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उत्तर भारत में जारी भारी बारिश और बाढ़ जैसे हालात ने जनजीवन को बुरी तरह प्रभावित किया है। सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए कई राज्यों और जिलों में 3 सितंबर 2025 (बुधवार) को स्कूल बंद रखने का आदेश दिया गया है। हालांकि, कुछ क्षेत्रों में यह आदेश केवल विशेष स्कूलों पर लागू होगा, इसलिए अभिभावकों को सलाह दी गई है कि छुट्टी की जानकारी अपने-अपने विद्यालय से अवश्य लें।

शिमला: भारी बारिश और भूस्खलन के कारण अवकाश
शिमला जिला प्रशासन ने लगातार हो रही बारिश और भूस्खलन की स्थिति को देखते हुए 3 सितंबर को सभी सरकारी और निजी शैक्षणिक संस्थानों को बंद रखने का आदेश जारी किया है। शिक्षकों और प्रशासनिक कर्मचारियों को उपस्थिति से छूट दी गई है, लेकिन सभी कक्षाएं ऑनलाइन माध्यम से कराई जाएंगी।

गाजियाबाद: नर्सरी से 12वीं तक सभी स्कूल बंद
गाजियाबाद में जिलाधिकारी ने आदेश दिया है कि नर्सरी से कक्षा 12 तक के सभी सरकारी और निजी विद्यालय 3 सितंबर को बंद रहेंगे। प्रशासन का कहना है कि यह कदम छात्रों और स्टाफ की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए उठाया गया है।

गौतमबुद्धनगर: सभी बोर्ड के स्कूलों में अवकाश
लगातार बारिश के चलते गौतमबुद्धनगर जनपद के सभी परिषदीय, राजकीय, सहायता प्राप्त और निजी बोर्डों (CBSE, ICSE सहित) के नर्सरी से 12वीं तक के विद्यालयों में अवकाश घोषित किया गया है। आदेश जिलाधिकारी मेधा रूपम के निर्देश पर जारी किए गए।

उत्तराखंड: दो जिलों में छुट्टी
मौसम विभाग के अलर्ट के बाद उत्तराखंड के चंपावत और चमोली जिलों में सभी सरकारी, गैर-सरकारी और निजी विद्यालयों के साथ आंगनबाड़ी केंद्र भी 3 सितंबर को बंद रहेंगे। यह निर्णय एहतियात के तौर पर लिया गया है।

मेरठ: 8वीं तक के स्कूल बंद
मेरठ में जिला विद्यालय निरीक्षक (DIOS) ने घोषणा की है कि परिषदीय, राजकीय, सहायता प्राप्त, सीबीएसई, आईसीएसई और मदरसा बोर्ड के सभी स्कूलों में नर्सरी से 8वीं तक के छात्रों की छुट्टी रहेगी।

मथुरा: दो दिन के लिए सभी स्कूल बंद
लगातार बारिश से यमुना का जलस्तर बढ़ने और कई इलाकों में जलभराव की स्थिति बनने के बाद मथुरा के बेसिक शिक्षा अधिकारी (BSA) ने आदेश जारी किया है कि 3 और 4 सितंबर को कक्षा 12वीं तक के सभी स्कूल बंद रहेंगे।

पंजाब: 3 सितंबर तक सभी स्कूलों में अवकाश
पंजाब के शिक्षा मंत्री हरजोत सिंह बैंस ने जानकारी दी कि मुख्यमंत्री भगवंत मान के निर्देश पर राज्य के सभी सरकारी, सहायता प्राप्त, मान्यता प्राप्त और निजी स्कूल 3 सितंबर तक बंद रहेंगे। पहले छुट्टी 30 अगस्त तक थी, जिसे बढ़ाकर अब 3 सितंबर तक कर दिया गया है।

हरियाणा: झज्जर जिले में स्कूल बंद
झज्जर जिले में भारी बारिश और जलभराव की वजह से जिला आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने आदेश जारी किया है कि 3 सितंबर को जिले के सभी सरकारी और निजी विद्यालयों तथा आंगनबाड़ी केंद्रों को बंद रखा जाएगा।

चंडीगढ़: सभी स्कूलों को अवकाश
चंडीगढ़ प्रशासन ने भी आदेश जारी कर कहा है कि 3 सितंबर को सभी स्कूल बंद रहेंगे। हालांकि, यदि स्कूल प्रबंधन चाहे तो गैर-शैक्षणिक कार्यों के लिए शिक्षकों को बुला सकता है।

 

 

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि शिक्षण सेवा में बने रहने और पदोन्नति पाने के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) उत्तीर्ण करना अनिवार्य है। कोर्ट ने यह भी निर्देश जारी किए कि टीईटी लागू होने से पहले नियुक्त शिक्षकों पर यह प्रावधान किस प्रकार लागू होगा।

जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस मनमोहन की पीठ ने अंजुमन इशात-ए-तालीम ट्रस्ट बनाम महाराष्ट्र राज्य एवं अन्य सहित कई अपीलों पर सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया। राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) ने 29 जुलाई 2011 से टीईटी को अनिवार्य किया था। मुख्य सवाल यह था कि इस तिथि से पहले नियुक्त शिक्षकों को भी सेवा जारी रखने या पदोन्नति के लिए टीईटी पास करना होगा या नहीं—खासकर अल्पसंख्यक संस्थानों के शिक्षकों के मामले में।

सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देश
जिन शिक्षकों की सेवा अवधि पांच वर्ष से कम शेष है, वे बिना टीईटी पास किए सेवा में बने रह सकते हैं। लेकिन पदोन्नति के लिए उन्हें परीक्षा उत्तीर्ण करनी होगी।

जिन शिक्षकों की सेवानिवृत्ति में पांच वर्ष से अधिक समय बचा है, उन्हें दो वर्षों के भीतर टीईटी पास करना अनिवार्य होगा। असफल होने पर उन्हें सेवा छोड़नी होगी या अनिवार्य रूप से सेवानिवृत्त किया जाएगा। ऐसे में उन्हें सेवांत लाभ का भुगतान किया जाएगा।

सेवानिवृत्ति लाभ के नियम
सेवानिवृत्ति लाभ पाने के लिए शिक्षकों को नियमानुसार अर्हक (क्वालीफाइंग) सेवा पूरी करनी होगी। यदि किसी शिक्षक की सेवा अवधि इस मानक से कम है या उसमें कोई कमी है, तो संबंधित विभाग मामले की समीक्षा करेगा।

गौरतलब है कि एनसीटीई ने 2010 में कक्षा 1 से 8 तक के शिक्षकों की नियुक्ति के लिए न्यूनतम शैक्षिक योग्यताएं तय की थीं, जिसके बाद ही टीईटी को लागू किया गया था।

 

महाराष्ट्र में इंजीनियरिंग दाखिले अंतिम चरण में पहुँच गए हैं। महाराष्ट्र स्टेट कॉमन एंट्रेंस टेस्ट (CET) सेल ने चौथे और आख़िरी केंद्रीकृत प्रवेश प्रक्रिया (CAP) राउंड की फाइनल मेरिट लिस्ट जारी कर दी।

इस साल रिकॉर्ड पंजीकरण के बावजूद राज्य भर में लगभग आधी सीटें खाली रह गई हैं। कुल 1.83 लाख सीटें उपलब्ध थीं, जबकि एडमिशन के लिए 2.14 लाख छात्रों ने रजिस्ट्रेशन कराया था। लेकिन तीन CAP राउंड पूरे होने के बाद केवल 95,253 उम्मीदवारों ने ही दाखिला कंफर्म किया। नतीजतन, 88,507 सीटें अब भी खाली हैं। यह आंकड़े स्पष्ट करते हैं कि सीटों की उपलब्धता और छात्रों की असल पसंद में बड़ा अंतर है।

तीसरे राउंड में भी कम कंफर्मेशन
तीसरे CAP राउंड में 1.19 लाख छात्रों ने चॉइस फॉर्म भरे और इनमें से 98,253 को सीटें अलॉट की गईं। फिर भी केवल 30,412 छात्रों ने ही एडमिशन पक्का किया।
अधिकारियों के अनुसार, चौथे राउंड में सीटें पाने वाले छात्रों को 2 से 4 सितंबर के बीच एडमिशन कंफर्म करना होगा। इसके बाद बची हुई सीटें संस्थान-स्तरीय स्पॉट एडमिशन से भरी जाएंगी।

छात्रों की पसंद बदली, टेक्नोलॉजी वाली ब्रांच हिट
डेटा से साफ है कि छात्रों की रुचि अब तेजी से नए टेक्नोलॉजी-ड्रिवन कोर्सेज की तरफ बढ़ रही है।
- आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और डेटा साइंस
- AI और मशीन लर्निंग
- साइबर सिक्योरिटी
- रोबोटिक्स

इन ब्रांचों में ज्यादातर कॉलेजों की सीटें लगभग पूरी तरह भर चुकी हैं। कंप्यूटर इंजीनियरिंग, कंप्यूटर साइंस और इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी में भी अच्छी डिमांड रही है। इन ब्रांचों की 60% से ज्यादा सीटें पहले ही भर चुकी हैं।

पारंपरिक ब्रांच का क्रेज घटा
एक समय इंजीनियरिंग की रीढ़ मानी जाने वाली पारंपरिक ब्रांचों में छात्रों की दिलचस्पी घटती जा रही है।
मैकेनिकल इंजीनियरिंग: 20,873 सीटों में से केवल 9,762 (47%) भरीं।
सिविल इंजीनियरिंग: 15,211 सीटों में से 7,811 (51%) भरीं।
इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग: 11,879 सीटों में से सिर्फ 5,654 (39%) भरीं।

बदलता रोजगार बाजार
ये रुझान रोजगार बाजार की दिशा को दर्शाते हैं। छात्र अब डेटा साइंस, AI और साइबर सिक्योरिटी जैसे मॉडर्न और तेजी से बढ़ते क्षेत्रों में अपना भविष्य देख रहे हैं। वहीं, पारंपरिक इंजीनियरिंग शाखाएँ अब भी ज़रूरी तो हैं, लेकिन नई पीढ़ी के लिए उतनी आकर्षक नहीं रह गईं, क्योंकि वे गारंटीड नौकरी वाले टेक्नोलॉजी सेक्टर्स की तरफ अधिक आकर्षित हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने ऑल इंडिया बार एग्जामिनेशन (AIBE) की फीस को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी है। यह याचिका अधिवक्ता सय्यम गांधी की ओर से दायर की गई थी, जिसमें बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) द्वारा ली जाने वाली परीक्षा फीस को असंवैधानिक बताया गया था।

याचिकाकर्ता की दलील
याचिकाकर्ता ने कहा था कि BCI सामान्य और ओबीसी वर्ग से ₹3,500 तथा एससी/एसटी वर्ग से ₹2,500 के साथ अतिरिक्त शुल्क भी लेता है। उनके अनुसार, यह प्रक्रिया अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 19(1)(g) (पेशे की स्वतंत्रता) का उल्लंघन करती है और एडवोकेट्स एक्ट, 1961 की धारा 24(1)(f) के भी खिलाफ है।

सुप्रीम कोर्ट का मत
जस्टिस जे. बी. पारडीवाला और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने कहा कि परीक्षा आयोजित करने में BCI को भारी खर्च उठाना पड़ता है, इसलिए शुल्क वसूली पूरी तरह उचित है। अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि फीस व्यवस्था संविधान के किसी भी प्रावधान के खिलाफ नहीं है। कोर्ट ने यह याद दिलाया कि पहले भी याचिकाकर्ता को सलाह दी गई थी कि वे सीधे अदालत आने से पहले बार काउंसिल से संपर्क करें।

फीस वापसी की मांग भी खारिज
याचिकाकर्ता ने न केवल भविष्य में शुल्क वसूली पर रोक लगाने, बल्कि पहले से वसूली गई फीस लौटाने की भी मांग की थी। हालांकि, अदालत ने साफ कर दिया कि BCI द्वारा तय की गई फीस कानूनी रूप से वैध है और इसमें कोई राहत नहीं दी जाएगी।

सुप्रीम कोर्ट ने अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों में शिक्षा के अधिकार (RTE) को लेकर बड़ा सवाल उठाया है। अदालत ने 2014 में पांच जजों की संविधान पीठ द्वारा दिए गए उस फैसले पर गंभीर संदेह जताया है, जिसमें कहा गया था कि आरटीई अधिनियम के प्रावधान धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यक संस्थानों पर लागू नहीं होते।

शीर्ष अदालत का कहना है कि यह फैसला “सभी बच्चों को गुणवत्तापूर्ण प्राथमिक शिक्षा उपलब्ध कराने की नींव को कमजोर करता है और इसके दूरगामी परिणाम हो सकते हैं”। इसलिए इस पर पुनर्विचार आवश्यक है।

तमिलनाडु और महाराष्ट्र की याचिका पर सुनवाई
मामला इस बात से जुड़ा है कि अल्पसंख्यक-संचालित स्कूलों में शिक्षक नियुक्ति के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा (TET) अनिवार्य होगी या नहीं। दो जजों की पीठ ने इस मुद्दे को बड़ी संविधान पीठ को भेजने की अनुशंसा की है। बेंच का कहना है कि अल्पसंख्यक संस्थानों को अधिनियम से बाहर रखने से समावेशिता और समान शिक्षा का उद्देश्य प्रभावित होता है।

संविधान के प्रावधानों में टकराव
2014 के फैसले से अनुच्छेद 21ए (शिक्षा का अधिकार) और अनुच्छेद 30(1) (अल्पसंख्यक समुदायों के अपने शैक्षणिक संस्थान चलाने का अधिकार) के बीच विरोधाभास पैदा हो गया। जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस मनमोहन की पीठ ने कहा कि प्रमति एजुकेशनल एंड कल्चरल ट्रस्ट केस में दिया गया फैसला अब पुनर्विचार योग्य है।

बच्चों की समान शिक्षा पर असर
बेंच ने कहा कि अल्पसंख्यक संस्थानों को आरटीई से छूट देना समान और सार्वभौमिक शिक्षा की अवधारणा को कमजोर करता है। इसका खतरा यह है कि जाति, वर्ग, पंथ और समुदाय के बच्चों को एक साथ लाने की बजाय यह व्यवस्था उन्हें और विभाजित कर देगी।

मामला बड़ी पीठ के पास
सुप्रीम कोर्ट ने चार अहम मुद्दों पर बड़ी पीठ से विचार करने की सिफारिश की है, जिनमें प्रमुख यह है कि क्या 2014 के फैसले पर पुनर्विचार कर अल्पसंख्यक स्कूलों को आरटीई के दायरे में लाया जाना चाहिए। अदालत ने यह भी कहा कि वर्तमान में कई अल्पसंख्यक संस्थान इस छूट का दुरुपयोग कर रहे हैं।

क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग 2026 (QS World University Ranking 2026) का ऐलान हो गया है। यह रैंकिंग बताती है कि पढ़ाई और रिसर्च के लिहाज़ से दुनिया के कौन से विश्वविद्यालय सबसे बेहतरीन हैं। हर साल लाखों छात्र आगे की पढ़ाई के लिए इन रैंकिंग्स पर नज़र रखते हैं।

शीर्ष 3 विश्वविद्यालय: MIT फिर नंबर 1
इस साल भी मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT) पहले स्थान पर बना हुआ है। खास बात यह रही कि इंपीरियल कॉलेज लंदन दूसरे स्थान पर पहुंच गया है, जबकि पिछले साल दूसरे स्थान पर रही स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी अब तीसरे नंबर पर आ गई है।

QS रैंकिंग 2026: दुनिया के शीर्ष 10 विश्वविद्यालय
1. मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MIT), अमेरिका
2. इंपीरियल कॉलेज लंदन, यूनाइटेड किंगडम
3. स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी, अमेरिका
4. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी, यूनाइटेड किंगडम
5. हार्वर्ड यूनिवर्सिटी, अमेरिका
6. कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी, यूनाइटेड किंगडम
7. ईटीएच ज्यूरिख (ETH Zurich), स्विट्जरलैंड
8. नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर (NUS), सिंगापुर
9. यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन (UCL), यूनाइटेड किंगडम
10. कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (Caltech), अमेरिका

MIT: लगातार नंबर 1
MIT ने लगातार अपना पहला स्थान बरकरार रखा है। यह यूनिवर्सिटी विज्ञान, इंजीनियरिंग और टेक्नोलॉजी में अपनी रिसर्च के लिए जानी जाती है। दुनिया भर से छात्र और शिक्षक यहां पढ़ाई और रिसर्च के लिए आते हैं।

इंपीरियल कॉलेज लंदन की छलांग
इस साल इंपीरियल कॉलेज लंदन दूसरे स्थान पर आ गया। STEM विषयों (साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथ्स), सस्टेनेबिलिटी और रिसर्च में इसके प्रदर्शन ने इसे यह ऊँचा स्थान दिलाया है।

स्टैनफोर्ड, ऑक्सफोर्ड और हार्वर्ड टॉप-5 में
- स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी तीसरे स्थान पर है, जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, उद्यमिता और ग्लोबल पार्टनरशिप्स के लिए प्रसिद्ध है।
- ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी चौथे स्थान पर है, जिसे दुनिया का सबसे पुराना और प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय माना जाता है।
- हार्वर्ड यूनिवर्सिटी पाँचवें स्थान पर है, जो कानून, बिजनेस और मेडिकल शिक्षा के लिए जानी जाती है।

कैम्ब्रिज, ETH ज्यूरिख और NUS
- कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी छठे स्थान पर रही।
- ETH ज्यूरिख, यूरोप का प्रमुख साइंस और इंजीनियरिंग संस्थान, सातवें नंबर पर है।
- नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर (NUS) आठवें स्थान पर पहुंचकर एशिया की बढ़ती ताकत को दिखाती है।

UCL और Caltech टॉप 10 में
- यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन (UCL) इस साल नौवें स्थान पर है।
- कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (Caltech) 10वें नंबर पर है। छोटा संस्थान होने के बावजूद यह टेक्नोलॉजी और एप्लाइड साइंस में दुनिया का अग्रणी विश्वविद्यालय है।

क्यूएस रैंकिंग 2026 में भारत का प्रदर्शन
इस साल 54 भारतीय विश्वविद्यालय रैंकिंग में शामिल हुए हैं। 2014 में केवल 11 थे, यानी भारत ने बड़ी प्रगति की है और अब अमेरिका, ब्रिटेन और चीन के बाद चौथे स्थान पर है।

IIT दिल्ली – 123वां स्थान (पिछले साल 150 और 2024 में 197 पर था)
IIT बॉम्बे – 129वां स्थान (पिछले साल 118 पर था)
IIT मद्रास – 180वां स्थान (इस बार 47 पायदान की बड़ी छलांग)
IIT खड़गपुर – 215वां स्थान
IISc बेंगलुरु – 219वां स्थान
दिल्ली विश्वविद्यालय – 328वां स्थान
निजी विश्वविद्यालयों में, BITS पिलानी – 668वां स्थान, ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी – 851–900 की श्रेणी

इस बार 8 भारतीय विश्वविद्यालय पहली बार रैंकिंग में शामिल हुए हैं।

किस आधार पर तय होती है QS रैंकिंग?
क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग कई मानकों पर आधारित होती है:
अकादमिक प्रतिष्ठा – पढ़ाई और रिसर्च की गुणवत्ता
नियोक्ता प्रतिष्ठा – नौकरी में ग्रेजुएट्स की डिमांड
फैकल्टी-स्टूडेंट अनुपात – शिक्षक-छात्र संतुलन
शोध और उद्धरण – रिसर्च का वैश्विक प्रभाव
अंतरराष्ट्रीय विविधता – विदेशी छात्र और फैकल्टी की संख्या

इन्हीं आधारों पर तय होता है कि कौन-सा विश्वविद्यालय पढ़ाई और रिसर्च में सबसे आगे है। यह रैंकिंग छात्रों, अभिभावकों और शिक्षकों को सही विकल्प चुनने में मदद करती है।

 

CUET-UG में 100 परसेंटाइल स्कोर करने वाली अंतरा पाण्डेय का इंटरव्यू

एक बेहद खास और प्रेरणादायक शख्सियत— अंतरा पाण्डेय। अमेठी के फुरसतगंज स्थित फुटवियर डिजाइन एंड डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट (FDDI) में कार्यरत नलिन पांडे की पुत्री अंतरा ने कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट (CUET-UG) 2025 में बायोलॉजी विषय में 100 परसेंटाइल स्कोर कर एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है।

देशभर से इस प्रतिष्ठित परीक्षा में 10.7 लाख विद्यार्थियों ने भाग लिया था, जिनमें से केवल 2679 छात्र ही 100 परसेंटाइल प्राप्त कर पाए। इस कठिन प्रतिस्पर्धा में अंतरा की सफलता न केवल उनके परिवार, बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए गर्व की बात है।

उनकी माँ भूमिका पाण्डेय के अनुसार, यह उपलब्धि अंतरा की कड़ी मेहनत, समर्पण और आत्मविश्वास का परिणाम है। अंतरा का सपना एक वैज्ञानिक बनकर देश की सेवा करना है — और आज उनके इस सफर की शुरुआत का हम साक्षात्कार करने जा रहे हैं। उनसे बात की एडइनबॉक्स के संपादक रईस अहमद 'लाली' ने। 

चलिए, जानते हैं अंतरा की इस प्रेरणादायक यात्रा के बारे में, उन्हीं की ज़ुबानी। 


प्रश्न 1. अंतरा, सबसे पहले आपको इस उपलब्धि पर बहुत बधाई! कैसा लग रहा है?
उत्तर: बहुत अच्छा लग रहा है। यह मेरी मेहनत और मेरे माता-पिता के आशीर्वाद का नतीजा है। खुशी है कि मैंने उनके विश्वास को कायम रखा।

प्रश्न 2. CUET-UG की तैयारी आपने कब और कैसे शुरू की थी?
उत्तर: मैंने 12वीं क्लास से ही नींव मजबूत करना शुरू कर दिया था। नियमित पढ़ाई, एनसीईआरटी पर फोकस और मॉक टेस्ट मेरी तैयारी का अहम हिस्सा रहे।

प्रश्न 3. बायोलॉजी में 100 परसेंटाइल लाना बेहद कठिन होता है। आपकी रणनीति क्या रही?
उत्तर: बायोलॉजी मुझे शुरू से पसंद रहा है। मैंने हर चैप्टर को गहराई से पढ़ा, चार्ट्स और डायग्राम्स से याद किया, और NCERT को 3-4 बार दोहराया।

प्रश्न 4. आपने किसी कोचिंग की मदद ली या सेल्फ स्टडी पर भरोसा किया?
उत्तर: मैंने सीमित ऑनलाइन कोचिंग ली, लेकिन मुख्य रूप से सेल्फ स्टडी की। खुद पर भरोसा और अनुशासन सबसे अहम रहा।

प्रश्न 5. पढ़ाई के दौरान समय प्रबंधन और तनाव को कैसे हैंडल किया?
उत्तर: समय का शेड्यूल बनाकर चलती थी। बीच-बीच में ध्यान, योग और परिवार से बात करके मानसिक संतुलन बनाए रखा।

प्रश्न 6. आपके माता-पिता की भूमिका इस यात्रा में कितनी महत्वपूर्ण रही?
उत्तर: मेरी माँ भूमिका पाण्डेय और पापा नलिन पांडे ने मुझे हमेशा मोटिवेट किया। जब भी थकान महसूस होती, उनका साथ मुझे ऊर्जा देता था।

प्रश्न 7. आपने वैज्ञानिक बनने का सपना क्यों चुना?
उत्तर: मुझे हमेशा से शोध में रुचि रही है। मैं बायोलॉजिकल रिसर्च में योगदान देना चाहती हूँ, खासकर देश की स्वास्थ्य और पर्यावरण व्यवस्था के लिए।

प्रश्न 8. भविष्य में आप किस यूनिवर्सिटी या संस्थान को चुनना चाहेंगी?
उत्तर: मेरा लक्ष्य देश के टॉप रिसर्च इंस्टीट्यूट्स, जैसे IISc बेंगलुरु या JNU की लाइफ साइंसेज फैकल्टी में जाना है।

प्रश्न 9. सोशल मीडिया या अन्य distractions से आपने कैसे दूरी बनाई?
उत्तर: मैंने सोशल मीडिया को एक टारगेट के बाद ही देखने का नियम बनाया। पढ़ाई के समय उसे दूर रखा।

प्रश्न 10. अंत में, CUET की तैयारी कर रहे छात्रों को आप क्या संदेश देना चाहेंगी?
उत्तर: एकाग्रता और निरंतरता सबसे बड़ी कुंजी है। हर दिन कुछ नया सीखने की कोशिश करें। और सबसे जरूरी – खुद पर विश्वास रखें।

प्रोफ़ेसर (डॉ.) संजय द्विवेदी मीडिया शिक्षा के क्षेत्र में एक जानी-मानी शख्सियत हैं। वे भारतीय जन संचार संस्थान (IIMC) दिल्ली के महानिदेशक रह चुके हैं। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के प्रभारी कुलपति और कुलसचिव बतौर भी उन्होंने अपनी सेवाएं दी हैं। मीडिया शिक्षक होने के साथ ही प्रो.संजय द्विवेदी ने सक्रिय पत्रकार और दैनिक अखबारों के संपादक के रूप में भी भूमिकाएं निभाई हैं। वह मीडिया विमर्श पत्रिका के कार्यकारी संपादक भी हैं। 35 से ज़्यादा पुस्तकों का लेखन और संपादन भी किया है। सम्प्रति वे माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल के जनसंचार विभागमें प्रोफेसर हैं। मीडिया शिक्षा, मीडिया की मौजूदा स्थिति, नयी शिक्षा नीति जैसे कई अहम् मुद्दों पर एड-इनबॉक्स के लिए संपादक रईस अहमद 'लाली' ने उनसे लम्बी बातचीत की है। प्रस्तुत हैं इस बातचीत के सम्पादित अंश : 

 

- संजय जी, प्रथम तो आपको बधाई कि वापस आप दिल्ली से अपने पुराने कार्यस्थल राजा भोज की नगरी भोपाल में आ गए हैं। यहाँ आकर कैसा लगता है आपको? मेरा ऐसा पूछने का तात्पर्य इन शहरों से इतर मीडिया शिक्षा के माहौल को लेकर इन दोनों जगहों के मिजाज़ और वातावरण को लेकर भी है। 

अपना शहर हमेशा अपना होता है। अपनी जमीन की खुशबू ही अलग होती है। जिस शहर में आपने पढ़ाई की, पत्रकारिता की, जहां पढ़ाया उससे दूर जाने का दिल नहीं होता। किंतु महत्वाकांक्षाएं आपको खींच ले जाती हैं। सो दिल्ली भी चले गए। वैसे भी मैं जलावतन हूं। मेरा कोई वतन नहीं है। लेकिन मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की जमीन मुझे बांधती है। मैंने सब कुछ यहीं पाया। कहने को तो यायावर सी जिंदगी जी है। जिसमें दिल्ली भी जुड़ गया। आप को गिनाऊं तो मैंने अपनी जन्मभूमि (अयोध्या) के बाद 11 बार शहर बदले, जिनमें बस्ती, लखनऊ,वाराणसी, भोपाल, रायपुर, बिलासपुर, मुंबई, दिल्ली सब शामिल हैं। जिनमें दो बार रायपुर आया और तीसरी बार भोपाल में हूं। बशीर बद्र साहब का एक शेर है, जब मेरठ दंगों में उनका घर जला दिया गया, तो उन्होंने कहा था-

मेरा घर जला तो

सारा जहां मेरा घर हो गया।

मैं खुद को खानाबदोश तो नहीं कहता,पर यायावर कहता हूं। अभी भी बैग तैयार है। चल दूंगा। जहां तक वातावरण की बात है, दिल्ली और भोपाल की क्या तुलना। एक राष्ट्रीय राजधानी है,दूसरी राज्य की राजधानी। मिजाज की भी क्या तुलना हम भोपाल के लोग चालाकियां सीख रहे हैं, दिल्ली वाले चालाक ही हैं। सारी नियामतें दिल्ली में बरसती हैं। इसलिए सबका मुंह दिल्ली की तरफ है। लेकिन दिल्ली या भोपाल हिंदुस्तान नहीं हैं। राजधानियां आकर्षित करती हैं , क्योंकि यहां राजपुत्र बसते हैं। हिंदुस्तान बहुत बड़ा है। उसे जानना अभी शेष है।

 

- भोपाल और दिल्ली में पत्रकारिता और जन संचार की पढ़ाई के माहौल में क्या फ़र्क़ महसूस किया आपने?

भारतीय जन संचार संस्थान में जब मैं रहा, वहां डिप्लोमा कोर्स चलते रहे। साल-साल भर के। उनका जोर ट्रेनिंग पर था। देश भर से प्रतिभावान विद्यार्थी वहां आते हैं, सबका पहला चयन यही संस्थान होता है। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय इस मायने में खास है उसने पिछले तीस सालों से स्नातक और स्नातकोत्तर के रेगुलर कोर्स चलाए और बड़ी संख्या में मीडिया वृत्तिज्ञ ( प्रोफेसनल्स) और मीडिया शिक्षक निकाले। अब आईआईएमसी भी विश्वविद्यालय भी बन गया है। सो एक नई उड़ान के लिए वे भी तैयार हैं।

 

- आप देश के दोनों प्रतिष्ठित पत्रकारिता संस्थानों के अहम् पदों को सुशोभित कर चुके हैं। दोनों के बीच क्या अंतर पाया आपने ? दोनों की विशेषताएं आपकी नज़र में ?

दोनों की विशेषताएं हैं। एक तो किसी संस्था को केंद्र सरकार का समर्थन हो और वो दिल्ली में हो तो उसका दर्जा बहुत ऊंचा हो जाता है। मीडिया का केंद्र भी दिल्ली है। आईआईएमसी को उसका लाभ मिला है। वो काफी पुराना संस्थान है, बहुत शानदार एलुमूनाई है , एक समृध्द परंपरा है उसकी । एचवाई शारदा प्रसाद जैसे योग्य लोगों की कल्पना है वह। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय(एमसीयू) एक राज्य विश्वविद्यालय है, जिसे सरकार की ओर से बहुत पोषण नहीं मिला। अपने संसाधनों पर विकसित होकर उसने जो भी यात्रा की, वह बहुत खास है। कंप्यूटर शिक्षा के लोकव्यापीकरण में एमसीयू की एक खास जगह है। देश के अनेक विश्वविद्यालयों में आप जाएंगें तो मीडिया शिक्षकों में एमसीयू के  ही पूर्व छात्र हैं, क्योंकि स्नातकोत्तर कोर्स यहीं चल रहे थे। पीएचडी यहां हो रही थी। सो दोनों की तुलना नहीं हो सकती। योगदान दोनों का बहुत महत्वपूर्ण है।

 

- आप लम्बे समय से मीडिया शिक्षक रहे हैं और सक्रिय पत्रकारिता भी की है आपने। व्यवहारिकता के धरातल पर मौजूदा मीडिया शिक्षा को कैसे देखते हैं ?

एक समय था जब माना जाता है कि पत्रकार पैदा होते हैं और पत्रकारिता पढ़ा कर सिखाई नहीं जा सकती। अब वक्त बदल गया है। जनसंचार का क्षेत्र आज शिक्षा की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण हो गया है। 

मीडिया शिक्षा में सिद्धांत और व्यवहार का बहुत गहरा द्वंद है। ज्ञान-विज्ञान के एक अनुशासन के रूप में इसे अभी भी स्थापित होना शेष है। कुछ लोग ट्रेनिंग पर आमादा हैं तो कुछ किताबी ज्ञान को ही पिला देना चाहते हैं। जबकि दोनों का समन्वय जरूरी है। सिद्धांत भी जरूरी हैं। क्योंकि जहां हमने ज्ञान को छोड़ा है, वहां से आगे लेकर जाना है। शोध, अनुसंधान के बिना नया विचार कैसे आएगा। वहीं मीडिया का व्यवहारिक ज्ञान भी जरूरी है। मीडिया का क्षेत्र अब संचार शिक्षा के नाते बहुत व्यापक है। सो विशेषज्ञता की ओर जाना होगा। आप एक जीवन में सब कुछ नहीं कर सकते। एक काम अच्छे से कर लें, वह बहुत है। इसलिए भ्रम बहुत है। अच्छे शिक्षकों का अभाव है। एआई की चुनौती अलग है। चमकती हुई चीजों ने बहुत से मिथक बनाए और तोड़े हैं। सो चीजें ठहर सी गयी हैं, ऐसा मुझे लगता है।

 

- नयी शिक्षा निति को केंद्र सरकार नए सपनों के नए भारत के अनुरूप प्रचारित कर रही है, जबकि आलोचना करने वाले इसमें तमाम कमियां गिना रहे हैं। एक शिक्षक बतौर आप इन नीतियों को कैसा पाते हैं ?

राष्ट्रीय शिक्षा नीति बहुत शानदार है। जड़ों से जोड़कर मूल्यनिष्ठा पैदा करना, पर्यावरण के प्रति प्रेम, व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाना यही लक्ष्य है। किंतु क्या हम इसके लिए तैयार हैं। सवाल यही है कि अच्छी नीतियां- संसाधनों, शिक्षकों के समर्पण, प्रशासन के समर्थन की भी मांग करती हैं। हमें इसे जमीन पर उतारने के लिए बहुत तैयारी चाहिए। भारत दिल्ली में न बसता है, न चलता है। इसलिए जमीनी हकीकतों पर ध्यान देने की जरूरत है। शिक्षा हमारे ‘तंत्र’ की कितनी बड़ा प्राथमिकता है, इस पर भी सोचिए। सच्चाई यही है कि मध्यवर्ग और निम्न मध्यवर्ग ने भी अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों से हटा लिया है। वे सरकारी संस्थानों से कोई उम्मीद नहीं रखते। इस विश्वास बहाली के लिए सरकारी संस्थानों के शिक्षकों, प्रबंधकों और सरकारी तंत्र को बहुत गंभीर होने की जरूरत है। उत्तर प्रदेश के ताकतवर मुख्यमंत्री प्राथमिक शिक्षकों की विद्यालयों में उपस्थिति को लेकर एक आदेश लाते हैं, शिक्षक उसे वापस करवा कर दम लेते हैं। यही सच्चाई है।

 

- पत्रकारिता में करियर बनाने के लिए क्या आवश्यक शर्त है ?

पत्रकारिता, मीडिया या संचार तीनों क्षेत्रों में बनने वाली नौकरियों की पहली शर्त तो भाषा ही है। हम बोलकर, लिखकर भाषा में ही खुद को व्यक्त करते हैं। इसलिए भाषा पहली जरूरत है। तकनीक बदलती रहती है, सीखी जा सकती है। किंतु भाषा संस्कार से आती है। अभ्यास से आती है। पढ़ना, लिखना, बोलना, सुनना यही भाषा का असल स्कूल और परीक्षा है। भाषा के साथ रहने पर भाषा हममें उतरती है। यही भाषा हमें अटलबिहारी वाजपेयी,अमिताभ बच्चन, नरेंद्र मोदी,आशुतोष राणा या कुमार विश्वास जैसी सफलताएं दिला सकती है। मीडिया में अनेक ऐसे चमकते नाम हैं, जिन्होंने अपनी भाषा से चमत्कृत किया है। अनेक लेखक हैं, जिन्हें हमने रात भर जागकर पढ़ा है। ऐसे विज्ञापन लेखक हैं जिनकी पंक्तियां हमने गुनगुनाई हैं। इसलिए भाषा, तकनीक का ज्ञान और अपने पाठक, दर्शक की समझ हमारी सफलता की गारंटी है। इसके साथ ही पत्रकारिता में समाज की समझ, मिलनसारिता, संवाद की क्षमता बहुत मायने रखती है।

 

- मीडिया शिक्षा में कैसे नवाचारों की आवश्यकता है ?

शिक्षा का काम व्यक्ति को आत्मनिर्भर और मूल्यनिष्ठ मनुष्य बनाना है। जो अपनी विधा को साधकर आगे ले जा सके। मीडिया में भी ऐसे पेशेवरों का इंतजार है जो ‘फार्मूला पत्रकारिता’ से आगे बढ़ें। जो मीडिया को इस देश की आवाज बना सकें। जो एजेंड़ा के बजाए जन-मन के सपनों, आकांक्षाओं को स्वर दे सकें। इसके लिए देश की समझ बहुत जरूरी है। आज के मीडिया का संकट यह है वह नागरबोध के साथ जी रहा है। वह भारत के पांच प्रतिशत लोगों की छवियों को प्रक्षेपित कर रहा है। जबकि कोई भी समाज अपनी लोकचेतना से खास बनता है। देश की बहुत गहरी समझ पैदा करने वाले, संवेदनशील पत्रकारों का निर्माण जरूरी है। मीडिया शिक्षा को संवेदना,सरोकार, राग, भारतबोध से जोड़ने की जरूरत है। पश्चिमी मानकों पर खड़ी मीडिया शिक्षा को भारत की संचार परंपरा से जोड़ने की जरूरत है। जहां संवाद से संकटों के हल खोजे जाते रहे हैं। जहां संवाद व्यापार और व्यवसाय नहीं, एक सामाजिक जिम्मेदारी है।

 

- देश में मीडिया की मौजूदा स्थिति को लेकर आपकी राय क्या है ?

मीडिया शिक्षा का विस्तार बहुत हुआ है। हर केंद्रीय विश्वविद्यालय में मीडिया शिक्षा के विभाग हैं। चार विश्वविद्यालय- भारतीय जन संचार संस्थान(दिल्ली), माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विवि(भोपाल), हरिदेव जोशी पत्रकारिता विवि(जयपुर) और कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विवि(रायपुर) देश में काम कर रहे हैं। इन सबकी उपस्थिति के साथ-साथ निजी विश्वविद्यालय और कालेजों में भी जनसंचार की पढ़ाई हो रही है। यानि विस्तार बहुत हुआ है। अब हमें इसकी गुणवत्ता पर ध्यान देने की जरूरत है। ये जो चार विश्वविद्यालय हैं वे क्या कर रहे हैं। क्या इनका आपस में भी कोई समन्वय है। विविध विभागों में क्या हो रहा है। उनके ज्ञान, शोध और आइडिया एक्सचेंज जैसी व्यवस्थाएं बनानी चाहिए। दुनिया में मीडिया या जनसंचार शिक्षा के जो सार्थक प्रयास चल रहे हैं, उसकी तुलना में हम कहां हैं। बहुत सारी बातें हैं, जिनपर बात होनी चाहिए। अपनी ज्ञान विधा में हमने क्या जोड़ा। हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री ने भी एक समय देश में एक ग्लोबल कम्युनिकेशन यूनिर्वसिटी बनाने की बात की थी। देखिए क्या होता है।

    बावजूद इसके हम एक मीडिया शिक्षक के नाते क्या कर पा रहे हैं। यह सोचना है। वरना तो मशहूर शायर अकबर इलाहाबादी हमारे लिए ही लिख गए हैं-

हम क्या कहें अहबाब क्या कार-ए-नुमायाँ कर गए।

बी-ए हुए नौकर हुए पेंशन मिली फिर मर गए।।

 

- आज की मीडिया और इससे जुड़े लोगों के अपने मिशन से भटक जाने और पूरी तरह  पूंजीपतियों, सत्ताधीशों के हाथों बिक जाने की बात कही जा रही है। इससे आप कितना इत्तेफ़ाक़ रखते हैं?

देखिए मीडिया चलाना साधारण आदमी को बस की बात नहीं है। यह एक बड़ा उद्यम है। जिसमें बहुत पूंजी लगती है। इसलिए कारपोरेट,पूंजीपति या राजनेता चाहे जो हों, इसे पोषित करने के लिए पूंजी चाहिए। बस बात यह है कि मीडिया किसके हाथ में है। इसे बाजार के हवाले कर दिया जाए या यह एक सामाजिक उपक्रम बना रहेगा। इसलिए पूंजी से नफरत न करते हुए इसके सामाजिक, संवेदनशील और जनधर्मी बने रहने के लिए निरंतर लगे रहना है। यह भी मानिए कोई भी मीडिया जनसरोकारों के बिना नहीं चल सकता। प्रामणिकता, विश्वसनीयता उसकी पहली शर्त है। पाठक और दर्शक सब समझते हैं।

 

- आपकी नज़र में इस वक़्त देश में मीडिया शिक्षा की कैसी स्थिति है ? क्या यह बेहतर पत्रकार बनाने और मीडिया को सकारात्मक दिशा देने का काम कर पा रही है ?

मैं मीडिया शिक्षा क्षेत्र से 2009 से जुड़ा हूं। मेरे कहने का कोई अर्थ नहीं है। लोग क्या सोचते हैं, यह बड़ी बात है। मुझे दुख है कि मीडिया शिक्षा में अब बहुत अच्छे और कमिटेड विद्यार्थी नहीं आ रहे हैं। अजीब सी हवा है। भाषा और सरोकारों के सवाल भी अब बेमानी लगने लगे हैं। सबको जल्दी ज्यादा पाने और छा जाने की ललक है। ऐसे में स्थितियां बहुत सुखद नहीं हैं। पर भरोसा तो करना होगा। इन्हीं में से कुछ भागीरथ निकलेंगें जो हमारे मीडिया को वर्तमान स्थितियों से निकालेगें। ऐसे लोग तैयार करने होंगें, जो बहुत जल्दी में न हों। जो ठहरकर पढ़ने और सीखने के लिए तैयार हों। वही लोग बदलाव लाएंगें।

 

- देश में आज मीडिया शिक्षा के सामने प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

सबसे बड़ी चुनौती है ऐसे विद्यार्थियों का इंतजार जिनकी प्राथमिकता मीडिया में काम करना हो। सिर्फ इसलिए नहीं कि यह ग्लैमर या रोजगार दे पाए। बल्कि देश के लोगों को संबल, साहस और आत्मविश्वास दे सके। संचार के माध्यम से क्या नहीं हो सकता। इसकी ताकत को मीडिया शिक्षकों और विद्यार्थियों को पहचानना होगा। क्या हम इसके लिए तैयार हैं,यह एक बड़ा सवाल है। मीडिया शिक्षा के माध्यम से हम ऐसे क्म्युनिकेटर्स तैयार कर सकते हैं जिनके माध्यम से समाज के संकट हल हो सकते हैं। यह साधारण शिक्षा नहीं है। यह असाधारण है। भाषा,संवाद,सरोकार और संवेदनशीलता से मिलकर हम जो भी रचेगें, उससे ही नया भारत बनेगा। इसके साथ ही मीडिया एजूकेशन कौंसिल का गठन भारत सरकार करे ताकि अन्य प्रोफेशनल कोर्सेज की तरह इसका भी नियमन हो सके। गली-गली खुल रहे मीडिया कालेजों पर लगाम लगे। एक हफ्ते में पत्रकार बनाने की दुकानों पर ताला डाला जा सके। मीडिया के घरानों में तेजी से मोटी फीस लेकर मीडिया स्कूल खोलने की ललक बढ़ी है, इस पर नियंत्रण हो सकेगा। गुणवत्ता विहीन किसी शिक्षा का कोई मोल नहीं, अफसोस मीडिया शिक्षा के विस्तार ने इसे बहुत नीचे गिरा दिया है। दरअसल भारत में मीडिया शिक्षा मोटे तौर पर छह स्तरों पर होती है। सरकारी विश्वविद्यालयों या कॉलेजों में, दूसरे, विश्वविद्यालयों से संबंद्ध संस्थानों में, तीसरे, भारत सरकार के स्वायत्तता प्राप्त संस्थानों में, चौथे, पूरी तरह से प्राइवेट संस्थान, पांचवे डीम्ड विश्वविद्यालय और छठे, किसी निजी चैनल या समाचार पत्र के खोले गए अपने मीडिया संस्थान। इस पूरी प्रक्रिया में हमारे सामने जो एक सबसे बड़ी समस्या है, वो है किताबें। हमारे देश में मीडिया के विद्यार्थी विदेशी पुस्तकों पर ज्यादा निर्भर हैं। लेकिन अगर हम देखें तो भारत और अमेरिका के मीडिया उद्योगों की संरचना और कामकाज के तरीके में बहुत अंतर है। इसलिए मीडिया के शिक्षकों की ये जिम्मेदारी है, कि वे भारत की परिस्थितियों के हिसाब से किताबें लिखें।

 

- भारत में मीडिया शिक्षा का क्या भविष्य देखते हैं आप ?

मीडिया शिक्षण में एक स्पर्धा चल रही है। इसलिए मीडिया शिक्षकों को ये तय करना होगा कि उनका लक्ष्य स्पर्धा में शामिल होने का है, या फिर पत्रकारिता शिक्षण का बेहतर माहौल बनाने का है। आज के समय में पत्रकारिता बहुत बदल गई है, इसलिए पत्रकारिता शिक्षा में भी बदलाव आवश्यक है। आज लोग जैसे डॉक्टर से अपेक्षा करते हैं, वैसे पत्रकार से भी सही खबरों की अपेक्षा करते हैं। अब हमें मीडिया शिक्षण में ऐसे पाठ्यक्रम तैयार करने होंगे, जिनमें विषयवस्तु के साथ साथ नई तकनीक का भी समावेश हो। न्यू मीडिया आज न्यू नॉर्मल है। हम सब जानते हैं कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के कारण लाखों नौकरियां गई हैं। इसलिए हमें मीडिया शिक्षा के अलग अलग पहलुओं पर ध्यान देना होगा और बाजार के हिसाब से प्रोफेशनल तैयार करने होंगे। नई शिक्षा नीति में क्षेत्रीय भाषाओं पर ध्यान देने की बात कही गई है। जनसंचार शिक्षा के क्षेत्र में भी हमें इस पर ध्यान देना होगा। मीडिया शिक्षण संस्थानों के लिए आज एक बड़ी आवश्यकता है क्षेत्रीय भाषाओं में पाठ्यक्रम तैयार करना। भाषा वो ही जीवित रहती है, जिससे आप जीविकोपार्जन कर पाएं और भारत में एक सोची समझी साजिश के तहत अंग्रेजी को जीविकोपार्जन की भाषा बनाया जा रहा है। ये उस वक्त में हो रहा है, जब पत्रकारिता अंग्रेजी बोलने वाले बड़े शहरों से हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाओं के शहरों और गांवों की ओर मुड़ रही है। आज अंग्रेजी के समाचार चैनल भी हिंदी में डिबेट करते हैं। सीबीएससी बोर्ड को देखिए जहां पाठ्यक्रम में मीडिया को एक विषय के रूप में पढ़ाया जा रहा है। क्या हम अन्य राज्यों के पाठ्यक्रमों में भी इस तरह की व्यवस्था कर सकते हैं, जिससे मीडिया शिक्षण को एक नई दिशा मिल सके।

 

- तेजी से बदलते मीडिया परिदृश्य के सापेक्ष मीडिया शिक्षा संस्थान स्वयं को कैसे ढाल सकते हैं यानी उन्हें उसके अनुकूल बनने के लिए क्या करना चाहिए ?

 मीडिया शिक्षण संस्थानों को अपने पाठ्यक्रमों में इस तरह के बदलाव करने चाहिए, कि वे न्यू मीडिया के लिए छात्रों को तैयार कर सकें। आज तकनीक किसी भी पाठ्यक्रम का महत्वपूर्ण हिस्सा है। मीडिया में दो तरह के प्रारूप होते हैं। एक है पारंपरिक मीडिया जैसे अखबार और पत्रिकाएं और और दूसरा है डिजिटल मीडिया। अगर हम वर्तमान संदर्भ में बात करें तो सबसे अच्छी बात ये है कि आज ये दोनों प्रारूप मिलकर चलते हैं। आज पारंपरिक मीडिया स्वयं को डिजिटल मीडिया में परिवर्तित कर रहा है। जरूरी है कि मीडिया शिक्षण संस्थान अपने छात्रों को 'डिजिटल ट्रांसफॉर्म' के लिए पहले से तैयार करें। देश में प्रादेशिक भाषा यानी भारतीय भाषाओं के बाजार का महत्व भी लगातार बढ़ रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार अंग्रेजी भाषा के उपभोक्ताओं का डिजिटल की तरफ मुड़ना लगभग पूरा हो चुका है। ऐसा माना जा रहा है कि वर्ष 2030 तक भारतीय भाषाओं के बाजार में उपयोगकर्ताओं की संख्या 500 मिलियन तक पहुंच जाएगी और लोग इंटरनेट का इस्तेमाल स्थानीय भाषा में करेंगे। जनसंचार की शिक्षा देने वाले संस्थान अपने आपको इन चुनौतियों के मद्देनजर तैयार करें, यह एक बड़ी जिम्मेदारी है।

 

- वे कौन से कदम हो सकते हैं जो मीडिया उद्योग की अपेक्षाओं और मीडिया शिक्षा संस्थानों द्वारा उन्हें उपलब्ध कराये जाने वाले कौशल के बीच के अंतर को पाट सकते हैं?

 

 भारत में जब भी मीडिया शिक्षा की बात होती है, तो प्रोफेसर केईपन का नाम हमेशा याद किया जाता है। प्रोफेसर ईपन भारत में पत्रकारिता शिक्षा के तंत्र में व्यावहारिक प्रशिक्षण के पक्षधर थे। प्रोफेसर ईपन का मानना था कि मीडिया के शिक्षकों के पास पत्रकारिता की औपचारिक शिक्षा के साथ साथ मीडिया में काम करने का प्रत्यक्ष अनुभव भी होना चाहिए, तभी वे प्रभावी ढंग से बच्चों को पढ़ा पाएंगे। आज देश के अधिकांश पत्रकारिता एवं जनसंचार शिक्षण संस्थान, मीडिया शिक्षक के तौर पर ऐसे लोगों को प्राथमिकता दे रहे हैं, जिन्हें अकादमिक के साथ साथ पत्रकारिता का भी अनुभव हो। ताकि ये शिक्षक ऐसा शैक्षणिक माहौल तैयार कर सकें, ऐसा शैक्षिक पाठ्यक्रम तैयार कर सकें, जिसका उपयोग विद्यार्थी आगे चलकर अपने कार्यक्षेत्र में भी कर पाएं।  पत्रकारिता के प्रशिक्षण के समर्थन में जो तर्क दिए जाते हैं, उनमें से एक दमदार तर्क यह है कि यदि डॉक्टरी करने के लिए कम से कम एम.बी.बी.एस. होना जरूरी है, वकालत की डिग्री लेने के बाद ही वकील बना जा सकता है तो पत्रकारिता जैसे महत्वपूर्ण पेशे को किसी के लिए भी खुला कैसे छोड़ा जा सकता है? बहुत बेहतर हो मीडिया संस्थान अपने अध्यापकों को भी मीडिया संस्थानों में अनुभव के लिए भेजें। इससे मीडिया की जरूरतों और न्यूज रूम के वातावरण का अनुभव साक्षात हो सकेगा। विश्वविद्यालयों को आखिरी सेमेस्टर या किसी एक सेमेस्टर में न्यूज रूम जैसे ही पढ़ाई पर फोकस करना चाहिए। अनेक विश्वविद्यालय ऐसे कर सकने में सक्षम हैं कि वे न्यूज रूम क्रियेट कर सकें।

 

- अपने कार्यकाल के दौरान मीडिया शिक्षा और आईआईएमसी की प्रगति के मद्देनज़र आपने क्या महत्वपूर्ण कदम उठाये, संक्षेप में उनका ज़िक्र करें।

मुझे लगता है कि अपने काम गिनाना आपको छोटा बनाता है। मैंने जो किया उसकी जिक्र करना ठीक नहीं। जो किया उससे संतुष्ठ हूं। मूल्यांकन लोगों पर ही छोड़िए।

 

 

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) यानी कृत्रिम बुद्धिमत्ता विज्ञान का एक नया वरदान है। कंप्यूटर के क्षेत्र में नई तकनीक। जॉन मैकार्थी को इस आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का जनक माना जाता है। एक ऐसी विधा जिसमें मशीन से मशीन की बातें होती है। एक कंप्यूटर दूसरे कंप्यूटर से बात करता है। यह विज्ञान का अद्भुत चमत्कार है। मानव जीवन में तो इसका दखल बढ़ा ही है, करियर के लिहाज से भी इसका दायरा और और विस्तृत होता जा रहा है। इसमें मैकेनिकल इंजीनियरिंग, कंप्यूटर साइंस इंजीनियरिंग, अप्लाइड आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के साथ-साथ रोबोटिक ऑटोमेशन इंजीनियरिंग में डिप्लोमा, बैचलर डिग्री, मास्टर डिग्री और रिसर्च आदि में करियर विकल्प हैं। 

अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक और फिनलैंड के सवोनिया यूनिवर्सिटी ऑफ एप्लाइड साइंस के प्रोफेसर डॉ राजीव कंठ से इस विषय पर हमने विस्तृत चर्चा की। उनसे चर्चा के क्रम में पता चलता है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आने वाले समय में हमारे जीवन में कितना महत्वपूर्ण हो जाएगा। बातचीत के कुछ अंश :

प्र. - सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नया क्या है?

उ. - सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आज हर दिन कुछ ना कुछ नया हो रहा है। यही वजह है कि इस क्षेत्र को पोटेंशियल डेवलपमेंट एरिया के रूप में देखा जा रहा है। अब तक मशीन से आदमी की बात होती थी। अब मशीन से मशीन की बात होती है। यह सबसे नई तकनीक है।


प्र. - इस क्षेत्र में सबसे बड़ी चुनौती क्या है?

उ. - इस क्षेत्र में जितनी नई चीजें आ रही हैं या कह सकते हैं कि जितनी नई चीजों पर शोध हो रहा है, उन चीजों का समुचित विकास करना सबसे बड़ी चुनौती है।


प्र. - इस क्षेत्र के कई आयाम हैं जैसे इंटरनेट, ई-बैंकिंग, ई-कॉमर्स, ईमेल आदि इन सब में सबसे बड़ी चुनौती किस क्षेत्र में है?

उ. - चुनौती तो सभी क्षेत्र में है। किसी भी चुनौती को कम नहीं कहा जा सकता लेकिन बैंकिंग क्षेत्र में ज्यादा कह सकते हैं। क्योंकि लोग मेहनत की कमाई बैंक में रखते हैं और हैकर्स सेकंडों में उसे उड़ा लेते हैं। इसलिए बैंकिंग के क्षेत्र में सबसे बड़ी चुनौती है।


प्र. - हैकरों से छुटकारा पाने के लिए क्या सुझाव देना चाहेंगे?

उ. - हैकरों से छुटकारा पाने के लिए सुझाव है कि पासवर्ड किसी से शेयर ना करें। पासवर्ड 3-4 लेयर का बनाएं और एक निश्चित समय अंतराल के बाद पासवर्ड को बदलते रहें। ये कुछ उपाय हैं जिससे हैकरों से बचा जा सकता है।


प्र. - युवाओं को करियर के लिए क्या सुझाव देना चाहेंगे?

उ. - करियर के लिहाज से यह क्षेत्र काफी अच्छा है। आज हर युवा जो इस फील्ड में करियर बनाना चाहता है उसकी पहली चॉइस कंप्यूटर साइंस होता है। जब वह कंप्यूटर साइंस से स्नातक करता है, उसके बाद सूचना प्रौद्योगिकी आथवा कृत्रिम बुद्धिमता या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मैं अपना कैरियर बनाना चाहता है। रोबोट बनाने की ख्वाहिश आज हर सूचना प्रौद्योगिकी पढ़ने वाले छात्र की होती है।

 

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत की कुल आबादी का एक तिहाई से अधिक हिस्सा 15 से 25 वर्ष की आयु वर्ग के युवाओं का है। आशाओं और आकांक्षाओं से आच्छादित जीवन का यही वह दौर होता है जब एक युवा अपने करियर को लेकर गंभीर होता है। इसी के दृष्टिगत वह अपनी एक अलहदा राह का निर्धारण करता है, सीखने के लिए तदनुरूप विषय का चयन करता है और भविष्य में उसे जिन कार्यों को सम्पादित करना है, उसके मद्देनज़र निर्णय के पड़ाव पर पहुँचने का प्रयास करता है। और यही वह पूरी प्रक्रिया है जो उसे आत्मनिर्भर बनाती है। लिहाजा, जीवन के इस कालखंड में आवश्यक है कि कोई उसका हाथ थामे, उसका ज़रूरी मार्गदर्शन करे।

हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि इंजीनियरिंग, मेडिकल और मैनेजमेंट अब भी करियर-निर्माण के लिहाज से पसंदीदा क्षेत्र बने हुए हैं, जबकि सीखने, काम करने और अपने पेशेवर जीवन के निर्माण के लिए 99 अन्य विशिष्ट क्षेत्र भी हैं। इनमें डिजाइन, मीडिया, फोरेंसिक विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, अलाइड हेल्थकेयर, कृषि आदि शामिल हैं। दुर्भाग्यवश, करियर के इन क्षेत्रों को लेकर बहुत कम चर्चा होती है। कोई इस पर बात नहीं करता कि इन डोमेन में नवीनतम क्या है।

हम यह भी न भूलें कि लगभग 4 ट्रिलियन डॉलर की भारतीय अर्थव्यवस्था में भारतीय मीडिया की हिस्सेदारी करीब 1% की है। प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष  2 मिलियन से अधिक लोग किसी न किसी रूप में इससे सम्बद्ध हैं। मीडिया एक ऐसा क्षेत्र भी है, जो लोगों के दिलो-दिमाग पर गहरा प्रभाव छोड़ता है। लेकिन शायद ही कोई ऐसा समर्पित मीडिया मंच है जिसका मीडिया-शिक्षा और लर्निंग की दिशा में ध्यान केंद्रित हो। सार्वजनिक जीवन में शायद मीडिया-शिक्षा अभी भी सबसे उपेक्षित क्षेत्र है।

हमें नहीं भूलना चाहिए कि शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा, ये दो ऐसे क्षेत्र हैं जो वास्तव में बड़े देशों के बीच सबसे बड़ी युवा आबादी वाले देश में मानव संसाधन के लिए उत्तरदायी हैं। दुर्भाग्य कि इन क्षेत्रों पर शासन और देश की राजनीति का ध्यान सबसे कम केंद्रित होता है। आने वाले समय में इन पर सार्वजनिक तौर पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।

न भूलें कि भारत की उच्च शिक्षा का आज वृहद् दायरा है, जहां बारहवीं कक्षा से ऊपर के सौ मिलियन से अधिक शिक्षार्थी हैं, लेकिन इनमें अधिकांश की स्तर सामान्य और गुणवत्ता औसत है। अपवादस्वरूप,  कुछ संस्थानों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराई जा रही है। ऐसे में यदि हम चाहते हैं कि हमारे पास मौजूद जनसांख्यिकीय लाभ का सकारात्मक परिणाम हमें प्राप्त हो तो गुणवत्ता के दायरे का तेजी से विस्तार अतिआवश्यक है।

और, यही वजह है कि उपरोक्त सन्दर्भों पर ध्यान केंद्रित करने और सर्वप्रथम भारत और तदुपरांत एशिया की उच्च शिक्षा (विशेष क्षेत्रों में ख़ास तौर पर ) में प्रगति को गति प्रदान करने के लिए, एक मई को श्रमिक दिवस पर एडइनबॉक्स हिंदी के साथ हम आपके समक्ष अपनी उपस्थिति दर्ज कर रहे हैं। शिक्षा के सामर्थ्य और श्रम की संघर्षशीलता को नमन करते हुए यह हमारी तरफ से इसका सम्मान है, एक उपहार।

साथ ही,  इस मंच से हमारा प्रयास होगा बेहतर गुणवत्ता वाले उच्च शिक्षा संस्थानों का समर्थन करना और स्कूलों से निकलने वाले नौजवानों को ज्ञान, जानकारी और अंतर्दृष्टि के साथ उन्हें उनके सपनों के करियर और संस्थानों में प्रवेश की राह आसान बनाने में सहायता करना। इन क्षेत्रों के महारथियों की उपलब्धियों को भी सम्बंधित काउन्सिल के माध्यम से, संस्थानों और मार्गदर्शकों को सम्मानित कर उनकी महती भूमिका को लोगों के समक्ष रखने और उजागर करने का हमारा प्रयास होगा। हमारा इरादा हर क्षेत्र या डोमेन का एक इकोसिस्टम निर्मित करना है, धरातल पर भी और ऑनलाइन भी। 

तो आइये, एडइनबॉक्स के साथ हम उच्च शिक्षा जगत की एक प्रभावी यात्रा पर अग्रसर हों। 

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प्रो उज्ज्वल अनु चौधरी
वाइस प्रेजिडेंट, वाशिंगटन यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी 
एडिटर, एडइनबॉक्स (Edinbox.com) 
पूर्व सलाहकार और प्रोफेसर, डैफोडिल इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी, ढाका
(इससे पूर्व एडमास यूनिवर्सिटी से प्रो वीसी के रूप में,
सिम्बायोसिस व एमिटी यूनिवर्सिटी, पर्ल अकादमी और डब्ल्यूडब्ल्यूआई के डीन,
और टीओआई, ज़ी, बिजनेस इंडिया ग्रुप से जुड़ाव के साथ भारत सरकार और डब्ल्यूएचओ/टीएनएफ के मीडिया सलाहकार रहे हैं।)

अगर आप भारत में फॉरेंसिक साइंस में करियर बनाना चाहते हैं, तो ऑल इंडिया फॉरेंसिक साइंस एंट्रेंस टेस्ट (AIFSET) आपके लिए एक बेहतरीन मौका है। यह परीक्षा आपको देश के टॉप विश्वविद्यालयों में B.Sc. और M.Sc. फॉरेंसिक साइंस प्रोग्राम में प्रवेश दिला सकती है। अगर आप AIFSET 2026 की तैयारी कर रहे हैं, तो यहां आपके लिए इसकी पूरी जानकारी है:

AIFSET क्या है?
AIFSET (ऑल इंडिया फॉरेंसिक साइंस एंट्रेंस टेस्ट) एक राष्ट्रीय स्तर की ऑनलाइन परीक्षा है, जो उन छात्रों के लिए है जो भारत के विभिन्न भागीदार विश्वविद्यालयों में B.Sc. या M.Sc. फॉरेंसिक साइंस प्रोग्राम में प्रवेश लेना चाहते हैं।
यह परीक्षा पूरी तरह ऑनलाइन मोड में होती है — आप इसे अपने मोबाइल, लैपटॉप या डेस्कटॉप से घर बैठे दे सकते हैं।

परीक्षा की अवधि: 60 मिनट
कुल प्रश्न: 100 बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs)
नेगेटिव मार्किंग नहीं है।

AIFSET 2025: मुख्य तथ्य
पात्रता:
B.Sc. के लिए: 12वीं (विज्ञान विषयों से) पास या appearing छात्र।
M.Sc. के लिए: संबंधित विषय में स्नातक डिग्री।

परीक्षा तिथि:
यह परीक्षा कई चरणों में होती है — सटीक तिथियां आधिकारिक वेबसाइट (aifset.com) से प्राप्त करें।

परीक्षा प्रारूप:
- 100 प्रश्न, प्रत्येक 1 अंक का
- 60 मिनट का समय
- ऑनलाइन मोड
- केवल अंग्रेज़ी भाषा में
- कोई नेगेटिव मार्किंग नहीं

आवेदन शुल्क: ₹2,000 (गैर-वापसी योग्य), केवल ऑनलाइन भुगतान

AIFSET का सिलेबस क्या है?

B.Sc. फॉरेंसिक साइंस के लिए:
बायोलॉजी: जीवों की विविधता, पादप/प्राणि जगत, कोशिका संरचना
केमिस्ट्री: परमाणु संरचना, रासायनिक बंधन, पदार्थ की अवस्थाएँ
फिजिक्स: इलेक्ट्रोस्टैटिक्स, चुंबकत्व, गति, ऊष्मागतिकी
मैथ्स: संबंध एवं फलन, त्रिकोणमिति (मूल स्तर)
फॉरेंसिक साइंस: परिभाषा, इतिहास, अपराध के प्रकार, पुलिस संगठन, क्राइम सीन, बैलिस्टिक्स, संदिग्ध दस्तावेज
साइकोमेट्रिक और एप्टीट्यूड: रीजनिंग, सामान्य अंग्रेज़ी, गणितीय क्षमता, याददाश्त और अधिगम

M.Sc. फॉरेंसिक साइंस के लिए:
इस स्तर पर सिलेबस और भी गहराई में होता है — सभी फॉरेंसिक शाखाओं, पुलिस विज्ञान, फॉरेंसिक बायोलॉजी/टॉक्सिकोलॉजी, अपराध स्थल प्रबंधन और उन्नत उपकरणों का अध्ययन शामिल होता है।

सटीक और अद्यतन सिलेबस के लिए आधिकारिक वेबसाइट से PDF डाउनलोड करना न भूलें।

AIFSET की तैयारी कैसे करें?
● सिलेबस और परीक्षा पैटर्न को अच्छी तरह समझें
सिलेबस को छोटे-छोटे हिस्सों में बांटकर रोज़ के लक्ष्य तय करें।
● विज्ञान के मूल कॉन्सेप्ट्स मज़बूत करें
- NCERT (कक्षा 11वीं–12वीं) की बायोलॉजी, फिजिक्स, केमिस्ट्री और आसान गणित की दोबारा पढ़ाई करें।
- जैनेटिक्स, सेल संरचना, रासायनिक अभिक्रियाएं, और आपराधिक कानून की मूल बातें ज़रूर समझें।
● फॉरेंसिक साइंस पर विशेष ध्यान दें
- फॉरेंसिक साइंस की शुरुआती किताबें या विश्वसनीय ऑनलाइन कंटेंट पढ़ें।
जैसे – क्राइम सीन जांच, टॉक्सिकोलॉजी के मूल सिद्धांत, बैलिस्टिक प्रक्रिया आदि।
● मॉक टेस्ट और पिछले वर्षों के पेपर हल करें
- आधिकारिक वेबसाइट या शैक्षणिक पोर्टलों पर 60 मिनट के मॉक टेस्ट दें।
- सैंपल पेपर आपकी गति और सटीकता बढ़ाते हैं, और कमज़ोर विषयों की पहचान में मदद करते हैं।
● स्मार्ट तरीके से रिवीजन करें
- महत्वपूर्ण टॉपिक की शॉर्ट नोट्स, फ्लैश कार्ड और फार्मूला लिस्ट बनाएं।
- DNA प्रोफाइलिंग, क्राइम सीन, टॉक्सिकोलॉजी आदि से जुड़े प्रश्नों पर विशेष ध्यान दें।
● नेगेटिव मार्किंग नहीं है — हर सवाल ज़रूर करें
- शंका हो तो समझदारी से अनुमान लगाकर उत्तर दें, खाली न छोड़ें।
● परीक्षा के दिन तैयार रहें
- इंटरनेट कनेक्शन और डिवाइस की पहले से जांच करें।
- समय से पहले लॉगिन करें, एडमिट कार्ड और रफ वर्क सामग्री साथ रखें।
- रात में अच्छी नींद लें, हल्का खाना खाएं और खुद पर विश्वास रखें।

जल्दी में चेकलिस्ट
- आधिकारिक वेबसाइट से सिलेबस डाउनलोड करें
- टाइमटेबल बनाएं और कमज़ोर विषयों को ज़्यादा समय दें
- NCERT और फॉरेंसिक बेसिक्स की दोहराई करें
- कम से कम 5 मॉक टेस्ट हल करें
- लॉगिन डिटेल्स और तकनीकी सेटअप सुनिश्चित करें
- आत्मविश्वास बनाए रखें और हर प्रश्न का उत्तर दें

प्रो टिप:
- AIFSET की वेबसाइट पर नियमित विज़िट करें — नोटिफिकेशन, गाइडलाइंस और मॉक टेस्ट के लिए।
- सफल सीनियर्स या स्टूडेंट फोरम्स से सलाह लें और परीक्षा से जुड़ी अपडेट्स पर नज़र रखें।

तो देर किस बात की? सही रणनीति के साथ AIFSET 2026 की तैयारी शुरू करें और इस परीक्षा में सफलता पाने का पूरा मौका अपने हाथों में लें!

डिज़ाइन क्षेत्र में करियर बनाने की योजना बना रहे हर छात्र के सामने सबसे अहम निर्णय होता है — सही संस्थान का चुनाव। भारत में डिज़ाइन इंडस्ट्री तेजी से विकसित हो रही है और फैशन, प्रोडक्ट, इंटीरियर, ग्राफिक और एनीमेशन जैसे क्षेत्रों में कुशल पेशेवरों की भारी मांग है। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि कई प्राइवेट डिज़ाइन संस्थान आज न सिर्फ बेहतर पाठ्यक्रम प्रदान कर रहे हैं, बल्कि वे उद्योग की जरूरतों और भविष्य की मांगों के अनुरूप शिक्षा दे रहे हैं।

प्राइवेट डिज़ाइन शिक्षा में विकास और विविधता
भारत में वर्तमान में 1,200 से अधिक निजी डिज़ाइन कॉलेज हैं, जो डिप्लोमा से लेकर पीएचडी तक के कोर्स प्रदान करते हैं। इन संस्थानों में फैशन, इंटीरियर, विजुअल कम्युनिकेशन, प्रोडक्ट डिज़ाइन, UX/UI जैसे तमाम विशेषज्ञता वाले कोर्स उपलब्ध हैं।

शीर्ष संस्थानों में शामिल हैं:
- यूनाइटेडवर्ल्ड इंस्टिट्यूट ऑफ डिज़ाइन (UID), कर्णावती यूनिवर्सिटी
- वॉक्ससेन स्कूल ऑफ आर्ट्स एंड डिज़ाइन्स
- पर्ल एकेडमी
- एमिटी स्कूल ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी
- एपीजे इंस्टिट्यूट ऑफ डिज़ाइन 
- अवंतिका यूनिवर्सिटी

इन कॉलेजों को उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा, इंडस्ट्री से जुड़ाव और आधुनिक इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए जाना जाता है।

प्रवेश प्रक्रिया, योग्यता और लचीलापन
ज्यादातर प्राइवेट डिज़ाइन कॉलेजों में प्रवेश प्रक्रिया अपेक्षाकृत सरल होती है। सरकारी संस्थानों के लिए NID DAT, AIDAT, UCEED, CEED जैसे कॉम्पिटिटिव एग्जाम जरूरी होते हैं, लेकिन कई निजी संस्थान पोर्टफोलियो के आधार पर भी प्रवेश देते हैं। इससे ज्यादा संख्या में रचनात्मक छात्र इन कॉलेजों में प्रवेश ले पाते हैं।

12वीं के बाद छात्र BDes, डिप्लोमा, शॉर्ट टर्म सर्टिफिकेशन और मास्टर से लेकर डॉक्टरेट स्तर तक के कोर्स कर सकते हैं। इस लचीलापन का लाभ उन्हें अपने पसंदीदा क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल करने में होता है।

उद्योग से जुड़ाव और कोर्स की गुणवत्ता
शीर्ष प्राइवेट डिज़ाइन कॉलेजों का उद्योग से गहरा तालमेल होता है। छात्र इंटर्नशिप, लाइव प्रोजेक्ट्स और अनुभवी डिज़ाइनरों की गेस्ट लेक्चर्स से सीखते हैं।

उदाहरण के तौर पर:
पर्ल एकेडमी इंडस्ट्री-स्पेसिफिक ट्रेनिंग देती है और ₹17 लाख से ₹20.2 लाख तक का प्लेसमेंट पैकेज उपलब्ध कराती है।

Strate School of Design प्रोडक्ट, ट्रांसपोर्टेशन और इंटरैक्शन डिज़ाइन जैसे खास विषयों में विशेषज्ञता प्रदान करता है और ₹10 लाख तक का औसत प्लेसमेंट देता है।

अंतरराष्ट्रीय अवसर, शिक्षा गुणवत्ता और संसाधन
अधिकांश प्राइवेट डिज़ाइन कॉलेजों में आधुनिक कैंपस, लेटेस्ट लैब्स, डिजिटल स्टूडियो और इंटरनेशनल टाई-अप्स होते हैं।
जैसे: World University of Design, Pearl Academy, Srishti Manipal

ये संस्थान विश्वस्तरीय डिज़ाइन स्कूलों से जुड़े हुए हैं, जिससे छात्रों को वैश्विक स्तर पर सीखने और करियर बनाने के बेहतर अवसर मिलते हैं।

शुल्क, स्कॉलरशिप और वित्तीय सहायता
प्राइवेट संस्थानों की फीस अपेक्षाकृत अधिक होती है। BDes जैसे चार वर्षीय कोर्स की कुल लागत ₹12 लाख (World University of Design) से ₹26 लाख (Strate School of Design) तक हो सकती है।

हालांकि, अधिकांश संस्थान मेरिट आधारित स्कॉलरशिप और वित्तीय सहायता भी प्रदान करते हैं, जिससे योग्य छात्रों को मदद मिलती है।

प्लेसमेंट और करियर के अवसर
शीर्ष निजी डिज़ाइन कॉलेजों का प्लेसमेंट रिकॉर्ड मजबूत है। ये कॉलेज फैशन, ई-कॉमर्स, आईटी और अन्य क्रिएटिव इंडस्ट्री में बेहतरीन प्लेसमेंट उपलब्ध कराते हैं।
जैसे UID और Pearl Academy के पास मजबूत प्लेसमेंट सेल हैं और छात्र राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय ब्रांड्स में जगह बनाते हैं।

हैं कुछ सीमाएं भी
हालांकि प्राइवेट कॉलेजों में सुविधाएं और लचीलापन अधिक होता है, फिर भी हर संस्थान की गुणवत्ता एक जैसी नहीं होती।
एप्रूवल, फैकल्टी की योग्यता, प्लेसमेंट का डाटा, और एलुमनाई की स्थिति को लेकर व्यक्तिगत स्तर पर जानकारी लेना जरूरी है।

इसके अलावा, सरकारी कॉलेजों की तुलना में फीस अधिक होती है, जो एक आर्थिक चुनौती बन सकती है।

रचनात्मक छात्रों के लिए उपयुक्त विकल्प
यदि आप एक रचनात्मक सोच रखने वाले छात्र हैं, जो लचीली प्रवेश प्रक्रिया और इंडस्ट्री एक्सपोजर की तलाश में हैं, तो प्राइवेट डिज़ाइन कॉलेज आपके लिए उत्तम विकल्प हो सकते हैं—बशर्ते आपने पूरी जानकारी और रिसर्च के साथ फैसला लिया हो।

AIDAT जैसे एग्जाम पास करके छात्र शीर्ष प्राइवेट डिज़ाइन कॉलेजों में प्रवेश पा सकते हैं, जहाँ उन्हें समकालीन शिक्षा, प्रभावशाली प्लेसमेंट और इंडस्ट्री से जुड़ाव का लाभ मिलता है।

समझदारी से सोचें, और अपनी ज़रूरत के अनुसार संस्थान चुनें।

जैसे-जैसे हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स, विशेष रूप से एलाइड हेल्थ साइंसेज (Allied Health Sciences) की माँग बढ़ रही है, भारतीय छात्र अब केवल पारंपरिक प्रवेश परीक्षाओं जैसे NEET पर निर्भर नहीं रह गए हैं। इसी बदलते परिदृश्य में, Global Allied Healthcare Entrance Test (GAHET 2025) भारत का पहला राष्‍ट्रीय स्‍तर का एलाइड हेल्थ एंट्रेंस एग्ज़ाम बनकर उभरा है।

लेकिन सवाल है — GAHET और NEET में क्या अंतर है? और आज के Gen Z मेडिकल स्टूडेंट्स के लिए कौन सा विकल्प बेहतर है?

NEET क्या है?
NEET (National Eligibility cum Entrance Test) भारत की सबसे प्रमुख मेडिकल प्रवेश परीक्षा है, जो MBBS, BDS, और कुछ एलाइड हेल्थ कोर्सेज़ में दाख़िले के लिए होती है। इसे राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी (NTA) द्वारा आयोजित किया जाता है। इसमें पूछे जाने वाले विषय होते हैं भौतिकी (Physics), रसायन विज्ञान (Chemistry) और जीव विज्ञान (Biology)।

योग्यता: 10+2 में PCB (Physics, Chemistry, Biology/Biotechnology) और अंग्रेजी पास होना अनिवार्य है।
परीक्षा तिथि: आमतौर पर मई में
आवेदन: NTA की NEET वेबसाइट पर

GAHET क्या है?
GAHET (Global Allied Healthcare Entrance Test) विशेष रूप से एलाइड हेल्थ साइंसेज के इच्छुक छात्रों के लिए डिज़ाइन की गई परीक्षा है। यह NEET के विपरीत, MBBS या BDS तक सीमित नहीं है, बल्कि यह विभिन्न पैरामेडिकल और हेल्थ टेक्नोलॉजी कोर्सेज के लिए प्रवेश का द्वार है।

विषय: Physics, Chemistry, Biology, और English
योग्यता: मान्यता प्राप्त बोर्ड से 10+2 विज्ञान (Physics, Chemistry, English, और Biology/Maths/ Botany/ Zoology में कम से कम 50%)
परीक्षा: हर महीने, सुविधानुसार दी जा सकती है
आवेदन: www.gahet.org पर ऑनलाइन

GAHET और NEET में अंतर
पैरामीटर                              GAHET                                                                           NEET UG
फ़ोकस                  एलाइड हेल्थ / पैरामेडिकल कोर्सेज़                                       MBBS, BDS, कुछ Allied Health कोर्सेज़
विषय                    भौतिकी, रसायन, जीवविज्ञान, अंग्रेज़ी                                           भौतिकी, रसायन, जीवविज्ञान
परीक्षा पैटर्न              Gen Z फ्रेंडली, आधुनिक अप्टीट्यूड आधारित                             पारंपरिक MCQ आधारित
योग्यता                 10+2 साइंस, कम से कम 50% अंकों के साथ                                     10+2 साइंस (PCB)
आवेदन प्रक्रिया                 ऑनलाइन (gahet.org)                                                  ऑनलाइन (NTA NEET पोर्टल)
परीक्षा आवृत्ति                                हर महीने                                                                   साल में एक बार
संस्थान                                 प्रमुख प्राइवेट एलाइड हेल्थ कॉलेज                                 मेडिकल, डेंटल, कुछ पैरामेडिकल संस्थान
करियर ऑप्शंस    EMT, Physiotherapist, Lab Tech, OTT, Rehab Counselor आदि    Doctor, Surgeon, Dentist, Legal Med Advisor आदि

Gen Z के लिए GAHET क्यों है बेहतर विकल्प?
1. 100% ऑनलाइन और नो निगेटिव मार्किंग
GAHET पूरी तरह ऑनलाइन होता है, जिसमें नेगेटिव मार्किंग नहीं है — यह Gen Z छात्रों के लिए तनाव-मुक्त अनुभव सुनिश्चित करता है।

2. डॉक्टर या नर्स नहीं बनना चाहते? फिर भी हेल्थकेयर में करियर पक्का!
अगर आप मेडिकल फील्ड में काम करना चाहते हैं लेकिन MBBS या नर्सिंग आपकी पसंद नहीं है, तो पैरामेडिकल क्षेत्र में सैकड़ों विकल्प हैं — और GAHET से यह राह खुलती है।

3. रोज़गार-केंद्रित परीक्षा
GAHET का सिलेबस और मूल्यांकन तरीका मौजूदा हेल्थकेयर इंडस्ट्री की ज़रूरतों के अनुसार है, जिससे छात्र अधिक इंडस्ट्री-रेडी और एम्प्लॉयेबल बनते हैं।

4. राष्ट्रीय स्तर की पहली Allied Health परीक्षा
GAHET भारत की पहली राष्ट्रीय स्तर की Allied Health परीक्षा है, जो पूरी तरह से पैरामेडिकल प्रोफेशन को समर्पित है।

5. AIIMS पैरामेडिकल एग्ज़ाम से अलग
AIIMS की परीक्षा केवल AIIMS के कैंपस तक सीमित है, लेकिन GAHET में भारत के कई प्रमुख प्राइवेट पैरामेडिकल कॉलेजों तक पहुँच है।

तो कौन सी परीक्षा दें? NEET या GAHET?
अगर आप बनना चाहते हैं...                                                 तो यह परीक्षा दें:
MBBS या BDS डॉक्टर                                                         NEET अनिवार्य है
Allied Health में करियर (EMT, लैब टेक, फिजियो आदि)      GAHET सर्वश्रेष्ठ विकल्प है
दोनों विकल्प खुले रखना चाहते हैं                                     दोनों परीक्षाएं दें – आमतौर पर तिथियाँ नहीं टकरातीं

GAHET 2025: भविष्य की ओर एक कदम
GAHET केवल एक वैकल्पिक परीक्षा नहीं, बल्कि एक आधुनिक और समावेशी करियर मॉडल है जो आज के युवाओं के कौशल और दृष्टिकोण के अनुकूल है।

क्या आप एक Gen Z छात्र हैं जो हेल्थकेयर में करियर चाहता है पर NEET का बोझ नहीं उठाना चाहता?
तो GAHET आपके लिए सबसे स्मार्ट, आसान और व्यावहारिक विकल्प है।

GAHET 2025 की नवीनतम जानकारी और रजिस्ट्रेशन के लिए www.gahet.org पर विज़िट करें। 

 

राष्ट्रीय फॉरेंसिक विज्ञान विश्वविद्यालय (NFSU) की प्रवेश परीक्षा उन उम्मीदवारों के लिए सबसे प्रतिष्ठित मानी जाती है, जो फॉरेंसिक साइंस, साइबर सिक्योरिटी, प्रबंधन, कानून आदि क्षेत्रों में करियर बनाना चाहते हैं।

जैसे-जैसे 2026 के प्रवेश चक्र की तैयारी शुरू हो रही है, यह जरूरी हो जाता है कि छात्र नई परीक्षा योजना और सिलेबस को समझें और प्रभावी तरीके से तैयारी करें। यह एक सूचनात्मक मार्गदर्शिका है जो आपको NFSU प्रवेश परीक्षा की तैयारी और उसमें सफलता पाने के लिए आवश्यक सभी जानकारी प्रदान करती है।

NFSU प्रवेश परीक्षा – संक्षिप्त जानकारी
विवरण                       जानकारी
परीक्षा मोड           कंप्यूटर आधारित टेस्ट (CBT)
प्रश्न प्रारूप              बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs)
समय                       90 मिनट (1.5 घंटे)
कुल प्रश्न                           100
मार्किंग स्कीम       सही उत्तर पर +1, गलत उत्तर पर -0.25
पात्रता                कार्यक्रम-विशिष्ट है; अधिक जानकारी के लिए NFSU की आधिकारिक वेबसाइट देखें

2026 के लिए NFSU प्रवेश परीक्षा सिलेबस
B.Sc./M.Sc. फॉरेंसिक साइंस व संबद्ध पाठ्यक्रम
भौतिकी: स्थिर विद्युत, तरंग प्रकाशिकी, ऊष्मा और उष्मागतिकी, गति, गुरुत्वाकर्षण, दोलन गति, ऊर्जा।

रसायन: ठोस अवस्था, घोल, विद्युरसायन, रासायनिक अभिक्रियाएँ, जैविक व अकार्बनिक रसायन, पॉलिमर, अल्कोहल, फिनॉल, ईथर, ऐल्डिहाइड, कीटोन, कार्बोक्सिलिक अम्ल।

जीवविज्ञान: विकास, जैव-अणु, कोशिकीय संगठन, अनुवांशिकी, इम्यूनोलॉजी, अनुप्रयुक्त जीवविज्ञान, पारिस्थितिकी, प्रयोगशाला कौशल।

फॉरेंसिक साइंस का परिचय: क्राइम सीन मैनेजमेंट, साक्ष्य संग्रह, फॉरेंसिक कानून, अपराधविज्ञान, फॉरेंसिक शाखाएं।

B.Tech./M.Tech. (साइबर सुरक्षा, कंप्यूटर साइंस, AI और डेटा साइंस)
मुख्य विषय (60–70%): नेटवर्किंग, OS, डेटा संरचना, प्रोग्रामिंग (C, C++, Java, Python, .Net), DBMS, वेब विकास, डिजिटल इलेक्ट्रॉनिक्स, AI/ML, IoT, ब्लॉकचेन, कंप्यूटर आर्किटेक्चर, सिद्धांत।

तर्कशक्ति और सामान्य ज्ञान (30–40%): मौखिक व अमौखिक तर्क, अंग्रेजी व्याकरण, अपठित बोध, पर्यायवाची/विलोम, करंट अफेयर्स और तकनीकी घटनाएं।

MBA और प्रबंधन कार्यक्रम
सामान्य ज्ञान: समाचार, भारतीय इतिहास, विज्ञान और तकनीक, पुरस्कार, खेल।

तार्किक क्षमता: श्रेणियाँ, कोडिंग-डिकोडिंग, रक्त संबंध, दिशा परीक्षण, वर्गीकरण।

गणितीय विवेचना: अनुपात, प्रतिशत, अंकगणित, संख्या पद्धति, डेटा पर्याप्तता।

प्रबंधन मूल सिद्धांत: व्यवसायिक संचार, विपणन, HR और वित्तीय प्रबंधन, सांख्यिकी।

LL.B. (ऑनर्स) कानून कार्यक्रम
अंग्रेजी भाषा: व्याकरण, कहावतें, पर्यायवाची/विलोम, वाक्य सुधार, वर्तनी।

विश्लेषणात्मक कौशल: गणना, प्रतिशत, औसत, ज्यामिति, वेन आरेख, सांख्यिकी।

कानूनी जागरूकता: कानूनी उक्तियाँ, भारतीय संविधान, अनुबंध अधिनियम।

सामान्य ज्ञान: करंट अफेयर्स, इतिहास, राजनीति, अर्थशास्त्र, पर्यावरण।

परीक्षा संरचना (विषयवार वेटेज)
अनुभाग                                      वेटेज (%)                          मुख्य विषय
विषय-विशेष ज्ञान                            60–70                 चयनित कोर्स के मुख्य विषय
तर्कशक्ति और योग्यता                     15–20                   तार्किक विश्लेषण, रीजनिंग
अंग्रेजी और अपठित बोध                  10–15               व्याकरण, शब्दावली, रीडिंग स्किल्स
सामान्य ज्ञान और जागरूकता            10–15      करंट अफेयर्स, राष्ट्रीय मुद्दे, विज्ञान और टेक्नोलॉजी

NFSU 2026 की तैयारी कैसे करें?
- NFSU की आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर चुने गए कार्यक्रम का नवीनतम सिलेबस डाउनलोड करें।

- उच्च वेटेज वाले टॉपिक्स पर प्राथमिकता से ध्यान दें।

- पिछले वर्षों के प्रश्न पत्रों का अभ्यास करें ताकि प्रश्नों की प्रकृति और कठिनाई का स्तर समझ सकें।

- फुल-लेंथ मॉक टेस्ट लगाएँ और टाइम मैनेजमेंट का अभ्यास करें।

- साइंस कार्यक्रम हेतु फिजिक्स, केमिस्ट्री, बायोलॉजी और गणित में मजबूत आधार बनाएं।

- टेक्नोलॉजी प्रोग्राम्स के लिए प्रोग्रामिंग और कंप्यूटर लिटरेसी पर ध्यान दें।

- समाचार पत्र पढ़ें, विज्ञान और तकनीकी समाचारों से अपडेट रहें।

- संक्षिप्त नोट्स तैयार करें, खासकर GK और तथ्य आधारित विषयों के लिए।

- कमजोर क्षेत्रों पर अधिक समय दें, लेकिन मजबूत हिस्सों की भी नियमित समीक्षा करें।

NFSU 2026 के लिए महत्वपूर्ण बिंदु
बढ़ती प्रतिस्पर्धा: फॉरेंसिक साइंस, साइबर सुरक्षा और कानून जैसे क्षेत्रों की मांग तेजी से बढ़ रही है, जिससे परीक्षा अधिक चुनौतीपूर्ण हो गई है।

आरक्षण नीति: सीट आवंटन भारत सरकार के आरक्षण नियमों के अनुसार किया जाता है।

दोहरी प्रवेश प्रणाली: कुछ PG कोर्सेज में प्रवेश NFSU की खुद की परीक्षा (NFAT) और GATE/CAT जैसे राष्ट्रीय स्तर की परीक्षाओं के जरिए होता है।

परीक्षा दिवस: एडमिट कार्ड, वैध फोटो पहचान पत्र और सभी दिशा-निर्देशों का पालन करें।

यदि आप फॉरेंसिक साइंस को लेकर गंभीर हैं, तो All India Forensic Science Entrance Test (AIFSET) में भी शामिल होना एक अच्छा विकल्प हो सकता है। इसमें भाग लेने वाले कई प्रमुख विश्वविद्यालय हैं और इसमें प्रवेश की संभावना भी अधिक होती है।

 

डिज़ाइन में करियर बनाना एक बड़ा और साहसिक कदम होता है, खासकर भारत में, जहां क्रिएटिव इंडस्ट्री तेज़ी से बढ़ रही है और हर साल नई-नई स्पेशलाइज़ेशन सामने आ रही हैं। पहले यह फैसला कला और शिल्प के बीच होता था, फिर इसमें डिज़ाइन भी जुड़ गया, और आज डिज़ाइन का क्षेत्र इतना विस्तृत हो गया है कि इसमें हर तरह की डिज़ाइन शाखाएँ शामिल हैं।

अगर आप एक डिज़ाइन स्टूडेंट हैं और यह तय नहीं कर पा रहे हैं कि बैचलर ऑफ़ डिज़ाइन (B.Des) लें, बैचलर ऑफ़ फाइन आर्ट्स (BFA) करें या डिप्लोमा इन डिज़ाइन, तो यह गाइड आपके लिए बेहद उपयोगी हो सकती है। इसमें इन कोर्सों की संरचना, करियर स्कोप, एंट्रेंस एग्ज़ाम और सैलरी ट्रेंड्स के आधार पर तुलना की गई है ताकि आप समझदारी और भविष्य को ध्यान में रखकर सही विकल्प चुन सकें।

B.Des क्या है?
बैचलर ऑफ डिज़ाइन (B.Des) एक पेशेवर डिग्री है, जो अप्लाइड डिज़ाइन जैसे प्रोडक्ट डिज़ाइन, UX/UI डिज़ाइन, फैशन डिज़ाइन, इंटीरियर डिज़ाइन और कम्युनिकेशन डिज़ाइन पर केंद्रित होती है। इसका कोर्स प्रैक्टिकल स्किल्स और टेक्नोलॉजी पर आधारित होता है, जिसमें क्रिएटिविटी और प्रॉब्लम-सॉल्विंग को जोड़कर छात्रों को इंडस्ट्री के लिए तैयार किया जाता है।

प्रवेश परीक्षाएँ: UCEED, NID DAT, NIFT, AIEED, AIDAT
स्पेशलाइज़ेशन: प्रोडक्ट, ग्राफिक, टेक्सटाइल, फैशन, UI/UX, इंडस्ट्रियल, इंटीरियर, ज्वेलरी आदि
प्रमुख भर्तीकर्ता: TCS, Infosys, Flipkart, Myntra, Tata Elxsi, डिज़ाइन स्टूडियोज़, MNCs
सैलरी रेंज: ₹3.3 लाख से ₹12.5 लाख प्रति वर्ष
उपयुक्त छात्र: वे जो आर्ट और टेक्नोलॉजी को साथ मिलाकर काम करना पसंद करते हैं और तेज़ी से बढ़ते डिज़ाइन क्षेत्र में हाई-पेइंग नौकरियाँ चाहते हैं

BFA क्या है?
बैचलर ऑफ फाइन आर्ट्स (BFA) एक अंडरग्रेजुएट डिग्री है जो विजुअल आर्ट्स और परफॉर्मिंग आर्ट्स पर आधारित होती है – जैसे पेंटिंग, स्कल्पचर, एनिमेशन, फोटोग्राफी आदि। यह कोर्स उन छात्रों के लिए उपयुक्त है जो कला, एनिमेशन या पढ़ाने के क्षेत्र में करियर बनाना चाहते हैं।

प्रवेश परीक्षाएँ: NID DAT, BHU UET, JMI, CUET, AIDAT
स्पेशलाइज़ेशन: पेंटिंग, स्कल्पचर, एप्लाइड आर्ट, एनिमेशन, फोटोग्राफी, विज़ुअल कम्युनिकेशन
करियर विकल्प: फाइन आर्टिस्ट, एनिमेटर, आर्ट डायरेक्टर, टीचर, गैलरी क्यूरेटर, मल्टीमीडिया आर्टिस्ट
सैलरी रेंज: ₹1.2 लाख से ₹8.7 लाख प्रति वर्ष (टॉप प्रोफाइल में ₹20 लाख/वर्ष तक)
उपयुक्त छात्र: वे जो गहरी क्रिएटिव सोच रखते हैं और कला, एनिमेशन या शिक्षण के क्षेत्र में काम करना चाहते हैं

डिप्लोमा इन डिज़ाइन क्या है?
डिज़ाइन डिप्लोमा प्रोग्राम्स 1 से 3 साल के छोटे और स्किल-बेस्ड कोर्स होते हैं। ये कम लागत में व्यावसायिक कौशल सिखाते हैं और उन छात्रों के लिए उपयोगी होते हैं जो जल्दी जॉब शुरू करना चाहते हैं या किसी स्पेशल स्किल में ट्रेनिंग लेना चाहते हैं।

योग्यता: 12वीं (किसी भी स्ट्रीम से)
करियर स्कोप: जूनियर डिज़ाइनर, असिस्टेंट, फ्रीलांसर, प्राथमिक विद्यालय शिक्षक
सैलरी रेंज: ₹1.8 लाख से ₹4 लाख प्रति वर्ष
उपयुक्त छात्र: वे जो जल्दी नौकरी शुरू करना चाहते हैं, UG डिग्री का खर्च वहन नहीं कर सकते, या स्किल डेवलपमेंट करना चाहते हैं

तीनों कोर्सों की तुलना एक नज़र में:
विशेषता                     B.Des                               BFA                          डिप्लोमा इन डिज़ाइन
अवधि                          4 वर्ष                                3–4 वर्ष                               1–3 वर्ष
योग्यता                12वीं (किसी भी स्ट्रीम)         12वीं (किसी भी स्ट्रीम)                      12वीं
प्रवेश परीक्षा        UCEED, NID DAT, NIFT      NID DAT, CUET, BHU UET    संस्थान पर निर्भर करता है
मुख्य करियर        प्रोडक्ट, फैशन, UI/UX        आर्टिस्ट, एनिमेटर, टीचर            जूनियर डिज़ाइनर, असिस्टेंट
सैलरी रेंज            ₹3.3–12.5 लाख/वर्ष            ₹1.2–8.7 लाख/वर्ष                    ₹1.8–4 लाख/वर्ष
टॉप कॉलेज             NID, NIFT, IITs                BHU, JMI, प्रेसिडेंसी                Vogue, Parul, Oasis

तो कौन सा रास्ता सही है?
- B.Des चुनें अगर आप प्रोफेशनल डिज़ाइन करियर चाहते हैं, टेक्नोलॉजी, बिज़नेस और क्रिएटिव सॉल्यूशन में रुचि रखते हैं।

- BFA चुनें अगर आप कला प्रेमी हैं, एनिमेशन या शिक्षण में करियर बनाना चाहते हैं।

- डिप्लोमा चुनें अगर आप जल्दी जॉब शुरू करना चाहते हैं, कम बजट में पढ़ाई करना चाहते हैं, या किसी विशेष स्किल में मास्टरी चाहते हैं।

2025 की नवीनतम ट्रेंड्स और जानकारियाँ:
जनरेटिव AI और डिज़ाइन: अब B.Des और डिप्लोमा कोर्स में AI टूल्स का इस्तेमाल UX रिसर्च, डिजिटल आर्टवर्क और फास्ट प्रोटोटाइप के लिए होने लगा है।

हाइब्रिड करियर: B.Des ग्रैजुएट्स स्टार्टअप, ई-कॉमर्स और डिजिटल मार्केटिंग में जा रहे हैं, वहीं BFA ग्रैजुएट्स एनिमेशन, गेमिंग और OTT इंडस्ट्री में।

डिमांड: UX/UI डिज़ाइन, प्रोडक्ट डिज़ाइन और एनिमेशन – ये 2025 की सबसे ज़्यादा मांग और तनख्वाह वाली डिज़ाइन जॉब्स मानी गई हैं।


भारतीय डिज़ाइन शिक्षा में हर क्रिएटिव माइंड के लिए कुछ न कुछ है। चाहे आप B.Des, BFA या डिप्लोमा चुनें, यह ज़रूरी है कि आप अपनी रुचियों, क्षमताओं और करियर लक्ष्यों के अनुसार सही निर्णय लें। कॉलेज की रैंकिंग, इंटर्नशिप के अवसर, एंट्रेंस एग्ज़ाम की तैयारी और एक मजबूत पोर्टफोलियो बनाना न भूलें। भारतीय डिज़ाइन इंडस्ट्री का भविष्य उज्ज्वल है — सही रास्ता चुनें और डिज़ाइन की दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बनाएं।

भारत में मेडिकल करियर का सपना कई छात्रों के लिए बहुत ही उत्साहजनक होता है। लेकिन आज भी यह सवाल अक्सर सामने आता है — क्या सिर्फ MBBS ही एकमात्र रास्ता है या Allied Health Sciences को भी एक बेहतर विकल्प माना जा सकता है?

GAHET जैसे नए एंट्रेंस एग्जाम और हेल्थकेयर सेक्टर में आ रहे बदलावों को देखते हुए, करियर का सही चुनाव पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गया है। आइए, तथ्यों और ट्रेंड्स के आधार पर समझते हैं कि आपके लिए कौन सा रास्ता सही हो सकता है।


MBBS और Allied Health Sciences में अंतर

MBBS (बैचलर ऑफ मेडिसिन, बैचलर ऑफ सर्जरी):
- यह भारत की सबसे प्रतिष्ठित अंडरग्रेजुएट मेडिकल डिग्री है।
- इसमें दाखिले के लिए NEET (National Eligibility cum Entrance Test) अनिवार्य है।
- कुल कोर्स अवधि: 5 वर्ष की पढ़ाई + 1 वर्ष की इंटर्नशिप।
- डॉक्टर का मुख्य कार्य: रोगों की पहचान, उपचार और प्रबंधन।

Allied Health Sciences:
- यह मेडिकल सेक्टर में काम करने वाले तकनीकी और सहायता कर्मियों के लिए ट्रेनिंग प्रोग्राम्स प्रदान करता है।
- प्रोफेशनल्स: फिजियोथेरेपिस्ट, रेडियोग्राफर, लैब टेक्नोलॉजिस्ट, ऑप्टोमेट्रिस्ट, आदि।
- प्रवेश के लिए: GAHET, KCET जैसे विशेष एंट्रेंस एग्जाम या डायरेक्ट एडमिशन।
- कोर्स की अवधि: 3 से 4.5 साल, स्पेशलाइजेशन पर निर्भर।


भारत में दो प्रमुख मेडिकल एंट्रेंस एग्जाम: NEET और GAHET
NEET: MBBS और डेंटल जैसे कोर्सेस के लिए अनिवार्य परीक्षा, जिसमें लाखों छात्र सीमित सीटों के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं।
GAHET (Global Allied Healthcare Entrance Test): Allied Health Programs में एडमिशन के लिए एक नया और उभरता हुआ एग्जाम है।

GAHET स्कोर स्वीकार करने वाले प्रमुख संस्थान:
- Invertis University, बरेली
- Sahara Paramedical Institute, मेरठ
- Saraswati Group of Colleges, मोहाली
- Graphic Era University, देहरादून
- Rabindranath Tagore University, भोपाल
- JECRC University, जयपुर
और 100 से अधिक संस्थान पूरे भारत में...


करियर विकल्प: MBBS बनाम Allied Health

MBBS करियर विकल्प:
- डॉक्टर, सर्जन, विशेषज्ञ चिकित्सा अधिकारी
- सम्मानजनक पेशा, लेकिन पोस्टग्रेजुएट सीटों और सरकारी नौकरी के लिए भारी प्रतिस्पर्धा
- समाज में उच्च दर्जा और पहचान

Allied Health करियर विकल्प:
- फिजियोथेरेपिस्ट, रेडियोग्राफर, लैब टेक्नोलॉजिस्ट, ऑप्टोमेट्रिस्ट, एनेस्थेटिस्ट, एपिडेमियोलॉजिस्ट आदि
- अस्पतालों, लैब्स, रिसर्च इंस्टीट्यूट्स और क्लीनिक्स में बढ़ती मांग
- प्रारंभिक वेतन ₹2.5 से ₹10 लाख प्रति वर्ष (स्पेशलाइजेशन और स्थान पर निर्भर)
- विदेशों में अच्छी संभावनाएं, विशेष रूप से नर्सिंग और मेडिकल टेक्नोलॉजी में


रोज़गार के रुझान और भविष्य की संभावनाएं
MBBS: हमेशा मांग में रहते हैं, लेकिन सीटें सीमित हैं और कोर्स कठिन है।
Allied Health: नए टेक्नोलॉजी, प्रिवेंशन और डायग्नोस्टिक्स के विकास के कारण तेजी से बढ़ती मांग।
विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले वर्षों में अनुभवी Allied Health Professionals की आवश्यकता और बढ़ेगी।


वर्क-लाइफ बैलेंस की तुलना
MBBS: शुरुआती वर्षों में लंबी शिफ्ट, ऑन-कॉल ड्यूटी और मानसिक दबाव आम हैं।
Allied Health: आमतौर पर नियमित समय की शिफ्ट और व्यक्तिगत जीवन के लिए बेहतर संतुलन।


आपके लिए कौन सा विकल्प सही?

MBBS चुनें, अगर:
- आप डॉक्टर बनना चाहते हैं और प्रतियोगिता के लिए तैयार हैं।
- लंबी, कठिन और महंगी पढ़ाई के लिए मानसिक रूप से तैयार हैं।
- समाज में प्रतिष्ठा और उच्च आय के लिए प्रतिबद्ध हैं।

Allied Health चुनें, अगर:
- आप मेडिकल क्षेत्र में काम करना चाहते हैं, लेकिन कम समय और लागत में।
- आपको डायग्नोस्टिक्स, थेरेपी या मेडिकल टेक्नोलॉजी में रुचि है।
- आप संतुलित जीवनशैली के साथ एक व्यावसायिक करियर चाहते हैं।


सही निर्णय कैसे लें?
MBBS और Allied Health Sciences दोनों ही सम्मानजनक और समाज के लिए उपयोगी करियर विकल्प हैं। सही रास्ता आपकी रुचियों, क्षमताओं और जीवन के लक्ष्यों पर निर्भर करता है। GAHET जैसे नए अवसरों के चलते, यह सही समय है कि आप MBBS के अलावा भी मेडिकल क्षेत्र में मौजूद विकल्पों को गंभीरता से देखें।

सुझाव: विषय का अच्छी तरह अध्ययन करें, मेडिकल क्षेत्र में काम कर रहे लोगों से सलाह लें और उस स्ट्रीम का चुनाव करें जो आपको सबसे अधिक प्रेरित करती हो।


अभी भी उलझन में हैं?
GAHET पोर्टल https://gahet.org/ पर जाएं या करियर काउंसलिंग के लिए 08035018453 नंबर पर कॉल करें। निःशुल्क मार्गदर्शन उपलब्ध है।

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'सिटी ऑफ जॉय' कहे जाने वाले कोलकाता शहर में 16 अप्रैल का दिन वाकई उत्साह से भरा रहा, जब 'एडइनबॉक्स' ने अपना विस्तार करते हुए यहाँ के लोगों के लिए अपनी नई ब्रांच का शुभारम्भ किया। ख़ास बात यह रही कि इस मौके पर इटली से आये मेहमानों के साथ 'एडइनबॉक्स' की पूरी टीम मौजूद थी। पश्चिम बंगाल के कोलकाता में उदघाटित इस कार्यालय से पूर्व 'एडइनबॉक्स' की शाखाएं दिल्ली, भुवनेश्वर, लखनऊ और बैंगलोर जैसे शहरों में पहले से कार्य कर रही हैं।

कोलकाता में एडइनबॉक्स की नयी ब्रांच के उद्घाटन कार्यक्रम में इटली के यूनिमार्कोनी यूनिवर्सिटी के प्रतिनिधिमंडल की गरिमामयी उपस्थिति ने इस अवसर को तो ख़ास बनाया ही, सहयोग और साझेदारी की भावना को भी इससे बल मिला। विशिष्ट अतिथियों आर्टुरो लावेल, लियो डोनाटो और डारिना चेशेवा ने 'एडइनबॉक्स' के एडिटर उज्ज्वल अनु चौधरी, बिजनेस और कंप्यूटर साइंस के डोमेन लीडर डॉ. नवीन दास, ग्लोबल मीडिया एजुकेशन काउंसिल डोमेन को लीड कर रहीं मनुश्री मैती और एडिटोरियल कोऑर्डिनेटर समन्वयक शताक्षी गांगुली के नेतृत्व में कोलकाता टीम के साथ हाथ मिलाया। 

समारोह की शुरुआत अतिथियों का गर्मजोशी के साथ स्वागत से हुई। तत्पश्चात दोनों पक्षों के बीच विचारों और दृष्टिकोणों का सकारात्मक आदान-प्रदान हुआ। डारिना ने पारम्परिक तरीके से रिबन काटकर आधिकारिक तौर पर कार्यालय का उद्घाटन किया और इस मौके को आपसी सहयोग के प्रयासों की दिशा में एक नए अध्याय की शुरुआत बताया। बाकायदा इस दौरान यूनिमार्कोनी विश्वविद्यालय के प्रतिनिधिमंडल और EdInbox.com टीम के बीच एक साझेदारी समझौते पर हस्ताक्षर भी हुआ। यह पहल शिक्षा के क्षेत्र में नवाचार और प्रगति के लिए साझा प्रतिबद्धता को दर्शाता है, साथ ही भविष्य में अधिक से अधिक छात्रों का नेतृत्व कर इस पहल से उन्हें सशक्त बनाया जा सकता है ताकि वे वैश्विक मंचों पर सफलता के अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकें। 

समारोह के समापन की वेला पर दोनों पक्षों द्वारा एक दूसरे को स्मारिकाएं भेंट की गयीं।  'एडइनबॉक्स' की नई ब्रांच के उद्घाटन के साथ इस आदान-प्रदान की औपचारिकता से दोनों टीमों के बीच मित्रता और सहयोग के बंधन भी उदघाटित हुए।अंततः वक़्त मेहमानों को अलविदा कहने का था, 'एडइनबॉक्स' की कोलकाता टीम ने अतिथियों को विदा तो किया मगर इस भरोसे और प्रण के साथ कि यह नयी पहल भविष्य में संबंधों की प्रगाढ़ता और विकास के नए ठौर तक पहुंचेगी।  

फैशन सिर्फ कपड़ों की शैली तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समाज की सोच, संस्कृति, मूल्य और व्यक्तिगत अभिव्यक्ति को भी गहराई से प्रभावित करता है।

सांस्कृतिक और सामाजिक आयाम
फैशन समाज की सांस्कृतिक विविधता को सामने लाता है। साड़ी, किमोनो, सलवार-कुर्ता जैसे पारंपरिक वस्त्र हों या आधुनिक स्ट्रीटवियर—ये सभी किसी न किसी सांस्कृतिक पहचान और परंपरा का प्रतिनिधित्व करते हैं।

अलग-अलग दौर के फैशन ट्रेंड्स सामाजिक बदलाव का प्रतीक बने। जैसे 1920 का फ्लैपर ड्रेस महिलाओं की स्वतंत्रता का प्रतीक था, तो 1970 का पंक फैशन विद्रोही मानसिकता का। फैशन विविधता और खुलेपन को प्रोत्साहित करता है, जिससे लोग अपनी पहचान और विचारों को खुलकर व्यक्त कर पाते हैं।

व्यक्तिगत पहचान और आत्म-अभिव्यक्ति
फैशन इंसान के व्यक्तित्व, सोच और सामाजिक स्थिति का परिचायक है। नए ट्रेंड्स अपनाने से लोग आत्मविश्वास महसूस करते हैं और आत्म-सम्मान को भी बढ़ावा मिलता है। अलग-अलग पीढ़ियां अपनी विशिष्ट फैशन शैली बनाती हैं—युवा जहां अधिक प्रयोगशील होते हैं, वहीं वरिष्ठ वर्ग परंपरागत और सादगीपूर्ण शैली पसंद करता है।

फैशन और मीडिया का प्रभाव
सोशल मीडिया, फिल्में और इन्फ्लुएंसर्स फैशन को तेजी से फैलाते हैं और समाज की धारणाओं को आकार देते हैं। इंस्टाग्राम और यूट्यूब जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म फैशन ट्रेंड्स को सीधा आम लोगों तक पहुँचा रहे हैं।

फैशन के चुनौतीपूर्ण पहलू
तेजी से बदलते फैशन (फास्ट फैशन) ने उपभोग की आदतों को प्रभावित किया है, जिससे पर्यावरणीय संकट और अपशिष्ट की समस्या बढ़ रही है। सुंदरता और ट्रेंड्स की होड़ मानसिक स्वास्थ्य पर दबाव डालती है और आत्म-सम्मान को भी प्रभावित कर सकती है।

फैशन ट्रेंड्स सिर्फ पहनावे की दिशा तय नहीं करते, बल्कि यह समाज की मानसिकता, सांस्कृतिक विविधता और व्यक्तिगत पहचान को आकार देते हैं। हालांकि, इनके साथ जुड़े नकारात्मक पहलुओं—जैसे फास्ट फैशन, उपभोक्तावाद और मानसिक दबाव—पर संतुलित दृष्टिकोण रखना बेहद ज़रूरी है।

इंजीनियरिंग वह क्षेत्र है जिसने आधुनिक विकास को नई ऊँचाइयों तक पहुंचाया है। पिछले 100 सालों में वैश्विक स्तर पर जितनी तेज़ी से प्रगति हुई है, उसका प्रमुख आधार इंजीनियरिंग ही है। यही कारण है कि भारत में इंजीनियरिंग पढ़ाई को लेकर युवाओं में जबरदस्त क्रेज देखने को मिलता है। हर साल लाखों छात्र देश-विदेश के कॉलेजों में दाखिला लेते हैं। विदेश में पढ़ाई करने वालों के लिए अमेरिका सबसे लोकप्रिय डेस्टिनेशन माना जाता है।

बड़ा सवाल: भारत बनाम अमेरिका में टॉप इंजीनियरिंग संस्थान
अमेरिका में सबसे प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग संस्थान MIT (मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी) है, जबकि भारत में यह स्थान IIT दिल्ली (IIT-D) को प्राप्त है। ऐसे में तुलना जरूरी हो जाती है—कौन-सा संस्थान बेहतर है, फीस कितनी है, एडमिशन प्रोसेस कैसा है और पढ़ाई के लिहाज़ से कौन-सा विकल्प अधिक उपयुक्त है।

QS रैंकिंग के अनुसार MIT और IIT
क्यूएस वर्ल्ड यूनिवर्सिटी रैंकिंग बाय सब्जेक्ट के अनुसार, MIT दुनिया की नंबर वन इंजीनियरिंग यूनिवर्सिटी है। इसकी स्थापना 1861 में हुई थी और यह अमेरिका के मैसाचुसेट्स राज्य के कैम्ब्रिज शहर में स्थित है।

वहीं, भारत में शीर्ष स्थान IIT दिल्ली का है। इसकी स्थापना 1961 में हुई थी और यह देश के 23 IITs में से एक है।

फीस स्ट्रक्चर: MIT बनाम IIT-D
MIT (अमेरिका):
ट्यूशन फीस लगभग 57 लाख रुपये प्रति वर्ष है। हॉस्टल और अन्य खर्चों को जोड़ने पर कुल वार्षिक खर्च लगभग 76 लाख रुपये हो जाता है। चार साल की डिग्री पर लगभग 3 करोड़ रुपये खर्च होते हैं। हालांकि, यहां स्कॉलरशिप और आय-आधारित छूट भी मिलती है।
- जिन परिवारों की सालाना आय 1.76 करोड़ रुपये से कम है, उन्हें ट्यूशन फीस नहीं देनी पड़ती।
- 88 लाख रुपये से कम आय वालों के बच्चों को पूरी पढ़ाई मुफ्त मिलती है।

IIT दिल्ली (भारत):
- चार वर्षीय बीटेक डिग्री पर औसतन 12.50 लाख रुपये का खर्च आता है।
- आय 5 लाख रुपये से कम होने पर फीस घटकर 1.22 लाख रुपये सालाना रह जाती है।
- आय 1 लाख से कम होने पर फीस केवल 22,400 रुपये सालाना है।
- SC/ST और PwD छात्रों के लिए भी यही कम फीस लागू होती है।

एडमिशन और एक्सेप्टेंस रेट
MIT (अमेरिका):
एक्सेप्टेंस रेट सिर्फ 4.7% है। एडमिशन के लिए SAT/ACT स्कोर, स्कूल के नंबर, रिकमेंडेशन लेटर, निबंध, एक्स्ट्रा-करिकुलर एक्टिविटी और इंटरव्यू की आवश्यकता होती है।

IIT दिल्ली (भारत):
एडमिशन JEE मेन और JEE एडवांस्ड परीक्षा पर आधारित है। हर साल 10 लाख से ज्यादा छात्र परीक्षा देते हैं। 18 हजार सीटों में से IIT-D की करीब 1,250 सीटें होती हैं।एक्सेप्टेंस रेट 1% से भी कम हो जाता है।

यानी MIT की तुलना में IIT में दाखिला पाना कहीं ज्यादा मुश्किल है।

कौन-सा विकल्प बेहतर है?
MIT:
विदेश में पढ़ाई और वहीं करियर बनाने का सपना रखने वालों के लिए आदर्श। दुनिया की टॉप यूनिवर्सिटी का अनुभव और वैश्विक exposure मिलता है। लेकिन खर्च बेहद ज्यादा है।

IIT दिल्ली:
सीमित बजट वाले, लेकिन प्रतिभाशाली छात्रों के लिए परफेक्ट विकल्प। यहां उत्कृष्ट प्लेसमेंट मिलते हैं और कई बार अमेरिकी कंपनियां सीधे कैंपस से भर्ती भी करती हैं। यानी IIT-D से पढ़ाई के बाद भी विदेश जाने का अवसर खुला रहता है।

यानी अगर बजट और विदेश में सेटल होने का लक्ष्य है तो MIT चुनें, और अगर कम खर्च में उच्च गुणवत्ता की शिक्षा भारत में ही चाहते हैं तो IIT दिल्ली आपके लिए सबसे सही विकल्प है।

 

हाल के समय में शिक्षा क्षेत्र में एक गंभीर प्रवृत्ति देखने को मिल रही है – छात्रों का प्राइवेट कोचिंग पर निर्भर होना। चाहे एंट्रेंस टेस्ट की तैयारी हो या स्कूल स्तर की पढ़ाई, बच्चों को कोचिंग का सहारा लेने के लिए मजबूर होना अब आम बात हो गई है। हाल ही में केंद्र सरकार द्वारा शिक्षा पर किए गए व्यापक मॉड्यूलर सर्वे (अप्रैल-जून 2025) में यह तथ्य सामने आया है कि मौजूदा सत्र में करीब 27 प्रतिशत छात्र प्राइवेट कोचिंग ले रहे हैं।

सर्वे रिपोर्ट के अनुसार, शहरी क्षेत्रों में 30.7 प्रतिशत छात्र और ग्रामीण क्षेत्रों में 25.5 प्रतिशत छात्र प्राइवेट कोचिंग ले रहे हैं। कुल 52,085 घरों में 57,742 छात्रों पर आधारित इस सर्वे से पता चलता है कि शिक्षा की तैयारी में कोचिंग का असर हर स्तर पर देखा जा सकता है।

विशेष रूप से हायर सेकेंडरी स्तर पर कोचिंग की मांग और भी बढ़ जाती है। सेकेंडरी लेवल पर शहरी क्षेत्रों में 40.2 प्रतिशत और ग्रामीण इलाकों में 36.7 प्रतिशत छात्र कोचिंग लेते हैं। हायर सेकेंडरी में यह संख्या शहरी क्षेत्रों में 44.6 प्रतिशत तक पहुंच जाती है, जबकि ग्रामीण इलाकों में यह 33.1 प्रतिशत है। इसका मतलब साफ है – जैसे-जैसे पढ़ाई का स्तर बढ़ता है, छात्र और माता-पिता दोनों पर प्राइवेट कोचिंग का दबाव बढ़ता जा रहा है।

सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि प्री-प्राइमरी स्तर से ही बच्चों को कोचिंग के लिए भेजा जा रहा है। शहरों में 13.6 प्रतिशत और ग्रामीण इलाकों में 10.7 प्रतिशत छात्र पहले से ही कोचिंग का हिस्सा बन चुके हैं। प्राइमरी में यह संख्या 26.6 प्रतिशत और मिडिल क्लासेज में 31 प्रतिशत तक पहुंच जाती है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह स्पष्ट संकेत है कि स्कूल लेवल से ही कोचिंग पर निर्भरता बढ़ रही है, जो कि दीर्घकालिक रूप से बच्चों के स्वतंत्र सीखने की क्षमता पर असर डाल सकती है।

कोचिंग का उद्देश्य छात्रों की समझ और कौशल बढ़ाना होना चाहिए, न कि उनकी निर्भरता। यदि प्रारंभिक स्तर से ही बच्चे को कोचिंग के लिए भेजे जाएँ, तो यह उनकी स्वयं सीखने की क्षमता और रचनात्मक सोच को कम कर सकता है। साथ ही, यह शहरी और ग्रामीण असमानता को और बढ़ावा देता है, क्योंकि शहरी क्षेत्रों में कोचिंग की पहुंच ज्यादा है।

हमें यह समझने की आवश्यकता है कि शिक्षा केवल पढ़ाई और अंक हासिल करने तक सीमित नहीं है। बच्चों को खुद सीखने, सवाल करने और खोज करने की स्वतंत्रता मिलनी चाहिए। स्कूलों और शिक्षकों को यह सुनिश्चित करना होगा कि बुनियादी शिक्षा इतनी मजबूत हो कि छात्रों को हर चीज के लिए बाहरी कोचिंग की आवश्यकता न पड़े।

कोचिंग की बढ़ती संस्कृति सिर्फ छात्रों और माता-पिता पर दबाव नहीं डाल रही, बल्कि यह पूरे शिक्षा तंत्र की गुणवत्ता पर सवाल खड़ा कर रही है। अगर हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे स्वतंत्र, रचनात्मक और सशक्त बनें, तो अब समय आ गया है कि स्कूल और घर दोनों स्तर पर शिक्षा की गुणवत्ता और सुदृढ़ता पर ध्यान दिया जाए, बजाय कि केवल कोचिंग पर निर्भर रहने के।

आज की डिजिटल दुनिया में पढ़ाई का तरीका लगातार बदल रहा है। अब सिर्फ किताबों और नोट्स पर निर्भर रहने के बजाय छात्र मोबाइल और कंप्यूटर पर उपलब्ध विभिन्न शैक्षणिक ऐप्स की मदद से पढ़ाई को और आसान व रोचक बना सकते हैं। ये ऐप न केवल समय की बचत करते हैं बल्कि पढ़ाई को व्यवस्थित और प्रभावी भी बनाते हैं।

यहाँ कुछ लोकप्रिय लर्निंग ऐप्स और उनके उपयोग बताए जा रहे हैं—

1. क्विज़लेट (Quizlet)
यह ऐप शब्दावली, ऐतिहासिक तिथियों और सूत्रों जैसे विषयों के लिए व्यक्तिगत फ़्लैशकार्ड बनाने में मदद करता है। विद्यार्थी चाहे तो दूसरों द्वारा बनाए गए फ़्लैशकार्ड का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। यह ऐप पढ़ाई को यादगार और व्यक्तिगत बनाता है।

2. एंकी (Anki)
एंकी फ़्लैशकार्ड ऐप है जो स्पेस्ड रिपीटिशन तकनीक का उपयोग करता है। यानी कठिन विषयों को बार-बार दोहराने में मदद करता है, जिससे छात्र लंबे समय तक याद रख पाते हैं।

3. फॉरेस्ट (Forest)
यह ऐप छात्रों को ध्यान केंद्रित करने में मदद करता है। पढ़ाई के समय एक आभासी पेड़ लगाया जाता है, जो तभी बढ़ता है जब छात्र बिना किसी रुकावट के पढ़ाई करते हैं। इससे पढ़ाई में निरंतरता बनी रहती है।

4. टूडूइस्ट (Todoist)
यह एक कार्य प्रबंधन ऐप है। छात्र इसमें पढ़ाई से जुड़े कामों की सूची बना सकते हैं, उनकी प्राथमिकता तय कर सकते हैं और रिमाइंडर सेट कर सकते हैं। इससे समय पर काम पूरा करने में मदद मिलती है।

5. माइक्रोसॉफ्ट टीम्स (Microsoft Teams)
यह ऐप छात्रों और शिक्षकों के बीच संवाद और सहयोग का बेहतर माध्यम है। इसमें वर्चुअल क्लास, असाइनमेंट और फ़ाइल शेयरिंग जैसी सुविधाएँ उपलब्ध हैं।

6. स्वयम् (SWAYAM)
भारत सरकार का यह प्लेटफ़ॉर्म कक्षा 9 से लेकर उच्च शिक्षा तक के छात्रों को ऑनलाइन अध्ययन सामग्री उपलब्ध कराता है। इसमें विशेषज्ञ शिक्षकों द्वारा तैयार कोर्स मुफ्त में पढ़ाए जाते हैं।

7. दीक्षा (Diksha)
यह भी भारत सरकार की पहल है, जो कक्षा 1 से 10 तक के छात्रों को डिजिटल माध्यम से गुणवत्तापूर्ण अध्ययन सामग्री प्रदान करती है। शिक्षक और विद्यार्थी दोनों इसके संसाधनों का उपयोग कर सकते हैं।

ये सभी ऐप अलग-अलग तरह से पढ़ाई को आसान और व्यवस्थित बनाने में सहायक हैं। जहाँ कुछ ऐप याददाश्त मजबूत करने पर जोर देते हैं, वहीं कुछ समय प्रबंधन और एकाग्रता में मदद करते हैं। सरकारी प्लेटफ़ॉर्म जैसे स्वयम् और दीक्षा से छात्रों को मुफ्त और विश्वसनीय अध्ययन सामग्री भी उपलब्ध होती है।
डिजिटल युग में इन ऐप्स का सही उपयोग छात्र की पढ़ाई को और अधिक सरल, रोचक और सफल बना सकता है।

भारतीय सिनेमा के इतिहास में कुछ फिल्में ऐसी होती हैं, जिन्होंने न केवल अपनी कलात्मक गहराई से दर्शकों को प्रभावित किया, बल्कि विश्वभर में भारतीय फिल्मों की पहचान भी बनाई। सत्यजीत रे की ‘पथेर पांचाली’ (1955) ऐसी ही एक कालजयी फिल्म है, जिसके 70 वर्ष पूरे होने का अवसर भारतीय सिनेमा के लिए ऐतिहासिक क्षण है।

यथार्थवाद की अनूठी मिसाल
पथेर पांचाली बिभूतिभूषण बंद्योपाध्याय के उपन्यास पर आधारित है। यह फिल्म बंगाल के एक गरीब परिवार के संघर्ष, आकांक्षाओं और संवेदनाओं की कहानी कहती है। अपु, उसकी बहन दुर्गा, मां सरबजया और बूढ़ी चाची इंदिरा—इन पात्रों के माध्यम से रे ने ग्रामीण जीवन की करुणा और सुंदरता को बेहद सजीव तरीके से प्रस्तुत किया।

सत्यजीत रे की पहली फिल्म, विश्वव्यापी पहचान
यह सत्यजीत रे का निर्देशन में पहला प्रयास था। सीमित संसाधनों और बजट में बनी इस फिल्म ने अद्भुत यथार्थवाद पेश किया। पथेर पांचाली ने केवल भारतीय सिनेमा को ही नहीं, बल्कि विश्व सिनेमा को भी प्रभावित किया। फिल्म ने 1956 में कान्स फिल्म फेस्टिवल में ‘फिल्म डेब्यू अवार्ड’ जीता और इसके बाद इसे कई अंतरराष्ट्रीय मंचों पर प्रदर्शित किया गया।

निर्माण से जुड़े रोचक किस्से
- फिल्म का बजट बेहद सीमित था, लगभग ₹1.5 लाख, जो उस समय भी बहुत कम था।
- अधिकांश कलाकार गैर-पेशेवर थे; अपु का किरदार सतरंगी बालक रुनो भवानी ने निभाया।
- शूटिंग के दौरान कई बार प्राकृतिक आपदाओं और वित्तीय संकट का सामना करना पड़ा।
- सत्यजीत रे ने स्थानीय ग्रामीणों की मदद से वास्तविक लोकेशन पर फिल्म शूट की, जिससे यथार्थवाद और भी प्रबल हुआ।

संगीत और सिनेमैटोग्राफी की बेजोड़ संगति
फिल्म का संगीत पंडित रवि शंकर ने दिया, जिसने हर दृश्य में भावनाओं की गहराई को और बढ़ा दिया। सुभ्रत मित्र की सिनेमैटोग्राफी ने ग्रामीण जीवन के हर पल को काव्यात्मक अंदाज में कैद किया।

अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार और सम्मान
पथेर पांचाली ने कई प्रतिष्ठित पुरस्कार जीते, जिनमें शामिल हैं:
1956: कान्स फिल्म फेस्टिवल – ‘फिल्म डेब्यू अवार्ड’
1956: लंदन फिल्म फेस्टिवल – विशेष सम्मान
1956: ऑस्ट्रेलियन नेशनल फिल्म अवार्ड – सर्वश्रेष्ठ फिल्म
2002: अमरीका के फिल्म इन्स्टिट्यूट ने इसे ‘सर्वकालिक महानतम विदेशी फिल्म’ की सूची में शामिल किया

70 वर्षों बाद भी प्रासंगिक
सत्तर साल बाद भी पथेर पांचाली उतनी ही ताजगी और संवेदनशीलता के साथ दर्शकों के दिलों को छूती है। गरीबी, मानवीय रिश्तों, सपनों और संघर्ष की कहानी आज भी समाज के विभिन्न वर्गों के जीवन में झलकती है।

पथेर पांचाली ने भारतीय सिनेमा की दिशा बदल दी। इसके 70 वर्ष पूरे होने का जश्न न केवल सत्यजीत रे को श्रद्धांजलि है, बल्कि उस संवेदनशील सिनेमाई परंपरा का भी उत्सव है, जिसने दुनिया को दिखाया कि भारतीय गांवों की सादगी और संघर्ष में कितनी गहराई और सुंदरता छिपी है।

आज छुट्टियों की प्लानिंग हो या बिज़नेस ट्रिप की तैयारी, ज्यादातर लोग सबसे पहले ऑनलाइन ट्रैवल पोर्टल्स का सहारा लेते हैं। फ्लाइट टिकट, होटल बुकिंग या टूर पैकेज—सब कुछ एक क्लिक में मिल जाता है। लेकिन क्या इन पोर्टल्स पर दी गई जानकारी हमेशा सही होती है? हाल ही में हुए एक सर्वे ने यह चौंकाने वाली सच्चाई सामने लाई कि कई बार तस्वीरें और विवरण असलियत से मेल नहीं खाते, जिससे यात्रियों का अनुभव उम्मीद से बिल्कुल अलग हो जाता है।

पोर्टल्स की जानकारी बनाम हकीकत
आकर्षक तस्वीरें: वेबसाइट पर दिखने वाले होटल और रिसॉर्ट्स की तस्वीरें वास्तविकता से कहीं बेहतर होती हैं।
रूम और सुविधाएं: कई बार कमरे छोटे होते हैं या वादा की गई सुविधाएं अधूरी निकलती हैं।
लोकेशन की दूरी: “बीच से केवल 500 मीटर” जैसे दावे झूठे साबित होते हैं, जबकि होटल असल में किलोमीटरों दूर होता है।
ऑफर और डिस्काउंट: कई स्कीम और पैकेज शर्तों से बंधे होते हैं, जिनकी जानकारी स्पष्ट नहीं दी जाती।

सर्वे के चौंकाने वाले नतीजे
- 60% यात्रियों ने कहा कि होटल की सुविधाएं विज्ञापित जानकारी से अलग थीं।
- 40% लोगों को दिया गया “सी व्यू रूम” वास्तव में पार्किंग लॉट व्यू निकला।
- 30% यात्रियों ने शिकायत की कि अतिरिक्त चार्ज की जानकारी समय रहते नहीं दी गई।

यात्रियों के लिए सावधानियां
कस्टमर रिव्यू पढ़ें – वास्तविक यात्रियों के अनुभव सबसे सटीक जानकारी देते हैं।
ऑफिशियल वेबसाइट चेक करें – होटल या एयरलाइन की आधिकारिक साइट से डिटेल्स मिलाएं।
शर्तें और नियम पढ़ें – ऑफर या पैकेज की बारीकियां जरूर समझें।
लोकेशन गूगल मैप पर देखें – दूरी और आसपास का माहौल आसानी से पता चल जाएगा।
कस्टमर केयर से बात करें – किसी भी संदेह की स्थिति में सीधे पूछताछ करें।

ऑनलाइन ट्रैवल पोर्टल्स ने यात्रा को आसान और तेज़ बना दिया है, लेकिन दी गई जानकारी हमेशा पूरी तरह सही हो, यह ज़रूरी नहीं। समझदारी यही है कि बुकिंग से पहले खुद जांच-पड़ताल करें और केवल भरोसेमंद स्रोतों से मिली जानकारी पर ही निर्णय लें।

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विविधतापूर्ण सामग्री: एडइनबॉक्स दुनियाभर से शिक्षा के तमाम पहलुओं का समावेश करते हुए लेख, साक्षात्कार, वीडियो और पॉडकास्ट सहित विविध प्रकार की सामग्री उपलब्ध कराता है। चाहे आपकी रुचि के विषयों में के-12 शिक्षा, उच्च शिक्षा, एडटेक, या शैक्षिक नीतियां शामिल हों, एडइनबॉक्स पर आपको इससे संबंधित प्रासंगिक और महत्वपूर्ण सामग्री मिलेगी।

समय पर अपडेट: शिक्षा तेज गति से विकास कर रहा क्षेत्र है, जहां की नवीनतम गतिविधियों से अपडेट रहना हर किसी के लिए जरूरी है। और, एडइनबॉक्स वह मंच है जो शिक्षा जगत की हर नवीन जानकारियों को समय पर आप तक पहुंचाकर आपको अपडेट करता है। यह सुनिश्चित करता है कि आप इस क्षेत्र की हर गतिविधि को लेकर जागरूक रहें। चाहे वह ब्रेकिंग न्यूज हो या इसका गहन विश्लेषण, आप खुद को अपडेट रखने के लिए एडइनबॉक्स पर भरोसा कर सकते हैं।

विशेषज्ञ अंतदृष्टि: एडइनबॉक्स का संबंध शिक्षा क्षेत्र के विशेषज्ञों और विचारवान प्रणेताओं से है। ख्यात शिक्षकों और शोधकर्ताओं से लेकर नीति निर्माताओं और उद्योग के पेशेवरों तक, आप इस मंच पर मूल्यवान अंतदृष्टि और दृष्टिकोण से परिचित होंगे जो आपको न सिर्फ जागरूक करता है बल्कि आपके निर्णय लेने की प्रक्रिया को भी धारदार बनाता है।

इंटरएक्टिव समुदाय: एडइनबॉक्स पर आप शिक्षकों, प्रशासकों, छात्रों और अभिभावकों के एक सक्रिय व जीवंत समूह के साथ जुड़ सकते हैं। इस मंच पर आप अपने विचार साझा करें, प्रश्न पूछें, और उन विषयों पर चर्चा में भाग लें जो आपके लिए महत्वपूर्ण हैं। समान विचारधारा वाले व्यक्तियों से जुड़ें और अपने पेशेवर नेटवर्क का भी विस्तार करें।

यूजर्स के अनुकूल इंटरफेस: एडइनबॉक्स की खासियत है, यूजर्स के अनुकूल इंटरफेस। यह आपकी रुचि की सामग्री को नेविगेट करना और खोजना आसान बनाता है। चाहे आप लेख पढ़ना, वीडियो देखना या पॉडकास्ट सुनना पसंद करते हों, आप एडइनबॉक्स पर सब कुछ मूल रूप से एक्सेस कर सकते हैं।

तेजी से बदलते शैक्षिक परिदृश्य में, इस क्षेत्र की हर गतिविधि से परिचित होना निहायत जरूरी है। एडइनबॉक्स एक व्यापक मंच प्रदान करता है जहां आप शिक्षा जगत के नवीनतम समाचारों तक अपनी पहुंच बना सकते हैं, विशेषज्ञों और समूहों के साथ जुड़ सकते हैं और शिक्षा के भविष्य को आकार देने वाली नई पहल को लेकर अपडेट रह सकते हैं। चाहे आप एक शिक्षक हों जो नवीन शिक्षण पद्धतियों की तलाश में हों, नीतियों में बदलाव पर नजर रखने वाले व्यवस्थापक हों, या आपके बच्चों की शिक्षा को लेकर चिंतित माता-पिता, एडइनबॉक्स ने हर किसी की चिंताओं-आवश्यकताओं को समझते हुए इस मंच को तैयार किया है। आज ही एडिनबॉक्स पर जाएं और शिक्षा पर एक वैश्विक विमर्श में शामिल हों!

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