँ, समय-समय पर पाठ्यक्रम बदले जा रहे हैं और बदले जाएंगे। तकनीक उन्नत होती गयी तो उसे पाठ्यक्रम रखा गया और समय-समय पर जो भी सामाजिक या तकनीकी अथवा डिजिटल- सोशल बदलाव होंगे, उसी के अनुसार पाठ्यक्रम भी बदले जायेंगे। बिना बदलाव के शिक्षा अधूरी ही नहीं बल्कि असामयिक भी हो जायेगी, उसका कोई अर्थ नहीं रह जाएगा। इसलिए बदलाव होते रहेंगे।

आपके अनुभव में छात्र किन क्षेत्रों में सबसे ज्यादा कमजोर रहते हैं और उन्हें सुधारने के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं?
- छात्र अगर कहीं कमजोर हैं तो वह भाषा और समसामयिक विषय है। हालांकि जो छात्र पत्रकारिता में आ रहे हैं, उन्हें बदलते समय के साथ यह इल्म भी हो रहा है कि उन्हें यदि इस क्षेत्र में बने रहना है तो अपने को हर क्षेत्र में अपडेट रहना होगा। 

मीडिया उद्योग में वर्तमान ट्रेंड और अवसर क्या हैं?
-आज की पत्रकारिता समाज से पूरी तरह कट गयी है। राजनीति से चिपककर चलने वाली प्त्रार एवं पत्रकारिता को आज गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है। मुझे यह कहने में ज़रा भी गुरेज नहीं है कि इलेक्ट्रानिक मीडिया ने पत्रकारिता को बहुत नुक्सान पहुंचाया है। राजनीतिक विश्लेष्ण के नाम पर जितने भी यू ट्यूब चैनल चल रहे हैं इनसे भी पत्रकारिता का ह्रास हुआ है। यह कह सकते हैं कि हो रहा है, अपवाद की बात मैं नहीं कर रहा हूँ। 

क्या आप मानते हैं कि प्रिंट मीडिया की तुलना में डिजिटल मीडिया में करियर के अवसर अधिक हैं?
- जहां तक करियर का सवाल है वह हर क्षेत्र में है, बस अपने को उसके अनुसार ढालना होगा। कुछ तो अपने संस्थान से ज्ञान लेकर आते हैं बाकी कार्यक्षेत्र में सीख जाते हैं। अब पत्रकारिता को काफी विस्तार मिल चुका है। प्रिंट में तनिक कम है लेकिन डिजिटल में काफी स्कोप है।  

पत्रकारिता में एथिक्स (नैतिकता) और सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी के महत्व पर आपके विचार क्या हैं?
- कभी भी नैतिकता और सामाजिक जिम्मेदारी को कैसे नकारा जा सकता है। सब कुछ इसी पर तो निर्भर है। अगर इसमें से कुछ भी लचका तो सब तितर बितर हो जाएगा। 

मीडिया के क्षेत्र में आने वाले नए तकनीकी बदलाव जैसे AI और डेटा जर्नलिज्म के बारे में आपकी राय क्या है?
- किसी भी तरह के बदलाव को स्वीकार तो करना ही होगा वरना भविष्य उन्नत नहीं हो सकता लेकिन इसके साथ ही साथ इसके दुरुपयोग के बारे में भी सतर्क रहना होगा। चूंकि मुझे लगभग एक दशक पत्रकारिता और अध्यापन से अलग हुए हो गया, इसलिए बहुत कुछ कहना संभव नहीं है। 

आपके अनुसार मीडिया शिक्षा और अकादमिक अनुसंधान का वास्तविक मीडिया उद्योग में क्या योगदान है?
- किसी भी क्षेत्र में अनुसंधान की अनदेखी नहीं की जा सकती, इससे नए आयाम तलाशे जाते हैं जो भविष्य में एक राह बनाते हैं। आज पत्रकार और पत्रकारिता के सामने सबसे बड़ी चुनौती पत्रकारिता का राजनीतिकरण है। पत्रकारिता घूम-फिरकर राजनीति पर टिक गयी है जिसके कारण पत्रकार के आचरण पर भी संदेह होने लगा है। तकनीक कोई चुनौती नहीं है वह तो व्यवसाय या उद्योग की सफलता के लिए आवश्यक है।  

इलाहाबाद विश्वविद्यालय और अन्य संस्थानों में आपने पत्रकारिता का अध्यापन किया। कक्षा में आने वाले विद्यार्थियों की सोच और सवालों ने आपको किस तरह प्रभावित किया?
- इलाहाबाद विश्वविद्यालय ही नहीं, अन्य संस्थानों में छात्र बहुत जिज्ञासु दिखाई पड़े। समसामयिक बदलाव के प्रति भी वह सचेत थे और आज भी हैं। हाँ, क्षेत्र अलग हो सकते हैं जैसे- कोई स्क्रिप्ट पर ध्यान देना चाहता है तो कोई सम्पादन में दिलचस्पी रखता है, कुछ छात्र कैमरे का चुनते हैं और तदनुसार प्रश्न भी पूछते हैं और उसका निवारण करना ही शिक्षक का पहला कर्तव्य होता है। आज छात्र स्वयं जिज्ञासा गूगल आदि के माध्यम से शांत करते हैं। 

आपको क्या लगता है, आज के पत्रकारिता संस्थान विद्यार्थियों को बदलती मीडिया दुनिया की चुनौतियों के लिए कितनी अच्छी तरह तैयार कर पा रहे हैं?
- वर्तमान में सभी संस्थान तो नहीं लेकिन बहुत से ऐसे संस्थान हैं जो छात्रों को शिक्षा के सारे इक्विपमेंट उपलब्ध कराते हैं, फीस भी लाखों में लेते हैं। वह भी शिक्षा को व्यवसाय समझते हैं और उसी तरह व्यावसायिक शिक्षा दे भी रहे हैं। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि अन्य क्षेत्रों की तरह  इस क्षेत्र में भी विद्यार्थी संस्थानों से निकल  ज्यादा रहे हैं, ऐब्जार्ब कम हो रहे हैं, अनुपात ज्यादा है। 

किन कौशलों और अनुभवों पर छात्रों को विशेष ध्यान देना चाहिए?
- एक पत्रकार को अध्ययनशील, ईमानदार, अच्छी भाषा और समाज के प्रति जागरूक होना चाहिए। साफ़ सोच और किसी भी वाद से दूर रहना चाहिए। आज पत्रकारिता की शिक्षा जो विभिन्न संस्थानों में दी जा रही है, उससे मैं बहुत ज्यादा आशान्वित नहीं हूँ। पत्रकारिता तकनीक नहीं है। वह इससे परे है। समाज में सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही स्थितियां बनती-बिगड़ती रही हैं। पहले पत्रकारिता का सरोकार समाज से ही जुड़ता है, लेकिन आज समाज पत्रकारिता से समाज अनुपस्थित है। राजनीति कहीं बहुत ऊपर हो गयी है जो पत्रकारिता के मूल स्वभाव को क्षति पहुंचा रही है। आज संस्थानों में तकनीकी शिक्षा ज्यादा दी जा रही है। अनुभवी अध्यापकों की निहायत कमी है, इसलिए उन्हें व्यावहारिक ज्ञान नहीं मिल पाता है।  

आपने कहानियां, उपन्यास और कविताएं लिखीं। पत्रकारिता और साहित्य—इन दोनों के लेखन में आपके अनुभव में सबसे बड़ा फर्क क्या है?
- समय के साथ साहित्यिक विधाओ के कथ्य और शिल्प में परिवर्तन हुआ है, लेखकों के सोशल कमिटमेंट में भी कमी आयी है। मैं जब लिख रहा था तो साहित्यिक पत्रिकाएं बहुत थीं। नई कहानी के रचानाकारों के साथ साठोत्तरी पीढी भी अनवरत लिख रही थी। साठोत्तरी पीढी के बाद हमारी पीढी में भी बहुत से रचानाकार बड़ी शिद्दत के साथ लिख रहे थे, जो आज भी कमोबेश लिख रहे हैं। 

आपके लंबे अनुभव को देखते हुए, युवा पत्रकारों और लेखकों के लिए आप क्या संदेश देना चाहेंगे?
- रईस भाई, आज किसी को भी कोई सन्देश देना बहुत मुश्किल है। मैं बस यही कहूंगा कि जिस भी क्षेत्र में जाएँ पूरी ईमानदारी के साथ, पूरे कमिटमेंट के साथ। 

 

 

 

Stay Fit Run India के ज़रिये राष्ट्र की वेलनेस क्रांति को गति दे रही महिला उद्यमी प्रज्ञा दास सिंह से ख़ास बातचीत 

भारत की नई पीढ़ी में कुछ ऐसे प्रेरक चेहरे सामने आ रहे हैं, जो केवल सपने नहीं देखते, बल्कि उन्हें अपने विचार, जुनून और निरंतरता से साकार भी करते हैं। Positive Synergy की सह-संस्थापक और निदेशक प्रज्ञा दास सिंह, उन्हीं अग्रणी महिलाओं में से हैं, जिन्होंने कम आयु में ही यह सिद्ध कर दिखाया कि परिवर्तन लाने के लिए न उम्र मायने रखती है, न सीमित संसाधन, अगर कुछ मायने रखता है तो बस सोच, निष्ठा और संकल्प।

प्रज्ञा के नेतृत्व में आरंभ हुआ 'Stay Fit Run India' सिर्फ एक रनिंग इवेंट नहीं, बल्कि शरीर और मन दोनों की हेल्थ को समाज के केंद्र में लाने वाला एक विराट जनांदोलन है, एक राष्ट्रीय वेलनेस क्रांति जिसने छोटे कस्बों से लेकर महानगरों तक हज़ारों लोगों के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा, जागरूकता और बदलाव का संचार किया है। यही कारण है कि आज यह देश का अग्रणी वेलनेस अभियान बन चुका है, जिसमें तन की तंदुरुस्ती, मानसिक संतुलन और समुदाय की शक्ति, तीनों का एक नया प्रतिमान गढ़ा जा रहा है। हाल ही में उनके साथ एड-इनबॉक्स के संपादक रईस अहमद 'लाली' का विस्तार से संवाद हुआ, पेश हैं उस बातचीत के कुछ अंश...

▫️सफलता की कहानी
प्रश्न- प्रज्ञा जी इतनी कम उम्र में Positive Synergy की स्थापना के साथ एक प्रभावशाली उद्यमी बनने का सफर आपने कैसे तय किया? आपकी सबसे बड़ी प्रेरणा क्या रही?

उत्तर: बचपन से ही मैं हर चुनौती को स्वीकारने के लिए तत्पर थी, चाहें पढ़ाई हो, सांस्कृतिक गतिविधियां हो या खेल। शुरुआत में मेरी उपलब्धियां मुझे प्रेरणा देती रहीं, परंतु जीवन के बदलते दौर में मैं औसत विद्यार्थी बन के रह गई। फिर भी मेरे मन के भीतर हमेशा यह दृढ़ विश्वास था कि मैं कुछ अलग कर सकती हूं। करीब एक दशक के कॉर्पोरेट अनुभव के बाद जब जीवन की एकरसता तोड़ने की आवश्यकता महसूस हुई, तभी अपनी इच्छाशक्ति के बल पर 'Positive Synergy Productions' का बीज रोपा। नवाचार, प्रयोग और साहस ने मेरे उद्यमी सफर को एक सार्थक उद्देश्य और रोमांच से भर दिया।

 ▫️महिला नेतृत्व की चुनौतियां 
प्रश्न- महिला उद्यमिता में कदम रखते हुए किस प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ा और आपने उन्हें कैसे पार किया?

उत्तर: एक महिला के रूप में अक्सर मेरी नेतृत्व क्षमताओं को लेकर संदेह किया गया। संसाधनों की कमी और बड़े अवसरों का सहज न मिलना सामान्य रहा। किंतु मैं हर चुनौती को एक सीख और सीढ़ी मानती रही। दृढ़ता, पारदर्शिता और सहयोग मांगने का साहस मेरी सबसे बड़ी शक्ति बना।

▫️व्यक्तित्व निर्माण
प्रश्न- आपकी प्रारंभिक शिक्षा, पारिवारिक परिवेश और कॉलेज जीवन ने आपके दृष्टिकोण को किस प्रकार गढ़ा?

उत्तर: मेरे पालन-पोषण ने अनुशासन व करुणा दी, प्रारंभिक शिक्षा ने जिज्ञासा और ठोस आधार, वहीं कॉलेज जीवन ने टीम भावना और नेतृत्व का एहसास कराया। मेरे अनुभवों ने मुझे सिखाया कि विवेक, विश्वास और सहयोग से हर चुनौती को अवसर में बदला जा सकता है।

▫️समाज की जरूरत
प्रश्न- आज की जीवनशैली में, विशेषकर छोटे शहरों व ग्रामीण अंचलों में, वेलनेस और स्वास्थ्य जागरूकता को विस्तार देना क्यों आवश्यक हो गया है?

उत्तर: इन क्षेत्रों में आज भी लोग उपचार को ज्यादा गंभीर मानते हैं, रोकथाम की समझ सीमित है। वेलनेस अभियान समुदायों में स्वास्थ्य के प्रति जिम्मेदारी, निवारक सोच और सक्रियता को प्रोत्साहित कर नई संस्कृति गढ़ते हैं।

▫️मूवमेंट की शुरुआत
प्रश्न- Stay Fit Run को पैन इंडिया अभियान बनाने की प्रेरणा कहां से मिली और इसके पीछे आपका मुख्य विज़न क्या था?

उत्तर: विचार यह था: “अगर देश के लोग किसी कारणवश एक साथ दौड़ सकते हैं तो क्यों न स्वास्थ्य, मानसिक तंदरुस्ती और सामाजिक सहभागिता के लिए भी इस एकजुटता का लाभ उठाएं” हमारा विज़न था कि स्थानीय व्यापार, समुदाय, युवा और महिलायें साथ मिलकर एक नए प्रभावशाली हेल्थ कैम्पेन का निर्माण करें।

▫️समस्या और समाधान
प्रश्न- हेल्थ और वेलनेस के क्षेत्र में सबसे बड़ी चुनौतियां आपको क्या लगती हैं; इनका समाधान क्या है?

उत्तर: सबसे बड़ी बाधा हमारे समाज की मानसिकता व जड़ता है, लोग तब तक लापरवाह रहते हैं जब तक उनका स्वास्थ्य बिगड़ न जाए, और दूसरा, जानकारी व संसाधनों की पहुँच सीमित है। समाधान यही है—'Stay Fit Run' जैसी जमीनी कदम उठाये जायें, जहां लोग स्वेच्छा से जुड़ें, बदलाव को अनुभव करें और हमारे युवा समाज को आगे बढ़ायें।

▫️महिला सशक्तिकरण व प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के फिट इंडिया मिशन से जुड़ाव
प्रश्न- आप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के 'फिट इंडिया' मिशन से कितनी प्रेरित हैं? क्या आपके अभियान को सरकार से समर्थन मिल  रहा है?

उत्तर: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 'फिट इंडिया' पहल न केवल दूरदर्शी है, बल्कि राष्ट्रीय जीवनशैली में बदलाव की संवाहक भी है। हमारे अभियान को भी 'World Cycling Day' पर 'Fit India' के साथ जुड़ने और सार्वजनिक व निजी क्षेत्र से प्रोत्साहन मिला। आने वाले समय में हमने इन्हीं सरकारी अभियानों से आन्दोलन को गहराई से जोड़ने का लक्ष्य रखा है। इसलिए हम केंद्र सरकार और राज्य सरकारों से अपील करते हैं कि वे हमारे कैम्पेन को सफल बनाने के लिए हमारी मदद करें। 

▫️मेंटल वेलनेस की सोच
प्रश्न- फिटनेस के साथ-साथ मानसिक स्वास्थ्य को आपके अभियान का अभिन्न हिस्सा बनाने की प्रेरणा क्या रही?

उत्तर: अपने प्रियजनों को टेंशन और स्ट्रेस में उलझा देखकर हरदम एहसास होता है कि कम्पलीट हेल्थ तभी संभव है जब मन और तन दोनों स्वस्थ हों। इसी सोच से 'Stay Fit Run' के साथ समय समय पर वेलनेस कैम्प, वेबिनार, पॉडकास्ट, व्यायाम प्रशिक्षण और स्ट्रेस मैनेजमेंट सत्र शुरू किए ताकि संवाद सिर्फ दौड़ तक सीमित न रहे।

▫️सक्रिय भागीदारी
प्रश्न- युवाओं, महिलाओं, अभिभावकों और सीनियर सिटीज़न की भागीदारी बढ़ाने के लिए आपने कौन-सी पहलें की गईं?

उत्तर: युवा वर्ग के लिए डिजिटल चैलेंज व सोशल मीडिया को साधा, अभिभावकों को 'रोल मॉडल बनो' कार्यक्रम से प्रेरित किया और महिलाओं हेतु उनके अनुभवों पर केन्द्रित संवाद पेश किए। सीनियर सिटीज़न के अनुभवों से बहुत कुछ सीखने को मिल सकता है इसलिए उनकी भागीदारी के बिना यह कैम्पेन अधूरा है।

▫️विरोध व समाधान
प्रश्न- क्या अभियान के दौरान आपको विरोध या नकारात्मक प्रतिक्रियाओं का सामना करना पड़ा, आपने उनका समाधान कैसे किया?

उत्तर: कुछ लोगों ने शुरुआत में इसे केवल शो-पीस समझा, परंतु समाज में जब सामने से सपोर्ट व भरोसा मिलने लगे और लोग आगे  बढ़कर समाज के हित के लिए आन्दोलन से जुड़ने लगें तो नकारात्मकता स्वतः ही निष्प्रभावी हो जाती है। समर्थकों का विश्वास हमारी सबसे बड़ी ताकत रहा।

▫️परिवार और समाज की भूमिका
प्रश्न- परिवार और समाज की साझीदार भूमिका को लेकर आपका अनुभव क्या है? यदि कोई विशेष घटना याद आ रही हो तो उसे साझा करें।

उत्तर: जब परिवार साथ दौड़ता है, तो संदेश साफ होता है कि हेल्थ एक साझा मूल्य है, एक साझी विरासत है। नोएडा के 'Stay Fit Run' में एक ही परिवार की तीन पीढ़ियों को साथ दौड़ते देखना मेरे लिए एक मील का पत्थर था, हमारी टीम के लिए सबसे बड़ी प्रेरणा बन गया, दरअसल इससे पूरे समुदाय में नई सोच और अनुकरणीय पहल को बल मिला।

▫️आगे की दिशा
प्रश्न- भविष्य में Stay Fit Run और क्या करने जा रहा है? आपकी दीर्घकालिक रणनीति क्या है?

उत्तर: मेरा सपना है कि 'Stay Fit Run India', देश का सबसे बड़ा जमीनी फिटनेस व वेलनेस कैम्पेन बने। हमारी तो यही रणनीति है कि टियर 2-3 टाइप के शहर, स्कूल-कॉलेज व कॉर्पोरेट्स से स्वास्थ्य-संस्कृति को गहराई से जोड़ना। अनुभवी टीम, विशेषज्ञ चिकित्सकों और डिजिटल मीडिया अभियानों के ज़रिए स्थानीय स्तर से राष्ट्रीय अभियान तक हेल्थ और वैलनेस का विस्तार हमारा ध्येय है।

▫️पारिवारिक व गुरु प्रेरणा
प्रश्न- आपके माता-पिता, जीवनसाथी या मार्गदर्शक का आपके जीवन व नेतृत्व में क्या योगदान रहा?

उत्तर: मेरे माता-पिता ने मुझे अनुशासन और करुणा की शिक्षा दी, जीवनसाथी का समर्थन व बेटे का विश्वास हमेशा मेरी ऊर्जा बने। कठिन समयों में उनका संबल हमें दिशा और साहस देता रहा। आज भी पिता की कही पंक्ति कि''अगर तुम्हारा सपना तुम्हें डराता नहीं, तो वह पर्याप्त बड़ा नहीं है'' मुझे हमेशा आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है।

▫️नयी पीढ़ी, विशेषकर युवतियों के लिए संदेश
प्रश्न- शिक्षा, फिटनेस, सामाजिक जागरूकता व नेतृत्व के विषय में आप अपने अनुभव से क्या प्रेरणा देना चाहेंगी?

उत्तर: वर्ग विशेषकर लड़कियों व महिलाओं से यही कहूंगी कि स्वयं की हेल्थ पर निवेश करो: शिक्षा से विवेक, फिटनेस से आत्मबल, जागरूकता से विस्तार और नेतृत्व से साहस हासिल होता है। अपने सामर्थ्य पर विश्वास रखिए कि आप समाज में बड़ा परिवर्तन ला सकती हैं।

▫️जनसहभागिता और साझेदारी
प्रश्न- Stay Fit Run इंडिया में आम जनता, संस्थायें और कॉरपोरेट जगत कैसे भागीदारी निभा सकते हैं?

उत्तर: यह कैम्पेन तभी देशव्यापी बन सकता है जब देश का हर वर्ग, जनमानस, विद्यालय और कॉरपोरेट इसे अपनाए। नागरिक स्वयं दौड़ में हिस्सा लें या स्वयंसेवा करें; विद्यालयों में इसे छात्रों की गतिविधियों से जोड़ा जाए, कॉरपोरेट्स CSR और वेलनेस अभियानों के तहत इसे अपनायें। हम सबके साझा प्रयासों से ही वेलनेस को राष्ट्रीय पहचान मिलेगी। ज्यादा जानकारी के लिए आप मेरी टीम से सीधे संपर्क कर सकते हैं। हमारा ईमेल - This email address is being protected from spambots. You need JavaScript enabled to view it. 

▫️ Stay Fit Run का तीन शब्दों में सार 
प्रश्न- अगर आपको Stay Fit Run को तीन शब्दों में परिभाषित करना हो, वे कौन-से होंगे?

उत्तर: स्वास्थ्य - समुदाय - नवपरिवर्तन


प्रज्ञा दास सिंह ने अपने जुनून और दृष्टिकोण से यह साकार किया है कि एक महिला उद्यमी न केवल अपने सपनों को पहचान सकती है, बल्कि समाज को भी नई दिशा दे सकती है। 'Stay Fit Run' आज केवल एक मुहिम नहीं, बल्कि ऐसा आंदोलन है, जिसने फिटनेस को मानसिक स्वास्थ्य से जोड़कर उसे भारतवासियों के जीवन का अहम हिस्सा बना दिया है। निश्चित ही, यह अभियान निकट भविष्य में न सिर्फ भारत, बल्कि वैश्विक परिप्रेक्ष्य में स्वास्थ्य व वेलनेस के मायनों को पुनर्परिभाषित करने की क्षमता रखता है।

CUET-UG में 100 परसेंटाइल स्कोर करने वाली अंतरा पाण्डेय का इंटरव्यू

एक बेहद खास और प्रेरणादायक शख्सियत— अंतरा पाण्डेय। अमेठी के फुरसतगंज स्थित फुटवियर डिजाइन एंड डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट (FDDI) में कार्यरत नलिन पांडे की पुत्री अंतरा ने कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट (CUET-UG) 2025 में बायोलॉजी विषय में 100 परसेंटाइल स्कोर कर एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है।

देशभर से इस प्रतिष्ठित परीक्षा में 10.7 लाख विद्यार्थियों ने भाग लिया था, जिनमें से केवल 2679 छात्र ही 100 परसेंटाइल प्राप्त कर पाए। इस कठिन प्रतिस्पर्धा में अंतरा की सफलता न केवल उनके परिवार, बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए गर्व की बात है।

उनकी माँ भूमिका पाण्डेय के अनुसार, यह उपलब्धि अंतरा की कड़ी मेहनत, समर्पण और आत्मविश्वास का परिणाम है। अंतरा का सपना एक वैज्ञानिक बनकर देश की सेवा करना है — और आज उनके इस सफर की शुरुआत का हम साक्षात्कार करने जा रहे हैं। उनसे बात की एडइनबॉक्स के संपादक रईस अहमद 'लाली' ने। 

चलिए, जानते हैं अंतरा की इस प्रेरणादायक यात्रा के बारे में, उन्हीं की ज़ुबानी। 


प्रश्न 1. अंतरा, सबसे पहले आपको इस उपलब्धि पर बहुत बधाई! कैसा लग रहा है?
उत्तर: बहुत अच्छा लग रहा है। यह मेरी मेहनत और मेरे माता-पिता के आशीर्वाद का नतीजा है। खुशी है कि मैंने उनके विश्वास को कायम रखा।

प्रश्न 2. CUET-UG की तैयारी आपने कब और कैसे शुरू की थी?
उत्तर: मैंने 12वीं क्लास से ही नींव मजबूत करना शुरू कर दिया था। नियमित पढ़ाई, एनसीईआरटी पर फोकस और मॉक टेस्ट मेरी तैयारी का अहम हिस्सा रहे।

प्रश्न 3. बायोलॉजी में 100 परसेंटाइल लाना बेहद कठिन होता है। आपकी रणनीति क्या रही?
उत्तर: बायोलॉजी मुझे शुरू से पसंद रहा है। मैंने हर चैप्टर को गहराई से पढ़ा, चार्ट्स और डायग्राम्स से याद किया, और NCERT को 3-4 बार दोहराया।

प्रश्न 4. आपने किसी कोचिंग की मदद ली या सेल्फ स्टडी पर भरोसा किया?
उत्तर: मैंने सीमित ऑनलाइन कोचिंग ली, लेकिन मुख्य रूप से सेल्फ स्टडी की। खुद पर भरोसा और अनुशासन सबसे अहम रहा।

प्रश्न 5. पढ़ाई के दौरान समय प्रबंधन और तनाव को कैसे हैंडल किया?
उत्तर: समय का शेड्यूल बनाकर चलती थी। बीच-बीच में ध्यान, योग और परिवार से बात करके मानसिक संतुलन बनाए रखा।

प्रश्न 6. आपके माता-पिता की भूमिका इस यात्रा में कितनी महत्वपूर्ण रही?
उत्तर: मेरी माँ भूमिका पाण्डेय और पापा नलिन पांडे ने मुझे हमेशा मोटिवेट किया। जब भी थकान महसूस होती, उनका साथ मुझे ऊर्जा देता था।

प्रश्न 7. आपने वैज्ञानिक बनने का सपना क्यों चुना?
उत्तर: मुझे हमेशा से शोध में रुचि रही है। मैं बायोलॉजिकल रिसर्च में योगदान देना चाहती हूँ, खासकर देश की स्वास्थ्य और पर्यावरण व्यवस्था के लिए।

प्रश्न 8. भविष्य में आप किस यूनिवर्सिटी या संस्थान को चुनना चाहेंगी?
उत्तर: मेरा लक्ष्य देश के टॉप रिसर्च इंस्टीट्यूट्स, जैसे IISc बेंगलुरु या JNU की लाइफ साइंसेज फैकल्टी में जाना है।

प्रश्न 9. सोशल मीडिया या अन्य distractions से आपने कैसे दूरी बनाई?
उत्तर: मैंने सोशल मीडिया को एक टारगेट के बाद ही देखने का नियम बनाया। पढ़ाई के समय उसे दूर रखा।

प्रश्न 10. अंत में, CUET की तैयारी कर रहे छात्रों को आप क्या संदेश देना चाहेंगी?
उत्तर: एकाग्रता और निरंतरता सबसे बड़ी कुंजी है। हर दिन कुछ नया सीखने की कोशिश करें। और सबसे जरूरी – खुद पर विश्वास रखें।

प्रोफ़ेसर (डॉ.) संजय द्विवेदी मीडिया शिक्षा के क्षेत्र में एक जानी-मानी शख्सियत हैं। वे भारतीय जन संचार संस्थान (IIMC) दिल्ली के महानिदेशक रह चुके हैं। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के प्रभारी कुलपति और कुलसचिव बतौर भी उन्होंने अपनी सेवाएं दी हैं। मीडिया शिक्षक होने के साथ ही प्रो.संजय द्विवेदी ने सक्रिय पत्रकार और दैनिक अखबारों के संपादक के रूप में भी भूमिकाएं निभाई हैं। वह मीडिया विमर्श पत्रिका के कार्यकारी संपादक भी हैं। 35 से ज़्यादा पुस्तकों का लेखन और संपादन भी किया है। सम्प्रति वे माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल के जनसंचार विभागमें प्रोफेसर हैं। मीडिया शिक्षा, मीडिया की मौजूदा स्थिति, नयी शिक्षा नीति जैसे कई अहम् मुद्दों पर एड-इनबॉक्स के लिए संपादक रईस अहमद 'लाली' ने उनसे लम्बी बातचीत की है। प्रस्तुत हैं इस बातचीत के सम्पादित अंश : 

 

- संजय जी, प्रथम तो आपको बधाई कि वापस आप दिल्ली से अपने पुराने कार्यस्थल राजा भोज की नगरी भोपाल में आ गए हैं। यहाँ आकर कैसा लगता है आपको? मेरा ऐसा पूछने का तात्पर्य इन शहरों से इतर मीडिया शिक्षा के माहौल को लेकर इन दोनों जगहों के मिजाज़ और वातावरण को लेकर भी है। 

अपना शहर हमेशा अपना होता है। अपनी जमीन की खुशबू ही अलग होती है। जिस शहर में आपने पढ़ाई की, पत्रकारिता की, जहां पढ़ाया उससे दूर जाने का दिल नहीं होता। किंतु महत्वाकांक्षाएं आपको खींच ले जाती हैं। सो दिल्ली भी चले गए। वैसे भी मैं जलावतन हूं। मेरा कोई वतन नहीं है। लेकिन मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की जमीन मुझे बांधती है। मैंने सब कुछ यहीं पाया। कहने को तो यायावर सी जिंदगी जी है। जिसमें दिल्ली भी जुड़ गया। आप को गिनाऊं तो मैंने अपनी जन्मभूमि (अयोध्या) के बाद 11 बार शहर बदले, जिनमें बस्ती, लखनऊ,वाराणसी, भोपाल, रायपुर, बिलासपुर, मुंबई, दिल्ली सब शामिल हैं। जिनमें दो बार रायपुर आया और तीसरी बार भोपाल में हूं। बशीर बद्र साहब का एक शेर है, जब मेरठ दंगों में उनका घर जला दिया गया, तो उन्होंने कहा था-

मेरा घर जला तो

सारा जहां मेरा घर हो गया।

मैं खुद को खानाबदोश तो नहीं कहता,पर यायावर कहता हूं। अभी भी बैग तैयार है। चल दूंगा। जहां तक वातावरण की बात है, दिल्ली और भोपाल की क्या तुलना। एक राष्ट्रीय राजधानी है,दूसरी राज्य की राजधानी। मिजाज की भी क्या तुलना हम भोपाल के लोग चालाकियां सीख रहे हैं, दिल्ली वाले चालाक ही हैं। सारी नियामतें दिल्ली में बरसती हैं। इसलिए सबका मुंह दिल्ली की तरफ है। लेकिन दिल्ली या भोपाल हिंदुस्तान नहीं हैं। राजधानियां आकर्षित करती हैं , क्योंकि यहां राजपुत्र बसते हैं। हिंदुस्तान बहुत बड़ा है। उसे जानना अभी शेष है।

 

- भोपाल और दिल्ली में पत्रकारिता और जन संचार की पढ़ाई के माहौल में क्या फ़र्क़ महसूस किया आपने?

भारतीय जन संचार संस्थान में जब मैं रहा, वहां डिप्लोमा कोर्स चलते रहे। साल-साल भर के। उनका जोर ट्रेनिंग पर था। देश भर से प्रतिभावान विद्यार्थी वहां आते हैं, सबका पहला चयन यही संस्थान होता है। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय इस मायने में खास है उसने पिछले तीस सालों से स्नातक और स्नातकोत्तर के रेगुलर कोर्स चलाए और बड़ी संख्या में मीडिया वृत्तिज्ञ ( प्रोफेसनल्स) और मीडिया शिक्षक निकाले। अब आईआईएमसी भी विश्वविद्यालय भी बन गया है। सो एक नई उड़ान के लिए वे भी तैयार हैं।

 

- आप देश के दोनों प्रतिष्ठित पत्रकारिता संस्थानों के अहम् पदों को सुशोभित कर चुके हैं। दोनों के बीच क्या अंतर पाया आपने ? दोनों की विशेषताएं आपकी नज़र में ?

दोनों की विशेषताएं हैं। एक तो किसी संस्था को केंद्र सरकार का समर्थन हो और वो दिल्ली में हो तो उसका दर्जा बहुत ऊंचा हो जाता है। मीडिया का केंद्र भी दिल्ली है। आईआईएमसी को उसका लाभ मिला है। वो काफी पुराना संस्थान है, बहुत शानदार एलुमूनाई है , एक समृध्द परंपरा है उसकी । एचवाई शारदा प्रसाद जैसे योग्य लोगों की कल्पना है वह। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय(एमसीयू) एक राज्य विश्वविद्यालय है, जिसे सरकार की ओर से बहुत पोषण नहीं मिला। अपने संसाधनों पर विकसित होकर उसने जो भी यात्रा की, वह बहुत खास है। कंप्यूटर शिक्षा के लोकव्यापीकरण में एमसीयू की एक खास जगह है। देश के अनेक विश्वविद्यालयों में आप जाएंगें तो मीडिया शिक्षकों में एमसीयू के  ही पूर्व छात्र हैं, क्योंकि स्नातकोत्तर कोर्स यहीं चल रहे थे। पीएचडी यहां हो रही थी। सो दोनों की तुलना नहीं हो सकती। योगदान दोनों का बहुत महत्वपूर्ण है।

 

- आप लम्बे समय से मीडिया शिक्षक रहे हैं और सक्रिय पत्रकारिता भी की है आपने। व्यवहारिकता के धरातल पर मौजूदा मीडिया शिक्षा को कैसे देखते हैं ?

एक समय था जब माना जाता है कि पत्रकार पैदा होते हैं और पत्रकारिता पढ़ा कर सिखाई नहीं जा सकती। अब वक्त बदल गया है। जनसंचार का क्षेत्र आज शिक्षा की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण हो गया है। 

मीडिया शिक्षा में सिद्धांत और व्यवहार का बहुत गहरा द्वंद है। ज्ञान-विज्ञान के एक अनुशासन के रूप में इसे अभी भी स्थापित होना शेष है। कुछ लोग ट्रेनिंग पर आमादा हैं तो कुछ किताबी ज्ञान को ही पिला देना चाहते हैं। जबकि दोनों का समन्वय जरूरी है। सिद्धांत भी जरूरी हैं। क्योंकि जहां हमने ज्ञान को छोड़ा है, वहां से आगे लेकर जाना है। शोध, अनुसंधान के बिना नया विचार कैसे आएगा। वहीं मीडिया का व्यवहारिक ज्ञान भी जरूरी है। मीडिया का क्षेत्र अब संचार शिक्षा के नाते बहुत व्यापक है। सो विशेषज्ञता की ओर जाना होगा। आप एक जीवन में सब कुछ नहीं कर सकते। एक काम अच्छे से कर लें, वह बहुत है। इसलिए भ्रम बहुत है। अच्छे शिक्षकों का अभाव है। एआई की चुनौती अलग है। चमकती हुई चीजों ने बहुत से मिथक बनाए और तोड़े हैं। सो चीजें ठहर सी गयी हैं, ऐसा मुझे लगता है।

 

- नयी शिक्षा निति को केंद्र सरकार नए सपनों के नए भारत के अनुरूप प्रचारित कर रही है, जबकि आलोचना करने वाले इसमें तमाम कमियां गिना रहे हैं। एक शिक्षक बतौर आप इन नीतियों को कैसा पाते हैं ?

राष्ट्रीय शिक्षा नीति बहुत शानदार है। जड़ों से जोड़कर मूल्यनिष्ठा पैदा करना, पर्यावरण के प्रति प्रेम, व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाना यही लक्ष्य है। किंतु क्या हम इसके लिए तैयार हैं। सवाल यही है कि अच्छी नीतियां- संसाधनों, शिक्षकों के समर्पण, प्रशासन के समर्थन की भी मांग करती हैं। हमें इसे जमीन पर उतारने के लिए बहुत तैयारी चाहिए। भारत दिल्ली में न बसता है, न चलता है। इसलिए जमीनी हकीकतों पर ध्यान देने की जरूरत है। शिक्षा हमारे ‘तंत्र’ की कितनी बड़ा प्राथमिकता है, इस पर भी सोचिए। सच्चाई यही है कि मध्यवर्ग और निम्न मध्यवर्ग ने भी अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों से हटा लिया है। वे सरकारी संस्थानों से कोई उम्मीद नहीं रखते। इस विश्वास बहाली के लिए सरकारी संस्थानों के शिक्षकों, प्रबंधकों और सरकारी तंत्र को बहुत गंभीर होने की जरूरत है। उत्तर प्रदेश के ताकतवर मुख्यमंत्री प्राथमिक शिक्षकों की विद्यालयों में उपस्थिति को लेकर एक आदेश लाते हैं, शिक्षक उसे वापस करवा कर दम लेते हैं। यही सच्चाई है।

 

- पत्रकारिता में करियर बनाने के लिए क्या आवश्यक शर्त है ?

पत्रकारिता, मीडिया या संचार तीनों क्षेत्रों में बनने वाली नौकरियों की पहली शर्त तो भाषा ही है। हम बोलकर, लिखकर भाषा में ही खुद को व्यक्त करते हैं। इसलिए भाषा पहली जरूरत है। तकनीक बदलती रहती है, सीखी जा सकती है। किंतु भाषा संस्कार से आती है। अभ्यास से आती है। पढ़ना, लिखना, बोलना, सुनना यही भाषा का असल स्कूल और परीक्षा है। भाषा के साथ रहने पर भाषा हममें उतरती है। यही भाषा हमें अटलबिहारी वाजपेयी,अमिताभ बच्चन, नरेंद्र मोदी,आशुतोष राणा या कुमार विश्वास जैसी सफलताएं दिला सकती है। मीडिया में अनेक ऐसे चमकते नाम हैं, जिन्होंने अपनी भाषा से चमत्कृत किया है। अनेक लेखक हैं, जिन्हें हमने रात भर जागकर पढ़ा है। ऐसे विज्ञापन लेखक हैं जिनकी पंक्तियां हमने गुनगुनाई हैं। इसलिए भाषा, तकनीक का ज्ञान और अपने पाठक, दर्शक की समझ हमारी सफलता की गारंटी है। इसके साथ ही पत्रकारिता में समाज की समझ, मिलनसारिता, संवाद की क्षमता बहुत मायने रखती है।

 

- मीडिया शिक्षा में कैसे नवाचारों की आवश्यकता है ?

शिक्षा का काम व्यक्ति को आत्मनिर्भर और मूल्यनिष्ठ मनुष्य बनाना है। जो अपनी विधा को साधकर आगे ले जा सके। मीडिया में भी ऐसे पेशेवरों का इंतजार है जो ‘फार्मूला पत्रकारिता’ से आगे बढ़ें। जो मीडिया को इस देश की आवाज बना सकें। जो एजेंड़ा के बजाए जन-मन के सपनों, आकांक्षाओं को स्वर दे सकें। इसके लिए देश की समझ बहुत जरूरी है। आज के मीडिया का संकट यह है वह नागरबोध के साथ जी रहा है। वह भारत के पांच प्रतिशत लोगों की छवियों को प्रक्षेपित कर रहा है। जबकि कोई भी समाज अपनी लोकचेतना से खास बनता है। देश की बहुत गहरी समझ पैदा करने वाले, संवेदनशील पत्रकारों का निर्माण जरूरी है। मीडिया शिक्षा को संवेदना,सरोकार, राग, भारतबोध से जोड़ने की जरूरत है। पश्चिमी मानकों पर खड़ी मीडिया शिक्षा को भारत की संचार परंपरा से जोड़ने की जरूरत है। जहां संवाद से संकटों के हल खोजे जाते रहे हैं। जहां संवाद व्यापार और व्यवसाय नहीं, एक सामाजिक जिम्मेदारी है।

 

- देश में मीडिया की मौजूदा स्थिति को लेकर आपकी राय क्या है ?

मीडिया शिक्षा का विस्तार बहुत हुआ है। हर केंद्रीय विश्वविद्यालय में मीडिया शिक्षा के विभाग हैं। चार विश्वविद्यालय- भारतीय जन संचार संस्थान(दिल्ली), माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विवि(भोपाल), हरिदेव जोशी पत्रकारिता विवि(जयपुर) और कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विवि(रायपुर) देश में काम कर रहे हैं। इन सबकी उपस्थिति के साथ-साथ निजी विश्वविद्यालय और कालेजों में भी जनसंचार की पढ़ाई हो रही है। यानि विस्तार बहुत हुआ है। अब हमें इसकी गुणवत्ता पर ध्यान देने की जरूरत है। ये जो चार विश्वविद्यालय हैं वे क्या कर रहे हैं। क्या इनका आपस में भी कोई समन्वय है। विविध विभागों में क्या हो रहा है। उनके ज्ञान, शोध और आइडिया एक्सचेंज जैसी व्यवस्थाएं बनानी चाहिए। दुनिया में मीडिया या जनसंचार शिक्षा के जो सार्थक प्रयास चल रहे हैं, उसकी तुलना में हम कहां हैं। बहुत सारी बातें हैं, जिनपर बात होनी चाहिए। अपनी ज्ञान विधा में हमने क्या जोड़ा। हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री ने भी एक समय देश में एक ग्लोबल कम्युनिकेशन यूनिर्वसिटी बनाने की बात की थी। देखिए क्या होता है।

    बावजूद इसके हम एक मीडिया शिक्षक के नाते क्या कर पा रहे हैं। यह सोचना है। वरना तो मशहूर शायर अकबर इलाहाबादी हमारे लिए ही लिख गए हैं-

हम क्या कहें अहबाब क्या कार-ए-नुमायाँ कर गए।

बी-ए हुए नौकर हुए पेंशन मिली फिर मर गए।।

 

- आज की मीडिया और इससे जुड़े लोगों के अपने मिशन से भटक जाने और पूरी तरह  पूंजीपतियों, सत्ताधीशों के हाथों बिक जाने की बात कही जा रही है। इससे आप कितना इत्तेफ़ाक़ रखते हैं?

देखिए मीडिया चलाना साधारण आदमी को बस की बात नहीं है। यह एक बड़ा उद्यम है। जिसमें बहुत पूंजी लगती है। इसलिए कारपोरेट,पूंजीपति या राजनेता चाहे जो हों, इसे पोषित करने के लिए पूंजी चाहिए। बस बात यह है कि मीडिया किसके हाथ में है। इसे बाजार के हवाले कर दिया जाए या यह एक सामाजिक उपक्रम बना रहेगा। इसलिए पूंजी से नफरत न करते हुए इसके सामाजिक, संवेदनशील और जनधर्मी बने रहने के लिए निरंतर लगे रहना है। यह भी मानिए कोई भी मीडिया जनसरोकारों के बिना नहीं चल सकता। प्रामणिकता, विश्वसनीयता उसकी पहली शर्त है। पाठक और दर्शक सब समझते हैं।

 

- आपकी नज़र में इस वक़्त देश में मीडिया शिक्षा की कैसी स्थिति है ? क्या यह बेहतर पत्रकार बनाने और मीडिया को सकारात्मक दिशा देने का काम कर पा रही है ?

मैं मीडिया शिक्षा क्षेत्र से 2009 से जुड़ा हूं। मेरे कहने का कोई अर्थ नहीं है। लोग क्या सोचते हैं, यह बड़ी बात है। मुझे दुख है कि मीडिया शिक्षा में अब बहुत अच्छे और कमिटेड विद्यार्थी नहीं आ रहे हैं। अजीब सी हवा है। भाषा और सरोकारों के सवाल भी अब बेमानी लगने लगे हैं। सबको जल्दी ज्यादा पाने और छा जाने की ललक है। ऐसे में स्थितियां बहुत सुखद नहीं हैं। पर भरोसा तो करना होगा। इन्हीं में से कुछ भागीरथ निकलेंगें जो हमारे मीडिया को वर्तमान स्थितियों से निकालेगें। ऐसे लोग तैयार करने होंगें, जो बहुत जल्दी में न हों। जो ठहरकर पढ़ने और सीखने के लिए तैयार हों। वही लोग बदलाव लाएंगें।

 

- देश में आज मीडिया शिक्षा के सामने प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

सबसे बड़ी चुनौती है ऐसे विद्यार्थियों का इंतजार जिनकी प्राथमिकता मीडिया में काम करना हो। सिर्फ इसलिए नहीं कि यह ग्लैमर या रोजगार दे पाए। बल्कि देश के लोगों को संबल, साहस और आत्मविश्वास दे सके। संचार के माध्यम से क्या नहीं हो सकता। इसकी ताकत को मीडिया शिक्षकों और विद्यार्थियों को पहचानना होगा। क्या हम इसके लिए तैयार हैं,यह एक बड़ा सवाल है। मीडिया शिक्षा के माध्यम से हम ऐसे क्म्युनिकेटर्स तैयार कर सकते हैं जिनके माध्यम से समाज के संकट हल हो सकते हैं। यह साधारण शिक्षा नहीं है। यह असाधारण है। भाषा,संवाद,सरोकार और संवेदनशीलता से मिलकर हम जो भी रचेगें, उससे ही नया भारत बनेगा। इसके साथ ही मीडिया एजूकेशन कौंसिल का गठन भारत सरकार करे ताकि अन्य प्रोफेशनल कोर्सेज की तरह इसका भी नियमन हो सके। गली-गली खुल रहे मीडिया कालेजों पर लगाम लगे। एक हफ्ते में पत्रकार बनाने की दुकानों पर ताला डाला जा सके। मीडिया के घरानों में तेजी से मोटी फीस लेकर मीडिया स्कूल खोलने की ललक बढ़ी है, इस पर नियंत्रण हो सकेगा। गुणवत्ता विहीन किसी शिक्षा का कोई मोल नहीं, अफसोस मीडिया शिक्षा के विस्तार ने इसे बहुत नीचे गिरा दिया है। दरअसल भारत में मीडिया शिक्षा मोटे तौर पर छह स्तरों पर होती है। सरकारी विश्वविद्यालयों या कॉलेजों में, दूसरे, विश्वविद्यालयों से संबंद्ध संस्थानों में, तीसरे, भारत सरकार के स्वायत्तता प्राप्त संस्थानों में, चौथे, पूरी तरह से प्राइवेट संस्थान, पांचवे डीम्ड विश्वविद्यालय और छठे, किसी निजी चैनल या समाचार पत्र के खोले गए अपने मीडिया संस्थान। इस पूरी प्रक्रिया में हमारे सामने जो एक सबसे बड़ी समस्या है, वो है किताबें। हमारे देश में मीडिया के विद्यार्थी विदेशी पुस्तकों पर ज्यादा निर्भर हैं। लेकिन अगर हम देखें तो भारत और अमेरिका के मीडिया उद्योगों की संरचना और कामकाज के तरीके में बहुत अंतर है। इसलिए मीडिया के शिक्षकों की ये जिम्मेदारी है, कि वे भारत की परिस्थितियों के हिसाब से किताबें लिखें।

 

- भारत में मीडिया शिक्षा का क्या भविष्य देखते हैं आप ?

मीडिया शिक्षण में एक स्पर्धा चल रही है। इसलिए मीडिया शिक्षकों को ये तय करना होगा कि उनका लक्ष्य स्पर्धा में शामिल होने का है, या फिर पत्रकारिता शिक्षण का बेहतर माहौल बनाने का है। आज के समय में पत्रकारिता बहुत बदल गई है, इसलिए पत्रकारिता शिक्षा में भी बदलाव आवश्यक है। आज लोग जैसे डॉक्टर से अपेक्षा करते हैं, वैसे पत्रकार से भी सही खबरों की अपेक्षा करते हैं। अब हमें मीडिया शिक्षण में ऐसे पाठ्यक्रम तैयार करने होंगे, जिनमें विषयवस्तु के साथ साथ नई तकनीक का भी समावेश हो। न्यू मीडिया आज न्यू नॉर्मल है। हम सब जानते हैं कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के कारण लाखों नौकरियां गई हैं। इसलिए हमें मीडिया शिक्षा के अलग अलग पहलुओं पर ध्यान देना होगा और बाजार के हिसाब से प्रोफेशनल तैयार करने होंगे। नई शिक्षा नीति में क्षेत्रीय भाषाओं पर ध्यान देने की बात कही गई है। जनसंचार शिक्षा के क्षेत्र में भी हमें इस पर ध्यान देना होगा। मीडिया शिक्षण संस्थानों के लिए आज एक बड़ी आवश्यकता है क्षेत्रीय भाषाओं में पाठ्यक्रम तैयार करना। भाषा वो ही जीवित रहती है, जिससे आप जीविकोपार्जन कर पाएं और भारत में एक सोची समझी साजिश के तहत अंग्रेजी को जीविकोपार्जन की भाषा बनाया जा रहा है। ये उस वक्त में हो रहा है, जब पत्रकारिता अंग्रेजी बोलने वाले बड़े शहरों से हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाओं के शहरों और गांवों की ओर मुड़ रही है। आज अंग्रेजी के समाचार चैनल भी हिंदी में डिबेट करते हैं। सीबीएससी बोर्ड को देखिए जहां पाठ्यक्रम में मीडिया को एक विषय के रूप में पढ़ाया जा रहा है। क्या हम अन्य राज्यों के पाठ्यक्रमों में भी इस तरह की व्यवस्था कर सकते हैं, जिससे मीडिया शिक्षण को एक नई दिशा मिल सके।

 

- तेजी से बदलते मीडिया परिदृश्य के सापेक्ष मीडिया शिक्षा संस्थान स्वयं को कैसे ढाल सकते हैं यानी उन्हें उसके अनुकूल बनने के लिए क्या करना चाहिए ?

 मीडिया शिक्षण संस्थानों को अपने पाठ्यक्रमों में इस तरह के बदलाव करने चाहिए, कि वे न्यू मीडिया के लिए छात्रों को तैयार कर सकें। आज तकनीक किसी भी पाठ्यक्रम का महत्वपूर्ण हिस्सा है। मीडिया में दो तरह के प्रारूप होते हैं। एक है पारंपरिक मीडिया जैसे अखबार और पत्रिकाएं और और दूसरा है डिजिटल मीडिया। अगर हम वर्तमान संदर्भ में बात करें तो सबसे अच्छी बात ये है कि आज ये दोनों प्रारूप मिलकर चलते हैं। आज पारंपरिक मीडिया स्वयं को डिजिटल मीडिया में परिवर्तित कर रहा है। जरूरी है कि मीडिया शिक्षण संस्थान अपने छात्रों को 'डिजिटल ट्रांसफॉर्म' के लिए पहले से तैयार करें। देश में प्रादेशिक भाषा यानी भारतीय भाषाओं के बाजार का महत्व भी लगातार बढ़ रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार अंग्रेजी भाषा के उपभोक्ताओं का डिजिटल की तरफ मुड़ना लगभग पूरा हो चुका है। ऐसा माना जा रहा है कि वर्ष 2030 तक भारतीय भाषाओं के बाजार में उपयोगकर्ताओं की संख्या 500 मिलियन तक पहुंच जाएगी और लोग इंटरनेट का इस्तेमाल स्थानीय भाषा में करेंगे। जनसंचार की शिक्षा देने वाले संस्थान अपने आपको इन चुनौतियों के मद्देनजर तैयार करें, यह एक बड़ी जिम्मेदारी है।

 

- वे कौन से कदम हो सकते हैं जो मीडिया उद्योग की अपेक्षाओं और मीडिया शिक्षा संस्थानों द्वारा उन्हें उपलब्ध कराये जाने वाले कौशल के बीच के अंतर को पाट सकते हैं?

 

 भारत में जब भी मीडिया शिक्षा की बात होती है, तो प्रोफेसर केईपन का नाम हमेशा याद किया जाता है। प्रोफेसर ईपन भारत में पत्रकारिता शिक्षा के तंत्र में व्यावहारिक प्रशिक्षण के पक्षधर थे। प्रोफेसर ईपन का मानना था कि मीडिया के शिक्षकों के पास पत्रकारिता की औपचारिक शिक्षा के साथ साथ मीडिया में काम करने का प्रत्यक्ष अनुभव भी होना चाहिए, तभी वे प्रभावी ढंग से बच्चों को पढ़ा पाएंगे। आज देश के अधिकांश पत्रकारिता एवं जनसंचार शिक्षण संस्थान, मीडिया शिक्षक के तौर पर ऐसे लोगों को प्राथमिकता दे रहे हैं, जिन्हें अकादमिक के साथ साथ पत्रकारिता का भी अनुभव हो। ताकि ये शिक्षक ऐसा शैक्षणिक माहौल तैयार कर सकें, ऐसा शैक्षिक पाठ्यक्रम तैयार कर सकें, जिसका उपयोग विद्यार्थी आगे चलकर अपने कार्यक्षेत्र में भी कर पाएं।  पत्रकारिता के प्रशिक्षण के समर्थन में जो तर्क दिए जाते हैं, उनमें से एक दमदार तर्क यह है कि यदि डॉक्टरी करने के लिए कम से कम एम.बी.बी.एस. होना जरूरी है, वकालत की डिग्री लेने के बाद ही वकील बना जा सकता है तो पत्रकारिता जैसे महत्वपूर्ण पेशे को किसी के लिए भी खुला कैसे छोड़ा जा सकता है? बहुत बेहतर हो मीडिया संस्थान अपने अध्यापकों को भी मीडिया संस्थानों में अनुभव के लिए भेजें। इससे मीडिया की जरूरतों और न्यूज रूम के वातावरण का अनुभव साक्षात हो सकेगा। विश्वविद्यालयों को आखिरी सेमेस्टर या किसी एक सेमेस्टर में न्यूज रूम जैसे ही पढ़ाई पर फोकस करना चाहिए। अनेक विश्वविद्यालय ऐसे कर सकने में सक्षम हैं कि वे न्यूज रूम क्रियेट कर सकें।

 

- अपने कार्यकाल के दौरान मीडिया शिक्षा और आईआईएमसी की प्रगति के मद्देनज़र आपने क्या महत्वपूर्ण कदम उठाये, संक्षेप में उनका ज़िक्र करें।

मुझे लगता है कि अपने काम गिनाना आपको छोटा बनाता है। मैंने जो किया उसकी जिक्र करना ठीक नहीं। जो किया उससे संतुष्ठ हूं। मूल्यांकन लोगों पर ही छोड़िए।

 

 

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) यानी कृत्रिम बुद्धिमत्ता विज्ञान का एक नया वरदान है। कंप्यूटर के क्षेत्र में नई तकनीक। जॉन मैकार्थी को इस आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का जनक माना जाता है। एक ऐसी विधा जिसमें मशीन से मशीन की बातें होती है। एक कंप्यूटर दूसरे कंप्यूटर से बात करता है। यह विज्ञान का अद्भुत चमत्कार है। मानव जीवन में तो इसका दखल बढ़ा ही है, करियर के लिहाज से भी इसका दायरा और और विस्तृत होता जा रहा है। इसमें मैकेनिकल इंजीनियरिंग, कंप्यूटर साइंस इंजीनियरिंग, अप्लाइड आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के साथ-साथ रोबोटिक ऑटोमेशन इंजीनियरिंग में डिप्लोमा, बैचलर डिग्री, मास्टर डिग्री और रिसर्च आदि में करियर विकल्प हैं। 

अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक और फिनलैंड के सवोनिया यूनिवर्सिटी ऑफ एप्लाइड साइंस के प्रोफेसर डॉ राजीव कंठ से इस विषय पर हमने विस्तृत चर्चा की। उनसे चर्चा के क्रम में पता चलता है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आने वाले समय में हमारे जीवन में कितना महत्वपूर्ण हो जाएगा। बातचीत के कुछ अंश :

प्र. - सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नया क्या है?

उ. - सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आज हर दिन कुछ ना कुछ नया हो रहा है। यही वजह है कि इस क्षेत्र को पोटेंशियल डेवलपमेंट एरिया के रूप में देखा जा रहा है। अब तक मशीन से आदमी की बात होती थी। अब मशीन से मशीन की बात होती है। यह सबसे नई तकनीक है।


प्र. - इस क्षेत्र में सबसे बड़ी चुनौती क्या है?

उ. - इस क्षेत्र में जितनी नई चीजें आ रही हैं या कह सकते हैं कि जितनी नई चीजों पर शोध हो रहा है, उन चीजों का समुचित विकास करना सबसे बड़ी चुनौती है।


प्र. - इस क्षेत्र के कई आयाम हैं जैसे इंटरनेट, ई-बैंकिंग, ई-कॉमर्स, ईमेल आदि इन सब में सबसे बड़ी चुनौती किस क्षेत्र में है?

उ. - चुनौती तो सभी क्षेत्र में है। किसी भी चुनौती को कम नहीं कहा जा सकता लेकिन बैंकिंग क्षेत्र में ज्यादा कह सकते हैं। क्योंकि लोग मेहनत की कमाई बैंक में रखते हैं और हैकर्स सेकंडों में उसे उड़ा लेते हैं। इसलिए बैंकिंग के क्षेत्र में सबसे बड़ी चुनौती है।


प्र. - हैकरों से छुटकारा पाने के लिए क्या सुझाव देना चाहेंगे?

उ. - हैकरों से छुटकारा पाने के लिए सुझाव है कि पासवर्ड किसी से शेयर ना करें। पासवर्ड 3-4 लेयर का बनाएं और एक निश्चित समय अंतराल के बाद पासवर्ड को बदलते रहें। ये कुछ उपाय हैं जिससे हैकरों से बचा जा सकता है।


प्र. - युवाओं को करियर के लिए क्या सुझाव देना चाहेंगे?

उ. - करियर के लिहाज से यह क्षेत्र काफी अच्छा है। आज हर युवा जो इस फील्ड में करियर बनाना चाहता है उसकी पहली चॉइस कंप्यूटर साइंस होता है। जब वह कंप्यूटर साइंस से स्नातक करता है, उसके बाद सूचना प्रौद्योगिकी आथवा कृत्रिम बुद्धिमता या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मैं अपना कैरियर बनाना चाहता है। रोबोट बनाने की ख्वाहिश आज हर सूचना प्रौद्योगिकी पढ़ने वाले छात्र की होती है।

 

आज दुनिया भर में उच्च शिक्षा एक अहम मोड़ पर है। विश्वविद्यालय दशकों से पश्चिमी रैंकिंग मॉडल- जैसे QS या Times Higher Education- के पीछे भागते रहे हैं। लेकिन यह प्रतिस्पर्धा शिक्षा के असली उद्देश्य को पीछे छोड़ चुकी है। असली मकसद है- ऐसे शिक्षित नागरिक बनाना जो विचारशील, नैतिक, नवाचारी और सामाजिक रूप से जिम्मेदार हों।

 

इसी सोच से “समग्र उत्कृष्टता (Comprehensive Excellence)” का विचार सामने आया है, जो 10Square मॉडल के रूप में एक नया दृष्टिकोण देता है। यह मॉडल केवल रैंकिंग या अंकों की बजाय, मानवीय मूल्यों और सम्पूर्ण विकास पर केंद्रित है।

 

क्या है समग्र उत्कृष्टता?

समग्र उत्कृष्टता का अर्थ है शिक्षा का ऐसा ढाँचा, जो केवल ज्ञान नहीं बल्कि जीवन कौशल, नैतिकता, और सामाजिक समझ भी दे।

10Square मॉडल इसके दस प्रमुख आयाम तय करता है:

 

  1. बौद्धिक उत्कृष्टता – आलोचनात्मक सोच और गहरी समझ

 

  1. नैतिक नेतृत्व – ईमानदारी, जिम्मेदारी और सहानुभूति

 

  1. व्यावहारिक बुद्धिमत्ता – वास्तविक जीवन में ज्ञान का उपयोग

 

  1. भावनात्मक समझ – आत्म-जागरूकता, टीमवर्क और धैर्य

 

  1. सामाजिक जुड़ाव – नागरिकता और स्थिर विकास

 

  1. नवाचार – रचनात्मकता और समस्या समाधान

 

  1. स्वास्थ्य और कल्याण – मानसिक, शारीरिक और भावनात्मक संतुलन

 

  1. रोज़गार योग्यता – करियर की तैयारी और उद्यमशीलता

 

  1. सांस्कृतिक समझ – वैश्विक दृष्टिकोण और स्थानीय संदर्भ

 

  1. आजीवन सीखना – निरंतर जिज्ञासा और अनुकूलता

 

यह मॉडल शिक्षा को केवल “लिबरल आर्ट्स” तक सीमित नहीं रखता, बल्कि इसे मानव विकास और राष्ट्रीय प्रगति का साधन बनाता है।



क्यों ज़रूरी है यह बदलाव?

 

रैंकिंग आधारित शिक्षा की सीमाएँ

आज की वैश्विक रैंकिंग प्रणालियाँ वही मापती हैं जो गिनना आसान है — जैसे शोध पत्र या अंतरराष्ट्रीय छात्रों की संख्या — परंतु वे यह नहीं मापतीं कि एक विश्वविद्यालय कितने जीवन बदल रहा है। 

 

वर्तमान मापदंड               ध्यान केंद्र                           जो उपेक्षित है

उद्धरण (Citations)   शोध की मात्रा                       शिक्षण की गुणवत्ता

अंतरराष्ट्रीय उपस्थिति       छवि                       स्थानीय प्रासंगिकता

प्रतिष्ठा                             इतिहास                 नवाचार और सामाजिक प्रभाव

 

इन कारणों से विश्वविद्यालय दिखने में श्रेष्ठ बन जाते हैं, परंतु छात्रों और समाज पर उनका असर सीमित रह जाता है।



कोविड-19 से मिला सबक

महामारी ने दिखाया कि असली उत्कृष्टता रैंकिंग नहीं, बल्कि लचीलापन, करुणा और समुदाय से आती है। वही संस्थान आगे बढ़ पाए जिन्होंने डिजिटल लर्निंग, मानसिक स्वास्थ्य और सहानुभूतिपूर्ण शिक्षण को अपनाया।



कौन लाएगा यह परिवर्तन?

 

नेतृत्व: विश्वविद्यालय प्रशासन को नियम पालन से आगे बढ़कर विश्वास और उद्देश्य आधारित नेतृत्व अपनाना होगा।

 

फैकल्टी: शिक्षकों को केवल अध्यापन नहीं, बल्कि मार्गदर्शन और नवाचार की भूमिका निभानी होगी।

 

छात्र: उन्हें “ऑर्गेनिक लर्निंग” के माध्यम से अपने जुनून और रुचि को खोजने का अवसर मिलना चाहिए।

 

उद्योग और समाज: शिक्षा को वास्तविक समस्याओं से जोड़ने में साझेदार बनना होगा।



दुनिया में कहाँ अपनाया जा रहा है यह मॉडल?

कई देशों ने समग्र उत्कृष्टता की दिशा में ठोस कदम उठाए हैं:

 

सिंगापुर: NUSOne फ्रेमवर्क से छात्रों में सहानुभूति और व्यावहारिक समझ बढ़ी।

 

फिलीपींस: एटेनेओ यूनिवर्सिटी ने पाठ्यक्रम में नैतिकता और सेवा भावना को जोड़ा।

 

भारत: IIT बॉम्बे ने “लिबरल एजुकेशन सेंटर” शुरू किया जो STEM को मानवीय दृष्टिकोण से जोड़ता है।

 

घाना: अशेसी यूनिवर्सिटी का नैतिक उद्यमिता मॉडल 95% रोजगार सुनिश्चित करता है।

 

मैक्सिको और दक्षिण अफ्रीका में भी इस तरह के समग्र विकास केंद्रित प्रयोग सफल रहे हैं।



कैसे लागू किया जा सकता है यह मॉडल?

 

  1. छात्र-केंद्रित पाठ्यक्रम

डिज़ाइन थिंकिंग, एआई, वित्तीय साक्षरता, मानवाधिकार और स्थिरता जैसे विषयों को हर कोर्स में शामिल करना।

 

  1. अनुभव आधारित शिक्षा

इंटर्नशिप, फील्ड प्रोजेक्ट और रिसर्च के माध्यम से सीखते हुए करना (Learning by Doing) पर जोर।

 

  1. ऑर्गेनिक लर्निंग प्रोजेक्ट

हर छात्र को एक साल का स्वतंत्र प्रोजेक्ट, जिससे वह अपने जुनून पर काम कर सके और व्यावहारिक कौशल सीखे।

 

  1. बहुस्तरीय मूल्यांकन प्रणाली

सिर्फ परीक्षा नहीं, बल्कि बहस, केस स्टडी, और पोर्टफोलियो आधारित मूल्यांकन। इससे छात्रों की विविध क्षमताओं को पहचानने का अवसर मिलता है।

 

  1. समग्र उत्कृष्टता स्कोरकार्ड

शैक्षणिक प्रदर्शन के साथ-साथ नेतृत्व, सामाजिक कार्य, शोध, खेल और स्वास्थ्य को भी अंक दिए जाएँ। इससे “डुअल ट्रांसक्रिप्ट सिस्टम” बनेगा — एक अकादमिक, एक समग्र — जो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी मान्य हो।

 

समग्र विकास को मापने के लिए इस मॉडल में एक वेटेड (भारांकित) स्कोरकार्ड शामिल किया गया है —



घटक (Component)

भारांक या वेटेज (%)

शैक्षणिक उपलब्धि (Academics)

50

नेतृत्व और टीमवर्क (Leadership & Teamwork)

10

अनुसंधान और पुस्तकालय (Research & Library)

10

ऑर्गेनिक लर्निंग प्रोजेक्ट्स (Organic Learning Projects)

10

रोजगार योग्यता और डिजिटल कौशल (Employability & Digital Skills)

10

सामाजिक कार्य (Social Work)

5

खेल और स्वास्थ्य (Sports & Health)

5

कुल (Total)

100

 

यह प्रणाली Dual Transcript System (द्वि-प्रमाणपत्र प्रणाली) से जुड़ी है— एक प्रमाणपत्र शैक्षणिक प्रदर्शन के लिए और दूसरा समग्र विकास के लिए। इससे छात्रों को संस्कृतिक मान्यता और वैश्विक पहचान दोनों मिलती हैं।




वास्तविक उत्कृष्टता कैसे मापी जाए?

अब सवाल “कितने शोध प्रकाशित हुए?” का नहीं, बल्कि “हमने समाज को क्या दिया?” का होना चाहिए। Balanced Institutional Scorecard यही दृष्टिकोण अपनाता है — जो सीखने के अनुभव, रोजगार, नवाचार, और सामाजिक योगदान को मापता है।



मुख्य चुनौतियाँ और समाधान

 

  1. संसाधनों की कमी: कम खर्च वाले नवाचार जैसे ऑनलाइन कोर्स, सामुदायिक साझेदारी।

 

  1. संस्कृति आधारित प्रतिरोध: पारंपरिक परीक्षा प्रणाली का सम्मान रखते हुए धीरे-धीरे परिवर्तन।

 

  1. शिक्षकों की झिझक: उन्हें प्रोत्साहन देना कि वे नई शिक्षण विधियाँ और मार्गदर्शन अपनाएँ।



भविष्य की दिशा

समग्र उत्कृष्टता केवल एक सुधार नहीं, बल्कि एक शैक्षणिक आंदोलन है जो चार स्तरों पर परिवर्तन लाता है:

स्तर                                 बदलाव

व्यक्तिगत   छात्रों में नैतिक, भावनात्मक और बौद्धिक संतुलन

संस्थागत         विश्वविद्यालय नवाचार के केंद्र बनें

राष्ट्रीय                 शिक्षा के ज़रिए समान और सतत विकास

वैश्विक               विकासशील देश अपनी उत्कृष्टता की परिभाषा तय करें

 

नया बनाम पुराना दृष्टिकोण

पुराना मॉडल                     नया मॉडल

केवल ज्ञान देना           ज्ञान का सृजन और उपयोग

अलग-अलग विषय            अंतर्विषयक समाधान

डिग्री ही मंज़िल                 आजीवन सीखना

अंक और रैंक                 उद्देश्य और विकास

अभिजात्यवाद           समावेशन और सशक्तिकरण 



समग्र उत्कृष्टता शिक्षा को “डिग्री” से आगे ले जाकर “व्यक्तित्व निर्माण” का माध्यम बनाती है। यह ऐसी सोच प्रस्तुत करती है जिसमें शैक्षणिक दक्षता के साथ नैतिकता, नवाचार के साथ संवेदनशीलता, और ज्ञान के साथ सामाजिक जिम्मेदारी जुड़ी हो।

 

भविष्य में विश्वविद्यालयों की पहचान उनकी रैंकिंग से नहीं, बल्कि उनकी प्रासंगिकता और समाज पर प्रभाव से तय होगी। यही उच्च शिक्षा का मानवीय पुनर्जागरण (Humanistic Renaissance) है— जहाँ शिक्षा केवल करियर नहीं, बल्कि चरित्र गढ़ने का साधन बने।

कई वर्षों से हम एक बेकार सी बहस में उलझे हुए हैं—क्लासरूम बेहतर है या ऑनलाइन लर्निंग? जैसे दोनों एक-दूसरे के विरोधी हों। लेकिन असली सवाल यह है ही नहीं। भविष्य की शिक्षा किसी एक को चुनने के बारे में नहीं है, बल्कि दोनों को स्मार्ट तरीके से मिलाने के बारे में है। यही है ब्लेंडेड लर्निंग का असली अर्थ।

 

पर यह सिर्फ कोर्स में कुछ ऑनलाइन वीडियो जोड़ देने का नाम नहीं है। सच्ची ब्लेंडेड लर्निंग एक नया डिज़ाइन है — एक सोच जो पूछती है: “किस विषय को सीखने का सबसे अच्छा तरीका क्या हो सकता है?” कभी जवाब होगा – रात के 2 बजे देखी जाने वाली एक वीडियो, कभी एक जोश भरी क्लासरूम बहस, और कभी किसी प्रोजेक्ट पर असली काम। जब इन सबको सोच-समझकर मिलाया जाता है, तो बनता है एक ऐसा शिक्षण अनुभव जो लचीला है, रोचक है और सबसे बढ़कर—मानवीय है।

 

यह सिर्फ एक तरीका नहीं, बल्कि सीखने की नई मानसिकता है। यह न केवल 100% ऑनलाइन कोर्स की अकेलेपन वाली भावना को तोड़ती है, बल्कि पारंपरिक “सबके लिए एक जैसा” मॉडल भी खत्म करती है। अब शिक्षार्थी, शिक्षक और संस्थान के बीच विश्वास, लचीलापन और मानवीय जुड़ाव पर आधारित एक नया रिश्ता बन रहा है। इस सूचना-भरे युग में यह सिर्फ एक अच्छा विचार नहीं, बल्कि ज़रूरत है— ताकि सीखना प्रभावी, सजग और टिकाऊ बने।

 

सीखने की गाड़ी अब आपके हाथ में

ब्लेंडेड लर्निंग का सबसे बड़ा बदलाव यह है कि अब आप सिर्फ “सुनने वाले” नहीं, बल्कि अपनी सीखने की यात्रा के चालक हैं। ऑनलाइन हिस्से—जैसे रिकॉर्डेड लेक्चर, रीडिंग्स और सिमुलेशन—आपको पूरा नियंत्रण देते हैं। आप तय करते हैं कब और कहाँ पढ़ना है। आप अपने काम, परिवार और जीवन के बीच संतुलन बना सकते हैं। अगर कोई विषय तुरंत समझ आ गया तो आगे बढ़ जाइए, और अगर कठिन है तो दस बार दोहराइए—बिना किसी झिझक के। इससे हर विद्यार्थी अपने तरीके से सीख सकता है—चाहे उसकी पृष्ठभूमि कोई भी हो।

 

“फ्लिप्ड क्लासरूम” इसका बेहतरीन उदाहरण है। पहले मॉडल में छात्र क्लास में सुनते थे और घर जाकर संघर्ष करते थे। अब उल्टा होता है—ऑनलाइन आप सिद्धांत सीखते हैं और क्लासरूम में उसका व्यावहारिक उपयोग करते हैं। क्लास अब सुनने की नहीं, करने की जगह है— जहाँ चर्चा होती है, प्रयोग होते हैं, और वास्तविक समस्याओं के समाधान ढूंढे जाते हैं। यह सिर्फ सुविधा नहीं है—यह भविष्य के लिए जरूरी कौशल सिखाती है: स्वयं सीखना, समय प्रबंधन करना, और टीम के साथ मिलकर कुछ नया बनाना।

 

शिक्षक अब “मार्गदर्शक और डिज़ाइनर”

अब सवाल उठता है—जब छात्र खुद सीख रहा है, तो शिक्षक कहाँ हैं? वो अब और भी महत्वपूर्ण हैं। शिक्षक अब सिर्फ "मंच पर खड़े ज्ञानी" नहीं, बल्कि सीखने की यात्रा के आर्किटेक्ट बन गए हैं। वे तय करते हैं कौन-से संसाधन इस्तेमाल होंगे, कैसे प्रोजेक्ट बनेंगे, और ऑनलाइन व ऑफलाइन हिस्सों को कैसे जोड़ा जाएगा। ऑनलाइन प्लेटफॉर्म उन्हें यह देखने की सुविधा देता है कि कौन छात्र कहाँ अटक रहा है और किसे मदद की ज़रूरत है। इस तरह शिक्षक हर छात्र को व्यक्तिगत सहयोग दे सकते हैं।

 

अब उनका असली काम है—खोज की प्रक्रिया को दिशा देना। वो चर्चा को प्रेरित करते हैं, सहयोगात्मक प्रोजेक्ट्स का मार्गदर्शन करते हैं, और एक-एक छात्र के विकास को समझते हैं। टेक्नोलॉजी शिक्षक की भूमिका कम नहीं करती, बल्कि उसे और महत्वपूर्ण और मानवीय बनाती है। क्लास अब वह जगह है जहाँ साझा “आहा!” क्षण पैदा होते हैं, जहाँ सच्ची मेंटरशिप और सीखने का सामूहिक आनंद मिलता है।

 

ऑनलाइन, ऑन-ग्राउंड और ऑफलाइन—तीनों का संगम

एक सफल ब्लेंडेड प्रोग्राम इन तीनों हिस्सों को संतुलित रूप से जोड़ता है:

ऑनलाइन हिस्सा – आधार (Foundation): यह आपकी निजी लाइब्रेरी है, जहाँ आप तथ्य और सिद्धांत सीखते हैं। यह ‘क्या’ का जवाब देता है।

ऑन-ग्राउंड हिस्सा – कार्यशाला (Workshop): यहाँ विचारों को जीवन मिलता है।साथियों से बहस, प्रयोग और सीधा फीडबैक—यह ‘क्यों’ का उत्तर है।

ऑफलाइन हिस्सा – जीवन में प्रयोग (World): यहाँ आप सीख को वास्तविक जीवन में लागू करते हैं— किसी प्रोजेक्ट, पोर्टफोलियो या बिज़नेस आइडिया के रूप में। यह ‘अब क्या’ का उत्तर देता है।

 

इन तीनों के जुड़ने से एक संतुलित सीखने का चक्र बनता है— सीखना, करना और उस पर चिंतन करना। यह न केवल प्रभावी है बल्कि मानसिक संतुलन भी बनाए रखता है,

क्योंकि इसमें स्क्रीन टाइम और मानव संपर्क दोनों का समावेश है।

 

आगे की दिशा: मानव और एआई की साझेदारी

ब्लेंडेड लर्निंग अंत नहीं, बल्कि अगला कदम है। अब शिक्षा का भविष्य मानव बुद्धि और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) की साझेदारी में है। सोचिए—ऐसा एआई प्लेटफॉर्म जो आपकी सीखने की गति और ज़रूरत के अनुसार तुरंत सही वीडियो, प्रश्न या एक्टिविटी सुझा दे। या वर्चुअल रियलिटी की मदद से एक छात्र अपने बनाए भवन के भीतर घूम सके, या एक प्रशिक्षक एआई क्लाइंट के साथ वार्तालाप का अभ्यास कर सके।

 

यह तकनीक शिक्षकों की जगह नहीं लेती— बल्कि उन्हें और मुक्त करती है। अब शिक्षक वही करते हैं जो मशीन नहीं कर सकती— रचनात्मकता जगाना, नैतिक सोच विकसित करना, जिज्ञासा को प्रज्वलित करना, और भावनात्मक समर्थन देना। भविष्य में वही संस्थान सफल होंगे जो स्मार्ट टेक्नोलॉजी और मानवीय जुड़ाव के इस संगम को समझेंगे। क्योंकि शिक्षा का असली लक्ष्य सिर्फ जानकारी देना नहीं, बल्कि ऐसे इंसान बनाना है जो अधिक समझदार, सक्षम और संवेदनशील हों। 

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत की कुल आबादी का एक तिहाई से अधिक हिस्सा 15 से 25 वर्ष की आयु वर्ग के युवाओं का है। आशाओं और आकांक्षाओं से आच्छादित जीवन का यही वह दौर होता है जब एक युवा अपने करियर को लेकर गंभीर होता है। इसी के दृष्टिगत वह अपनी एक अलहदा राह का निर्धारण करता है, सीखने के लिए तदनुरूप विषय का चयन करता है और भविष्य में उसे जिन कार्यों को सम्पादित करना है, उसके मद्देनज़र निर्णय के पड़ाव पर पहुँचने का प्रयास करता है। और यही वह पूरी प्रक्रिया है जो उसे आत्मनिर्भर बनाती है। लिहाजा, जीवन के इस कालखंड में आवश्यक है कि कोई उसका हाथ थामे, उसका ज़रूरी मार्गदर्शन करे।

हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि इंजीनियरिंग, मेडिकल और मैनेजमेंट अब भी करियर-निर्माण के लिहाज से पसंदीदा क्षेत्र बने हुए हैं, जबकि सीखने, काम करने और अपने पेशेवर जीवन के निर्माण के लिए 99 अन्य विशिष्ट क्षेत्र भी हैं। इनमें डिजाइन, मीडिया, फोरेंसिक विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, अलाइड हेल्थकेयर, कृषि आदि शामिल हैं। दुर्भाग्यवश, करियर के इन क्षेत्रों को लेकर बहुत कम चर्चा होती है। कोई इस पर बात नहीं करता कि इन डोमेन में नवीनतम क्या है।

हम यह भी न भूलें कि लगभग 4 ट्रिलियन डॉलर की भारतीय अर्थव्यवस्था में भारतीय मीडिया की हिस्सेदारी करीब 1% की है। प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष  2 मिलियन से अधिक लोग किसी न किसी रूप में इससे सम्बद्ध हैं। मीडिया एक ऐसा क्षेत्र भी है, जो लोगों के दिलो-दिमाग पर गहरा प्रभाव छोड़ता है। लेकिन शायद ही कोई ऐसा समर्पित मीडिया मंच है जिसका मीडिया-शिक्षा और लर्निंग की दिशा में ध्यान केंद्रित हो। सार्वजनिक जीवन में शायद मीडिया-शिक्षा अभी भी सबसे उपेक्षित क्षेत्र है।

हमें नहीं भूलना चाहिए कि शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा, ये दो ऐसे क्षेत्र हैं जो वास्तव में बड़े देशों के बीच सबसे बड़ी युवा आबादी वाले देश में मानव संसाधन के लिए उत्तरदायी हैं। दुर्भाग्य कि इन क्षेत्रों पर शासन और देश की राजनीति का ध्यान सबसे कम केंद्रित होता है। आने वाले समय में इन पर सार्वजनिक तौर पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।

न भूलें कि भारत की उच्च शिक्षा का आज वृहद् दायरा है, जहां बारहवीं कक्षा से ऊपर के सौ मिलियन से अधिक शिक्षार्थी हैं, लेकिन इनमें अधिकांश की स्तर सामान्य और गुणवत्ता औसत है। अपवादस्वरूप,  कुछ संस्थानों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराई जा रही है। ऐसे में यदि हम चाहते हैं कि हमारे पास मौजूद जनसांख्यिकीय लाभ का सकारात्मक परिणाम हमें प्राप्त हो तो गुणवत्ता के दायरे का तेजी से विस्तार अतिआवश्यक है।

और, यही वजह है कि उपरोक्त सन्दर्भों पर ध्यान केंद्रित करने और सर्वप्रथम भारत और तदुपरांत एशिया की उच्च शिक्षा (विशेष क्षेत्रों में ख़ास तौर पर ) में प्रगति को गति प्रदान करने के लिए, एक मई को श्रमिक दिवस पर एडइनबॉक्स हिंदी के साथ हम आपके समक्ष अपनी उपस्थिति दर्ज कर रहे हैं। शिक्षा के सामर्थ्य और श्रम की संघर्षशीलता को नमन करते हुए यह हमारी तरफ से इसका सम्मान है, एक उपहार।

साथ ही,  इस मंच से हमारा प्रयास होगा बेहतर गुणवत्ता वाले उच्च शिक्षा संस्थानों का समर्थन करना और स्कूलों से निकलने वाले नौजवानों को ज्ञान, जानकारी और अंतर्दृष्टि के साथ उन्हें उनके सपनों के करियर और संस्थानों में प्रवेश की राह आसान बनाने में सहायता करना। इन क्षेत्रों के महारथियों की उपलब्धियों को भी सम्बंधित काउन्सिल के माध्यम से, संस्थानों और मार्गदर्शकों को सम्मानित कर उनकी महती भूमिका को लोगों के समक्ष रखने और उजागर करने का हमारा प्रयास होगा। हमारा इरादा हर क्षेत्र या डोमेन का एक इकोसिस्टम निर्मित करना है, धरातल पर भी और ऑनलाइन भी। 

तो आइये, एडइनबॉक्स के साथ हम उच्च शिक्षा जगत की एक प्रभावी यात्रा पर अग्रसर हों। 

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प्रो उज्ज्वल अनु चौधरी
वाइस प्रेजिडेंट, वाशिंगटन यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी 
एडिटर, एडइनबॉक्स (Edinbox.com) 
पूर्व सलाहकार और प्रोफेसर, डैफोडिल इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी, ढाका
(इससे पूर्व एडमास यूनिवर्सिटी से प्रो वीसी के रूप में,
सिम्बायोसिस व एमिटी यूनिवर्सिटी, पर्ल अकादमी और डब्ल्यूडब्ल्यूआई के डीन,
और टीओआई, ज़ी, बिजनेस इंडिया ग्रुप से जुड़ाव के साथ भारत सरकार और डब्ल्यूएचओ/टीएनएफ के मीडिया सलाहकार रहे हैं।)

भारत में AIFSET (All India Forensic Science Entrance Test) उन छात्रों के लिए एक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय स्तर की प्रवेश परीक्षा है, जो फॉरेंसिक साइंस (Forensic Science) के क्षेत्र में करियर बनाना चाहते हैं। यह परीक्षा देशभर के विभिन्न विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में बी.एससी. फॉरेंसिक साइंस (B.Sc. Forensic Science) जैसे पाठ्यक्रमों में प्रवेश के लिए आयोजित की जाती है।

 

अगर आप AIFSET 2026 देने की योजना बना रहे हैं, तो यह लेख आपके लिए एक संपूर्ण गाइड है — जिसमें परीक्षा पैटर्न, सिलेबस और प्रभावी तैयारी के सुझाव शामिल हैं।

 

AIFSET 2026: प्रमुख तिथियां (Important Dates)

 

आवेदन शुरू होने की तिथि: जनवरी 2026

 

अंतिम आवेदन तिथि: मार्च 2026

 

एडमिट कार्ड जारी होने की तिथि: अप्रैल 2026

 

परीक्षा तिथि: मई 2026

 

परिणाम घोषणा: जून 2026

 

परीक्षा ऑनलाइन मोड (Remote Proctored Test) में आयोजित की जाएगी, यानी आप इसे अपने घर से भी दे सकते हैं।



AIFSET 2026 पात्रता (Eligibility Criteria)

 

- उम्मीदवार ने किसी मान्यता प्राप्त बोर्ड से 10+2 (विज्ञान संकाय) में भौतिकी (Physics), रसायन (Chemistry) और जीवविज्ञान (Biology) विषयों के साथ परीक्षा पास की हो।

 

न्यूनतम अंक: सामान्य श्रेणी के लिए 50%, आरक्षित वर्ग के लिए 45%।

 

आयु सीमा: कोई निर्धारित आयु सीमा नहीं है।



AIFSET 2026 परीक्षा पैटर्न (Exam Pattern)

 

परीक्षा मोड: ऑनलाइन (Remote Proctored)

 

कुल प्रश्न: 100

 

कुल अंक: 100

 

प्रश्न प्रकार: बहुविकल्पीय (MCQs)

 

समय अवधि: 60 मिनट

 

नकारात्मक अंकन: नहीं

 

अनुभाग           विषय         प्रश्नों की संख्या अंक

भाग A             फिजिक्स (Physics)     25             25

भाग B           केमिस्ट्री (Chemistry)     25             25

भाग C           बायोलॉजी (Biology)     25             25

भाग D         फॉरेंसिक साइंस बेसिक्स     25             25



AIFSET 2026 सिलेबस (Complete Syllabus)

 

  1. फिजिक्स (Physics):

गति, बल, कार्य, ऊर्जा, प्रकाश, विद्युत धारा, तरंगें, न्यूटन के नियम, ऊष्मागतिकी।

 

  1. केमिस्ट्री (Chemistry):

परमाणु संरचना, रासायनिक बंधन, आवर्त सारणी, अम्ल-क्षार, धातु-अधातु, कार्बनिक यौगिक।

 

  1. बायोलॉजी (Biology):

कोशिका संरचना, आनुवंशिकी, जैव विविधता, पादप एवं प्राणी वर्गीकरण, मानव शरीर प्रणाली।

 

  1. फॉरेंसिक साइंस की मूल बातें (Forensic Science Basics):

फिंगरप्रिंट विश्लेषण, डीएनए प्रोफाइलिंग, ब्लड स्पॉट एनालिसिस, क्राइम सीन इन्वेस्टिगेशन की प्रक्रिया, साक्ष्य संरक्षण और फॉरेंसिक उपकरणों का उपयोग।



AIFSET 2026 की तैयारी के लिए सुझाव

 

NCERT किताबों से शुरुआत करें: 11वीं और 12वीं कक्षा की NCERT पुस्तकों से मूलभूत अवधारणाओं को मजबूत करें।

 

मॉक टेस्ट और सैंपल पेपर हल करें: समय प्रबंधन और प्रश्नों की कठिनाई स्तर को समझने में मदद मिलती है।

 

फॉरेंसिक साइंस की बेसिक किताबें पढ़ें: जैसे Forensic Science Simplified या Essentials of Forensic Science।

 

समाचार और केस स्टडी पढ़ें: वास्तविक क्राइम केस और जांच प्रक्रियाओं को समझने से विषय की गहराई बढ़ती है।

 

पुनरावृत्ति (Revision) पर ध्यान दें: परीक्षा से पहले सभी सूत्रों और मुख्य अवधारणाओं की दोहराई करें।



AIFSET स्कोर स्वीकार करने वाले शीर्ष कॉलेज (Top Participating Colleges)

 

- Amity University, Noida

 

- Chandigarh University, Mohali

 

- Galgotias University, Greater Noida

 

- Parul University, Vadodara

 

- ITM University, Gwalior

 

- G.D. Goenka University, Gurugram

 

- Invertis University, Bareilly

 

- Sharda University, Greater Noida



AIFSET 2026 फॉरेंसिक साइंस के क्षेत्र में करियर बनाने की दिशा में एक मजबूत कदम है। यह परीक्षा न केवल आपकी विज्ञान की समझ को परखती है, बल्कि आपकी विश्लेषणात्मक सोच और साक्ष्य-आधारित तर्क शक्ति की जांच भी करती है।

सही तैयारी, नियमित अभ्यास और आत्मविश्वास के साथ इस परीक्षा में सफलता पाई जा सकती है।

 

यदि आप मीडिया, कम्युनिकेशन या जर्नलिज़्म में करियर बनाना चाहते हैं, तो GMCET (Global Media Common Entrance Test) आपके लिए सुनहरा मौका हो सकता है। यह परीक्षा देशभर के कई नामी प्राइवेट और डिम्ड यूनिवर्सिटीज़ में मीडिया और मास कम्युनिकेशन कोर्स में एडमिशन के लिए आयोजित की जाती हैं।

 

GMCET 2026 के ज़रिए छात्र बीए इन जर्नलिज़्म, मास मीडिया, फिल्म प्रोडक्शन, डिजिटल मार्केटिंग, पब्लिक रिलेशंस, और ब्रॉडकास्टिंग जैसे कोर्स में प्रवेश पा सकते हैं।

 

GMCET 2026 क्या है?

GMCET (Global Media Common Entrance Test) एक नेशनल-लेवल एंट्रेंस एग्ज़ाम है जिसे Global Media Education Council (GMEC) द्वारा आयोजित किया जाता है। इस परीक्षा का उद्देश्य छात्रों की कम्युनिकेशन स्किल, जनरल नॉलेज, मीडिया अवेयरनेस और लैंग्वेज प्रोफिशियंसी को परखना होता है।

 

किन कोर्सों में प्रवेश मिलेगा?

GMCET के ज़रिए कई स्नातक मीडिया कार्यक्रमों में प्रवेश मिलता है, जैसे:

- B.A. in Journalism and Mass Communication (BA-JMC)

- Bachelor of Journalism and Mass Communication (BJMC)

- Bachelor of Management Studies (BMS)

- Bachelor of Mass Communication (BMC)

- Bachelor of Mass Media (BMM)

 

GMCET 2026 की मुख्य बातें

एग्ज़ाम का नाम               GMCET 2026

परीक्षा स्तर               नेशनल लेवल

मोड ऑफ एग्ज़ाम   ऑनलाइन (CBT)

परीक्षा अवधि               60 मिनट

कुल अंक               100

प्रश्नों की संख्या               100 (Objective Type)

आवेदन मोड               ऑनलाइन

आधिकारिक वेबसाइट         www.gmcet.org   

 

GMCET 2026: पात्रता (Eligibility Criteria)

- उम्मीदवार ने किसी मान्यता प्राप्त बोर्ड से कक्षा 12वीं (किसी भी विषय में) पास की होनी चाहिए।

- 12वीं में कम से कम 50% अंक आवश्यक हैं।

- जो छात्र अभी 12वीं की परीक्षा दे रहे हैं, वे भी आवेदन कर सकते हैं।

- AICTE-स्वीकृत विश्वविद्यालय से डिप्लोमा धारक उम्मीदवार भी पात्र हैं।

 

GMCET 2026: सिलेबस (Syllabus)

परीक्षा में चार मुख्य सेक्शन होते हैं:

  1. जनरल नॉलेज और करेंट अफेयर्स

मीडिया, राजनीति, खेल, विज्ञान और अंतरराष्ट्रीय घटनाएं।

 

  1. लैंग्वेज प्रोफिशियंसी (English Language & Comprehension)

रीडिंग कॉम्प्रिहेंशन, ग्रामर, सिनोनिम्स, एन्टोनिम्स।

 

  1. लॉजिकल रीजनिंग और एनालिटिकल एबिलिटी

पैटर्न पहचान, सीरीज़, कोडिंग-डिकोडिंग, एनालॉजी।

 

  1. मीडिया और कम्युनिकेशन अवेयरनेस

मीडिया के प्रकार, पत्रकारिता का इतिहास, विज्ञापन, डिजिटल मीडिया ट्रेंड्स।

 

GMCET 2026: परीक्षा पैटर्न (Exam Pattern)

सेक्शन                                                   प्रश्नों की संख्य      अंक

जनरल नॉलेज और करेंट अफेयर्स                         25         25

लैंग्वेज प्रोफिशियंसी                                     25         25

लॉजिकल रीजनिंग                                     25         25

मीडिया अवेयरनेस                                     25         25

कुल                                                           100         100

 

कोई निगेटिव मार्किंग नहीं होती, जिससे उम्मीदवार हर प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं।

 

आवेदन प्रक्रिया (Application Process)

  1. आधिकारिक वेबसाइट पर जाएं — www.gmcet.org 
  2. "Apply Now" पर क्लिक करें और रजिस्ट्रेशन करें।
  3. मांगी गई जानकारी भरें और डॉक्युमेंट्स अपलोड करें।
  4. एग्ज़ाम फीस (₹1000–₹1500) ऑनलाइन भुगतान करें।
  5. सबमिट करने के बाद एडमिट कार्ड डाउनलोड करें।

 

GMCET 2026 के लिए जरूरी तिथियां (Tentative Dates)

गतिविधि                             संभावित तारीख

ऑनलाइन आवेदन शुरू                   जनवरी 2026

आवेदन की अंतिम तिथि                     अप्रैल 2026

परीक्षा तिथि                                   मई 2026

परिणाम घोषणा                         जून 2026

काउंसलिंग प्रक्रिया                     जुलाई 2026

 

GMCET 2026: टॉप पार्टिसिपेटिंग कॉलेज

GMCET के ज़रिए देश के कई टॉप मीडिया कॉलेजों में प्रवेश मिलता है, जैसे:

  1. Amity School of Communication, Noida
  2. Manipal Institute of Communication, Manipal
  3. PDM University, Bahadurgarh (Delhi NCR)
  4. MIT-WPU, Pune
  5. Chandigarh University
  6. UPES School of Modern Media, Dehradun
  7. Lovely Professional University (LPU), Jalandhar
  8. Symbiosis Institute of Media & Communication, Pune
  9. SRM University, Chennai
  10. Flame University, Pune

 

करियर संभावनाएं (Career Opportunities After GMCET)

GMCET क्वालिफाई करने के बाद छात्र इन क्षेत्रों में करियर बना सकते हैं:

- पत्रकारिता (Print, TV, Digital)

- विज्ञापन और पब्लिक रिलेशंस

- फिल्म एवं टेलीविज़न प्रोडक्शन

- डिजिटल मीडिया मैनेजमेंट

- कंटेंट राइटिंग और एडिटिंग

- सोशल मीडिया स्ट्रैटेजी और ब्रांडिंग

 

GMCET 2026 मीडिया और कम्युनिकेशन के क्षेत्र में प्रवेश पाने का एक प्रमुख रास्ता है। यदि आप क्रिएटिव सोच रखते हैं, समाज के मुद्दों में रुचि रखते हैं और प्रभावी कम्युनिकेशन करना चाहते हैं, तो यह परीक्षा आपके करियर को नई दिशा दे सकती है।

 

अगर आप डिज़ाइन, फैशन, आर्किटेक्चर या क्रिएटिव आर्ट्स में करियर बनाना चाहते हैं, तो AIDAT (All India Design Aptitude Test) आपके लिए एक महत्वपूर्ण परीक्षा है। यह परीक्षा देशभर के प्रमुख डिज़ाइन कॉलेजों में एडमिशन के लिए आयोजित की जाती है।

 

AIDAT 2026 छात्रों की क्रिएटिव थिंकिंग, विज़ुअल इमैजिनेशन, प्रॉब्लम सॉल्विंग स्किल्स और डिज़ाइन अप्रोच को परखने के लिए तैयार की गई है। इस परीक्षा के ज़रिए छात्र B.Des (Bachelor of Design), M.Des (Master of Design) और अन्य डिज़ाइन से जुड़े कोर्सों में प्रवेश पा सकते हैं।



AIDAT 2026 क्या है?

AIDAT (All India Design Aptitude Test) एक नेशनल-लेवल प्रवेश परीक्षा है जिसे कई प्रतिष्ठित संस्थान डिज़ाइन, फैशन और आर्ट से जुड़े कोर्सों में प्रवेश के लिए स्वीकार करते हैं। यह परीक्षा छात्रों की रचनात्मकता, अवलोकन क्षमता, सोचने की शक्ति और कलात्मक दृष्टिकोण को जांचने के लिए आयोजित की जाती है।



AIDAT 2026: मुख्य जानकारी

परीक्षा का नाम               AIDAT 2026 (All India Design Aptitude Test)

परीक्षा स्तर               राष्ट्रीय स्तर (National Level)

मोड ऑफ एग्ज़ाम   ऑनलाइन (CBT) / ऑफलाइन (कुछ सेंटरों पर)

कुल अंक                 100

अवधि                           2 घंटे

प्रश्नों का प्रकार               Objective + Creative Drawing

आवेदन मोड               ऑनलाइन

आधिकारिक वेबसाइट     www.aidat.in



पात्रता मानदंड (Eligibility Criteria)

 

UG कोर्स (B.Des) के लिए:

- किसी मान्यता प्राप्त बोर्ड से 12वीं पास (किसी भी विषय में)।

- न्यूनतम 50% अंक आवश्यक।

- 12वीं में पढ़ रहे छात्र भी आवेदन कर सकते हैं।

 

PG कोर्स (M.Des) के लिए:

- डिज़ाइन या आर्ट से जुड़े क्षेत्र में स्नातक डिग्री होनी चाहिए।



AIDAT 2026 सिलेबस (Syllabus)

AIDAT का सिलेबस छात्रों की रचनात्मक क्षमता और तार्किक सोच को परखने पर केंद्रित है।

 

  1. क्रिएटिव थिंकिंग (Creative Thinking)

- डिजाइन समस्याओं के लिए इनोवेटिव आइडिया

- स्केचिंग और विजुअल इमेजिनेशन

 

  1. ड्राइंग और विजुअलाइजेशन (Drawing & Visualization)

- पर्सपेक्टिव ड्राइंग, शेडिंग, कलर स्कीम, डिजाइन कॉम्पोज़िशन

 

  1. जनरल अवेयरनेस और करंट अफेयर्स (General Awareness)

- आर्ट, डिजाइन, आर्किटेक्चर, फैशन, भारतीय संस्कृति और मीडिया ट्रेंड्स

 

  1. लॉजिकल रीजनिंग (Logical Reasoning)

- पैटर्न, सीरीज़, एनालॉजी, कोडिंग-डिकोडिंग

 

  1. विजुअल परसेप्शन (Visual Perception)

- आकृतियों की पहचान, सिमेट्री, कलर सेंस और डिजाइन प्रपोर्शन



AIDAT 2026 परीक्षा पैटर्न (Exam Pattern)

सेक्शन                                               प्रश्नों की संख्या       अंक

क्रिएटिव थिंकिंग और विजुअलाइजेशन       25                   25

ड्राइंग और डिजाइन स्किल्स                   25                   25

लॉजिकल रीजनिंग                               25                   25

जनरल अवेयरनेस                               25                   25

कुल                                                     100                   100

 

नोट: कुछ संस्थानों में परीक्षा के बाद पर्सनल इंटरव्यू और पोर्टफोलियो रिव्यू भी लिया जाता है।



आवेदन प्रक्रिया (Application Process)

  1. आधिकारिक वेबसाइट www.aidat.in पर जाएं।
  2. "Apply Now" पर क्लिक करके रजिस्ट्रेशन करें।
  3. मांगी गई जानकारी भरें और दस्तावेज़ अपलोड करें।
  4. ऑनलाइन फीस (₹1200–₹1500) जमा करें।
  5. फॉर्म सबमिट करें और एडमिट कार्ड डाउनलोड करें।



महत्वपूर्ण तिथियां (Tentative Dates)

गतिविधि                                       संभावित तारीख

ऑनलाइन आवेदन शुरू                             जनवरी 2026

आवेदन की अंतिम तिथि                               मार्च 2026

परीक्षा तिथि                                         अप्रैल 2026

परिणाम घोषणा                                           मई 2026

काउंसलिंग / इंटरव्यू                             जून–जुलाई 2026



टॉप पार्टिसिपेटिंग डिज़ाइन कॉलेज (Top Participating Design Colleges)

AIDAT स्कोर देश के कई प्रमुख डिज़ाइन संस्थान स्वीकार करते हैं, जैसे:

  1. JD Institute of Fashion Technology
  2. ISDI – Indian School of Design & Innovation, Mumbai
  3. Amity School of Fashion & Design, Noida
  4. PDM University, Bahadurgarh (Delhi NCR)
  5. Apeejay Institute of Design, Delhi
  6. MIT Institute of Design, Pune
  7. Lovely Professional University (LPU), Punjab
  8. Symbiosis Institute of Design, Pune
  9. UPES School of Design, Dehradun
  10. ARCH College of Design & Business, Jaipur



तैयारी के लिए सुझाव (Preparation Tips to Crack AIDAT 2026)

 

  1. ड्राइंग का रोज़ अभ्यास करें – फ्रीहैंड स्केचिंग, कलर कॉम्बिनेशन और डिजाइन आइडियाज़ पर ध्यान दें।

 

  1. डिजाइन अवेयरनेस बढ़ाएं – फैशन, आर्किटेक्चर, प्रोडक्ट डिजाइन से जुड़ी ट्रेंड्स पर नज़र रखें।

 

  1. मॉक टेस्ट दें – समय प्रबंधन और स्पीड बढ़ाने के लिए नियमित रूप से प्रैक्टिस पेपर हल करें।

 

  1. जनरल नॉलेज और करेंट अफेयर्स पढ़ें – डिजाइन और संस्कृति से जुड़े समसामयिक विषयों की जानकारी रखें।

 

  1. पोर्टफोलियो तैयार करें – अपनी बेहतरीन क्रिएशंस का कलेक्शन बनाएं, यह इंटरव्यू में काम आएगा।



करियर संभावनाएं (Career Opportunities After AIDAT)

AIDAT क्वालिफाई करने के बाद छात्र इन क्षेत्रों में करियर बना सकते हैं:

- फैशन डिजाइनर

- ग्राफिक डिजाइनर

- इंटीरियर डिजाइनर

- यूआई/यूएक्स डिजाइनर

- प्रोडक्ट डिजाइनर

- विजुअल मर्चेंडाइज़र

- क्रिएटिव डायरेक्टर

 

AIDAT 2026 भारत के सबसे प्रतिष्ठित डिज़ाइन प्रवेश परीक्षाओं में से एक है। अगर आपके अंदर रचनात्मक सोच, रंगों की समझ और डिजाइन के प्रति जुनून है, तो यह परीक्षा आपके करियर को नई दिशा दे सकती है। सही रणनीति, निरंतर अभ्यास और क्रिएटिव दृष्टिकोण के साथ आप इस परीक्षा को आसानी से क्रैक कर सकते हैं।

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण और ग्रामीण विकास मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कृषि शिक्षा के क्षेत्र में खाली पड़े पदों पर गंभीर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के महानिदेशक को निर्देश दिया है कि गुणवत्तापूर्ण कृषि शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए सभी रिक्त पदों को जल्द से जल्द भरा जाए।

 

शिवराज सिंह चौहान ने यह भी कहा कि वह सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखेंगे और वहां के कृषि मंत्रियों से बातचीत करेंगे, ताकि राज्य स्तरीय विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में भी रिक्त पदों की भर्ती शीघ्र पूरी की जा सके।

 

नई दिल्ली स्थित पूसा परिसर में आयोजित राष्ट्रीय कृषि छात्र सम्मेलन में केंद्रीय मंत्री ने यह बात कही। इस अवसर पर देशभर के कृषि छात्र-छात्राओं ने बड़ी संख्या में भाग लिया, जबकि हजारों विद्यार्थी ऑनलाइन माध्यम से जुड़े। सम्मेलन में कृषि वैज्ञानिक, प्राध्यापक, ICAR और विभिन्न कृषि विश्वविद्यालयों के पदाधिकारी भी उपस्थित रहे।

 

अपने संबोधन में मंत्री चौहान ने कहा कि “कृषि छात्रों के भविष्य से किसी भी कीमत पर समझौता नहीं होना चाहिए।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन में लागू नई शिक्षा नीति के अनुरूप कृषि क्षेत्र में भी उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा प्रदान करना अनिवार्य है।

 

उन्होंने ICAR को सुझाव दिया कि कृषि शिक्षा की कमियों को दूर करने के लिए विद्यार्थियों की एक टीम गठित की जाए, जो अपने अनुभव और सुझाव साझा करे। साथ ही, उन्होंने कृषि विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में ग्रेडिंग प्रणाली लागू कर स्वस्थ प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहित करने की बात कही।

 

अंत में, शिवराज सिंह चौहान ने ICAR से आग्रह किया कि वह दुनिया के विभिन्न देशों में अपनाए जा रहे सफल कृषि शिक्षा मॉडल और प्रयोगों का अध्ययन करे और उन्हें भारत की परिस्थितियों के अनुरूप लागू करने के उपाय तैयार करे।

 

इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान छात्र सबसे ज्यादा उलझन कंप्यूटर साइंस एंड इंजीनियरिंग (CSE) और इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग (ECE) के बीच महसूस करते हैं। दोनों ही फील्ड अपने-अपने क्षेत्र में अहम हैं, लेकिन करियर की दिशा, नौकरी के अवसर और स्किल सेट के लिहाज से इनमें बड़ा अंतर है। आइए जानते हैं इन दोनों कोर्स की डिटेल और करियर संभावनाएं।

 

कंप्यूटर साइंस एंड इंजीनियरिंग (CSE)

CSE मुख्य रूप से सॉफ्टवेयर और डिजिटल सिस्टम पर केंद्रित है। इस कोर्स में कंप्यूटर प्रोग्रामिंग, एल्गोरिदम, डेटा स्ट्रक्चर, ऑपरेटिंग सिस्टम, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), मशीन लर्निंग (ML) और क्लाउड कंप्यूटिंग जैसे विषय शामिल होते हैं। इसका उद्देश्य है — डिजिटल दुनिया के लिए स्मार्ट, स्केलेबल और एफिशिएंट सिस्टम तैयार करना।

 

CSE ग्रेजुएट्स आज भारत की आईटी इंडस्ट्री और स्टार्टअप इकोसिस्टम की रीढ़ माने जाते हैं। नौकरी के अवसरों और शुरुआती वेतन के लिहाज से यह सबसे डिमांडिंग ब्रांच है। बैंकिंग, ई-कॉमर्स, लॉजिस्टिक्स, फिनटेक और हेल्थटेक जैसे क्षेत्रों में सॉफ्टवेयर डेवलपमेंट इंजीनियर्स (SDEs) और डेटा साइंटिस्ट्स की भारी मांग है। Google, Amazon, Microsoft, Flipkart जैसी कंपनियां टॉप CSE टैलेंट को ₹20 लाख से अधिक वार्षिक पैकेज पर हायर करती हैं।

 

इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग (ECE)

ECE एक हार्डवेयर-केंद्रित शाखा है, जो इलेक्ट्रॉनिक सर्किट, डिवाइस और कम्युनिकेशन सिस्टम के डिजाइन और उपयोग पर ध्यान देती है। इसमें VLSI (Very Large-Scale Integration), एम्बेडेड सिस्टम, माइक्रोप्रोसेसर, सिग्नल प्रोसेसिंग और 5G/6G कम्युनिकेशन जैसे विषय पढ़ाए जाते हैं। ECE ग्रेजुएट्स माइक्रोचिप से लेकर नेटवर्क तक ऐसे फिजिकल कंपोनेंट बनाते हैं जो सॉफ्टवेयर को चलने योग्य बनाते हैं। यानी वे टेक्नोलॉजी का “हार्ट और नर्वस सिस्टम” तैयार करते हैं।

 

इस ब्रांच की खासियत है इसकी ड्यूल फ्लेक्सिबिलिटी— अगर छात्रों को कोडिंग आती है, तो वे IT और सॉफ्टवेयर सेक्टर में भी करियर बना सकते हैं। वहीं VLSI फील्ड में ECE इंजीनियर्स की बहुत मांग है। Qualcomm, Intel, NVIDIA, Samsung जैसी कंपनियां VLSI इंजीनियर्स को ₹20–30 लाख वार्षिक पैकेज तक ऑफर करती हैं। साथ ही, ECE स्नातक डिफेंस, एयरोस्पेस और सिविल टेक्नोलॉजी क्षेत्रों में भी काम कर सकते हैं। UPSC इंजीनियरिंग सर्विसेज (IES) परीक्षा में भी ECE विषय डायरेक्ट रूप से उपयोगी है।

 

कौन-सा ब्रांच चुनें?

अगर आप कोडिंग, डेटा और डिजिटल इनोवेशन में रुचि रखते हैं, तो CSE आपके लिए सही विकल्प है।

लेकिन यदि आप हार्डवेयर, इलेक्ट्रॉनिक सिस्टम या सरकारी क्षेत्र की स्थिर नौकरियों में रुचि रखते हैं, तो ECE बेहतर विकल्प साबित हो सकता है।

 

दोनों ही ब्रांच आने वाले AI और सेमीकंडक्टर युग में अहम भूमिका निभाने वाले हैं — फर्क बस इतना है कि CSE सॉफ्टवेयर का दिमाग बनाता है, जबकि ECE उसका शरीर और नर्व सिस्टम।

 

 

जलवायु परिवर्तन, मिट्टी का क्षरण, छोटी होती जोत और वित्तीय समस्याएं आज भारत के कृषि क्षेत्र के सामने बड़ी चुनौतियां हैं। दूसरी ओर, तकनीकी नवाचार इस क्षेत्र में तेजी से प्रवेश कर रहे हैं, जो इन समस्याओं से निपटने की नई संभावनाएं खोल रहे हैं। इन्हीं में से एक है आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) — जो भारतीय खेती की उत्पादकता, स्थिरता और लचीलापन (Resilience) बढ़ाने में गेम-चेंजर बनता जा रहा है।

 

वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम (WEF) ने भारत सरकार और BCG X के सहयोग से जारी अपनी रिपोर्ट — ‘भारत में भविष्य की खेती: कृषि में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस बढ़ाने के लिए प्लेबुक’ — में कृषि क्षेत्र में AI के उपयोग का रोडमैप पेश किया है। इस रिपोर्ट का केंद्र तीन स्तंभों वाला फ्रेमवर्क है — इनेबल, क्रिएट और डिलीवर, जो किसान-केंद्रित इनोवेशन पर ज़ोर देता है।

 

तेलंगाना के ‘सागु बागू प्रोजेक्ट’ जैसे उदाहरण बताते हैं कि कैसे AI खेती की पैदावार बढ़ाने, लागत घटाने और छोटे किसानों को सशक्त बनाने में मददगार है। रिपोर्ट में यह भी अपील की गई है कि सरकार, स्टार्टअप्स और अकादमिक जगत मिलकर काम करें ताकि भारत के 15 करोड़ किसान डिजिटल कृषि क्रांति का लाभ उठा सकें।

 

खेतों में AI के सफल प्रयोग

तेलंगाना के सागु बागू प्रोजेक्ट में 7,000 छोटे मिर्च किसानों ने AI-आधारित एप्लिकेशन का उपयोग किया। नतीजे चौंकाने वाले थे— पैदावार में 21% बढ़ोतरी, उत्पादों की कीमत में 11% की वृद्धि, और उर्वरक व कीटनाशक उपयोग में 9% की कमी।

 

हर सीजन में किसानों की प्रति एकड़ आय में लगभग 800 डॉलर की बढ़ोतरी हुई।

इसी तरह, आंध्र प्रदेश में AI आधारित सीडिंग एडवाइजरी से उत्पादन में 30% सुधार और पेस्ट-प्रीडिक्शन मॉडल से 3,000 किसानों को कीट प्रबंधन में मदद मिली।

 

ये सफलताएं बताती हैं कि AI खेती को सशक्त, लाभदायक और टिकाऊ बनाने में कितनी प्रभावी भूमिका निभा सकता है।

 

चुनौतियां: अब भी सीमित है अपनाने की रफ्तार

फिलहाल 20% से भी कम भारतीय किसान किसी न किसी डिजिटल तकनीक का इस्तेमाल करते हैं। इसका कारण है— सीमित आय, छोटी और बिखरी जमीनें, वित्तीय संसाधनों की कमी, और कमजोर डेटा इंफ्रास्ट्रक्चर।

 

रिपोर्ट में कहा गया है कि AI को बढ़ावा देने के लिए अलग-अलग टूल नहीं, बल्कि एक समग्र इकोसिस्टम बनाना जरूरी है।

 

AI अपनाने में रुकावटें और IMPACT फ्रेमवर्क

WEF की रिपोर्ट में यह माना गया है कि कमजोर इंफ्रास्ट्रक्चर, डेटा क्वालिटी की समस्या और किफायती विकल्पों की कमी, छोटे किसानों के बीच AI के प्रसार को धीमा करती हैं।

 

इन्हें दूर करने के लिए रिपोर्ट में IMPACT AI Framework सुझाया गया है, जो तीन स्तंभों पर आधारित है —

  1. इनेबल: सरकारें नीति, नियमन और डेटा शेयरिंग फ्रेमवर्क मजबूत करें।
  2. क्रिएट: स्टार्टअप्स, शोध संस्थान और निजी क्षेत्र मिलकर नवाचार को बढ़ावा दें।
  3. डिलीवर: सुनिश्चित किया जाए कि AI के लाभ हर किसान तक पहुंचें।

 

AI के चार प्रमुख उपयोग

रिपोर्ट के अनुसार, भारत के लिए सबसे उपयोगी चार AI एप्लिकेशन हैं —

  1. फसल की स्मार्ट प्लानिंग: कीमतों, मिट्टी की सेहत और मौसम के डेटा के आधार पर सही फसल का चयन।
  2. मिट्टी की सेहत का रियल-टाइम विश्लेषण: पोषण संतुलन और नमी के स्तर का पता लगाकर रीजेनेरेटिव खेती को बढ़ावा।
  3. कीट अनुमान और नियंत्रण: AI-पावर्ड सिस्टम से 36 अरब डॉलर के सालाना नुकसान को घटाने की दिशा में कदम।
  4. स्मार्ट मार्केटप्लेस: किसानों को खरीदारों से जोड़ने वाले AI-आधारित प्लेटफॉर्म जो पारदर्शी दाम और गुणवत्ता सुनिश्चित करें।

 

सीख और आगे की राह

रिपोर्ट के अनुसार, AI अपनाने से जुड़ी तीन मुख्य सीख हैं —

  1. इंटीग्रेशन जरूरी है: मिट्टी, फसल, कीट और बाजार डेटा को जोड़ना सबसे अधिक प्रभावी है।
  2. बुनियादी ढांचे की जरूरत: डेटा एक्सचेंज, फाइनेंसिंग और लास्ट-माइल डिलीवरी नेटवर्क को मज़बूत करना होगा।
  3. साझेदारी ही सफलता की कुंजी है: सरकार, उद्योग, शिक्षा जगत और किसान संगठनों का संयुक्त प्रयास ही स्थायी सफलता देगा।



WEF की यह रिपोर्ट सिर्फ भारत के लिए नहीं, बल्कि उन सभी विकासशील देशों के लिए मॉडल साबित हो सकती है जो कृषि में स्थिरता और उत्पादकता बढ़ाना चाहते हैं।

भारत के पास IndiaAI Mission, Agri Stack और VISTAAR जैसे कार्यक्रमों की मदद से AI को खेती के हर पहलू में एकीकृत करने का सुनहरा अवसर है।

 

यदि नीति, बाजार और अनुसंधान की ताकतें एकजुट हुईं, तो भारत न केवल AI-संचालित खेती में वैश्विक लीडर बन सकता है, बल्कि यह साबित कर सकता है कि तकनीक और परंपरा मिलकर भविष्य की खेती को नया रूप दे सकती हैं।

 

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'सिटी ऑफ जॉय' कहे जाने वाले कोलकाता शहर में 16 अप्रैल का दिन वाकई उत्साह से भरा रहा, जब 'एडइनबॉक्स' ने अपना विस्तार करते हुए यहाँ के लोगों के लिए अपनी नई ब्रांच का शुभारम्भ किया। ख़ास बात यह रही कि इस मौके पर इटली से आये मेहमानों के साथ 'एडइनबॉक्स' की पूरी टीम मौजूद थी। पश्चिम बंगाल के कोलकाता में उदघाटित इस कार्यालय से पूर्व 'एडइनबॉक्स' की शाखाएं दिल्ली, भुवनेश्वर, लखनऊ और बैंगलोर जैसे शहरों में पहले से कार्य कर रही हैं।

कोलकाता में एडइनबॉक्स की नयी ब्रांच के उद्घाटन कार्यक्रम में इटली के यूनिमार्कोनी यूनिवर्सिटी के प्रतिनिधिमंडल की गरिमामयी उपस्थिति ने इस अवसर को तो ख़ास बनाया ही, सहयोग और साझेदारी की भावना को भी इससे बल मिला। विशिष्ट अतिथियों आर्टुरो लावेल, लियो डोनाटो और डारिना चेशेवा ने 'एडइनबॉक्स' के एडिटर उज्ज्वल अनु चौधरी, बिजनेस और कंप्यूटर साइंस के डोमेन लीडर डॉ. नवीन दास, ग्लोबल मीडिया एजुकेशन काउंसिल डोमेन को लीड कर रहीं मनुश्री मैती और एडिटोरियल कोऑर्डिनेटर समन्वयक शताक्षी गांगुली के नेतृत्व में कोलकाता टीम के साथ हाथ मिलाया। 

समारोह की शुरुआत अतिथियों का गर्मजोशी के साथ स्वागत से हुई। तत्पश्चात दोनों पक्षों के बीच विचारों और दृष्टिकोणों का सकारात्मक आदान-प्रदान हुआ। डारिना ने पारम्परिक तरीके से रिबन काटकर आधिकारिक तौर पर कार्यालय का उद्घाटन किया और इस मौके को आपसी सहयोग के प्रयासों की दिशा में एक नए अध्याय की शुरुआत बताया। बाकायदा इस दौरान यूनिमार्कोनी विश्वविद्यालय के प्रतिनिधिमंडल और EdInbox.com टीम के बीच एक साझेदारी समझौते पर हस्ताक्षर भी हुआ। यह पहल शिक्षा के क्षेत्र में नवाचार और प्रगति के लिए साझा प्रतिबद्धता को दर्शाता है, साथ ही भविष्य में अधिक से अधिक छात्रों का नेतृत्व कर इस पहल से उन्हें सशक्त बनाया जा सकता है ताकि वे वैश्विक मंचों पर सफलता के अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकें। 

समारोह के समापन की वेला पर दोनों पक्षों द्वारा एक दूसरे को स्मारिकाएं भेंट की गयीं।  'एडइनबॉक्स' की नई ब्रांच के उद्घाटन के साथ इस आदान-प्रदान की औपचारिकता से दोनों टीमों के बीच मित्रता और सहयोग के बंधन भी उदघाटित हुए।अंततः वक़्त मेहमानों को अलविदा कहने का था, 'एडइनबॉक्स' की कोलकाता टीम ने अतिथियों को विदा तो किया मगर इस भरोसे और प्रण के साथ कि यह नयी पहल भविष्य में संबंधों की प्रगाढ़ता और विकास के नए ठौर तक पहुंचेगी।  

चीन सरकार ने हाल ही में एक नया ऑनलाइन नियम लागू किया है जिसके तहत अब केवल योग्य और प्रमाणित लोग ही सोशल मीडिया पर विशेषज्ञ विषयों पर जानकारी या सलाह साझा कर सकेंगे। 25 अक्टूबर, 2025 से लागू हुए इस नियम का असर चिकित्सा, कानून, वित्त और शिक्षा जैसे गंभीर विषयों पर काम करने वाले डिजिटल कंटेंट क्रिएटर्स पर सीधे तौर पर पड़ेगा।

 

अब डॉयिन (TikTok का चीनी संस्करण), बिलिबिली और वीबो जैसे प्रमुख सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को यह सुनिश्चित करना होगा कि किसी भी व्यक्ति को ऐसे विषयों पर वीडियो या पोस्ट साझा करने से पहले उसकी शैक्षणिक डिग्री या प्रोफेशनल क्वालिफिकेशन सत्यापित की जाए। प्लेटफॉर्म्स को वेरिफिकेशन प्रक्रिया पूरी होने के बाद ही उस यूजर को विशेषज्ञ श्रेणी में कंटेंट पोस्ट करने की अनुमति दी जाएगी।

 

गलत जानकारी पर रोक लगाने की कोशिश

चीन सरकार की आधिकारिक व्याख्या के अनुसार, इस कदम का मकसद इंटरनेट पर फैल रही गलत सूचनाओं और आधे-अधूरे तथ्यों को रोकना है। बीजिंग का कहना है कि स्वास्थ्य, कानून या निवेश जैसे संवेदनशील विषयों में गलत जानकारी से लोगों को नुकसान पहुंचता है, इसलिए जरूरी है कि केवल प्रमाणित विशेषज्ञ ही इन क्षेत्रों में सलाह दें।

 

जानकारों का मानना है कि यह नियम भरोसेमंद जानकारी को बढ़ावा देने की दिशा में एक अहम कदम हो सकता है, खासकर ऐसे समय में जब चीन में सोशल मीडिया तेजी से प्राथमिक सूचना स्रोत बन चुका है।

 

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर उठे सवाल

हालांकि, इस कानून ने चीन के भीतर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर नई बहस छेड़ दी है। आलोचकों का कहना है कि यह कदम सरकार द्वारा डिजिटल स्पेस पर नियंत्रण को और मजबूत करने की दिशा में एक और प्रयास है। कई स्वतंत्र पत्रकारों और कंटेंट क्रिएटर्स को डर है कि इस नियम से सरकार यह तय करेगी कि कौन बोल सकता है और कौन नहीं।

 

मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के अनुसार, यह नीति ऐसी स्थिति पैदा कर सकती है जिसमें आम नागरिकों की राय या आलोचनात्मक विचारों को मंच नहीं मिलेगा। वहीं, कुछ डिजिटल नीति विशेषज्ञों का कहना है कि यह संतुलित दृष्टिकोण की मांग करता है — जहां गलत सूचना पर रोक लगे, लेकिन विचारों की विविधता प्रभावित न हो।

 

भरोसे और नियंत्रण के बीच संतुलन की चुनौती

विशेषज्ञों का मानना है कि चीन का यह कदम देश के डिजिटल मीडिया वातावरण में जवाबदेही और सटीकता को बढ़ावा देने की दिशा में तो अहम साबित हो सकता है, लेकिन इसके साथ ही यह ऑनलाइन स्वतंत्रता पर नए सवाल भी खड़े करता है।

 

साफ है कि यह नीति अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और गलत सूचना से निपटने के बीच उस बारीक रेखा पर खड़ी है, जो आने वाले समय में चीन में डिजिटल स्पेस की दिशा तय कर सकती है।

 

जिंदगी में आगे बढ़ने के लिए लक्ष्य तय करना बेहद जरूरी होता है। यह न सिर्फ हमें दिशा देता है, बल्कि प्रेरित भी करता है और सफलता की ओर बढ़ने का आत्मविश्वास पैदा करता है। हालांकि, बहुत से लोग अपने तय किए हुए लक्ष्यों को पूरा नहीं कर पाते। इसका कारण कभी लक्ष्य का बहुत कठिन होना होता है, तो कभी उनमें रुचि या प्रेरणा की कमी। कई बार पारिवारिक जिम्मेदारियां, समय की कमी या आर्थिक परिस्थितियां भी बीच में आ जाती हैं।

 

लेकिन अगर आप सही तरीके से योजना बनाएं और लक्ष्य को समझदारी से तय करें, तो सफलता पाना मुश्किल नहीं है। आइए जानते हैं कुछ आसान और कारगर तरीके जो आपके सपनों को हकीकत में बदलने में मदद कर सकते हैं।

 

लक्ष्य को ‘क्यों’ से जोड़ें

जब आप किसी लक्ष्य को किसी बड़े उद्देश्य या “क्यों” से जोड़ते हैं, तो उसे हासिल करना आसान हो जाता है। जब आप समझते हैं कि आप कोई काम क्यों करना चाहते हैं, तो आपका ध्यान और प्रेरणा दोनों मजबूत रहते हैं।

 

उदाहरण के लिए — अगर आप एक सफल बिजनेस इसलिए शुरू करना चाहते हैं ताकि भविष्य में जल्दी रिटायर होकर अपनी पसंद की चीजें कर सकें, तो यह “क्यों” आपको हर दिन आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करेगा। इसलिए, लक्ष्य तय करते वक्त उसके पीछे की वजह जरूर तय करें।

 

बड़े लक्ष्य को छोटे हिस्सों में बांटें

कभी-कभी बड़ा लक्ष्य हमें कठिन लगता है, लेकिन अगर उसे छोटे हिस्सों में बांट दिया जाए, तो काम आसान हो जाता है। इसे 90 दिनों के “स्प्रिंट” में विभाजित करें — यानी तीन महीने की अवधि में हासिल करने लायक छोटे-छोटे लक्ष्य तय करें।

 

जैसे — अगर आप सालभर में 50 किताबें पढ़ना चाहते हैं, तो पहले 90 दिनों में 10 किताबें पढ़ने का लक्ष्य रखें। शुरुआत के कुछ दिन किताबें चुनने और पढ़ने की आदत बनाने में लगाएं, फिर रोजाना दो अध्याय पढ़ने का नियम बनाएं। धीरे-धीरे यह आदत आपको आपके बड़े लक्ष्य के करीब ले जाएगी।

 

वर्चुअल साथी या तकनीक की मदद लें

कई बार हम अपनी क्षमता को बढ़ा-चढ़ाकर आंकते हैं और समय का गलत अनुमान लगा बैठते हैं। इसलिए, योजना में हमेशा थोड़ा अतिरिक्त समय शामिल करें।

 

आप Todoist, Google Tasks या Due जैसे एप्स का इस्तेमाल कर सकते हैं जो समय पर रिमाइंडर भेजते हैं। साथ ही, अगर संभव हो तो किसी वर्चुअल साथी या जवाबदेही पार्टनर की मदद लें जो आपको प्रेरित रखे। हर दिन कुछ घंटे सिर्फ अपने काम के लिए तय करें और नियमित रूप से उसकी प्रगति पर नजर रखें।

 

निरंतरता बनाए रखें

सफलता की सबसे बड़ी कुंजी है — निरंतरता। जितना आप किसी काम को लेकर तनाव लेंगे, उतना ही उसे पूरा करना मुश्किल होगा। इसलिए, पहले से शुरू किए गए कामों को जारी रखें और उनमें धीरे-धीरे सुधार लाएं।

 

उदाहरण के तौर पर, अगर आपने सोने से पहले पढ़ने की आदत बना ली है, तो इस महीने दो नई किताबें पढ़ने का लक्ष्य रखें। इसी तरह छोटे-छोटे कदम आगे बढ़ाने से बड़े लक्ष्य भी हासिल किए जा सकते हैं।

 

लक्ष्य तय करना सिर्फ योजना बनाने तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आपके सोचने और काम करने के तरीके को भी बदल देता है। अपने “क्यों” को पहचानें, छोटे-छोटे कदमों में आगे बढ़ें, तकनीक का उपयोग करें और सबसे अहम — निरंतरता बनाए रखें। यही वो रास्ता है जो आपको हर छोटे या बड़े लक्ष्य तक पहुंचा सकता है।

इनवर्टिस यूनिवर्सिटी (Invertis University) उच्च शिक्षा और इनोवेशन के क्षेत्र में खासकर फॉरेंसिक साइंस (Forensic Science) के क्षेत्र में एक नई दिशा तय कर रही है। भारत ही नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर नेतृत्व की ओर बढ़ते हुए यह विश्वविद्यालय अपराध न्याय प्रणाली, उद्योगों और समाज में सार्थक योगदान देने वाले विचारों और नवाचारों का केंद्र बनने की दिशा में आगे बढ़ रहा है।

 

रचनात्मकता और नैतिकता पर आधारित शिक्षा का विज़न

इनवर्टिस यूनिवर्सिटी का विज़न अगली पीढ़ी के फॉरेंसिक विशेषज्ञों में रचनात्मकता, नैतिक मूल्यों और नेतृत्व क्षमता को विकसित करना है। विश्वविद्यालय का मुख्य लक्ष्य कक्षा में सिखाए जाने वाले सिद्धांत और वास्तविक फॉरेंसिक प्रैक्टिस के बीच की दूरी को कम करना है, ताकि छात्र वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ-साथ सत्य और न्याय के प्रति समर्पित रहें।

 

नई पीढ़ी के लिए आधुनिक शैक्षणिक प्रोग्राम

विश्वविद्यालय अब इंटीग्रेटेड डिग्री प्रोग्राम, स्पेशल सर्टिफिकेट कोर्स और पोस्टग्रेजुएट M.Sc. इन फॉरेंसिक साइंस शुरू करने की योजना पर काम कर रहा है। इन कोर्सों को खासतौर पर फॉरेंसिक क्षेत्र में बढ़ती विशेषज्ञों की मांग को पूरा करने के लिए डिजाइन किया गया है। स्नातक से लेकर पेशेवर स्तर तक के छात्रों के लिए यह एक लचीला और समावेशी सीखने का वातावरण प्रदान करता है, जो आधुनिक न्याय प्रणाली और जांच से जुड़ी जटिल आवश्यकताओं के अनुरूप है।

 

इनोवेशन और टेक्नोलॉजी पर आधारित प्रशिक्षण

इनवर्टिस यूनिवर्सिटी का यह विज़न नवाचार और तकनीकी शिक्षा पर आधारित है। यहां के अपडेटेड कोर्स में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), बायोमेट्रिक्स, और डिजिटल फॉरेंसिक जैसे आधुनिक विषय शामिल हैं।

विश्वविद्यालय ने स्मार्ट लैब्स, क्राइम सीन सिमुलेशन, और पुलिस व फॉरेंसिक लैब्स के साथ सहयोगी प्रशिक्षण की सुविधा दी है।

साथ ही साइबर फॉरेंसिक और डीएनए प्रोफाइलिंग के सर्टिफिकेट कोर्स छात्रों को उद्योग के अनुरूप तैयार करते हैं। इनोवेशन हब्स छात्रों को रिसर्च और नए विचारों पर प्रयोग करने का अवसर देते हैं।

 

वैश्विक दृष्टिकोण और तकनीकी शिक्षा

इनवर्टिस यूनिवर्सिटी का दृष्टिकोण वैश्विक है। यह फैकल्टी और छात्रों के बीच अंतरराष्ट्रीय रिसर्च, एक्सचेंज प्रोग्राम और लगातार अपडेटेड करिकुलम को बढ़ावा देता है, ताकि कोर्सेज वैश्विक फॉरेंसिक ट्रेंड्स के अनुरूप रहें।

विश्वविद्यालय ने स्मार्ट क्लासरूम, VR/AR टूल्स और टेक्नोलॉजी-एनेबल्ड लर्निंग के जरिए शिक्षा को और अधिक रोचक और व्यवहारिक बना दिया है।

 

पर्यावरणीय जिम्मेदारी और सतत विकास

इनवर्टिस यूनिवर्सिटी का विज़न केवल शिक्षा तक सीमित नहीं है। यह पर्यावरणीय जिम्मेदारी, ऊर्जा-सक्षम प्रयोगशालाओं और लाइफ-लॉन्ग लर्निंग प्रोग्राम्स पर भी फोकस करता है, जिससे छात्र तेजी से बदलती दुनिया में खुद को अपडेट रख सकें।

 

न्याय और समाज के प्रति समर्पित नई सोच

इनवर्टिस यूनिवर्सिटी सिर्फ फॉरेंसिक साइंटिस्ट तैयार नहीं कर रही, बल्कि इन्वेटर्स, लीडर्स और एथिकल प्रोफेशनल्स की एक नई पीढ़ी तैयार कर रही है, जो आज और आने वाले कल में समाज और न्याय की सेवा के लिए तत्पर रहेगी।

अपने दूरदर्शी दृष्टिकोण के साथ इनवर्टिस यूनिवर्सिटी ने खुद को भारत और दुनिया में फॉरेंसिक साइंस शिक्षा और रिसर्च के क्षेत्र में उत्कृष्टता का प्रतीक बना लिया है।

 

 

वॉशिंगटन डीसी स्थित सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ ऑर्गनाइज्ड हेट (CSOH) की एक नई रिपोर्ट ने भारत के डिजिटल परिदृश्य में एआई-जनित छवियों (AI-generated imagery) के खतरनाक इस्तेमाल का खुलासा किया है।

“AI-Generated Imagery and the New Frontier of Islamophobia in India” शीर्षक से जारी यह रिपोर्ट दिखाती है कि जेनरेटिव एआई टूल्स (GAI Tools) का इस्तेमाल मुसलमानों को निशाना बनाकर घृणा फैलाने में किया जा रहा है।

 

मई 2023 से मई 2025 के बीच 297 सार्वजनिक अकाउंट्स से एकत्रित 1,326 एआई-जनित पोस्ट्स के विश्लेषण में सामने आया कि इन सामग्रियों में मुसलमानों को हिंसक, अनैतिक और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बताया गया है। इससे भारत का डिजिटल स्पेस और अधिक ध्रुवीकृत हो रहा है तथा वास्तविक जीवन में हिंसा और भेदभाव को बढ़ावा मिल रहा है।

रिपोर्ट ने चेतावनी दी है कि सस्ते एआई टूल्स और चैटजीपीटी जैसे सब्सक्रिप्शन मॉडल्स के चलते ऐसी सामग्री का प्रसार आने वाले समय में और तेज़ होगा।

 

वैश्विक संदर्भ और भारत की स्थिति

2022 में Midjourney, Stable Diffusion और DALL-E जैसे टूल्स के आने के बाद एआई इमेजरी ने वैश्विक स्तर पर लोकप्रियता पाई। भारत, जहां 90 करोड़ से अधिक इंटरनेट यूजर्स हैं, अब इन टूल्स के सबसे बड़े उपयोगकर्ताओं में है।

 

लोकलसर्कल्स के सर्वे के अनुसार, करीब 2.2 करोड़ भारतीय इमेज क्रिएशन के लिए एआई प्लेटफॉर्म्स का उपयोग करते हैं। लेकिन रिपोर्ट के मुताबिक, इसका इस्तेमाल कई बार "घृणा फैलाने वाले उद्देश्यों" के लिए किया जा रहा है, विशेषकर हिंदू फार-राइट ग्रुप्स द्वारा मुसलमानों, ईसाइयों और दलितों को निशाना बनाकर।

 

रिपोर्ट में “AI-generated hate content” को ऐसी सामग्री बताया गया है जो किसी संरक्षित समूह के खिलाफ नकारात्मक स्टीरियोटाइप, डिह्यूमनाइजेशन या हिंसा भड़काने के लिए बनाई जाती है।

भारत में यह प्रवृत्ति 20 करोड़ मुसलमानों के खिलाफ फैल रही है, जो सामाजिक एकता, धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र के लिए गंभीर खतरा बन रही है।

 

रिपोर्ट की मेथडोलॉजी

CSOH टीम ने purposive sampling के जरिए 297 अकाउंट्स चुने जो X (पूर्व ट्विटर), फेसबुक और इंस्टाग्राम पर सक्रिय थे। इन अकाउंट्स की पोस्ट्स (मई 2023 – मई 2025) का विश्लेषण किया गया, जिनमें हिंदी और अंग्रेजी दोनों भाषाओं की सामग्री शामिल थी।

 

1,326 एआई-जनित पोस्ट्स की पहचान 99% सटीकता वाले एआई-डिटेक्शन टूल से की गई। हालांकि रिपोर्ट में यह भी माना गया है कि इसमें निजी ग्रुप्स या अन्य भाषाओं की सामग्री शामिल नहीं थी, फिर भी यह अध्ययन व्यापक रुझानों को स्पष्ट करता है।

 

डेटा से उभरे पैटर्न

इन 1,326 पोस्ट्स ने कुल 27.3 मिलियन एंगेजमेंट्स प्राप्त किए:

X (Twitter) – 509 पोस्ट्स से 24.9 मिलियन

Instagram – 462 पोस्ट्स से 1.8 मिलियन

Facebook – 355 पोस्ट्स से 1.43 लाख

 

सबसे अधिक एंगेजमेंट इंस्टाग्राम पर रहा, जिससे स्पष्ट है कि विजुअल कंटेंट युवा यूजर्स के बीच तेजी से फैलता है।

 

मुख्य थीम्स:

  1. मुस्लिम महिलाओं का सेक्शुअलाइजेशन – 317 पोस्ट्स (6.7 मिलियन एंगेजमेंट्स)
  2. डिह्यूमनाइजिंग नैरेटिव्स – 291 पोस्ट्स (6.4 मिलियन)
  3. कॉन्स्पिरेसी थ्योरीज (लव/रेल/पॉपुलेशन जिहाद) – 457 पोस्ट्स (6 मिलियन)
  4. हिंसक छवियों का एस्थेटिक प्रस्तुतीकरण – 134 पोस्ट्स (6 मिलियन)

 

एआई के जरिए फैलाया जा रहा इस्लामोफोबिया

रिपोर्ट में बताया गया है कि 2023 के बाद से एआई टूल्स के प्रयोग में तेजी आई और 2024 के मध्य में इसके जरिए “रेल जिहाद”, “लव जिहाद” और “पॉपुलेशन जिहाद” जैसे नैरेटिव्स को नई जान मिली।

 

मुस्लिम महिलाओं को हिजाब में सॉफ्ट-पॉर्न जैसी छवियों में दिखाया गया, जिससे मिसोजिनी और इस्लामोफोबिया का मेल स्पष्ट हुआ।

‘Sulli Deals’ और ‘Bulli Bai’ जैसे मामलों के बाद यह डिजिटल हिंसा का अगला चरण है, जिसमें बिना सहमति के महिलाओं को अपमानजनक तरीकों से दिखाया जा रहा है।

 

कई पोस्ट्स में मुसलमानों को सांप, भेड़िए या अपराधी जैसे प्रतीकों से जोड़ा गया — यह वही डिह्यूमनाइजेशन रणनीति है जो नाजी जर्मनी और रवांडा में घृणा फैलाने के लिए इस्तेमाल हुई थी।

 

मीडिया और प्लेटफॉर्म्स की भूमिका

रिपोर्ट में कहा गया है कि OpIndia, Sudarshan News, और Panchjanya जैसे मीडिया आउटलेट्स ने इन नैरेटिव्स को मुख्यधारा में पहुंचाया। उदाहरण के तौर पर, सुदर्शन न्यूज ने “रेल जिहाद” को बढ़ावा देने वाले 187 पोस्ट्स किए, OpIndia नेटवर्क के 9 अकाउंट्स ने 262 पोस्ट्स से 1.1 मिलियन एंगेजमेंट्स हासिल किए।

 

CSOH द्वारा रिपोर्ट किए गए 187 आपत्तिजनक पोस्ट्स में से केवल एक को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स ने हटाया। यह प्लेटफॉर्म्स की मॉडरेशन विफलता को दर्शाता है।

 

रिपोर्ट का निष्कर्ष

रिपोर्ट के अनुसार, एआई ने पुरानी घृणा को नई विजुअल भाषा दे दी है — अब नफरत केवल शब्दों में नहीं, बल्कि सजीव, सुंदर और वायरल छवियों के रूप में फैल रही है।इससे न केवल अल्पसंख्यक समुदायों की छवि धूमिल हो रही है, बल्कि भारत की संवैधानिक धर्मनिरपेक्षता और लोकतांत्रिक संरचना भी खतरे में है।

 

रिपोर्ट की सिफारिशें

  1. आईटी एक्ट में एआई से जुड़ी विशेष धाराएं जोड़ी जाएं।
  2. AI Content Adjudicatory Authority की स्थापना हो।
  3. डेवलपर्स पर Transparency और Safety Audits अनिवार्य हों।
  4. सभी एआई सामग्री में Provenance Metadata शामिल किया जाए।
  5. मीडिया संस्थानों के लिए AI Ethical Guidelines लागू हों।
  6. ओपन-सोर्स डेटाबेस और क्रॉस-प्लेटफॉर्म रिपोर्टिंग सिस्टम तैयार किया जाए।
  7. एल्गोरिदमिक पारदर्शिता और ऑडिट सिस्टम लागू हो।
  8. वायरल घृणास्पद सामग्री पर तुरंत ‘फ्रिक्शन’ लागू किया जाए।

 

एआई ने नफरत को पहले से कहीं अधिक परिष्कृत, दृश्यात्मक और प्रभावशाली बना दिया है। अगर सरकार, टेक कंपनियां और समाज मिलकर कदम नहीं उठाते,  तो यह डिजिटल नफरत भारत की सामाजिक एकता के लिए दीर्घकालिक खतरा बन सकती है।

 

 




छोटे शहरों के लोग भी बड़े सपने देख सकते हैं और उन्हें साकार कर सकते हैं। इसका उदाहरण हैं उत्तर प्रदेश के छोटे शहर एटा के मोहित त्यागी। इन्होंने आईआईटी जेईई की पढ़ाई पूरी करने के बाद लगभग 10 साल कोटा जैसे शैक्षिक हब में पढ़ाया। इसके बाद साल 2013 में इन्होंने देश का पहला शैक्षिक यूट्यूब चैनल लॉन्च किया और आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों को आईआईटी और जेईई की मुफ्त तैयारी कराने लगे।

यही नहीं, उनके इस संघर्ष पर अब एक वेब सीरीज भी बनाई जा रही है, जिसका नाम है ‘13th’, और यह 01 अक्टूबर को रिलीज होगी। यह जानकर आप हैरान रह जाएंगे कि मोहित त्यागी के यूट्यूब चैनल पर दो मिलियन सब्सक्राइबर हैं, जिनमें अधिकांश उनके छात्र-छात्राएं हैं।

संघर्ष से प्रेरणा लेकर मुफ्त शिक्षा
यूट्यूबर मोहित त्यागी ने बताया कि उनका जन्म एटा, उत्तर प्रदेश में हुआ था। उन्होंने 12वीं तक सरकारी इंटर कॉलेज से हिंदी मीडियम में पढ़ाई की। उनके लिए आगे की राह आसान नहीं थी। उनके पिता स्पेयर पार्ट्स की दुकान चलाते थे और मां घर संभालती थीं। परिवार में किसी का भी इंजीनियरिंग बैकग्राउंड नहीं था। इसके बावजूद मोहित ने 12वीं के बाद आईआईटी और जेईई की पूरी तैयारी की और सफलता पाई।

आईआईटी दिल्ली से बीटेक करने के बाद उन्होंने लगभग 10–12 साल कोटा में पढ़ाया। वहां उन्हें उत्तर प्रदेश और बिहार के कई आर्थिक रूप से कमजोर छात्र मिले। उन्होंने देखा कि ऐसे बच्चे अपने माता-पिता के संघर्ष के बावजूद अपनी पढ़ाई में लगे रहते हैं। यह देखकर मोहित को अपने संघर्ष की याद आई और उन्होंने निशुल्क आईआईटी-जैसे कठिन कोर्स की तैयारी कराने का निर्णय लिया।

संघर्ष पर आधारित वेब सीरीज
मोहित त्यागी को उनके छात्र ‘एमटी सर’ के नाम से जानते हैं। वेब सीरीज ‘13th’ 12वीं के बाद की पढ़ाई और छात्रों के संघर्ष पर आधारित है। इसमें छात्रों और उनके शिक्षकों के रिश्तों के साथ-साथ आज के स्टार्टअप परिदृश्य को भी दिखाया गया है। यह बताती है कि जब एक बच्चा अपने माता-पिता से दूर होकर कोटा जैसे शहर में पढ़ाई के लिए आता है, तो उसे किन कठिनाइयों और संघर्षों का सामना करना पड़ता है।

मोहित ने बताया कि 2020 में उन्होंने कोचिंग संस्थानों को अलविदा कहकर पूरी तरह यूट्यूब चैनल पर ध्यान केंद्रित किया। आज उनके चैनल के दो मिलियन सब्सक्राइबर हैं और आईआईटी-जैसे सभी विषय निशुल्क उपलब्ध हैं। हालांकि कई कोचिंग संस्थानों ने उनके चैनल को बंद कराने की कोशिश की और उन पर दबाव डाला, लेकिन मोहित ने अपने यूट्यूब चैनल को कभी बंद नहीं किया।

 

तेज़-तर्रार और तनावभरी ज़िंदगी से राहत पाने के लिए लोग अब एक नया तरीका अपना रहे हैं — नेपकेशन (Napcation)। आइए जानते हैं कि आखिर ये ट्रेंड है क्या और क्यों यह इतनी तेज़ी से लोकप्रिय हो रहा है।

 

आराम वाले वेकेशन का बढ़ता क्रेज

Gen-Z के इस दौर में नए-नए ट्रेंड्स तेजी से उभर रहे हैं — फिर चाहे बात रिलेशनशिप की हो या ट्रैवल की। अब एक ऐसा नया ट्रैवल ट्रेंड चर्चा में है जिसे नेपकेशन कहा जा रहा है। जैसा कि नाम से ही साफ है, इसमें लोग छुट्टियों पर घूमने नहीं बल्कि सोने और आराम करने के लिए जाते हैं।

 

इसे स्लीप टूरिज़्म या नैप हॉलिडे भी कहा जाता है। पिछले कुछ सालों में इसकी लोकप्रियता तेजी से बढ़ी है, खासकर उन लोगों के बीच जो लगातार वर्कलोड और तनाव की वजह से नींद पूरी नहीं कर पाते।

 

क्या होता है नेपकेशन?

आम तौर पर लोग पहाड़ों, झीलों या समुद्र तटों पर घूमने और एडवेंचर के लिए जाते हैं, लेकिन नेपकेशन का मकसद है — आराम करना और नींद पूरी करना।

जो लोग ऑफिस वर्क, स्ट्रेस या बिजी लाइफस्टाइल की वजह से थक चुके हैं, वे कुछ दिनों के लिए ऐसी जगह जाते हैं जहाँ सिर्फ आराम, नींद और सुकून हो।

 

होटल और रिजॉर्ट भी दे रहे हैं ‘स्लीप पैकेज’

नेपकेशन के बढ़ते चलन को देखते हुए कई होटल और रिजॉर्ट अब इस ट्रेंड को अपना रहे हैं। वे मेहमानों को आरामदायक गद्दे और तकिए, साउंडप्रूफ और डार्क रूम, अरोमाथेरेपी और वेलनेस प्रोग्राम, रिलैक्सेशन म्यूज़िक और मेडिटेशन सेशन आदि सुविधा देते हैं। यानी एक ऐसा माहौल, जहाँ आप पूरी तरह रिलैक्स होकर नींद का आनंद ले सकें। भारत में केरल, कूर्ग, मनाली और ऋषिकेश जैसी शांत जगहें इस ट्रेंड के लिए बेहद लोकप्रिय हो रही हैं।

 

आप भी कर सकते हैं ‘नेपकेशन’ प्लान

अगर आप भी लगातार तनाव, थकान या नींद की कमी से जूझ रहे हैं, तो अपने लिए एक नेपकेशन ज़रूर प्लान करें। इससे न केवल आपकी नींद और स्लीप साइकिल में सुधार होगा, बल्कि मानसिक शांति और एनर्जी भी लौट आएगी। कुछ दिन के इस आराम के बाद आप फिर से तरोताज़ा महसूस करेंगे और पूरे जोश के साथ अपने काम पर लौट सकेंगे।

 

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क्यों महत्वपूर्ण हैं शिक्षा जगत की खबरें?

शिक्षा जगत की खबरों से तात्पर्य इस क्षेत्र से जुड़े विविध विषयों की एक विस्तृत श्रृंखला है, पाठ्यक्रम और शिक्षण पद्धतियों में बदलाव से लेकर शैक्षिक नीतियों और सुधारों पर अपडेट तक। इसमें स्कूलों, विश्वविद्यालयों, शिक्षा प्रौद्योगिकी और शिक्षाशास्त्र में प्रगति संबंधी गतिविधियां भी शामिल हैं। शिक्षा जगत से संबंधित समाचारों से अपडेट रहना इससे जुड़े लोगों को ठोस निर्णय लेने, सर्वोत्तम विधाओं को लागू करने और शिक्षा क्षेत्र के सामने आने वाली चुनौतियों का सामना करने में मददगार साबित होता है।

मीडिया-शिक्षा की भूमिका

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