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भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थानों (आईआईटी) में शैक्षणिक सत्र 2025-26 के लिए दाखिला प्रक्रिया लगभग पूर्ण हो चुकी है। इस बार सिर्फ चार सीटें खाली रह गई हैं, जो कि आईआईटी बीएचयू और आईआईटी खड़गपुर के बैचलर ऑफ आर्किटेक्चर प्रोग्राम में थीं। ये सभी सीटें ओबीसी नॉन-क्रीमी लेयर की छात्राओं के लिए आरक्षित थीं, लेकिन इस श्रेणी में कोई उपयुक्त उम्मीदवार नहीं मिला। नियमानुसार, इन सीटों को अन्य वर्ग की छात्राओं या ओबीसी (नॉन-क्रीमी लेयर) पुरुष उम्मीदवारों को नहीं दिया जा सकता था।

गौरतलब है कि इस बार पहली बार सामान्य वर्ग की कोई भी सीट खाली नहीं रही। पिछली बार यानी सत्र 2024-25 में कुल 96 सीटें रिक्त थीं।

आईआईटी कानपुर के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, जोसा काउंसलिंग के जरिए इस बार 23 आईआईटी में कुल 18,160 सीटों के लिए दाखिला होना था, लेकिन 18,188 सीटों पर प्रवेश हुआ — यानी 28 अतिरिक्त दाखिले किए गए। इस साल जेईई एडवांस 2025 और दाखिला प्रक्रिया की जिम्मेदारी आईआईटी कानपुर को सौंपी गई थी।

इस हफ्ते से शुरू हो रहा नया सत्र
नया शैक्षणिक सत्र इसी सप्ताह से शुरू हो रहा है। विभिन्न आईआईटी संस्थान अलग-अलग तिथियों पर कक्षाएं आरंभ करेंगे। आईआईटी गांधीनगर 18 अगस्त, आईआईटी दिल्ली में 21 जुलाई, बॉम्बे व धनबाद में 28 जुलाई, गोवा पांच अगस्त, जम्मू 28 जुलाई, कानपुर, मद्रास, मंडी व जोधपुर 31 जुलाई, खड़गपुर 29 जुलाई, रुड़की व तिरुपति 26 जुलाई, रोपड़ व पालकाड़ 30 जुलाई, आईआईटी गांधीनगर 18 अगस्त, गुवाहाटी 20 जुलाई, इंदौर छह अगस्त, बीएचयू 24 जुलाई से सत्र शुरू कर रहा है।

केरल के कोल्लम जिले में एक दर्दनाक घटना में 13 वर्षीय छात्र मिथुन की स्कूल परिसर में करंट लगने से मौत हो गई। घटना के एक दिन बाद राज्य के सामान्य शिक्षा मंत्री वी. शिवनकुट्टी ने कड़ी कार्रवाई की घोषणा की।

मंत्री ने तत्काल प्रभाव से स्कूल की प्रधानाध्यापिका को निलंबित करने का आदेश दिया और स्कूल प्रबंधन को कारण बताओ नोटिस जारी किया है। साथ ही तीन दिन के भीतर जवाब देने को कहा गया है।

"हमने केरल का एक बेटा खो दिया है" — शिक्षा मंत्री
मंत्री शिवनकुट्टी ने कहा, "हमें शिक्षा महानिदेशक से विस्तृत रिपोर्ट प्राप्त हो चुकी है और सरकार इस मामले में तत्परता से कार्रवाई कर रही है। हमने केरल का एक बेटा खो दिया है।"

मृतक छात्र के परिवार को सहायता
थेवलक्कारा बॉयज हाई स्कूल के छात्र मिथुन की मौत उस समय हुई जब वह स्कूल परिसर में खुले बिजली के तार की चपेट में आ गया। राज्य सरकार ने शोकसंतप्त परिवार के लिए त्वरित सहायता के रूप में ₹3 लाख की मदद, स्काउट्स एंड गाइड्स की मदद से एक नया घर और छात्र के छोटे भाई को 12वीं कक्षा तक मुफ्त शिक्षा देने की घोषणा की है।

प्रबंधन से जवाब तलब, PTA होगा पुनर्गठित
सरकार ने स्कूल के अभिभावक-शिक्षक संघ (PTA) को भी पुनर्गठित करने का निर्देश दिया है। इसके अलावा, सहायक शिक्षा अधिकारी से भी जवाब मांगा गया है कि सुरक्षा में चूक कैसे हुई। प्रबंधन को तीन दिन के भीतर जवाब दाखिल करने का आदेश दिया गया है।

मई में जारी किया गया था स्पष्ट परिपत्र
शिवनकुट्टी ने बताया कि मई में ही सभी स्कूलों को एक परिपत्र के जरिए यह निर्देश दिए गए थे कि स्कूल खुलने से पहले बिजली से जुड़े संभावित खतरों की जांच की जाए और रिपोर्ट सौंपी जाए। मंत्री ने कहा, "सरकार की तरफ से निर्देश बिल्कुल स्पष्ट थे। इस लापरवाही का कोई बहाना नहीं चल सकता।"

 

केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने शुक्रवार को भारतीय रचनात्मक प्रौद्योगिकी संस्थान (IICT) के पहले परिसर का उद्घाटन किया। यह अत्याधुनिक केंद्र मुंबई के नेशनल फिल्म डेवेलपमेंट कॉर्पोरेशन (NFDC) में स्थापित किया गया है। उद्घाटन समारोह में उन्होंने घोषणा की कि भविष्य में देशभर में आईआईटी और आईआईएम की तर्ज पर और भी IICT संस्थान शुरू किए जाएंगे।

रचनात्मक तकनीकों में युवाओं को मिलेगा आधुनिक प्रशिक्षण
IICT की स्थापना का उद्देश्य VFX, गेमिंग, एनीमेशन और विस्तारित वास्तविकता (XR) जैसे उभरते क्षेत्रों में युवाओं को उद्योगोन्मुखी और आधुनिक प्रशिक्षण देना है। इसके लिए संस्थान ने गूगल, मेटा, NVIDIA, माइक्रोसॉफ्ट, एप्पल, एडोब और डब्ल्यूपीपी जैसी वैश्विक टेक कंपनियों के साथ साझेदारी की है। ये कंपनियां प्रशिक्षण मॉड्यूल विकसित करने में सहयोग कर रही हैं, ताकि छात्रों को सीधे उद्योग की आवश्यकताओं के अनुरूप कौशल मिल सके।

वैश्विक सहयोग और विश्वविद्यालयों से जुड़ाव
वैष्णव ने बताया कि चार भारतीय विश्वविद्यालयों के साथ गठजोड़ की प्रक्रिया चल रही है, जबकि यॉर्क विश्वविद्यालय (यूके) के साथ पहले ही करार हो चुका है। इससे IICT के पाठ्यक्रमों को अंतरराष्ट्रीय मान्यता और गुणवत्ता मिलेगी।

मुंबई बनेगा रचनात्मक तकनीक का ग्लोबल हब
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि मुंबई, जो पहले से ही फिल्म और रचनात्मकता का केंद्र है, अब रचनात्मक तकनीक के क्षेत्र में भी देश का नेतृत्व करेगा। अगला IICT परिसर मुंबई की फिल्म सिटी में बनाया जाएगा, जिसके लिए महाराष्ट्र सरकार ने 400 करोड़ रुपये आवंटित कर दिए हैं और ज़मीन भी प्रदान कर दी गई है। यह नया परिसर देश के सबसे उन्नत तकनीकी शिक्षा केंद्रों में से एक होगा।

रचनात्मक अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए 150 करोड़ की सहायता
IICT का लक्ष्य अपने पहले वर्ष में लगभग 300 छात्रों और प्रशिक्षकों को VFX, पोस्ट-प्रोडक्शन, गेमिंग और XR जैसे क्षेत्रों में छोटे और लंबे कोर्सों के माध्यम से प्रशिक्षण देना है।

उद्घाटन समारोह में महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस और मंत्री आशीष शेलार भी मौजूद थे। इस अवसर पर फडणवीस ने 'WEVES' सम्मेलन की रिपोर्ट जारी करते हुए रचनात्मक अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिए 150 करोड़ रुपये के विशेष कोष की घोषणा की।

मुंबई बनेगा 'क्रिएटिव इंडस्ट्री कैपिटल'
फडणवीस ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार मुंबई को वैश्विक रचनात्मक अर्थव्यवस्था की राजधानी बनाने के लिए प्रतिबद्ध है और दावोस की तर्ज पर हर दो साल में एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित करने की योजना बना रही है। उन्होंने यह भी बताया कि "वेव्स इंडेक्स" के तहत ट्रैक की जा रही 42 रचनात्मक कंपनियों का संयुक्त मूल्यांकन 93,000 करोड़ से बढ़कर 1 लाख करोड़ रुपये हो गया है।

भारत पैवेलियन और संग्रहालय का लोकार्पण
इस कार्यक्रम में एनएमआईसी परिसर के गुलशन महल में “श्रुति से स्ट्रीमिंग तक” थीम पर आधारित एक स्थायी संग्रहालय 'भारत पैवेलियन' का भी उद्घाटन किया गया। फडणवीस ने इसे मुंबई के सांस्कृतिक और पर्यटन मानचित्र में एक ऐतिहासिक उपलब्धि बताया।

 

"आशा है आप सकुशल होंगे। आपके सीयूईटी यूजी के परिणाम के आधार पर आपको बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में बीएससी बायोटेक्नोलॉजी पाठ्यक्रम की पढ़ाई के लिए चुना गया है..."
इस तरह का संदेश हाल के दिनों में कई अभ्यर्थियों को व्हाट्सएप पर मिला है। लेकिन यह संदेश न तो बीएचयू की ओर से है और न ही किसी अधिकृत स्रोत से। दरअसल, यह फर्जीवाड़ा है — धोखेबाजों द्वारा छात्रों को भ्रमित कर ठगने की एक नई चाल।

बीएचयू ने जारी किया सार्वजनिक अलर्ट
बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) ने इस पूरे मामले पर संज्ञान लेते हुए एक सार्वजनिक नोटिस जारी किया है। विश्वविद्यालय ने स्पष्ट किया है कि वह व्हाट्सएप या किसी अनौपचारिक माध्यम से प्रवेश से जुड़ी कोई भी सूचना साझा नहीं करता।
इन फर्जी संदेशों में अक्सर संदिग्ध लिंक और यूआरएल शामिल होते हैं, जिन पर क्लिक करने को कहा जाता है — जो कि संभावित रूप से छात्रों की निजी जानकारी चुराने के इरादे से भेजे जाते हैं।

बीएचयू की ओर से सूचना केवल इन माध्यमों से मिलती है
विश्वविद्यालय ने स्पष्ट किया है कि प्रवेश से जुड़ी सभी आधिकारिक सूचनाएं केवल दो अधिकृत ईमेल पतों This email address is being protected from spambots. You need JavaScript enabled to view it. और This email address is being protected from spambots. You need JavaScript enabled to view it.
के जरिए ही भेजी जाती हैं।

इसके अलावा, छात्रों को उनकी प्रवेश स्थिति से जुड़ी जानकारी सिर्फ उनके पंजीकृत ईमेल आईडी और छात्र पोर्टल के माध्यम से ही उपलब्ध कराई जाती है।

बीएचयू ने दोहराया है कि वह व्हाट्सएप जैसे प्लेटफॉर्म के माध्यम से किसी भी प्रकार का प्रवेश पुष्टिकरण नहीं भेजता।

धोखाधड़ी पर विश्वविद्यालय नहीं होगा जिम्मेदार
विश्वविद्यालय ने छात्रों और अभ्यर्थियों से अपील की है कि वे किसी भी अनधिकृत और असत्यापित संदेश पर ध्यान न दें। साथ ही विश्वविद्यालय ने यह भी स्पष्ट किया है कि ऐसी किसी भी धोखाधड़ी के लिए वह जिम्मेदार नहीं होगा।
बीएचयू ने सभी उम्मीदवारों को नियमित रूप से अपने छात्र पोर्टल और ईमेल इनबॉक्स की जांच करते रहने की सलाह दी है।

बीएचयू में स्नातक दाखिला प्रक्रिया शुरू
इस बीच, बीएचयू ने स्नातक कार्यक्रमों में प्रवेश हेतु पंजीकरण प्रक्रिया शुरू कर दी है। कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट (CUET UG 2025) में उत्तीर्ण अभ्यर्थी विश्वविद्यालय की आधिकारिक वेबसाइट www.bhu.ac.in या bhucuet.samarth.edu.in के माध्यम से 31 जुलाई तक आवेदन कर सकते हैं।

नोट: किसी भी प्रवेश संबंधी जानकारी के लिए केवल BHU की आधिकारिक वेबसाइट और ईमेल पर ही भरोसा करें। फर्जी संदेशों से सावधान रहें और किसी भी अनधिकृत लिंक पर क्लिक न करें।

 

राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (NCERT) ने कक्षा 8 के लिए सामाजिक विज्ञान की नई पुस्तक "समाज की खोज: भारत और उससे आगे" इस सप्ताह प्रकाशित की है। यह पुस्तक नई राष्ट्रीय पाठ्यचर्या के तहत पहली किताब है, जो इतिहास के कई ऐसे पक्षों को सामने लाती है जिन्हें अब तक पारंपरिक पाठ्यपुस्तकों में कम महत्व दिया गया था।

पुस्तक में सिख गुरुओं द्वारा मुगलों के अत्याचार के विरुद्ध दिखाई गई बहादुरी, मराठों के उदय, ताराबाई और अहिल्याबाई होल्कर जैसी महिला नेताओं के योगदान, और विभिन्न जनजातीय विद्रोहों को प्रमुखता से शामिल किया गया है।

अनदेखे नायकों और neglected इतिहास को मिला स्थान
किताब में रानी दुर्गावती, रानी अबक्का और त्रावणकोर के राजा मार्तंड वर्मा जैसे ऐतिहासिक पात्रों को भी विशेष स्थान दिया गया है। भारत की सांस्कृतिक ज्ञान परंपरा और पारंपरिक कौशलों पर भी एक अलग खंड शामिल किया गया है, जिससे छात्रों को भारत की विविध ऐतिहासिक धरोहर की व्यापक समझ मिल सके।

प्रस्तावना में "इतिहास के कुछ अंधकारमय कालखंडों पर टिप्पणी" शीर्षक से एक अनुभाग है, जिसमें छात्रों को यह समझाने का प्रयास किया गया है कि इतिहास में युद्ध, सत्ता संघर्ष और रक्तपात जैसे विषयों को कैसे संवेदनशील दृष्टिकोण से समझा जाना चाहिए। उसमें स्पष्ट कहा गया है, “आज किसी को भी अतीत की घटनाओं के लिए दोषी नहीं ठहराया जाना चाहिए।”

13वीं से 17वीं सदी का पुनर्पाठ
"भारत के राजनीतिक मानचित्र का पुनर्निर्माण" नामक अध्याय में 13वीं से 17वीं सदी तक भारत में हुए राजनीतिक परिवर्तनों का विस्तृत वर्णन किया गया है। इसमें दिल्ली सल्तनत की स्थापना, उसके विरोध, विजयनगर और बहमनी जैसे राज्यों, मुगल शासन तथा उसके खिलाफ हुए प्रतिरोधों और सिखों के उदय को विस्तार से प्रस्तुत किया गया है।

मुगल शासकों के वर्णन में विशेष दृष्टिकोण लिया गया है:
- बाबर को “निर्दयी और क्रूर विजेता” बताया गया है जिसने “कई शहरों की पूरी आबादी का कत्लेआम किया।”
- औरंगज़ेब को “सैन्य शासक” कहा गया है जिसने “मंदिरों और गुरुद्वारों को ध्वस्त किया।”
- अकबर को “क्रूरता और सहिष्णुता का मिश्रण” बताया गया है, और कहा गया है कि “गैर-मुस्लिमों को प्रशासन में सीमित स्थान मिला।”
- चित्तौड़गढ़ की घेराबंदी के बाद “करीब 30,000 लोगों के नरसंहार” का भी उल्लेख किया गया है।

पुस्तक में यह भी स्वीकार किया गया है कि “मुगल काल में धार्मिक असहिष्णुता की कई घटनाएं हुईं।”

सिख, मराठा और उपनिवेशकालीन संघर्षों पर विशेष फोकस
मराठों को केवल सैन्य शक्ति के रूप में नहीं, बल्कि समुद्री क्षमताओं और प्रशासनिक सुधारों के लिए भी प्रस्तुत किया गया है। सिख गुरुओं के अन्याय के विरुद्ध संघर्ष और धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा हेतु उनके योगदान को प्रमुखता से दिखाया गया है।

ब्रिटिश उपनिवेशकाल में हुए जन आंदोलनों — जैसे संन्यासी-फकीर आंदोलन, नील विद्रोह और 1857 की क्रांति — को भी नए दृष्टिकोण से शामिल किया गया है।

“इतिहास को समावेशी दृष्टिकोण से पढ़ाया जाएगा” — NCERT
एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तक समिति के एक सदस्य के अनुसार, “यह पुस्तक छात्रों को संघर्षों और समाज के विकास की एक अधिक समावेशी और संतुलित तस्वीर देगी — जो अब तक की एकरूपी ऐतिहासिक कथाओं से काफी अलग होगी।”

बिहार में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक बड़ी घोषणा करते हुए राज्य के सरकारी स्कूलों में 1.2 लाख शिक्षकों की भर्ती की प्रक्रिया शुरू करने का ऐलान किया है। यह बहाली शिक्षक नियुक्ति परीक्षा (TRE-4) के तहत की जाएगी। मुख्यमंत्री ने इसकी जानकारी सोशल मीडिया पोस्ट के माध्यम से दी।

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने क्या कहा?
नीतीश कुमार ने अपनी पोस्ट में लिखा, “हमने शिक्षा विभाग को निर्देश दिया है कि सरकारी विद्यालयों में रिक्त पदों की तत्काल गणना की जाए और TRE-4 परीक्षा के जरिए शीघ्र नियुक्ति प्रक्रिया शुरू की जाए। राज्य सरकार यह पहले ही स्पष्ट कर चुकी है कि शिक्षकों की नियुक्तियों में महिलाओं को दिए जाने वाले 35% आरक्षण का लाभ केवल बिहार की निवासी महिलाओं को ही मिलेगा।”

बिहार को शिक्षकों की भारी जरूरत
राज्य में करीब 5.5 लाख शिक्षकों की आवश्यकता है। ऐसे में यह भर्ती अभियान न केवल शिक्षा व्यवस्था को मजबूत करेगा, बल्कि चुनावी माहौल में सत्तारूढ़ सरकार के लिए राजनीतिक रूप से भी फायदेमंद साबित हो सकता है। इस बहाली के तहत प्राथमिक (कक्षा I-V), मध्य (VI-VIII), माध्यमिक (IX-X) और उच्च माध्यमिक (XI-XII) स्तरों पर शिक्षकों की नियुक्तियां की जाएंगी।

TRE के पिछले चरणों का विवरण
TRE-1: लगभग 1.70 लाख शिक्षकों की नियुक्ति हुई।
TRE-2: 70,000 उम्मीदवारों को नियुक्ति पत्र प्रदान किए गए।
TRE-3: 87,774 पदों के लिए विज्ञापन निकाला गया, जिनमें से 66,603 पदों पर बहाली पूरी हुई; बाकी पद रिक्त रह गए।

अब TRE-4 के तहत चौथे चरण की नियुक्ति प्रक्रिया की शुरुआत होने जा रही है।

महत्वपूर्ण बातें
- भर्ती की विस्तृत अधिसूचना जल्द जारी होने की संभावना है।
- अभ्यर्थियों को सलाह दी जाती है कि वे शैक्षणिक योग्यता, आरक्षण नीति, और पात्रता से जुड़ी सभी जानकारियां ध्यानपूर्वक पढ़ें।
- महिला अभ्यर्थियों के लिए 35% आरक्षण की व्यवस्था यथावत है, लेकिन इसका लाभ केवल बिहार की मूल निवासी महिलाओं को मिलेगा।
- यह बहाली अभियान न केवल राज्य की शिक्षा व्यवस्था को सशक्त करेगा, बल्कि लाखों युवाओं के लिए रोजगार का बड़ा अवसर भी लेकर आएगा।

 

 

CUET-UG में 100 परसेंटाइल स्कोर करने वाली अंतरा पाण्डेय का इंटरव्यू

एक बेहद खास और प्रेरणादायक शख्सियत— अंतरा पाण्डेय। अमेठी के फुरसतगंज स्थित फुटवियर डिजाइन एंड डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट (FDDI) में कार्यरत नलिन पांडे की पुत्री अंतरा ने कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट (CUET-UG) 2025 में बायोलॉजी विषय में 100 परसेंटाइल स्कोर कर एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है।

देशभर से इस प्रतिष्ठित परीक्षा में 10.7 लाख विद्यार्थियों ने भाग लिया था, जिनमें से केवल 2679 छात्र ही 100 परसेंटाइल प्राप्त कर पाए। इस कठिन प्रतिस्पर्धा में अंतरा की सफलता न केवल उनके परिवार, बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए गर्व की बात है।

उनकी माँ भूमिका पाण्डेय के अनुसार, यह उपलब्धि अंतरा की कड़ी मेहनत, समर्पण और आत्मविश्वास का परिणाम है। अंतरा का सपना एक वैज्ञानिक बनकर देश की सेवा करना है — और आज उनके इस सफर की शुरुआत का हम साक्षात्कार करने जा रहे हैं। उनसे बात की एडइनबॉक्स के संपादक रईस अहमद 'लाली' ने। 

चलिए, जानते हैं अंतरा की इस प्रेरणादायक यात्रा के बारे में, उन्हीं की ज़ुबानी। 


प्रश्न 1. अंतरा, सबसे पहले आपको इस उपलब्धि पर बहुत बधाई! कैसा लग रहा है?
उत्तर: बहुत अच्छा लग रहा है। यह मेरी मेहनत और मेरे माता-पिता के आशीर्वाद का नतीजा है। खुशी है कि मैंने उनके विश्वास को कायम रखा।

प्रश्न 2. CUET-UG की तैयारी आपने कब और कैसे शुरू की थी?
उत्तर: मैंने 12वीं क्लास से ही नींव मजबूत करना शुरू कर दिया था। नियमित पढ़ाई, एनसीईआरटी पर फोकस और मॉक टेस्ट मेरी तैयारी का अहम हिस्सा रहे।

प्रश्न 3. बायोलॉजी में 100 परसेंटाइल लाना बेहद कठिन होता है। आपकी रणनीति क्या रही?
उत्तर: बायोलॉजी मुझे शुरू से पसंद रहा है। मैंने हर चैप्टर को गहराई से पढ़ा, चार्ट्स और डायग्राम्स से याद किया, और NCERT को 3-4 बार दोहराया।

प्रश्न 4. आपने किसी कोचिंग की मदद ली या सेल्फ स्टडी पर भरोसा किया?
उत्तर: मैंने सीमित ऑनलाइन कोचिंग ली, लेकिन मुख्य रूप से सेल्फ स्टडी की। खुद पर भरोसा और अनुशासन सबसे अहम रहा।

प्रश्न 5. पढ़ाई के दौरान समय प्रबंधन और तनाव को कैसे हैंडल किया?
उत्तर: समय का शेड्यूल बनाकर चलती थी। बीच-बीच में ध्यान, योग और परिवार से बात करके मानसिक संतुलन बनाए रखा।

प्रश्न 6. आपके माता-पिता की भूमिका इस यात्रा में कितनी महत्वपूर्ण रही?
उत्तर: मेरी माँ भूमिका पाण्डेय और पापा नलिन पांडे ने मुझे हमेशा मोटिवेट किया। जब भी थकान महसूस होती, उनका साथ मुझे ऊर्जा देता था।

प्रश्न 7. आपने वैज्ञानिक बनने का सपना क्यों चुना?
उत्तर: मुझे हमेशा से शोध में रुचि रही है। मैं बायोलॉजिकल रिसर्च में योगदान देना चाहती हूँ, खासकर देश की स्वास्थ्य और पर्यावरण व्यवस्था के लिए।

प्रश्न 8. भविष्य में आप किस यूनिवर्सिटी या संस्थान को चुनना चाहेंगी?
उत्तर: मेरा लक्ष्य देश के टॉप रिसर्च इंस्टीट्यूट्स, जैसे IISc बेंगलुरु या JNU की लाइफ साइंसेज फैकल्टी में जाना है।

प्रश्न 9. सोशल मीडिया या अन्य distractions से आपने कैसे दूरी बनाई?
उत्तर: मैंने सोशल मीडिया को एक टारगेट के बाद ही देखने का नियम बनाया। पढ़ाई के समय उसे दूर रखा।

प्रश्न 10. अंत में, CUET की तैयारी कर रहे छात्रों को आप क्या संदेश देना चाहेंगी?
उत्तर: एकाग्रता और निरंतरता सबसे बड़ी कुंजी है। हर दिन कुछ नया सीखने की कोशिश करें। और सबसे जरूरी – खुद पर विश्वास रखें।

प्रोफ़ेसर (डॉ.) संजय द्विवेदी मीडिया शिक्षा के क्षेत्र में एक जानी-मानी शख्सियत हैं। वे भारतीय जन संचार संस्थान (IIMC) दिल्ली के महानिदेशक रह चुके हैं। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के प्रभारी कुलपति और कुलसचिव बतौर भी उन्होंने अपनी सेवाएं दी हैं। मीडिया शिक्षक होने के साथ ही प्रो.संजय द्विवेदी ने सक्रिय पत्रकार और दैनिक अखबारों के संपादक के रूप में भी भूमिकाएं निभाई हैं। वह मीडिया विमर्श पत्रिका के कार्यकारी संपादक भी हैं। 35 से ज़्यादा पुस्तकों का लेखन और संपादन भी किया है। सम्प्रति वे माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल के जनसंचार विभागमें प्रोफेसर हैं। मीडिया शिक्षा, मीडिया की मौजूदा स्थिति, नयी शिक्षा नीति जैसे कई अहम् मुद्दों पर एड-इनबॉक्स के लिए संपादक रईस अहमद 'लाली' ने उनसे लम्बी बातचीत की है। प्रस्तुत हैं इस बातचीत के सम्पादित अंश : 

 

- संजय जी, प्रथम तो आपको बधाई कि वापस आप दिल्ली से अपने पुराने कार्यस्थल राजा भोज की नगरी भोपाल में आ गए हैं। यहाँ आकर कैसा लगता है आपको? मेरा ऐसा पूछने का तात्पर्य इन शहरों से इतर मीडिया शिक्षा के माहौल को लेकर इन दोनों जगहों के मिजाज़ और वातावरण को लेकर भी है। 

अपना शहर हमेशा अपना होता है। अपनी जमीन की खुशबू ही अलग होती है। जिस शहर में आपने पढ़ाई की, पत्रकारिता की, जहां पढ़ाया उससे दूर जाने का दिल नहीं होता। किंतु महत्वाकांक्षाएं आपको खींच ले जाती हैं। सो दिल्ली भी चले गए। वैसे भी मैं जलावतन हूं। मेरा कोई वतन नहीं है। लेकिन मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की जमीन मुझे बांधती है। मैंने सब कुछ यहीं पाया। कहने को तो यायावर सी जिंदगी जी है। जिसमें दिल्ली भी जुड़ गया। आप को गिनाऊं तो मैंने अपनी जन्मभूमि (अयोध्या) के बाद 11 बार शहर बदले, जिनमें बस्ती, लखनऊ,वाराणसी, भोपाल, रायपुर, बिलासपुर, मुंबई, दिल्ली सब शामिल हैं। जिनमें दो बार रायपुर आया और तीसरी बार भोपाल में हूं। बशीर बद्र साहब का एक शेर है, जब मेरठ दंगों में उनका घर जला दिया गया, तो उन्होंने कहा था-

मेरा घर जला तो

सारा जहां मेरा घर हो गया।

मैं खुद को खानाबदोश तो नहीं कहता,पर यायावर कहता हूं। अभी भी बैग तैयार है। चल दूंगा। जहां तक वातावरण की बात है, दिल्ली और भोपाल की क्या तुलना। एक राष्ट्रीय राजधानी है,दूसरी राज्य की राजधानी। मिजाज की भी क्या तुलना हम भोपाल के लोग चालाकियां सीख रहे हैं, दिल्ली वाले चालाक ही हैं। सारी नियामतें दिल्ली में बरसती हैं। इसलिए सबका मुंह दिल्ली की तरफ है। लेकिन दिल्ली या भोपाल हिंदुस्तान नहीं हैं। राजधानियां आकर्षित करती हैं , क्योंकि यहां राजपुत्र बसते हैं। हिंदुस्तान बहुत बड़ा है। उसे जानना अभी शेष है।

 

- भोपाल और दिल्ली में पत्रकारिता और जन संचार की पढ़ाई के माहौल में क्या फ़र्क़ महसूस किया आपने?

भारतीय जन संचार संस्थान में जब मैं रहा, वहां डिप्लोमा कोर्स चलते रहे। साल-साल भर के। उनका जोर ट्रेनिंग पर था। देश भर से प्रतिभावान विद्यार्थी वहां आते हैं, सबका पहला चयन यही संस्थान होता है। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय इस मायने में खास है उसने पिछले तीस सालों से स्नातक और स्नातकोत्तर के रेगुलर कोर्स चलाए और बड़ी संख्या में मीडिया वृत्तिज्ञ ( प्रोफेसनल्स) और मीडिया शिक्षक निकाले। अब आईआईएमसी भी विश्वविद्यालय भी बन गया है। सो एक नई उड़ान के लिए वे भी तैयार हैं।

 

- आप देश के दोनों प्रतिष्ठित पत्रकारिता संस्थानों के अहम् पदों को सुशोभित कर चुके हैं। दोनों के बीच क्या अंतर पाया आपने ? दोनों की विशेषताएं आपकी नज़र में ?

दोनों की विशेषताएं हैं। एक तो किसी संस्था को केंद्र सरकार का समर्थन हो और वो दिल्ली में हो तो उसका दर्जा बहुत ऊंचा हो जाता है। मीडिया का केंद्र भी दिल्ली है। आईआईएमसी को उसका लाभ मिला है। वो काफी पुराना संस्थान है, बहुत शानदार एलुमूनाई है , एक समृध्द परंपरा है उसकी । एचवाई शारदा प्रसाद जैसे योग्य लोगों की कल्पना है वह। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय(एमसीयू) एक राज्य विश्वविद्यालय है, जिसे सरकार की ओर से बहुत पोषण नहीं मिला। अपने संसाधनों पर विकसित होकर उसने जो भी यात्रा की, वह बहुत खास है। कंप्यूटर शिक्षा के लोकव्यापीकरण में एमसीयू की एक खास जगह है। देश के अनेक विश्वविद्यालयों में आप जाएंगें तो मीडिया शिक्षकों में एमसीयू के  ही पूर्व छात्र हैं, क्योंकि स्नातकोत्तर कोर्स यहीं चल रहे थे। पीएचडी यहां हो रही थी। सो दोनों की तुलना नहीं हो सकती। योगदान दोनों का बहुत महत्वपूर्ण है।

 

- आप लम्बे समय से मीडिया शिक्षक रहे हैं और सक्रिय पत्रकारिता भी की है आपने। व्यवहारिकता के धरातल पर मौजूदा मीडिया शिक्षा को कैसे देखते हैं ?

एक समय था जब माना जाता है कि पत्रकार पैदा होते हैं और पत्रकारिता पढ़ा कर सिखाई नहीं जा सकती। अब वक्त बदल गया है। जनसंचार का क्षेत्र आज शिक्षा की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण हो गया है। 

मीडिया शिक्षा में सिद्धांत और व्यवहार का बहुत गहरा द्वंद है। ज्ञान-विज्ञान के एक अनुशासन के रूप में इसे अभी भी स्थापित होना शेष है। कुछ लोग ट्रेनिंग पर आमादा हैं तो कुछ किताबी ज्ञान को ही पिला देना चाहते हैं। जबकि दोनों का समन्वय जरूरी है। सिद्धांत भी जरूरी हैं। क्योंकि जहां हमने ज्ञान को छोड़ा है, वहां से आगे लेकर जाना है। शोध, अनुसंधान के बिना नया विचार कैसे आएगा। वहीं मीडिया का व्यवहारिक ज्ञान भी जरूरी है। मीडिया का क्षेत्र अब संचार शिक्षा के नाते बहुत व्यापक है। सो विशेषज्ञता की ओर जाना होगा। आप एक जीवन में सब कुछ नहीं कर सकते। एक काम अच्छे से कर लें, वह बहुत है। इसलिए भ्रम बहुत है। अच्छे शिक्षकों का अभाव है। एआई की चुनौती अलग है। चमकती हुई चीजों ने बहुत से मिथक बनाए और तोड़े हैं। सो चीजें ठहर सी गयी हैं, ऐसा मुझे लगता है।

 

- नयी शिक्षा निति को केंद्र सरकार नए सपनों के नए भारत के अनुरूप प्रचारित कर रही है, जबकि आलोचना करने वाले इसमें तमाम कमियां गिना रहे हैं। एक शिक्षक बतौर आप इन नीतियों को कैसा पाते हैं ?

राष्ट्रीय शिक्षा नीति बहुत शानदार है। जड़ों से जोड़कर मूल्यनिष्ठा पैदा करना, पर्यावरण के प्रति प्रेम, व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाना यही लक्ष्य है। किंतु क्या हम इसके लिए तैयार हैं। सवाल यही है कि अच्छी नीतियां- संसाधनों, शिक्षकों के समर्पण, प्रशासन के समर्थन की भी मांग करती हैं। हमें इसे जमीन पर उतारने के लिए बहुत तैयारी चाहिए। भारत दिल्ली में न बसता है, न चलता है। इसलिए जमीनी हकीकतों पर ध्यान देने की जरूरत है। शिक्षा हमारे ‘तंत्र’ की कितनी बड़ा प्राथमिकता है, इस पर भी सोचिए। सच्चाई यही है कि मध्यवर्ग और निम्न मध्यवर्ग ने भी अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों से हटा लिया है। वे सरकारी संस्थानों से कोई उम्मीद नहीं रखते। इस विश्वास बहाली के लिए सरकारी संस्थानों के शिक्षकों, प्रबंधकों और सरकारी तंत्र को बहुत गंभीर होने की जरूरत है। उत्तर प्रदेश के ताकतवर मुख्यमंत्री प्राथमिक शिक्षकों की विद्यालयों में उपस्थिति को लेकर एक आदेश लाते हैं, शिक्षक उसे वापस करवा कर दम लेते हैं। यही सच्चाई है।

 

- पत्रकारिता में करियर बनाने के लिए क्या आवश्यक शर्त है ?

पत्रकारिता, मीडिया या संचार तीनों क्षेत्रों में बनने वाली नौकरियों की पहली शर्त तो भाषा ही है। हम बोलकर, लिखकर भाषा में ही खुद को व्यक्त करते हैं। इसलिए भाषा पहली जरूरत है। तकनीक बदलती रहती है, सीखी जा सकती है। किंतु भाषा संस्कार से आती है। अभ्यास से आती है। पढ़ना, लिखना, बोलना, सुनना यही भाषा का असल स्कूल और परीक्षा है। भाषा के साथ रहने पर भाषा हममें उतरती है। यही भाषा हमें अटलबिहारी वाजपेयी,अमिताभ बच्चन, नरेंद्र मोदी,आशुतोष राणा या कुमार विश्वास जैसी सफलताएं दिला सकती है। मीडिया में अनेक ऐसे चमकते नाम हैं, जिन्होंने अपनी भाषा से चमत्कृत किया है। अनेक लेखक हैं, जिन्हें हमने रात भर जागकर पढ़ा है। ऐसे विज्ञापन लेखक हैं जिनकी पंक्तियां हमने गुनगुनाई हैं। इसलिए भाषा, तकनीक का ज्ञान और अपने पाठक, दर्शक की समझ हमारी सफलता की गारंटी है। इसके साथ ही पत्रकारिता में समाज की समझ, मिलनसारिता, संवाद की क्षमता बहुत मायने रखती है।

 

- मीडिया शिक्षा में कैसे नवाचारों की आवश्यकता है ?

शिक्षा का काम व्यक्ति को आत्मनिर्भर और मूल्यनिष्ठ मनुष्य बनाना है। जो अपनी विधा को साधकर आगे ले जा सके। मीडिया में भी ऐसे पेशेवरों का इंतजार है जो ‘फार्मूला पत्रकारिता’ से आगे बढ़ें। जो मीडिया को इस देश की आवाज बना सकें। जो एजेंड़ा के बजाए जन-मन के सपनों, आकांक्षाओं को स्वर दे सकें। इसके लिए देश की समझ बहुत जरूरी है। आज के मीडिया का संकट यह है वह नागरबोध के साथ जी रहा है। वह भारत के पांच प्रतिशत लोगों की छवियों को प्रक्षेपित कर रहा है। जबकि कोई भी समाज अपनी लोकचेतना से खास बनता है। देश की बहुत गहरी समझ पैदा करने वाले, संवेदनशील पत्रकारों का निर्माण जरूरी है। मीडिया शिक्षा को संवेदना,सरोकार, राग, भारतबोध से जोड़ने की जरूरत है। पश्चिमी मानकों पर खड़ी मीडिया शिक्षा को भारत की संचार परंपरा से जोड़ने की जरूरत है। जहां संवाद से संकटों के हल खोजे जाते रहे हैं। जहां संवाद व्यापार और व्यवसाय नहीं, एक सामाजिक जिम्मेदारी है।

 

- देश में मीडिया की मौजूदा स्थिति को लेकर आपकी राय क्या है ?

मीडिया शिक्षा का विस्तार बहुत हुआ है। हर केंद्रीय विश्वविद्यालय में मीडिया शिक्षा के विभाग हैं। चार विश्वविद्यालय- भारतीय जन संचार संस्थान(दिल्ली), माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विवि(भोपाल), हरिदेव जोशी पत्रकारिता विवि(जयपुर) और कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विवि(रायपुर) देश में काम कर रहे हैं। इन सबकी उपस्थिति के साथ-साथ निजी विश्वविद्यालय और कालेजों में भी जनसंचार की पढ़ाई हो रही है। यानि विस्तार बहुत हुआ है। अब हमें इसकी गुणवत्ता पर ध्यान देने की जरूरत है। ये जो चार विश्वविद्यालय हैं वे क्या कर रहे हैं। क्या इनका आपस में भी कोई समन्वय है। विविध विभागों में क्या हो रहा है। उनके ज्ञान, शोध और आइडिया एक्सचेंज जैसी व्यवस्थाएं बनानी चाहिए। दुनिया में मीडिया या जनसंचार शिक्षा के जो सार्थक प्रयास चल रहे हैं, उसकी तुलना में हम कहां हैं। बहुत सारी बातें हैं, जिनपर बात होनी चाहिए। अपनी ज्ञान विधा में हमने क्या जोड़ा। हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री ने भी एक समय देश में एक ग्लोबल कम्युनिकेशन यूनिर्वसिटी बनाने की बात की थी। देखिए क्या होता है।

    बावजूद इसके हम एक मीडिया शिक्षक के नाते क्या कर पा रहे हैं। यह सोचना है। वरना तो मशहूर शायर अकबर इलाहाबादी हमारे लिए ही लिख गए हैं-

हम क्या कहें अहबाब क्या कार-ए-नुमायाँ कर गए।

बी-ए हुए नौकर हुए पेंशन मिली फिर मर गए।।

 

- आज की मीडिया और इससे जुड़े लोगों के अपने मिशन से भटक जाने और पूरी तरह  पूंजीपतियों, सत्ताधीशों के हाथों बिक जाने की बात कही जा रही है। इससे आप कितना इत्तेफ़ाक़ रखते हैं?

देखिए मीडिया चलाना साधारण आदमी को बस की बात नहीं है। यह एक बड़ा उद्यम है। जिसमें बहुत पूंजी लगती है। इसलिए कारपोरेट,पूंजीपति या राजनेता चाहे जो हों, इसे पोषित करने के लिए पूंजी चाहिए। बस बात यह है कि मीडिया किसके हाथ में है। इसे बाजार के हवाले कर दिया जाए या यह एक सामाजिक उपक्रम बना रहेगा। इसलिए पूंजी से नफरत न करते हुए इसके सामाजिक, संवेदनशील और जनधर्मी बने रहने के लिए निरंतर लगे रहना है। यह भी मानिए कोई भी मीडिया जनसरोकारों के बिना नहीं चल सकता। प्रामणिकता, विश्वसनीयता उसकी पहली शर्त है। पाठक और दर्शक सब समझते हैं।

 

- आपकी नज़र में इस वक़्त देश में मीडिया शिक्षा की कैसी स्थिति है ? क्या यह बेहतर पत्रकार बनाने और मीडिया को सकारात्मक दिशा देने का काम कर पा रही है ?

मैं मीडिया शिक्षा क्षेत्र से 2009 से जुड़ा हूं। मेरे कहने का कोई अर्थ नहीं है। लोग क्या सोचते हैं, यह बड़ी बात है। मुझे दुख है कि मीडिया शिक्षा में अब बहुत अच्छे और कमिटेड विद्यार्थी नहीं आ रहे हैं। अजीब सी हवा है। भाषा और सरोकारों के सवाल भी अब बेमानी लगने लगे हैं। सबको जल्दी ज्यादा पाने और छा जाने की ललक है। ऐसे में स्थितियां बहुत सुखद नहीं हैं। पर भरोसा तो करना होगा। इन्हीं में से कुछ भागीरथ निकलेंगें जो हमारे मीडिया को वर्तमान स्थितियों से निकालेगें। ऐसे लोग तैयार करने होंगें, जो बहुत जल्दी में न हों। जो ठहरकर पढ़ने और सीखने के लिए तैयार हों। वही लोग बदलाव लाएंगें।

 

- देश में आज मीडिया शिक्षा के सामने प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

सबसे बड़ी चुनौती है ऐसे विद्यार्थियों का इंतजार जिनकी प्राथमिकता मीडिया में काम करना हो। सिर्फ इसलिए नहीं कि यह ग्लैमर या रोजगार दे पाए। बल्कि देश के लोगों को संबल, साहस और आत्मविश्वास दे सके। संचार के माध्यम से क्या नहीं हो सकता। इसकी ताकत को मीडिया शिक्षकों और विद्यार्थियों को पहचानना होगा। क्या हम इसके लिए तैयार हैं,यह एक बड़ा सवाल है। मीडिया शिक्षा के माध्यम से हम ऐसे क्म्युनिकेटर्स तैयार कर सकते हैं जिनके माध्यम से समाज के संकट हल हो सकते हैं। यह साधारण शिक्षा नहीं है। यह असाधारण है। भाषा,संवाद,सरोकार और संवेदनशीलता से मिलकर हम जो भी रचेगें, उससे ही नया भारत बनेगा। इसके साथ ही मीडिया एजूकेशन कौंसिल का गठन भारत सरकार करे ताकि अन्य प्रोफेशनल कोर्सेज की तरह इसका भी नियमन हो सके। गली-गली खुल रहे मीडिया कालेजों पर लगाम लगे। एक हफ्ते में पत्रकार बनाने की दुकानों पर ताला डाला जा सके। मीडिया के घरानों में तेजी से मोटी फीस लेकर मीडिया स्कूल खोलने की ललक बढ़ी है, इस पर नियंत्रण हो सकेगा। गुणवत्ता विहीन किसी शिक्षा का कोई मोल नहीं, अफसोस मीडिया शिक्षा के विस्तार ने इसे बहुत नीचे गिरा दिया है। दरअसल भारत में मीडिया शिक्षा मोटे तौर पर छह स्तरों पर होती है। सरकारी विश्वविद्यालयों या कॉलेजों में, दूसरे, विश्वविद्यालयों से संबंद्ध संस्थानों में, तीसरे, भारत सरकार के स्वायत्तता प्राप्त संस्थानों में, चौथे, पूरी तरह से प्राइवेट संस्थान, पांचवे डीम्ड विश्वविद्यालय और छठे, किसी निजी चैनल या समाचार पत्र के खोले गए अपने मीडिया संस्थान। इस पूरी प्रक्रिया में हमारे सामने जो एक सबसे बड़ी समस्या है, वो है किताबें। हमारे देश में मीडिया के विद्यार्थी विदेशी पुस्तकों पर ज्यादा निर्भर हैं। लेकिन अगर हम देखें तो भारत और अमेरिका के मीडिया उद्योगों की संरचना और कामकाज के तरीके में बहुत अंतर है। इसलिए मीडिया के शिक्षकों की ये जिम्मेदारी है, कि वे भारत की परिस्थितियों के हिसाब से किताबें लिखें।

 

- भारत में मीडिया शिक्षा का क्या भविष्य देखते हैं आप ?

मीडिया शिक्षण में एक स्पर्धा चल रही है। इसलिए मीडिया शिक्षकों को ये तय करना होगा कि उनका लक्ष्य स्पर्धा में शामिल होने का है, या फिर पत्रकारिता शिक्षण का बेहतर माहौल बनाने का है। आज के समय में पत्रकारिता बहुत बदल गई है, इसलिए पत्रकारिता शिक्षा में भी बदलाव आवश्यक है। आज लोग जैसे डॉक्टर से अपेक्षा करते हैं, वैसे पत्रकार से भी सही खबरों की अपेक्षा करते हैं। अब हमें मीडिया शिक्षण में ऐसे पाठ्यक्रम तैयार करने होंगे, जिनमें विषयवस्तु के साथ साथ नई तकनीक का भी समावेश हो। न्यू मीडिया आज न्यू नॉर्मल है। हम सब जानते हैं कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के कारण लाखों नौकरियां गई हैं। इसलिए हमें मीडिया शिक्षा के अलग अलग पहलुओं पर ध्यान देना होगा और बाजार के हिसाब से प्रोफेशनल तैयार करने होंगे। नई शिक्षा नीति में क्षेत्रीय भाषाओं पर ध्यान देने की बात कही गई है। जनसंचार शिक्षा के क्षेत्र में भी हमें इस पर ध्यान देना होगा। मीडिया शिक्षण संस्थानों के लिए आज एक बड़ी आवश्यकता है क्षेत्रीय भाषाओं में पाठ्यक्रम तैयार करना। भाषा वो ही जीवित रहती है, जिससे आप जीविकोपार्जन कर पाएं और भारत में एक सोची समझी साजिश के तहत अंग्रेजी को जीविकोपार्जन की भाषा बनाया जा रहा है। ये उस वक्त में हो रहा है, जब पत्रकारिता अंग्रेजी बोलने वाले बड़े शहरों से हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाओं के शहरों और गांवों की ओर मुड़ रही है। आज अंग्रेजी के समाचार चैनल भी हिंदी में डिबेट करते हैं। सीबीएससी बोर्ड को देखिए जहां पाठ्यक्रम में मीडिया को एक विषय के रूप में पढ़ाया जा रहा है। क्या हम अन्य राज्यों के पाठ्यक्रमों में भी इस तरह की व्यवस्था कर सकते हैं, जिससे मीडिया शिक्षण को एक नई दिशा मिल सके।

 

- तेजी से बदलते मीडिया परिदृश्य के सापेक्ष मीडिया शिक्षा संस्थान स्वयं को कैसे ढाल सकते हैं यानी उन्हें उसके अनुकूल बनने के लिए क्या करना चाहिए ?

 मीडिया शिक्षण संस्थानों को अपने पाठ्यक्रमों में इस तरह के बदलाव करने चाहिए, कि वे न्यू मीडिया के लिए छात्रों को तैयार कर सकें। आज तकनीक किसी भी पाठ्यक्रम का महत्वपूर्ण हिस्सा है। मीडिया में दो तरह के प्रारूप होते हैं। एक है पारंपरिक मीडिया जैसे अखबार और पत्रिकाएं और और दूसरा है डिजिटल मीडिया। अगर हम वर्तमान संदर्भ में बात करें तो सबसे अच्छी बात ये है कि आज ये दोनों प्रारूप मिलकर चलते हैं। आज पारंपरिक मीडिया स्वयं को डिजिटल मीडिया में परिवर्तित कर रहा है। जरूरी है कि मीडिया शिक्षण संस्थान अपने छात्रों को 'डिजिटल ट्रांसफॉर्म' के लिए पहले से तैयार करें। देश में प्रादेशिक भाषा यानी भारतीय भाषाओं के बाजार का महत्व भी लगातार बढ़ रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार अंग्रेजी भाषा के उपभोक्ताओं का डिजिटल की तरफ मुड़ना लगभग पूरा हो चुका है। ऐसा माना जा रहा है कि वर्ष 2030 तक भारतीय भाषाओं के बाजार में उपयोगकर्ताओं की संख्या 500 मिलियन तक पहुंच जाएगी और लोग इंटरनेट का इस्तेमाल स्थानीय भाषा में करेंगे। जनसंचार की शिक्षा देने वाले संस्थान अपने आपको इन चुनौतियों के मद्देनजर तैयार करें, यह एक बड़ी जिम्मेदारी है।

 

- वे कौन से कदम हो सकते हैं जो मीडिया उद्योग की अपेक्षाओं और मीडिया शिक्षा संस्थानों द्वारा उन्हें उपलब्ध कराये जाने वाले कौशल के बीच के अंतर को पाट सकते हैं?

 

 भारत में जब भी मीडिया शिक्षा की बात होती है, तो प्रोफेसर केईपन का नाम हमेशा याद किया जाता है। प्रोफेसर ईपन भारत में पत्रकारिता शिक्षा के तंत्र में व्यावहारिक प्रशिक्षण के पक्षधर थे। प्रोफेसर ईपन का मानना था कि मीडिया के शिक्षकों के पास पत्रकारिता की औपचारिक शिक्षा के साथ साथ मीडिया में काम करने का प्रत्यक्ष अनुभव भी होना चाहिए, तभी वे प्रभावी ढंग से बच्चों को पढ़ा पाएंगे। आज देश के अधिकांश पत्रकारिता एवं जनसंचार शिक्षण संस्थान, मीडिया शिक्षक के तौर पर ऐसे लोगों को प्राथमिकता दे रहे हैं, जिन्हें अकादमिक के साथ साथ पत्रकारिता का भी अनुभव हो। ताकि ये शिक्षक ऐसा शैक्षणिक माहौल तैयार कर सकें, ऐसा शैक्षिक पाठ्यक्रम तैयार कर सकें, जिसका उपयोग विद्यार्थी आगे चलकर अपने कार्यक्षेत्र में भी कर पाएं।  पत्रकारिता के प्रशिक्षण के समर्थन में जो तर्क दिए जाते हैं, उनमें से एक दमदार तर्क यह है कि यदि डॉक्टरी करने के लिए कम से कम एम.बी.बी.एस. होना जरूरी है, वकालत की डिग्री लेने के बाद ही वकील बना जा सकता है तो पत्रकारिता जैसे महत्वपूर्ण पेशे को किसी के लिए भी खुला कैसे छोड़ा जा सकता है? बहुत बेहतर हो मीडिया संस्थान अपने अध्यापकों को भी मीडिया संस्थानों में अनुभव के लिए भेजें। इससे मीडिया की जरूरतों और न्यूज रूम के वातावरण का अनुभव साक्षात हो सकेगा। विश्वविद्यालयों को आखिरी सेमेस्टर या किसी एक सेमेस्टर में न्यूज रूम जैसे ही पढ़ाई पर फोकस करना चाहिए। अनेक विश्वविद्यालय ऐसे कर सकने में सक्षम हैं कि वे न्यूज रूम क्रियेट कर सकें।

 

- अपने कार्यकाल के दौरान मीडिया शिक्षा और आईआईएमसी की प्रगति के मद्देनज़र आपने क्या महत्वपूर्ण कदम उठाये, संक्षेप में उनका ज़िक्र करें।

मुझे लगता है कि अपने काम गिनाना आपको छोटा बनाता है। मैंने जो किया उसकी जिक्र करना ठीक नहीं। जो किया उससे संतुष्ठ हूं। मूल्यांकन लोगों पर ही छोड़िए।

 

 

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) यानी कृत्रिम बुद्धिमत्ता विज्ञान का एक नया वरदान है। कंप्यूटर के क्षेत्र में नई तकनीक। जॉन मैकार्थी को इस आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का जनक माना जाता है। एक ऐसी विधा जिसमें मशीन से मशीन की बातें होती है। एक कंप्यूटर दूसरे कंप्यूटर से बात करता है। यह विज्ञान का अद्भुत चमत्कार है। मानव जीवन में तो इसका दखल बढ़ा ही है, करियर के लिहाज से भी इसका दायरा और और विस्तृत होता जा रहा है। इसमें मैकेनिकल इंजीनियरिंग, कंप्यूटर साइंस इंजीनियरिंग, अप्लाइड आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के साथ-साथ रोबोटिक ऑटोमेशन इंजीनियरिंग में डिप्लोमा, बैचलर डिग्री, मास्टर डिग्री और रिसर्च आदि में करियर विकल्प हैं। 

अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक और फिनलैंड के सवोनिया यूनिवर्सिटी ऑफ एप्लाइड साइंस के प्रोफेसर डॉ राजीव कंठ से इस विषय पर हमने विस्तृत चर्चा की। उनसे चर्चा के क्रम में पता चलता है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आने वाले समय में हमारे जीवन में कितना महत्वपूर्ण हो जाएगा। बातचीत के कुछ अंश :

प्र. - सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नया क्या है?

उ. - सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आज हर दिन कुछ ना कुछ नया हो रहा है। यही वजह है कि इस क्षेत्र को पोटेंशियल डेवलपमेंट एरिया के रूप में देखा जा रहा है। अब तक मशीन से आदमी की बात होती थी। अब मशीन से मशीन की बात होती है। यह सबसे नई तकनीक है।


प्र. - इस क्षेत्र में सबसे बड़ी चुनौती क्या है?

उ. - इस क्षेत्र में जितनी नई चीजें आ रही हैं या कह सकते हैं कि जितनी नई चीजों पर शोध हो रहा है, उन चीजों का समुचित विकास करना सबसे बड़ी चुनौती है।


प्र. - इस क्षेत्र के कई आयाम हैं जैसे इंटरनेट, ई-बैंकिंग, ई-कॉमर्स, ईमेल आदि इन सब में सबसे बड़ी चुनौती किस क्षेत्र में है?

उ. - चुनौती तो सभी क्षेत्र में है। किसी भी चुनौती को कम नहीं कहा जा सकता लेकिन बैंकिंग क्षेत्र में ज्यादा कह सकते हैं। क्योंकि लोग मेहनत की कमाई बैंक में रखते हैं और हैकर्स सेकंडों में उसे उड़ा लेते हैं। इसलिए बैंकिंग के क्षेत्र में सबसे बड़ी चुनौती है।


प्र. - हैकरों से छुटकारा पाने के लिए क्या सुझाव देना चाहेंगे?

उ. - हैकरों से छुटकारा पाने के लिए सुझाव है कि पासवर्ड किसी से शेयर ना करें। पासवर्ड 3-4 लेयर का बनाएं और एक निश्चित समय अंतराल के बाद पासवर्ड को बदलते रहें। ये कुछ उपाय हैं जिससे हैकरों से बचा जा सकता है।


प्र. - युवाओं को करियर के लिए क्या सुझाव देना चाहेंगे?

उ. - करियर के लिहाज से यह क्षेत्र काफी अच्छा है। आज हर युवा जो इस फील्ड में करियर बनाना चाहता है उसकी पहली चॉइस कंप्यूटर साइंस होता है। जब वह कंप्यूटर साइंस से स्नातक करता है, उसके बाद सूचना प्रौद्योगिकी आथवा कृत्रिम बुद्धिमता या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मैं अपना कैरियर बनाना चाहता है। रोबोट बनाने की ख्वाहिश आज हर सूचना प्रौद्योगिकी पढ़ने वाले छात्र की होती है।

 

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत की कुल आबादी का एक तिहाई से अधिक हिस्सा 15 से 25 वर्ष की आयु वर्ग के युवाओं का है। आशाओं और आकांक्षाओं से आच्छादित जीवन का यही वह दौर होता है जब एक युवा अपने करियर को लेकर गंभीर होता है। इसी के दृष्टिगत वह अपनी एक अलहदा राह का निर्धारण करता है, सीखने के लिए तदनुरूप विषय का चयन करता है और भविष्य में उसे जिन कार्यों को सम्पादित करना है, उसके मद्देनज़र निर्णय के पड़ाव पर पहुँचने का प्रयास करता है। और यही वह पूरी प्रक्रिया है जो उसे आत्मनिर्भर बनाती है। लिहाजा, जीवन के इस कालखंड में आवश्यक है कि कोई उसका हाथ थामे, उसका ज़रूरी मार्गदर्शन करे।

हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि इंजीनियरिंग, मेडिकल और मैनेजमेंट अब भी करियर-निर्माण के लिहाज से पसंदीदा क्षेत्र बने हुए हैं, जबकि सीखने, काम करने और अपने पेशेवर जीवन के निर्माण के लिए 99 अन्य विशिष्ट क्षेत्र भी हैं। इनमें डिजाइन, मीडिया, फोरेंसिक विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, अलाइड हेल्थकेयर, कृषि आदि शामिल हैं। दुर्भाग्यवश, करियर के इन क्षेत्रों को लेकर बहुत कम चर्चा होती है। कोई इस पर बात नहीं करता कि इन डोमेन में नवीनतम क्या है।

हम यह भी न भूलें कि लगभग 4 ट्रिलियन डॉलर की भारतीय अर्थव्यवस्था में भारतीय मीडिया की हिस्सेदारी करीब 1% की है। प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष  2 मिलियन से अधिक लोग किसी न किसी रूप में इससे सम्बद्ध हैं। मीडिया एक ऐसा क्षेत्र भी है, जो लोगों के दिलो-दिमाग पर गहरा प्रभाव छोड़ता है। लेकिन शायद ही कोई ऐसा समर्पित मीडिया मंच है जिसका मीडिया-शिक्षा और लर्निंग की दिशा में ध्यान केंद्रित हो। सार्वजनिक जीवन में शायद मीडिया-शिक्षा अभी भी सबसे उपेक्षित क्षेत्र है।

हमें नहीं भूलना चाहिए कि शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा, ये दो ऐसे क्षेत्र हैं जो वास्तव में बड़े देशों के बीच सबसे बड़ी युवा आबादी वाले देश में मानव संसाधन के लिए उत्तरदायी हैं। दुर्भाग्य कि इन क्षेत्रों पर शासन और देश की राजनीति का ध्यान सबसे कम केंद्रित होता है। आने वाले समय में इन पर सार्वजनिक तौर पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।

न भूलें कि भारत की उच्च शिक्षा का आज वृहद् दायरा है, जहां बारहवीं कक्षा से ऊपर के सौ मिलियन से अधिक शिक्षार्थी हैं, लेकिन इनमें अधिकांश की स्तर सामान्य और गुणवत्ता औसत है। अपवादस्वरूप,  कुछ संस्थानों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराई जा रही है। ऐसे में यदि हम चाहते हैं कि हमारे पास मौजूद जनसांख्यिकीय लाभ का सकारात्मक परिणाम हमें प्राप्त हो तो गुणवत्ता के दायरे का तेजी से विस्तार अतिआवश्यक है।

और, यही वजह है कि उपरोक्त सन्दर्भों पर ध्यान केंद्रित करने और सर्वप्रथम भारत और तदुपरांत एशिया की उच्च शिक्षा (विशेष क्षेत्रों में ख़ास तौर पर ) में प्रगति को गति प्रदान करने के लिए, एक मई को श्रमिक दिवस पर एडइनबॉक्स हिंदी के साथ हम आपके समक्ष अपनी उपस्थिति दर्ज कर रहे हैं। शिक्षा के सामर्थ्य और श्रम की संघर्षशीलता को नमन करते हुए यह हमारी तरफ से इसका सम्मान है, एक उपहार।

साथ ही,  इस मंच से हमारा प्रयास होगा बेहतर गुणवत्ता वाले उच्च शिक्षा संस्थानों का समर्थन करना और स्कूलों से निकलने वाले नौजवानों को ज्ञान, जानकारी और अंतर्दृष्टि के साथ उन्हें उनके सपनों के करियर और संस्थानों में प्रवेश की राह आसान बनाने में सहायता करना। इन क्षेत्रों के महारथियों की उपलब्धियों को भी सम्बंधित काउन्सिल के माध्यम से, संस्थानों और मार्गदर्शकों को सम्मानित कर उनकी महती भूमिका को लोगों के समक्ष रखने और उजागर करने का हमारा प्रयास होगा। हमारा इरादा हर क्षेत्र या डोमेन का एक इकोसिस्टम निर्मित करना है, धरातल पर भी और ऑनलाइन भी। 

तो आइये, एडइनबॉक्स के साथ हम उच्च शिक्षा जगत की एक प्रभावी यात्रा पर अग्रसर हों। 

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प्रो उज्ज्वल अनु चौधरी
वाइस प्रेजिडेंट, वाशिंगटन यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी 
एडिटर, एडइनबॉक्स (Edinbox.com) 
पूर्व सलाहकार और प्रोफेसर, डैफोडिल इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी, ढाका
(इससे पूर्व एडमास यूनिवर्सिटी से प्रो वीसी के रूप में,
सिम्बायोसिस व एमिटी यूनिवर्सिटी, पर्ल अकादमी और डब्ल्यूडब्ल्यूआई के डीन,
और टीओआई, ज़ी, बिजनेस इंडिया ग्रुप से जुड़ाव के साथ भारत सरकार और डब्ल्यूएचओ/टीएनएफ के मीडिया सलाहकार रहे हैं।)

जैसे-जैसे हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स, विशेष रूप से एलाइड हेल्थ साइंसेज (Allied Health Sciences) की माँग बढ़ रही है, भारतीय छात्र अब केवल पारंपरिक प्रवेश परीक्षाओं जैसे NEET पर निर्भर नहीं रह गए हैं। इसी बदलते परिदृश्य में, Global Allied Healthcare Entrance Test (GAHET 2025) भारत का पहला राष्‍ट्रीय स्‍तर का एलाइड हेल्थ एंट्रेंस एग्ज़ाम बनकर उभरा है।

लेकिन सवाल है — GAHET और NEET में क्या अंतर है? और आज के Gen Z मेडिकल स्टूडेंट्स के लिए कौन सा विकल्प बेहतर है?

NEET क्या है?
NEET (National Eligibility cum Entrance Test) भारत की सबसे प्रमुख मेडिकल प्रवेश परीक्षा है, जो MBBS, BDS, और कुछ एलाइड हेल्थ कोर्सेज़ में दाख़िले के लिए होती है। इसे राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी (NTA) द्वारा आयोजित किया जाता है। इसमें पूछे जाने वाले विषय होते हैं भौतिकी (Physics), रसायन विज्ञान (Chemistry) और जीव विज्ञान (Biology)।

योग्यता: 10+2 में PCB (Physics, Chemistry, Biology/Biotechnology) और अंग्रेजी पास होना अनिवार्य है।
परीक्षा तिथि: आमतौर पर मई में
आवेदन: NTA की NEET वेबसाइट पर

GAHET क्या है?
GAHET (Global Allied Healthcare Entrance Test) विशेष रूप से एलाइड हेल्थ साइंसेज के इच्छुक छात्रों के लिए डिज़ाइन की गई परीक्षा है। यह NEET के विपरीत, MBBS या BDS तक सीमित नहीं है, बल्कि यह विभिन्न पैरामेडिकल और हेल्थ टेक्नोलॉजी कोर्सेज के लिए प्रवेश का द्वार है।

विषय: Physics, Chemistry, Biology, और English
योग्यता: मान्यता प्राप्त बोर्ड से 10+2 विज्ञान (Physics, Chemistry, English, और Biology/Maths/ Botany/ Zoology में कम से कम 50%)
परीक्षा: हर महीने, सुविधानुसार दी जा सकती है
आवेदन: www.gahet.org पर ऑनलाइन

GAHET और NEET में अंतर
पैरामीटर                              GAHET                                                                           NEET UG
फ़ोकस                  एलाइड हेल्थ / पैरामेडिकल कोर्सेज़                                       MBBS, BDS, कुछ Allied Health कोर्सेज़
विषय                    भौतिकी, रसायन, जीवविज्ञान, अंग्रेज़ी                                           भौतिकी, रसायन, जीवविज्ञान
परीक्षा पैटर्न              Gen Z फ्रेंडली, आधुनिक अप्टीट्यूड आधारित                             पारंपरिक MCQ आधारित
योग्यता                 10+2 साइंस, कम से कम 50% अंकों के साथ                                     10+2 साइंस (PCB)
आवेदन प्रक्रिया                 ऑनलाइन (gahet.org)                                                  ऑनलाइन (NTA NEET पोर्टल)
परीक्षा आवृत्ति                                हर महीने                                                                   साल में एक बार
संस्थान                                 प्रमुख प्राइवेट एलाइड हेल्थ कॉलेज                                 मेडिकल, डेंटल, कुछ पैरामेडिकल संस्थान
करियर ऑप्शंस    EMT, Physiotherapist, Lab Tech, OTT, Rehab Counselor आदि    Doctor, Surgeon, Dentist, Legal Med Advisor आदि

Gen Z के लिए GAHET क्यों है बेहतर विकल्प?
1. 100% ऑनलाइन और नो निगेटिव मार्किंग
GAHET पूरी तरह ऑनलाइन होता है, जिसमें नेगेटिव मार्किंग नहीं है — यह Gen Z छात्रों के लिए तनाव-मुक्त अनुभव सुनिश्चित करता है।

2. डॉक्टर या नर्स नहीं बनना चाहते? फिर भी हेल्थकेयर में करियर पक्का!
अगर आप मेडिकल फील्ड में काम करना चाहते हैं लेकिन MBBS या नर्सिंग आपकी पसंद नहीं है, तो पैरामेडिकल क्षेत्र में सैकड़ों विकल्प हैं — और GAHET से यह राह खुलती है।

3. रोज़गार-केंद्रित परीक्षा
GAHET का सिलेबस और मूल्यांकन तरीका मौजूदा हेल्थकेयर इंडस्ट्री की ज़रूरतों के अनुसार है, जिससे छात्र अधिक इंडस्ट्री-रेडी और एम्प्लॉयेबल बनते हैं।

4. राष्ट्रीय स्तर की पहली Allied Health परीक्षा
GAHET भारत की पहली राष्ट्रीय स्तर की Allied Health परीक्षा है, जो पूरी तरह से पैरामेडिकल प्रोफेशन को समर्पित है।

5. AIIMS पैरामेडिकल एग्ज़ाम से अलग
AIIMS की परीक्षा केवल AIIMS के कैंपस तक सीमित है, लेकिन GAHET में भारत के कई प्रमुख प्राइवेट पैरामेडिकल कॉलेजों तक पहुँच है।

तो कौन सी परीक्षा दें? NEET या GAHET?
अगर आप बनना चाहते हैं...                                                 तो यह परीक्षा दें:
MBBS या BDS डॉक्टर                                                         NEET अनिवार्य है
Allied Health में करियर (EMT, लैब टेक, फिजियो आदि)      GAHET सर्वश्रेष्ठ विकल्प है
दोनों विकल्प खुले रखना चाहते हैं                                     दोनों परीक्षाएं दें – आमतौर पर तिथियाँ नहीं टकरातीं

GAHET 2025: भविष्य की ओर एक कदम
GAHET केवल एक वैकल्पिक परीक्षा नहीं, बल्कि एक आधुनिक और समावेशी करियर मॉडल है जो आज के युवाओं के कौशल और दृष्टिकोण के अनुकूल है।

क्या आप एक Gen Z छात्र हैं जो हेल्थकेयर में करियर चाहता है पर NEET का बोझ नहीं उठाना चाहता?
तो GAHET आपके लिए सबसे स्मार्ट, आसान और व्यावहारिक विकल्प है।

GAHET 2025 की नवीनतम जानकारी और रजिस्ट्रेशन के लिए www.gahet.org पर विज़िट करें। 

 

राष्ट्रीय फॉरेंसिक विज्ञान विश्वविद्यालय (NFSU) की प्रवेश परीक्षा उन उम्मीदवारों के लिए सबसे प्रतिष्ठित मानी जाती है, जो फॉरेंसिक साइंस, साइबर सिक्योरिटी, प्रबंधन, कानून आदि क्षेत्रों में करियर बनाना चाहते हैं।

जैसे-जैसे 2026 के प्रवेश चक्र की तैयारी शुरू हो रही है, यह जरूरी हो जाता है कि छात्र नई परीक्षा योजना और सिलेबस को समझें और प्रभावी तरीके से तैयारी करें। यह एक सूचनात्मक मार्गदर्शिका है जो आपको NFSU प्रवेश परीक्षा की तैयारी और उसमें सफलता पाने के लिए आवश्यक सभी जानकारी प्रदान करती है।

NFSU प्रवेश परीक्षा – संक्षिप्त जानकारी
विवरण                       जानकारी
परीक्षा मोड           कंप्यूटर आधारित टेस्ट (CBT)
प्रश्न प्रारूप              बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs)
समय                       90 मिनट (1.5 घंटे)
कुल प्रश्न                           100
मार्किंग स्कीम       सही उत्तर पर +1, गलत उत्तर पर -0.25
पात्रता                कार्यक्रम-विशिष्ट है; अधिक जानकारी के लिए NFSU की आधिकारिक वेबसाइट देखें

2026 के लिए NFSU प्रवेश परीक्षा सिलेबस
B.Sc./M.Sc. फॉरेंसिक साइंस व संबद्ध पाठ्यक्रम
भौतिकी: स्थिर विद्युत, तरंग प्रकाशिकी, ऊष्मा और उष्मागतिकी, गति, गुरुत्वाकर्षण, दोलन गति, ऊर्जा।

रसायन: ठोस अवस्था, घोल, विद्युरसायन, रासायनिक अभिक्रियाएँ, जैविक व अकार्बनिक रसायन, पॉलिमर, अल्कोहल, फिनॉल, ईथर, ऐल्डिहाइड, कीटोन, कार्बोक्सिलिक अम्ल।

जीवविज्ञान: विकास, जैव-अणु, कोशिकीय संगठन, अनुवांशिकी, इम्यूनोलॉजी, अनुप्रयुक्त जीवविज्ञान, पारिस्थितिकी, प्रयोगशाला कौशल।

फॉरेंसिक साइंस का परिचय: क्राइम सीन मैनेजमेंट, साक्ष्य संग्रह, फॉरेंसिक कानून, अपराधविज्ञान, फॉरेंसिक शाखाएं।

B.Tech./M.Tech. (साइबर सुरक्षा, कंप्यूटर साइंस, AI और डेटा साइंस)
मुख्य विषय (60–70%): नेटवर्किंग, OS, डेटा संरचना, प्रोग्रामिंग (C, C++, Java, Python, .Net), DBMS, वेब विकास, डिजिटल इलेक्ट्रॉनिक्स, AI/ML, IoT, ब्लॉकचेन, कंप्यूटर आर्किटेक्चर, सिद्धांत।

तर्कशक्ति और सामान्य ज्ञान (30–40%): मौखिक व अमौखिक तर्क, अंग्रेजी व्याकरण, अपठित बोध, पर्यायवाची/विलोम, करंट अफेयर्स और तकनीकी घटनाएं।

MBA और प्रबंधन कार्यक्रम
सामान्य ज्ञान: समाचार, भारतीय इतिहास, विज्ञान और तकनीक, पुरस्कार, खेल।

तार्किक क्षमता: श्रेणियाँ, कोडिंग-डिकोडिंग, रक्त संबंध, दिशा परीक्षण, वर्गीकरण।

गणितीय विवेचना: अनुपात, प्रतिशत, अंकगणित, संख्या पद्धति, डेटा पर्याप्तता।

प्रबंधन मूल सिद्धांत: व्यवसायिक संचार, विपणन, HR और वित्तीय प्रबंधन, सांख्यिकी।

LL.B. (ऑनर्स) कानून कार्यक्रम
अंग्रेजी भाषा: व्याकरण, कहावतें, पर्यायवाची/विलोम, वाक्य सुधार, वर्तनी।

विश्लेषणात्मक कौशल: गणना, प्रतिशत, औसत, ज्यामिति, वेन आरेख, सांख्यिकी।

कानूनी जागरूकता: कानूनी उक्तियाँ, भारतीय संविधान, अनुबंध अधिनियम।

सामान्य ज्ञान: करंट अफेयर्स, इतिहास, राजनीति, अर्थशास्त्र, पर्यावरण।

परीक्षा संरचना (विषयवार वेटेज)
अनुभाग                                      वेटेज (%)                          मुख्य विषय
विषय-विशेष ज्ञान                            60–70                 चयनित कोर्स के मुख्य विषय
तर्कशक्ति और योग्यता                     15–20                   तार्किक विश्लेषण, रीजनिंग
अंग्रेजी और अपठित बोध                  10–15               व्याकरण, शब्दावली, रीडिंग स्किल्स
सामान्य ज्ञान और जागरूकता            10–15      करंट अफेयर्स, राष्ट्रीय मुद्दे, विज्ञान और टेक्नोलॉजी

NFSU 2026 की तैयारी कैसे करें?
- NFSU की आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर चुने गए कार्यक्रम का नवीनतम सिलेबस डाउनलोड करें।

- उच्च वेटेज वाले टॉपिक्स पर प्राथमिकता से ध्यान दें।

- पिछले वर्षों के प्रश्न पत्रों का अभ्यास करें ताकि प्रश्नों की प्रकृति और कठिनाई का स्तर समझ सकें।

- फुल-लेंथ मॉक टेस्ट लगाएँ और टाइम मैनेजमेंट का अभ्यास करें।

- साइंस कार्यक्रम हेतु फिजिक्स, केमिस्ट्री, बायोलॉजी और गणित में मजबूत आधार बनाएं।

- टेक्नोलॉजी प्रोग्राम्स के लिए प्रोग्रामिंग और कंप्यूटर लिटरेसी पर ध्यान दें।

- समाचार पत्र पढ़ें, विज्ञान और तकनीकी समाचारों से अपडेट रहें।

- संक्षिप्त नोट्स तैयार करें, खासकर GK और तथ्य आधारित विषयों के लिए।

- कमजोर क्षेत्रों पर अधिक समय दें, लेकिन मजबूत हिस्सों की भी नियमित समीक्षा करें।

NFSU 2026 के लिए महत्वपूर्ण बिंदु
बढ़ती प्रतिस्पर्धा: फॉरेंसिक साइंस, साइबर सुरक्षा और कानून जैसे क्षेत्रों की मांग तेजी से बढ़ रही है, जिससे परीक्षा अधिक चुनौतीपूर्ण हो गई है।

आरक्षण नीति: सीट आवंटन भारत सरकार के आरक्षण नियमों के अनुसार किया जाता है।

दोहरी प्रवेश प्रणाली: कुछ PG कोर्सेज में प्रवेश NFSU की खुद की परीक्षा (NFAT) और GATE/CAT जैसे राष्ट्रीय स्तर की परीक्षाओं के जरिए होता है।

परीक्षा दिवस: एडमिट कार्ड, वैध फोटो पहचान पत्र और सभी दिशा-निर्देशों का पालन करें।

यदि आप फॉरेंसिक साइंस को लेकर गंभीर हैं, तो All India Forensic Science Entrance Test (AIFSET) में भी शामिल होना एक अच्छा विकल्प हो सकता है। इसमें भाग लेने वाले कई प्रमुख विश्वविद्यालय हैं और इसमें प्रवेश की संभावना भी अधिक होती है।

 

डिज़ाइन में करियर बनाना एक बड़ा और साहसिक कदम होता है, खासकर भारत में, जहां क्रिएटिव इंडस्ट्री तेज़ी से बढ़ रही है और हर साल नई-नई स्पेशलाइज़ेशन सामने आ रही हैं। पहले यह फैसला कला और शिल्प के बीच होता था, फिर इसमें डिज़ाइन भी जुड़ गया, और आज डिज़ाइन का क्षेत्र इतना विस्तृत हो गया है कि इसमें हर तरह की डिज़ाइन शाखाएँ शामिल हैं।

अगर आप एक डिज़ाइन स्टूडेंट हैं और यह तय नहीं कर पा रहे हैं कि बैचलर ऑफ़ डिज़ाइन (B.Des) लें, बैचलर ऑफ़ फाइन आर्ट्स (BFA) करें या डिप्लोमा इन डिज़ाइन, तो यह गाइड आपके लिए बेहद उपयोगी हो सकती है। इसमें इन कोर्सों की संरचना, करियर स्कोप, एंट्रेंस एग्ज़ाम और सैलरी ट्रेंड्स के आधार पर तुलना की गई है ताकि आप समझदारी और भविष्य को ध्यान में रखकर सही विकल्प चुन सकें।

B.Des क्या है?
बैचलर ऑफ डिज़ाइन (B.Des) एक पेशेवर डिग्री है, जो अप्लाइड डिज़ाइन जैसे प्रोडक्ट डिज़ाइन, UX/UI डिज़ाइन, फैशन डिज़ाइन, इंटीरियर डिज़ाइन और कम्युनिकेशन डिज़ाइन पर केंद्रित होती है। इसका कोर्स प्रैक्टिकल स्किल्स और टेक्नोलॉजी पर आधारित होता है, जिसमें क्रिएटिविटी और प्रॉब्लम-सॉल्विंग को जोड़कर छात्रों को इंडस्ट्री के लिए तैयार किया जाता है।

प्रवेश परीक्षाएँ: UCEED, NID DAT, NIFT, AIEED, AIDAT
स्पेशलाइज़ेशन: प्रोडक्ट, ग्राफिक, टेक्सटाइल, फैशन, UI/UX, इंडस्ट्रियल, इंटीरियर, ज्वेलरी आदि
प्रमुख भर्तीकर्ता: TCS, Infosys, Flipkart, Myntra, Tata Elxsi, डिज़ाइन स्टूडियोज़, MNCs
सैलरी रेंज: ₹3.3 लाख से ₹12.5 लाख प्रति वर्ष
उपयुक्त छात्र: वे जो आर्ट और टेक्नोलॉजी को साथ मिलाकर काम करना पसंद करते हैं और तेज़ी से बढ़ते डिज़ाइन क्षेत्र में हाई-पेइंग नौकरियाँ चाहते हैं

BFA क्या है?
बैचलर ऑफ फाइन आर्ट्स (BFA) एक अंडरग्रेजुएट डिग्री है जो विजुअल आर्ट्स और परफॉर्मिंग आर्ट्स पर आधारित होती है – जैसे पेंटिंग, स्कल्पचर, एनिमेशन, फोटोग्राफी आदि। यह कोर्स उन छात्रों के लिए उपयुक्त है जो कला, एनिमेशन या पढ़ाने के क्षेत्र में करियर बनाना चाहते हैं।

प्रवेश परीक्षाएँ: NID DAT, BHU UET, JMI, CUET, AIDAT
स्पेशलाइज़ेशन: पेंटिंग, स्कल्पचर, एप्लाइड आर्ट, एनिमेशन, फोटोग्राफी, विज़ुअल कम्युनिकेशन
करियर विकल्प: फाइन आर्टिस्ट, एनिमेटर, आर्ट डायरेक्टर, टीचर, गैलरी क्यूरेटर, मल्टीमीडिया आर्टिस्ट
सैलरी रेंज: ₹1.2 लाख से ₹8.7 लाख प्रति वर्ष (टॉप प्रोफाइल में ₹20 लाख/वर्ष तक)
उपयुक्त छात्र: वे जो गहरी क्रिएटिव सोच रखते हैं और कला, एनिमेशन या शिक्षण के क्षेत्र में काम करना चाहते हैं

डिप्लोमा इन डिज़ाइन क्या है?
डिज़ाइन डिप्लोमा प्रोग्राम्स 1 से 3 साल के छोटे और स्किल-बेस्ड कोर्स होते हैं। ये कम लागत में व्यावसायिक कौशल सिखाते हैं और उन छात्रों के लिए उपयोगी होते हैं जो जल्दी जॉब शुरू करना चाहते हैं या किसी स्पेशल स्किल में ट्रेनिंग लेना चाहते हैं।

योग्यता: 12वीं (किसी भी स्ट्रीम से)
करियर स्कोप: जूनियर डिज़ाइनर, असिस्टेंट, फ्रीलांसर, प्राथमिक विद्यालय शिक्षक
सैलरी रेंज: ₹1.8 लाख से ₹4 लाख प्रति वर्ष
उपयुक्त छात्र: वे जो जल्दी नौकरी शुरू करना चाहते हैं, UG डिग्री का खर्च वहन नहीं कर सकते, या स्किल डेवलपमेंट करना चाहते हैं

तीनों कोर्सों की तुलना एक नज़र में:
विशेषता                     B.Des                               BFA                          डिप्लोमा इन डिज़ाइन
अवधि                          4 वर्ष                                3–4 वर्ष                               1–3 वर्ष
योग्यता                12वीं (किसी भी स्ट्रीम)         12वीं (किसी भी स्ट्रीम)                      12वीं
प्रवेश परीक्षा        UCEED, NID DAT, NIFT      NID DAT, CUET, BHU UET    संस्थान पर निर्भर करता है
मुख्य करियर        प्रोडक्ट, फैशन, UI/UX        आर्टिस्ट, एनिमेटर, टीचर            जूनियर डिज़ाइनर, असिस्टेंट
सैलरी रेंज            ₹3.3–12.5 लाख/वर्ष            ₹1.2–8.7 लाख/वर्ष                    ₹1.8–4 लाख/वर्ष
टॉप कॉलेज             NID, NIFT, IITs                BHU, JMI, प्रेसिडेंसी                Vogue, Parul, Oasis

तो कौन सा रास्ता सही है?
- B.Des चुनें अगर आप प्रोफेशनल डिज़ाइन करियर चाहते हैं, टेक्नोलॉजी, बिज़नेस और क्रिएटिव सॉल्यूशन में रुचि रखते हैं।

- BFA चुनें अगर आप कला प्रेमी हैं, एनिमेशन या शिक्षण में करियर बनाना चाहते हैं।

- डिप्लोमा चुनें अगर आप जल्दी जॉब शुरू करना चाहते हैं, कम बजट में पढ़ाई करना चाहते हैं, या किसी विशेष स्किल में मास्टरी चाहते हैं।

2025 की नवीनतम ट्रेंड्स और जानकारियाँ:
जनरेटिव AI और डिज़ाइन: अब B.Des और डिप्लोमा कोर्स में AI टूल्स का इस्तेमाल UX रिसर्च, डिजिटल आर्टवर्क और फास्ट प्रोटोटाइप के लिए होने लगा है।

हाइब्रिड करियर: B.Des ग्रैजुएट्स स्टार्टअप, ई-कॉमर्स और डिजिटल मार्केटिंग में जा रहे हैं, वहीं BFA ग्रैजुएट्स एनिमेशन, गेमिंग और OTT इंडस्ट्री में।

डिमांड: UX/UI डिज़ाइन, प्रोडक्ट डिज़ाइन और एनिमेशन – ये 2025 की सबसे ज़्यादा मांग और तनख्वाह वाली डिज़ाइन जॉब्स मानी गई हैं।


भारतीय डिज़ाइन शिक्षा में हर क्रिएटिव माइंड के लिए कुछ न कुछ है। चाहे आप B.Des, BFA या डिप्लोमा चुनें, यह ज़रूरी है कि आप अपनी रुचियों, क्षमताओं और करियर लक्ष्यों के अनुसार सही निर्णय लें। कॉलेज की रैंकिंग, इंटर्नशिप के अवसर, एंट्रेंस एग्ज़ाम की तैयारी और एक मजबूत पोर्टफोलियो बनाना न भूलें। भारतीय डिज़ाइन इंडस्ट्री का भविष्य उज्ज्वल है — सही रास्ता चुनें और डिज़ाइन की दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बनाएं।

भारत में मेडिकल करियर का सपना कई छात्रों के लिए बहुत ही उत्साहजनक होता है। लेकिन आज भी यह सवाल अक्सर सामने आता है — क्या सिर्फ MBBS ही एकमात्र रास्ता है या Allied Health Sciences को भी एक बेहतर विकल्प माना जा सकता है?

GAHET जैसे नए एंट्रेंस एग्जाम और हेल्थकेयर सेक्टर में आ रहे बदलावों को देखते हुए, करियर का सही चुनाव पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गया है। आइए, तथ्यों और ट्रेंड्स के आधार पर समझते हैं कि आपके लिए कौन सा रास्ता सही हो सकता है।


MBBS और Allied Health Sciences में अंतर

MBBS (बैचलर ऑफ मेडिसिन, बैचलर ऑफ सर्जरी):
- यह भारत की सबसे प्रतिष्ठित अंडरग्रेजुएट मेडिकल डिग्री है।
- इसमें दाखिले के लिए NEET (National Eligibility cum Entrance Test) अनिवार्य है।
- कुल कोर्स अवधि: 5 वर्ष की पढ़ाई + 1 वर्ष की इंटर्नशिप।
- डॉक्टर का मुख्य कार्य: रोगों की पहचान, उपचार और प्रबंधन।

Allied Health Sciences:
- यह मेडिकल सेक्टर में काम करने वाले तकनीकी और सहायता कर्मियों के लिए ट्रेनिंग प्रोग्राम्स प्रदान करता है।
- प्रोफेशनल्स: फिजियोथेरेपिस्ट, रेडियोग्राफर, लैब टेक्नोलॉजिस्ट, ऑप्टोमेट्रिस्ट, आदि।
- प्रवेश के लिए: GAHET, KCET जैसे विशेष एंट्रेंस एग्जाम या डायरेक्ट एडमिशन।
- कोर्स की अवधि: 3 से 4.5 साल, स्पेशलाइजेशन पर निर्भर।


भारत में दो प्रमुख मेडिकल एंट्रेंस एग्जाम: NEET और GAHET
NEET: MBBS और डेंटल जैसे कोर्सेस के लिए अनिवार्य परीक्षा, जिसमें लाखों छात्र सीमित सीटों के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं।
GAHET (Global Allied Healthcare Entrance Test): Allied Health Programs में एडमिशन के लिए एक नया और उभरता हुआ एग्जाम है।

GAHET स्कोर स्वीकार करने वाले प्रमुख संस्थान:
- Invertis University, बरेली
- Sahara Paramedical Institute, मेरठ
- Saraswati Group of Colleges, मोहाली
- Graphic Era University, देहरादून
- Rabindranath Tagore University, भोपाल
- JECRC University, जयपुर
और 100 से अधिक संस्थान पूरे भारत में...


करियर विकल्प: MBBS बनाम Allied Health

MBBS करियर विकल्प:
- डॉक्टर, सर्जन, विशेषज्ञ चिकित्सा अधिकारी
- सम्मानजनक पेशा, लेकिन पोस्टग्रेजुएट सीटों और सरकारी नौकरी के लिए भारी प्रतिस्पर्धा
- समाज में उच्च दर्जा और पहचान

Allied Health करियर विकल्प:
- फिजियोथेरेपिस्ट, रेडियोग्राफर, लैब टेक्नोलॉजिस्ट, ऑप्टोमेट्रिस्ट, एनेस्थेटिस्ट, एपिडेमियोलॉजिस्ट आदि
- अस्पतालों, लैब्स, रिसर्च इंस्टीट्यूट्स और क्लीनिक्स में बढ़ती मांग
- प्रारंभिक वेतन ₹2.5 से ₹10 लाख प्रति वर्ष (स्पेशलाइजेशन और स्थान पर निर्भर)
- विदेशों में अच्छी संभावनाएं, विशेष रूप से नर्सिंग और मेडिकल टेक्नोलॉजी में


रोज़गार के रुझान और भविष्य की संभावनाएं
MBBS: हमेशा मांग में रहते हैं, लेकिन सीटें सीमित हैं और कोर्स कठिन है।
Allied Health: नए टेक्नोलॉजी, प्रिवेंशन और डायग्नोस्टिक्स के विकास के कारण तेजी से बढ़ती मांग।
विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले वर्षों में अनुभवी Allied Health Professionals की आवश्यकता और बढ़ेगी।


वर्क-लाइफ बैलेंस की तुलना
MBBS: शुरुआती वर्षों में लंबी शिफ्ट, ऑन-कॉल ड्यूटी और मानसिक दबाव आम हैं।
Allied Health: आमतौर पर नियमित समय की शिफ्ट और व्यक्तिगत जीवन के लिए बेहतर संतुलन।


आपके लिए कौन सा विकल्प सही?

MBBS चुनें, अगर:
- आप डॉक्टर बनना चाहते हैं और प्रतियोगिता के लिए तैयार हैं।
- लंबी, कठिन और महंगी पढ़ाई के लिए मानसिक रूप से तैयार हैं।
- समाज में प्रतिष्ठा और उच्च आय के लिए प्रतिबद्ध हैं।

Allied Health चुनें, अगर:
- आप मेडिकल क्षेत्र में काम करना चाहते हैं, लेकिन कम समय और लागत में।
- आपको डायग्नोस्टिक्स, थेरेपी या मेडिकल टेक्नोलॉजी में रुचि है।
- आप संतुलित जीवनशैली के साथ एक व्यावसायिक करियर चाहते हैं।


सही निर्णय कैसे लें?
MBBS और Allied Health Sciences दोनों ही सम्मानजनक और समाज के लिए उपयोगी करियर विकल्प हैं। सही रास्ता आपकी रुचियों, क्षमताओं और जीवन के लक्ष्यों पर निर्भर करता है। GAHET जैसे नए अवसरों के चलते, यह सही समय है कि आप MBBS के अलावा भी मेडिकल क्षेत्र में मौजूद विकल्पों को गंभीरता से देखें।

सुझाव: विषय का अच्छी तरह अध्ययन करें, मेडिकल क्षेत्र में काम कर रहे लोगों से सलाह लें और उस स्ट्रीम का चुनाव करें जो आपको सबसे अधिक प्रेरित करती हो।


अभी भी उलझन में हैं?
GAHET पोर्टल https://gahet.org/ पर जाएं या करियर काउंसलिंग के लिए 08035018453 नंबर पर कॉल करें। निःशुल्क मार्गदर्शन उपलब्ध है।

यदि आपको इंटीरियर डिज़ाइन, फैशन, ग्राफिक डिज़ाइन या इसी प्रकार के किसी रचनात्मक क्षेत्र में रुचि है, तो यह स्पष्ट है कि भारत के सर्वश्रेष्ठ डिज़ाइन कॉलेजों में प्रवेश पाना बेहद चुनौतीपूर्ण हो सकता है। सौभाग्यवश, ऑल इंडिया डिज़ाइन एप्टीट्यूड टेस्ट (AIDAT) आपके लिए देश के प्रमुख डिज़ाइन संस्थानों में आवेदन करने का सबसे आसान तरीका है। 2025 में हर इच्छुक डिज़ाइनर को AIDAT परीक्षा क्यों देनी चाहिए, इसके पाँच प्रमुख कारण हैं:

भारत के सर्वश्रेष्ठ डिज़ाइन कॉलेजों में सीधा प्रवेश
AIDAT एक राष्ट्रीय स्तर की परीक्षा है, जिसे भारत के सभी प्रमुख डिज़ाइन विश्वविद्यालयों और कॉलेजों द्वारा स्वीकार किया जाता है। चाहे आप डिप्लोमा, बैचलर या मास्टर्स डिग्री करना चाहें, AIDAT एकमात्र परीक्षा के माध्यम से आपको अनेक टॉप कॉलेजों में आवेदन का अवसर देता है। अलग-अलग प्रवेश परीक्षाओं की चिंता करने की ज़रूरत नहीं – AIDAT आपके सभी एडमिशन चरणों को आसान बनाता है।

डिज़ाइन क्षेत्र में अनेक विकल्प
AIDAT के माध्यम से आप कई रचनात्मक पाठ्यक्रमों में प्रवेश ले सकते हैं – जैसे फैशन डिज़ाइन, इंटीरियर डिज़ाइन, ग्राफिक डिज़ाइन, प्रोडक्ट डिज़ाइन, कम्युनिकेशन डिज़ाइन, ट्रांसपोर्ट डिज़ाइन और यूज़र एक्सपीरियंस डिज़ाइन। चूंकि डिज़ाइन क्षेत्र में अनेक करियर विकल्प उपलब्ध हैं, आप एक ही परीक्षा के आधार पर अपनी रुचियों और भविष्य की आकांक्षाओं के अनुसार उपयुक्त विकल्प चुन सकते हैं।

पारदर्शी और निष्पक्ष चयन प्रक्रिया
AIDAT हर उम्मीदवार को समान अवसर प्रदान करता है। इसमें 60 मिनट में 100 बहुविकल्पीय प्रश्न हल करने होते हैं और सबसे अच्छी बात यह है कि इसमें कोई नकारात्मक अंकन (नेगेटिव मार्किंग) नहीं है। परिणाम आने के बाद, आप Edinbox द्वारा करियर काउंसलिंग ले सकते हैं, अपना पोर्टफोलियो प्रस्तुत कर सकते हैं और विशेषज्ञों के साथ साक्षात्कार में भाग लेकर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर सकते हैं।

हर छात्र के लिए उपयुक्त करियर मार्गदर्शन और कौशल विकास
AIDAT केवल परीक्षा नहीं, बल्कि एक संपूर्ण मार्गदर्शन प्रक्रिया है। पंजीकृत उम्मीदवारों को अध्ययन सामग्री और मॉक टेस्ट पेपर दिए जाते हैं। हमारे विशेषज्ञ आपकी सहायता सही संस्थान, कोर्स और पोर्टफोलियो चुनने में करते हैं, साथ ही डिज़ाइन इंडस्ट्री में मजबूत नेटवर्क बनाने में भी मदद करते हैं।

सफलता की मिसालें और सम्मान
AIDAT की सहायता से अब तक हजारों छात्रों ने भारत के प्रतिष्ठित डिज़ाइन संस्थानों में प्रवेश पाया है और देश की रचनात्मक इंडस्ट्री में शानदार करियर बनाया है। फैशन हो, इंटीरियर डिज़ाइन या डिजिटल पाठ्यक्रम – अनेक उद्योग विशेषज्ञ और प्रमुख शिक्षण संस्थान AIDAT को एक भरोसेमंद विकल्प मानते हैं और इसे प्रेरित छात्रों के लिए उपयुक्त मानते हैं।

यदि डिज़ाइनर बनना आपका सपना है, तो AIDAT परीक्षा आपको भारत के प्रसिद्ध डिज़ाइन कॉलेजों में स्थान पाने और रचनात्मक दुनिया में करियर बनाने का अवसर देती है। आज ही रजिस्टर करें और अपने जुनून को करियर में बदलें।

परीक्षा, अध्ययन सामग्री और पंजीकरण से संबंधित सभी जानकारी के लिए AIDAT की आधिकारिक वेबसाइट https://aidatexam.com/ पर जाएं या 08035018542 नंबर पर कॉल करें।

आज के समय में केवल नौकरी की सुरक्षा और स्थिर वेतन ही लोगों की प्राथमिकता नहीं है। 1997 से 2012 के बीच जन्मे युवाओं, जिन्हें "जनरेशन Z" कहा जाता है, ने एक संतोषजनक करियर की परिभाषा को ही बदल दिया है और सहयोगी स्वास्थ्य सेवाएँ यानी एलाइड हेल्थकेयर (Allied Healthcare) का क्षेत्र इस बदलाव में एक अहम भूमिका निभा रहा है। 

पैसे से ज़्यादा उद्देश्य प्रेरित करता है  Gen Z को
अगर आप सोचते हैं कि Gen Z केवल मोबाइल स्क्रीन से चिपके रहते हैं और कुछ भी गंभीरता से नहीं लेते, तो एक बार फिर सोचिए। आज के युवा नौकरी चुनते समय केवल वेतन नहीं, बल्कि उसके सामाजिक प्रभाव को भी प्राथमिकता देते हैं। एक सर्वेक्षण के अनुसार, 89% Gen Z युवा ऐसा करियर चाहते हैं जिसमें उद्देश्य हो। वे ऐसी नौकरियाँ चाहते हैं जो तकनीक से जुड़ी हों और समाज की सेवा करें— जैसे कि एलाइड हेल्थकेयर से जुड़ी नौकरियाँ। आज का युवा मानता है कि ‘अच्छे उद्देश्य वाली नौकरी’ कोई विशेषता नहीं बल्कि न्यूनतम अपेक्षा है।

एक उद्देश्यपूर्ण करियर जो बदल रहा भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था
डॉक्टरों और नर्सों की प्रशंसा अक्सर होती है, लेकिन भारत की स्वास्थ्य सेवाओं के तेज़ विकास में फिजियोथेरेपिस्ट, रेडियोग्राफर, मेडिकल टेक्नोलॉजिस्ट, न्यूट्रिशनिस्ट और अन्य सहयोगी स्वास्थ्यकर्मियों की बड़ी भूमिका है। और Gen Z इसे गंभीरता से देख रहा है!
कोविड-19 के बाद, Gen Z अब ‘अच्छे उद्देश्य’ वाले करियर की ओर अधिक झुका है।मार्च 2025 में भारत का स्वास्थ्य क्षेत्र 62% तक बढ़ा, खासकर डिजिटल स्वास्थ्य, AI आधारित डायग्नोस्टिक्स और टेलीमेडिसिन जैसी नई नौकरियों के कारण। यही तो वह क्षेत्र है, जिसमें Gen Z दिलचस्पी लेता है।

एलाइड हेल्थकेयर के प्रति दिलचस्पी के मुख्य कारण:
1. तकनीक का समावेश: Gen Z तकनीक के साथ बड़ी हुई है। ये ऐसे करियर की तलाश में हैं जहाँ AI, डेटा एनालिटिक्स और टेलीमेडिसिन के ज़रिए रोगियों की देखभाल बेहतर हो रही हो।
2. सामाजिक प्रभाव: Gen Z ऐसे कार्य चाहती है जिनसे लोगों के जीवन में प्रत्यक्ष रूप से सुधार हो, और सहयोगी स्वास्थ्य सेवाएँ यही करती हैं।

तेज़ी से बढ़ रही है मांग 
भारत में सहयोगी स्वास्थ्य सेवाएँ यानी एलाइड हेल्थकेयर तेज़ी से बढ़ रही हैं। अनुमान है कि भारत में हेल्थकेयर नौकरियाँ 2017 में 75 लाख से बढ़कर 2027 तक 90 लाख हो जाएंगी, जिनमें ज़्यादातर टेलीमेडिसिन और डेटा एनालिटिक्स के विकास से उत्पन्न होंगी।

इंडस्ट्री हायरिंग प्लान से भी इसकी पुष्टि होती है – 2025 की पहली छमाही में 52% कंपनियाँ भर्ती बढ़ाएंगी, जो 2024 के अंत की तुलना में 5% अधिक है।

इसके अलावा, आंकड़ों के अनुसार 75% से 84% Gen Z नौकरी चाहने वाले केवल उन्हीं नौकरियों के लिए आवेदन कर रहे हैं जिनमें रिमोट या हाइब्रिड वर्किंग का विकल्प हो, और सहयोगी स्वास्थ्य क्षेत्र इस मामले में सबसे आगे है क्योंकि यह वर्चुअल केयर और लचीले कार्य शेड्यूल को बढ़ावा देता है।

विविधता और समावेशन पर भी अब अधिक ध्यान दिया जा रहा है। अन्य क्षेत्रों की तुलना में, सहयोगी स्वास्थ्य क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी 38% तक पहुँच चुकी है — हालाँकि नेतृत्व के स्तर पर अब भी सुधार की आवश्यकता है।

एलाइड हेल्थकेयर की ओर क्यों आकर्षित है Gen Z?
सिर्फ ज़्यादा नौकरियाँ ही Gen Z को आकर्षित नहीं कर रहीं। उनके लिए "उद्देश्यपूर्ण करियर" कहीं ज़्यादा मायने रखता है। वे केवल प्रतिष्ठित संस्थानों में काम करने से ज़्यादा, ऐसे कार्य पसंद करते हैं जिनका ठोस और सकारात्मक असर हो। सहयोगी स्वास्थ्य सेवा ऐसा ही क्षेत्र है — यह लोगों के इलाज में मदद करता है, निर्णय प्रक्रिया तेज़ करता है और Gen Z के उस सपने को साकार करता है जिसमें वे समाज को बेहतर बनाना चाहते हैं।

भारत का भविष्य: Gen Z और एलाइड हेल्थकेयर के साथ
आने वाले वर्षों में एलाइड हेल्थकेयर का महत्व और भी बढ़ने वाला है। भारत की वृद्ध जनसंख्या 2050 तक लगभग 20% हो जाएगी, और स्वास्थ्य प्रणाली इलाज से रोकथाम (prevention) की ओर बढ़ेगी। ऐसे में सहयोगी स्वास्थ्यकर्मियों की भारी मांग होगी।

Gen Z की तकनीकी दक्षता, सहानुभूति और समाज के लिए बेहतर काम करने की प्रतिबद्धता उन्हें इस बदलाव का नेतृत्व करने के लिए पूरी तरह तैयार बनाती है।

Gen Z की करियर सोच को हल्के में मत लीजिए
अगर आपको लगता है कि एलाइड हेल्थकेयर सिर्फ एक विकल्प है, तो एक बार फिर सोचिए।
Gen Z ने यह जान लिया है कि यह क्षेत्र स्थिरता के साथ-साथ गहराई और सामाजिक महत्व भी देता है। वे ऐसे करियर चुन रहे हैं जहाँ वे दूसरों की मदद कर सकें, नई तकनीकों के साथ काम कर सकें और स्वास्थ्य सेवा को अधिक मानवीय बना सकें।

यदि आप भी नौकरी बाज़ार में प्रासंगिक बने रहना चाहते हैं, तो Gen Z से प्रेरणा लीजिए और एक संतोषजनक करियर की ओर कदम बढ़ाइए।

अधिक जानकारी के लिए GAHET की आधिकारिक वेबसाइट https://gahet.org/ पर जाएं या 08035018453 पर कॉल करें

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'सिटी ऑफ जॉय' कहे जाने वाले कोलकाता शहर में 16 अप्रैल का दिन वाकई उत्साह से भरा रहा, जब 'एडइनबॉक्स' ने अपना विस्तार करते हुए यहाँ के लोगों के लिए अपनी नई ब्रांच का शुभारम्भ किया। ख़ास बात यह रही कि इस मौके पर इटली से आये मेहमानों के साथ 'एडइनबॉक्स' की पूरी टीम मौजूद थी। पश्चिम बंगाल के कोलकाता में उदघाटित इस कार्यालय से पूर्व 'एडइनबॉक्स' की शाखाएं दिल्ली, भुवनेश्वर, लखनऊ और बैंगलोर जैसे शहरों में पहले से कार्य कर रही हैं।

कोलकाता में एडइनबॉक्स की नयी ब्रांच के उद्घाटन कार्यक्रम में इटली के यूनिमार्कोनी यूनिवर्सिटी के प्रतिनिधिमंडल की गरिमामयी उपस्थिति ने इस अवसर को तो ख़ास बनाया ही, सहयोग और साझेदारी की भावना को भी इससे बल मिला। विशिष्ट अतिथियों आर्टुरो लावेल, लियो डोनाटो और डारिना चेशेवा ने 'एडइनबॉक्स' के एडिटर उज्ज्वल अनु चौधरी, बिजनेस और कंप्यूटर साइंस के डोमेन लीडर डॉ. नवीन दास, ग्लोबल मीडिया एजुकेशन काउंसिल डोमेन को लीड कर रहीं मनुश्री मैती और एडिटोरियल कोऑर्डिनेटर समन्वयक शताक्षी गांगुली के नेतृत्व में कोलकाता टीम के साथ हाथ मिलाया। 

समारोह की शुरुआत अतिथियों का गर्मजोशी के साथ स्वागत से हुई। तत्पश्चात दोनों पक्षों के बीच विचारों और दृष्टिकोणों का सकारात्मक आदान-प्रदान हुआ। डारिना ने पारम्परिक तरीके से रिबन काटकर आधिकारिक तौर पर कार्यालय का उद्घाटन किया और इस मौके को आपसी सहयोग के प्रयासों की दिशा में एक नए अध्याय की शुरुआत बताया। बाकायदा इस दौरान यूनिमार्कोनी विश्वविद्यालय के प्रतिनिधिमंडल और EdInbox.com टीम के बीच एक साझेदारी समझौते पर हस्ताक्षर भी हुआ। यह पहल शिक्षा के क्षेत्र में नवाचार और प्रगति के लिए साझा प्रतिबद्धता को दर्शाता है, साथ ही भविष्य में अधिक से अधिक छात्रों का नेतृत्व कर इस पहल से उन्हें सशक्त बनाया जा सकता है ताकि वे वैश्विक मंचों पर सफलता के अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकें। 

समारोह के समापन की वेला पर दोनों पक्षों द्वारा एक दूसरे को स्मारिकाएं भेंट की गयीं।  'एडइनबॉक्स' की नई ब्रांच के उद्घाटन के साथ इस आदान-प्रदान की औपचारिकता से दोनों टीमों के बीच मित्रता और सहयोग के बंधन भी उदघाटित हुए।अंततः वक़्त मेहमानों को अलविदा कहने का था, 'एडइनबॉक्स' की कोलकाता टीम ने अतिथियों को विदा तो किया मगर इस भरोसे और प्रण के साथ कि यह नयी पहल भविष्य में संबंधों की प्रगाढ़ता और विकास के नए ठौर तक पहुंचेगी।  

बैचलर ऑफ डिजाइन (B.Des) एक चार वर्षीय अंडरग्रेजुएट प्रोग्राम है, जो छात्रों को रचनात्मक सोच, इनोवेशन और तकनीकी डिज़ाइन स्किल्स से लैस करता है। यह कोर्स उन विद्यार्थियों के लिए उपयुक्त है जो फैशन डिज़ाइन, ग्राफिक डिज़ाइन, प्रोडक्ट डिज़ाइन, इंटीरियर डिज़ाइन या एनीमेशन जैसे क्षेत्रों में करियर बनाना चाहते हैं।

इस कोर्स के दौरान छात्रों को डिजाइन सिद्धांत, स्केचिंग, विजुअल आर्ट्स, डिजिटल टूल्स और सॉफ्टवेयर, प्रोजेक्ट वर्क और इंडस्ट्री-ओरिएंटेड प्रैक्टिकल ट्रेनिंग दी जाती है, ताकि वे एक सक्षम और पेशेवर डिज़ाइनर के रूप में अपने करियर की शुरुआत कर सकें।

कोर्स की अवधि: कितना समय लगता है?
B.Des कोर्स की अवधि 4 वर्ष होती है। हर वर्ष छात्रों को अलग-अलग विषयों पर ट्रेनिंग दी जाती है, जैसे:
- फाउंडेशन इन आर्ट एंड डिजाइन
- ड्राइंग और स्केचिंग
- डिजाइन थ्योरी
- कंप्यूटर-आधारित डिजाइन
- इंडस्ट्री प्रोजेक्ट्स और इंटर्नशिप

पात्रता (Eligibility): कौन कर सकता है आवेदन?
B.Des प्रोग्राम में प्रवेश के लिए आवश्यक शर्तें:
- अभ्यर्थी ने किसी मान्यता प्राप्त बोर्ड (CBSE, ICSE या राज्य बोर्ड) से 12वीं पास की हो
- कोई भी स्ट्रीम (Science, Arts, Commerce) मान्य है
- कई संस्थानों में कम से कम 50% अंक अनिवार्य होते हैं
- टॉप कॉलेजों जैसे NID, NIFT, IIT आदि में प्रवेश के लिए अलग प्रवेश परीक्षा (जैसे NID DAT, UCEED, NIFT Entrance) देनी होती है

बी.डिजाइन के बाद करियर और सैलरी
B.Des डिग्री प्राप्त करने के बाद करियर की शुरुआत आप इन भूमिकाओं में कर सकते हैं:
- फैशन डिज़ाइनर
- ग्राफिक डिज़ाइनर
- UI/UX डिज़ाइनर
- प्रोडक्ट डिज़ाइनर
- एनीमेशन आर्टिस्ट
- इंटीरियर डिजाइनर

प्रारंभिक सैलरी: ₹3 लाख से ₹6 लाख प्रति वर्ष (₹25,000 – ₹50,000 प्रति माह)
अनुभव के साथ: ₹6 लाख से ₹10 लाख या इससे अधिक, खासकर UI/UX और प्रोडक्ट डिजाइन जैसे हाई-डिमांड क्षेत्रों में।
- टॉप कॉलेजों से पढ़े छात्रों को शुरुआत से ही बेहतर पैकेज मिलने की संभावना होती है।

पढ़ाने का शौक है?
यदि आपको शिक्षा में रुचि है, तो आप मास्टर्स या M.Des करने के बाद किसी डिजाइन संस्थान में शिक्षक या फैकल्टी के रूप में करियर बना सकते हैं।

B.Des न सिर्फ एक डिग्री है, बल्कि रचनात्मकता को करियर में बदलने का अवसर भी है। यह कोर्स उन युवाओं के लिए आदर्श है जो कला, नवाचार और डिज़ाइन में भविष्य देखना चाहते हैं।

 

अगर आप बिजनेस और लॉ, दोनों में करियर बनाना चाहते हैं, तो BBA LLB कोर्स आपके लिए बेहतरीन विकल्प हो सकता है। यह पांच साल का इंटीग्रेटेड कोर्स है जिसमें छात्र बिजनेस मैनेजमेंट और कानून की पढ़ाई एक साथ करते हैं। आज के कॉर्पोरेट दौर में इसकी मांग लगातार बढ़ रही है।

BBA LLB कोर्स क्यों है खास?
दो विषयों की पढ़ाई, एक साथ: मार्केटिंग, फाइनेंस, ह्यूमन रिसोर्स (HR) जैसे मैनेजमेंट विषयों के साथ कॉरपोरेट लॉ, क्रिमिनल लॉ और कॉन्ट्रैक्ट लॉ जैसे कानूनी पहलुओं की गहन जानकारी मिलती है।

समय और पैसा दोनों की बचत: जहां अलग-अलग BBA और LLB करने में छह साल लगते हैं, वहीं BBA LLB सिर्फ पांच साल में पूरा हो जाता है।

बिजनेस और लॉ का शानदार मेल: कंपनियों को ऐसे प्रोफेशनल्स की जरूरत है जिन्हें बिजनेस और कानून दोनों की समझ हो—यहीं से इस कोर्स की मांग पैदा होती है।

कोर्स के बाद करियर के रास्ते
BBA LLB करने के बाद आप कई क्षेत्रों में काम कर सकते हैं, जैसे:
- कॉर्पोरेट लॉयर
- लीगल कंसल्टेंट
- कंपनी सेक्रेटरी
- बिजनेस मैनेजर
- सरकारी वकील या ज्यूडिशियल सर्विसेस की तैयारी
- अपना खुद का लॉ प्रैक्टिस या स्टार्टअप शुरू करना

इस कोर्स से भारत ही नहीं, विदेशों में भी लीगल और बिजनेस दोनों सेक्टरों में शानदार करियर अवसर मिलते हैं।

कौन कर सकता है यह कोर्स?
- 12वीं (किसी भी स्ट्रीम से) पास होना अनिवार्य
- सामान्य वर्ग: न्यूनतम 45-50% अंक, आयु सीमा लगभग 20 वर्ष
- SC/ST/OBC: न्यूनतम 40-45% अंक, आयु सीमा लगभग 22 वर्ष
- कुछ कॉलेजों में आयु सीमा लागू नहीं होती

एडमिशन कैसे लें?
अधिकतर कॉलेजों में एडमिशन के लिए प्रवेश परीक्षा देना जरूरी होता है:
- CLAT (Common Law Admission Test)
- AILET (All India Law Entrance Test)
- LSAT India
- कुछ कॉलेजों की अपनी एंट्रेंस टेस्ट/इंटरव्यू
- अच्छे अंग्रेज़ी कम्युनिकेशन स्किल्स भी चयन में मददगार साबित होते हैं।

प्रमुख कॉलेज जो BBA LLB कराते हैं
- Symbiosis Law School, Pune
- Nirma University, Ahmedabad
- ICFAI Law School, Hyderabad
- Amity Law School, Noida
- KIIT School of Law, Bhubaneswar
- Christ University, Bangalore
- Alliance University, Bangalore

BBA LLB सिर्फ एक डिग्री नहीं, बल्कि दो प्रोफेशनल फील्ड्स में पकड़ बनाने का शानदार मौका है। यदि आप भविष्य में लॉ, ज्यूडिशियरी या कॉर्पोरेट सेक्टर में कदम रखना चाहते हैं, तो यह कोर्स आपके लिए बेहद उपयोगी और प्रैक्टिकल विकल्प हो सकता है।

एनसीईआरटी की कक्षा 8 की नई सामाजिक विज्ञान की किताब को लेकर इन दिनों तीखी बहस चल रही है। एक ओर यह किताब इतिहास को नई भाषा में पेश करती है, वहीं दूसरी ओर आलोचकों का मानना है कि इससे बच्चों की सोच एकतरफा हो सकती है। सवाल यह है कि क्या इतिहास को नए ढंग से पढ़ाना सही है, या यह भविष्य की पीढ़ी के लिए एक नया पूर्वाग्रह तैयार कर रहा है?

इतिहास का नया नजरिया या नई दिशा?
किताब में बाबर को "क्रूर विजेता", अकबर को "सहिष्णुता और क्रूरता का मिश्रण" और औरंगजेब को "मंदिर और गुरुद्वारे तोड़ने वाला शासक" बताया गया है। यह शब्द पहले की पाठ्यपुस्तकों की अपेक्षा कहीं अधिक स्पष्ट और आलोचनात्मक हैं। इससे जुड़ी चिंता यह है कि क्या इतने छोटे बच्चों के मन में इन शब्दों से एकतरफा या नकारात्मक सोच जन्म ले सकती है?

सवाल उठाना गलत नहीं, पर सिखाने का तरीका अहम है
एनसीईआरटी का कहना है कि यह बदलाव राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 और राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा 2023 के अनुसार किया गया है, जिसमें बच्चों को केवल तथ्यों की रट लगवाने के बजाय सोचने, विश्लेषण करने और तर्क देने की दिशा में ले जाना उद्देश्य है।

बिलकुल, यह एक सराहनीय कदम है। 21वीं सदी के छात्रों को इतिहास को सिर्फ याद करने के बजाय उसकी जड़ों और प्रभावों को समझने की जरूरत है। लेकिन साथ ही यह भी जरूरी है कि भाषा ऐसी हो जो बच्चों को सोचने पर मजबूर करे, न कि नफरत या भेदभाव की ओर धकेले।

"अंधकारमय दौर" की चेतावनी: सही सन्दर्भ, लेकिन क्या पर्याप्त?
किताब में एक विशेष टिप्पणी “A Note on History’s Darker Period” में लिखा गया है कि “बीते ज़माने की घटनाओं के लिए आज के किसी व्यक्ति या समुदाय को दोष नहीं दिया जाना चाहिए।” यह लाइन किताब की आलोचनात्मक भाषा को संतुलित करने की कोशिश लगती है, लेकिन क्या यह 13-14 साल के छात्र के लिए पर्याप्त स्पष्टीकरण है?

बच्चों की सोच पर असर डालने वाली भाषा को संतुलन में रखने के लिए केवल एक पैराग्राफ काफी नहीं। शिक्षक, पेरेंट्स और शिक्षा विशेषज्ञों को यह सुनिश्चित करना होगा कि इस तरह के मजबूत शब्दों के साथ समझाने का वातावरण भी मजबूत हो।

बदलाव जरूरी हैं, लेकिन संतुलन से
किसी भी समाज में इतिहास की पुनर्रचना या पुनर्पाठ जरूरी होता है, खासकर तब जब पुरानी किताबें या तो पक्षपाती रही हों या अधूरी। लेकिन इन बदलावों का उद्देश्य होना चाहिए — बच्चों को संवेदनशील, निष्पक्ष और विवेकशील नागरिक बनाना। इतिहास को "काले" और "सफेद" में बांटने के बजाय, हमें बच्चों को ग्रे क्षेत्रों को देखने और समझने का हुनर सिखाना होगा।

एनसीईआरटी की यह नई किताब एक बहस की शुरुआत है, अंत नहीं। यह बहस सिर्फ शब्दों की नहीं है, बल्कि हम अपने बच्चों को किस तरह का नजरिया देना चाहते हैं, इसकी भी है। अगर हम चाहते हैं कि बच्चे सोचें, तो उन्हें सोचने का स्पेस, संतुलित भाषा और खुला वातावरण देना होगा। इतिहास को नया पढ़ाना गलत नहीं है, लेकिन यह जिम्मेदारी से और विवेक के साथ किया जाना चाहिए।

आज के दौर में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) हर क्षेत्र में अपनी पकड़ मजबूत कर चुका है। ऐसे में युवाओं के लिए जरूरी हो गया है कि वे इस तकनीक से जुड़े हुनर और टूल्स को समझें और सीखें। इसी दिशा में गूगल ने एक बड़ा कदम उठाते हुए भारतीय कॉलेज छात्रों को अपना प्रीमियम Google AI Pro Plan एक साल के लिए बिल्कुल मुफ्त देने की घोषणा की है।

इस प्लान की बाजार कीमत लगभग ₹19,500 सालाना है, लेकिन योग्य छात्रों को यह बिना किसी शुल्क के उपलब्ध कराया जाएगा। इसके तहत उन्हें गूगल के कई एडवांस्ड AI टूल्स जैसे Gemini 2.5 Pro, Veo 3, Deep Research Tools, और 2TB क्लाउड स्टोरेज की सुविधा मिलेगी।

कौन कर सकता है आवेदन?
- भारत में रहने वाला कोई भी कॉलेज स्टूडेंट, जिसकी उम्र 18 वर्ष या उससे अधिक हो।
- छात्र के पास एक पर्सनल Google अकाउंट होना चाहिए।
- वैध कॉलेज ईमेल आईडी या छात्र पहचान पत्र जरूरी है।
- यह ऑफर 15 सितंबर 2025 तक वैध है।

क्या-क्या मिलेगा इस प्लान में?
- Gemini 2.5 Pro और Deep Research मॉडल्स का एक्सेस
- Veo 3 से टेक्स्ट और इमेज से हाई-क्वालिटी वीडियो बनाना
- Veo 2 (Whisk) के एडवांस्ड इमेज-टू-वीडियो फीचर्स
- Whisk और Flow प्लेटफॉर्म्स पर 1,000 AI क्रेडिट्स हर महीने
- NotebookLM में ऑडियो ओवरव्यू और पर्सनलाइज्ड नोट्स
- Docs, Sheets और Slides में Gemini AI इंटीग्रेशन
- Gmail, Drive और Photos के लिए 2TB क्लाउड स्टोरेज

छात्रों को कैसे होगा फायदा?
- Gemini 2.5 Pro: कोडिंग, निबंध लेखन, परीक्षा तैयारी और जॉब इंटरव्यू प्रैक्टिस में मददगार।
- Gemini Live: रियल-टाइम बातचीत और ब्रेनस्टॉर्मिंग से आत्मविश्वास बढ़ेगा।
- NotebookLM: किताबों का विश्लेषण कर खुद के नोट्स और पॉडकास्ट बनाने में सहायक।
- Veo 3 Fast: 8 सेकंड के फोटो-रियलिस्टिक वीडियो क्रिएशन से क्रिएटिव प्रोजेक्ट्स में मदद।
- Deep Research Tools: रिसर्च प्रोजेक्ट्स और विस्तृत रिपोर्ट तैयार करने में उपयोगी।
- Google Workspace AI: Docs, Gmail और Sheets में स्मार्ट लेखन, डेटा विश्लेषण और ऑर्गनाइजेशन में तेजी।
- Whisk Animate: एक स्थिर तस्वीर को वीडियो में बदलने वाला टूल — क्रिएटिव छात्रों के लिए वरदान।

फ्री सब्सक्रिप्शन कैसे पाएं?
1. Google One वेबसाइट पर जाएं और अपने पर्सनल Google अकाउंट से साइन इन करें।
2. SheerID के जरिए छात्र पहचान सत्यापित करें (कॉलेज ईमेल या ID कार्ड से)।
3. गूगल पात्रता की जांच करेगा।
4. योग्य पाए जाने पर पेमेंट मेथड (UPI, कार्ड आदि) जोड़ें।
5. फ्री ट्रायल प्रक्रिया पूरी करें — AI Pro प्लान एक्टिवेट हो जाएगा।

महत्वपूर्ण सूचना
यह ऑफर 15 सितंबर 2025 तक ही वैध है। इसके बाद यह मुफ्त सब्सक्रिप्शन उपलब्ध नहीं रहेगा। अगर आप छात्र हैं, तो इस मौके को हाथ से जाने न दें – यह AI युग में आपकी दक्षता को नई ऊंचाइयों तक ले जा सकता है।

‘मेट्रो इन दिनों’ अनुराग बसु की एक ऐसी फिल्म है जो रिश्तों की गहराइयों को चार अलग-अलग शहरों के ज़रिए छूने की कोशिश करती है। साल 2007 में उन्होंने ‘लाइफ इन अ मेट्रो’ के ज़रिए मुंबई की कहानियों को पर्दे पर उतारा था, और अब करीब 18 साल बाद, वही भावनात्मक रेलगाड़ी मुंबई से निकलकर दिल्ली, कोलकाता और बेंगलुरु तक जा पहुंची है। इस बार बसु ने उम्र के हर पड़ाव—टीनएज से लेकर ओल्ड एज तक—प्यार और रिश्तों की अहमियत को दिखाने की कोशिश की है, वो भी आज के दौर की उलझनों और भावनात्मक टकराव के संदर्भ में।

फिल्म की कहानी चार कपल्स और एक खास किरदार की ज़िंदगी के इर्द-गिर्द बुनी गई है, जो अलग-अलग शहरों में रहते हैं लेकिन सभी के जीवन में एक कॉमन धागा है—रिश्तों में पैदा हो रही उलझनें, समझौतों की थकावट और आत्म-संतुलन की तलाश। मुंबई में रहने वाले मोंटी और काजोल बाहर से परफेक्ट कपल लगते हैं, लेकिन अंदर ही अंदर उनके बीच की दूरियां रिश्ते को खोखला कर रही हैं। उनकी बेटी का एंगल आज की पीढ़ी की उलझनों को जोड़ता है। कोलकाता में शिवानी और संजीव की शादी को 40 साल हो चुके हैं, लेकिन क्या वे सच में खुश हैं? जब शिवानी की ज़िंदगी में कॉलेज रीयूनियन के बहाने उसका पुराना प्यार परिमल लौटता है, तो शादीशुदा ज़िंदगी के भीतर छुपी अधूरी इच्छाओं का चेहरा सामने आता है।

शिवानी की बेटी चुमकी, जो दिल्ली में काम करती है, अपने लॉन्ग टाइम बॉयफ्रेंड आनंद से शादी करने वाली है, लेकिन उसकी उलझन यही है कि वो खुद को अब तक समझ नहीं पाई है। उसकी ज़िंदगी में जब बेंगलुरु का पार्थ दाखिल होता है, तो उसे अपनी भावनाओं और प्राथमिकताओं का फिर से सामना करना पड़ता है। आज की युवा पीढ़ी के लिए यह कहानी एक आईना है, जिसमें उन्हें अपने ही रिश्तों की उलझनें दिख सकती हैं। वहीं मुंबई में आकाश और श्रुति, एक प्यार करने वाला जोड़ा, अपनी शादी और करियर के बीच सामंजस्य बिठाने की कोशिश कर रहा है। श्रुति मां बनना चाहती है, लेकिन आकाश अपने कॉर्पोरेट करियर से निकलकर अपने म्यूजिक पैशन को फॉलो करना चाहता है। यह कहानी ज़िम्मेदारी और ख्वाहिशों के टकराव की है।

एक और कहानी परिमल की है, जो कोलकाता में अपनी विधवा बहू के साथ रहते हैं और उसकी ज़िंदगी में फिर से रंग भरना चाहते हैं। पर बहू अपने मरे हुए पति से किए गए वादे में बंधी हुई है। यह ट्रैक दिखाता है कि कई बार रिश्तों की ज़िम्मेदारी व्यक्ति की व्यक्तिगत खुशी से कहीं बड़ी हो जाती है। इन तमाम कहानियों के बीच एक बात समान है—हर कोई अपने रिश्ते को संभालना भी चाहता है और खुद को भी खोना नहीं चाहता।

अभिनय की बात करें तो अनुपम खेर अपने रोल में पूरी तरह घुल गए हैं। उन्होंने एक जिम्मेदार ससुर और पुराने प्रेमी के रूप में दिल छू लेने वाला अभिनय किया है। नीना गुप्ता का अभिनय सहज, गहरा और किरदार के बिल्कुल अनुकूल है। कोंकणा सेन शर्मा ने एक परतदार भूमिका को बड़ी खूबी से निभाया है और पंकज त्रिपाठी के साथ उनकी केमिस्ट्री असरदार रही है। पंकज को फिल्म में देख कर कहीं न कहीं इरफान की याद आती है, और ये तुलना दर्शकों के मन में आना स्वाभाविक है। अली फजल अपने किरदार को ईमानदारी से निभाते हैं, लेकिन उनका ट्रैक उतना प्रभाव नहीं छोड़ता। फातिमा सना शेख ने सीमित मौका मिलने के बावजूद अच्छा काम किया है, और उनके अभिनय में संभावनाएं दिखती हैं। आदित्य रॉय कपूर अपने अंदाज़ में सहज हैं लेकिन उनके किरदार में कुछ नया नहीं है। सारा अली खान फिल्म की सबसे कमजोर कड़ी हैं—उनके एक्सप्रेशंस फ्लैट हैं और भावनाओं की गहराई को नहीं छू पाते। चाहे वो दुख हो, प्रेम हो या असमंजस, सारा के चेहरे पर सब कुछ एक जैसा लगता है, जिससे उनकी परफॉर्मेंस दर्शकों को जोड़े नहीं रखती।

फिल्म का संगीत अनुराग बसु की पहचान की तरह है—भावनाओं को उठाने और जोड़ने वाला। अरिजीत सिंह और पैपॉन जैसे गायकों की आवाज़ें सही जगह इस्तेमाल की गई हैं, और गाने किरदारों की कहानियों को आगे बढ़ाने में मदद करते हैं। हालांकि, कई बार आठ किरदारों की अपनी-अपनी कहानी को गानों के ज़रिए सुनाना थोड़ा बोझिल हो जाता है, लेकिन फिर भी संगीत फिल्म की आत्मा बना रहता है। सिनेमैटोग्राफी की बात करें तो वाइड एंगल शॉट्स शहरों की आत्मा को खूबसूरती से कैप्चर करते हैं। मेट्रो और शहरी लोकेशन को प्रतीक की तरह इस्तेमाल किया गया है, जो फिल्म के नाम और विषय के साथ मेल खाता है।

निर्देशन में अनुराग बसु की स्टाइल साफ नज़र आती है। कहानी कहने का तरीका थियेटरनुमा और म्यूजिकल है, जो कुछ दर्शकों को धीमा लग सकता है, लेकिन जो लोग संवेदनशील कहानी कहने की कला को सराहते हैं, उनके लिए यह एक सुंदर अनुभव होगा। फिल्म की एक बड़ी चुनौती इसकी एडिटिंग है। इतने सारे किरदारों और कहानियों के चलते कुछ हिस्सों को जल्दबाज़ी में निपटाया गया लगता है, जिससे कुछ कहानियाँ अधूरी सी रह जाती हैं।

कुल मिलाकर, ‘मेट्रो इन दिनों’ रिश्तों की जटिलताओं को बेहद सादगी और संवेदना से बयान करती है। यह फिल्म आपको अपने ही रिश्तों, अपने परिवार, अपने प्यार और अपने अंदर के सवालों से रूबरू कराती है। यह फिल्म देखने के बाद शायद आप अपने किसी करीबी को फोन लगाना चाहें, या फिर बस किसी के पास चुपचाप बैठ जाना चाहें। यही इसकी खूबसूरती है—यह ज़ोर से नहीं बोलती, लेकिन दिल तक पहुँचती है। ‘मेट्रो इन दिनों’ वीकेंड पर देखे जाने लायक एक गहरी, सोचने पर मजबूर कर देने वाली फिल्म है।

आईआरसीटीसी हमेशा यात्रियों के लिए किफायती और सुविधाजनक टूर पैकेज लेकर आता है, ताकि लोग कम बजट में भारत के धार्मिक और सांस्कृतिक स्थलों की यात्रा कर सकें। इसी कड़ी में अब आईआरसीटीसी भगवान श्रीराम से जुड़े 30 प्रमुख तीर्थ स्थलों की यात्रा के लिए ‘श्री रामायण यात्रा’ नाम से एक नया टूर पैकेज लेकर आया है। यह यात्रा 17 दिन और 16 रातों की होगी, जिसमें भारत गौरव टूरिस्ट ट्रेन के जरिए रामभक्तों को उत्तर से दक्षिण भारत तक श्रीराम के जीवन से जुड़े स्थलों की सैर कराई जाएगी। यह ट्रेन यात्रा 25 जुलाई 2025 से दिल्ली के सफदरजंग रेलवे स्टेशन से शुरू होगी और लगभग 7500 किलोमीटर की दूरी तय करेगी।

इस यात्रा में यात्रियों को अयोध्या, नंदीग्राम, सीतामढ़ी, जनकपुर (नेपाल), बक्सर, वाराणसी, प्रयागराज, श्रृंगवेरपुर, चित्रकूट, नासिक, हम्पी और रामेश्वरम जैसे प्रमुख स्थलों पर ले जाया जाएगा। हर स्टेशन पर श्रीराम के जीवन से जुड़ी जगहों की सैर कराई जाएगी, जैसे अयोध्या में राम जन्मभूमि और हनुमान गढ़ी, जनकपुर में राम-जानकी मंदिर, नासिक में पंचवटी और त्र्यंबकेश्वर, और अंत में रामेश्वरम में रामनाथस्वामी मंदिर और धनुषकोडी की यात्रा होगी। यात्रा का समापन 17वें दिन दिल्ली लौटने के साथ होगा।

इस पैकेज का नाम ‘Shri Ramayana Yatra by Bharat Gaurav Tourist Train’ है और इसकी कीमत स्टैंडर्ड क्लास के लिए ₹82,950 प्रति व्यक्ति और सुपीरियर क्लास के लिए ₹1,02,095 प्रति व्यक्ति तय की गई है। इस पैकेज में वातानुकूलित कोच में यात्रा, होटल में ठहराव, शाकाहारी भोजन, स्थानीय भ्रमण के लिए एसी बसें, अनुभवी गाइड, और यात्रा बीमा जैसी सुविधाएं शामिल हैं।

जो भी श्रद्धालु इस धार्मिक यात्रा का हिस्सा बनना चाहते हैं, वे आईआरसीटीसी की आधिकारिक वेबसाइट www.irctctourism.com पर जाकर "Bharat Gaurav Train" सेक्शन में 'Shri Ramayana Yatra' पैकेज को चुन सकते हैं और ऑनलाइन भुगतान के माध्यम से बुकिंग करा सकते हैं। यह यात्रा न सिर्फ धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, बल्कि भारत की सांस्कृतिक विविधता और आध्यात्मिक धरोहर को करीब से जानने का एक सुनहरा अवसर भी है।

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आज की तेज भागती-दौड़ती दुनिया में शिक्षा जगत की नवीनतम जानकारियों और ताजा गतिविधियों से परिचित रहना शिक्षकों, इस क्षेत्र के प्रशासकों, छात्रों और अभिभावकों सभी के लिए समान रूप से महत्वपूर्ण है। शिक्षा के बढ़ते दायरे के साथ स्वयं को इसके अनुकूल बनाने और प्रगति के पथ पर आगे बढ़ने के लिए इससे संबंधित रुझानों, नीतियों और नवाचारों से अवगत रहना भी आवश्यक है। एडइनबॉक्स जैसा मंच शिक्षा जगत से जुड़ी हर खबर के लिए 'वन-स्टॉप डेस्टिनेशन' उपलब्ध कराता है यानी एक मंच पर सारी जरूरी जानकारियां। एडइनबॉक्स यह सुनिश्चित करता है कि आप मीडिया व शिक्षा जगत की हर हलचल, हर खबर से बाखबर रहें। 

क्यों महत्वपूर्ण हैं शिक्षा जगत की खबरें?

शिक्षा जगत की खबरों से तात्पर्य इस क्षेत्र से जुड़े विविध विषयों की एक विस्तृत श्रृंखला है, पाठ्यक्रम और शिक्षण पद्धतियों में बदलाव से लेकर शैक्षिक नीतियों और सुधारों पर अपडेट तक। इसमें स्कूलों, विश्वविद्यालयों, शिक्षा प्रौद्योगिकी और शिक्षाशास्त्र में प्रगति संबंधी गतिविधियां भी शामिल हैं। शिक्षा जगत से संबंधित समाचारों से अपडेट रहना इससे जुड़े लोगों को ठोस निर्णय लेने, सर्वोत्तम विधाओं को लागू करने और शिक्षा क्षेत्र के सामने आने वाली चुनौतियों का सामना करने में मददगार साबित होता है।

मीडिया-शिक्षा की भूमिका

लेख, वीडियो, पॉडकास्ट और इन्फोग्राफिक्स सहित मीडिया-शिक्षा, शिक्षा जगत से जुड़े लोगों के बीच सूचना के प्रसार और महत्वपूर्ण विमर्शों को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। चाहे वह नवीन शिक्षण पद्धतियां की खोज हो, सफलता की गाथाओं को लोगों के समक्ष लाना हो, या फिर शिक्षकों के सामने आने वाली चुनौतियों पर चर्चा की बात हो, मीडिया-शिक्षा शिक्षण और सीखने के अनुभवों को बढ़ाने के लिए मूल्यवान अंतर्दृष्टि और संसाधन मुहैया कराती है।

एडइनबॉक्स: शैक्षिक समाचारों का भरोसेमंद स्रोत

एडइनबॉक्स शिक्षा जगत की खबरों की व्यापक कवरेज को समर्पित एक अग्रणी मंच है। यह आपके लिए एक जरूरी साधन है, जो आपके लक्ष्यों के संधान में आपकी मदद करता है क्योंकि यहां आपके लिए है:

विविधतापूर्ण सामग्री: एडइनबॉक्स दुनियाभर से शिक्षा के तमाम पहलुओं का समावेश करते हुए लेख, साक्षात्कार, वीडियो और पॉडकास्ट सहित विविध प्रकार की सामग्री उपलब्ध कराता है। चाहे आपकी रुचि के विषयों में के-12 शिक्षा, उच्च शिक्षा, एडटेक, या शैक्षिक नीतियां शामिल हों, एडइनबॉक्स पर आपको इससे संबंधित प्रासंगिक और महत्वपूर्ण सामग्री मिलेगी।

समय पर अपडेट: शिक्षा तेज गति से विकास कर रहा क्षेत्र है, जहां की नवीनतम गतिविधियों से अपडेट रहना हर किसी के लिए जरूरी है। और, एडइनबॉक्स वह मंच है जो शिक्षा जगत की हर नवीन जानकारियों को समय पर आप तक पहुंचाकर आपको अपडेट करता है। यह सुनिश्चित करता है कि आप इस क्षेत्र की हर गतिविधि को लेकर जागरूक रहें। चाहे वह ब्रेकिंग न्यूज हो या इसका गहन विश्लेषण, आप खुद को अपडेट रखने के लिए एडइनबॉक्स पर भरोसा कर सकते हैं।

विशेषज्ञ अंतदृष्टि: एडइनबॉक्स का संबंध शिक्षा क्षेत्र के विशेषज्ञों और विचारवान प्रणेताओं से है। ख्यात शिक्षकों और शोधकर्ताओं से लेकर नीति निर्माताओं और उद्योग के पेशेवरों तक, आप इस मंच पर मूल्यवान अंतदृष्टि और दृष्टिकोण से परिचित होंगे जो आपको न सिर्फ जागरूक करता है बल्कि आपके निर्णय लेने की प्रक्रिया को भी धारदार बनाता है।

इंटरएक्टिव समुदाय: एडइनबॉक्स पर आप शिक्षकों, प्रशासकों, छात्रों और अभिभावकों के एक सक्रिय व जीवंत समूह के साथ जुड़ सकते हैं। इस मंच पर आप अपने विचार साझा करें, प्रश्न पूछें, और उन विषयों पर चर्चा में भाग लें जो आपके लिए महत्वपूर्ण हैं। समान विचारधारा वाले व्यक्तियों से जुड़ें और अपने पेशेवर नेटवर्क का भी विस्तार करें।

यूजर्स के अनुकूल इंटरफेस: एडइनबॉक्स की खासियत है, यूजर्स के अनुकूल इंटरफेस। यह आपकी रुचि की सामग्री को नेविगेट करना और खोजना आसान बनाता है। चाहे आप लेख पढ़ना, वीडियो देखना या पॉडकास्ट सुनना पसंद करते हों, आप एडइनबॉक्स पर सब कुछ मूल रूप से एक्सेस कर सकते हैं।

तेजी से बदलते शैक्षिक परिदृश्य में, इस क्षेत्र की हर गतिविधि से परिचित होना निहायत जरूरी है। एडइनबॉक्स एक व्यापक मंच प्रदान करता है जहां आप शिक्षा जगत के नवीनतम समाचारों तक अपनी पहुंच बना सकते हैं, विशेषज्ञों और समूहों के साथ जुड़ सकते हैं और शिक्षा के भविष्य को आकार देने वाली नई पहल को लेकर अपडेट रह सकते हैं। चाहे आप एक शिक्षक हों जो नवीन शिक्षण पद्धतियों की तलाश में हों, नीतियों में बदलाव पर नजर रखने वाले व्यवस्थापक हों, या आपके बच्चों की शिक्षा को लेकर चिंतित माता-पिता, एडइनबॉक्स ने हर किसी की चिंताओं-आवश्यकताओं को समझते हुए इस मंच को तैयार किया है। आज ही एडिनबॉक्स पर जाएं और शिक्षा पर एक वैश्विक विमर्श में शामिल हों!

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