धराली (उत्तराखंड) में हाल ही में बादल फटने से हुई भारी तबाही ने एक बार फिर दिखा दिया कि प्राकृतिक आपदाएं कितनी अप्रत्याशित होती हैं। पहाड़ी और बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में राहत-बचाव कार्य की जिम्मेदारी संभालते हैं हेल्थ, सेफ्टी और एन्वॉयरनमेंट (HSE) और आपदा प्रबंधन से जुड़े प्रोफेशनल्स। यही वजह है कि इस क्षेत्र में करियर बनाने के इच्छुक युवाओं के लिए अवसर पहले से कहीं ज्यादा बढ़ गए हैं।
कौन कर सकता है आवेदन?
- 12वीं (फिजिक्स/मैथ्स और केमिस्ट्री) में न्यूनतम 50% अंक
- उम्र: 19–23 वर्ष
शारीरिक योग्यता:
- पुरुष: लंबाई 165 सेमी, वजन 50 किग्रा
- महिला: लंबाई 157 सेमी, वजन 46 किग्रा
- दृष्टि: 6/6
कोर्स विकल्प और अवधि
- ट्रेड डिप्लोमा इन HSE – 18 माह
- सर्टिफिकेट इन फायर टेक्नोलॉजी एंड इंडस्ट्रियल मैनेजमेंट
- डिप्लोमा इन फायर फाइटिंग
- पीजी डिप्लोमा इन फायर एंड सेफ्टी इंजीनियरिंग
- बीएससी इन फायर इंजीनियरिंग / रेस्क्यू एंड फायर फाइटिंग
(अवधि: 6 माह से 3 साल | प्रवेश: ऑल इंडिया एंट्रेंस एग्जाम)
जरूरी स्किल्स
- धैर्य और साहस
- त्वरित निर्णय लेने की क्षमता
- नेतृत्व कौशल और टीमवर्क
करियर के मौके
आज सरकारी और निजी संस्थानों में फायर इंजीनियर की नियुक्ति अनिवार्य है। इसके अलावा अवसर मिलते हैं—
- अग्निशमन विभाग
- आर्किटेक्चर और बिल्डिंग कंस्ट्रक्शन
- इंश्योरेंस असेसमेंट
- रिफाइनरी, गैस फैक्ट्री, एलपीजी और केमिकल प्लांट
- बहुमंज़िली इमारतें और एयरपोर्ट
कहां से करें पढ़ाई?
- दिल्ली इंस्टीट्यूट ऑफ फायर इंजीनियरिंग — www.dife.in
- इग्नू, मैदान गढ़ी, नई दिल्ली — www.ignou.ac.in
- नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फायर, डिजास्टर एंड एन्वॉयरनमेंट मैनेजमेंट, नागपुर — www.nifdem.com
बिहार संयुक्त प्रवेश प्रतियोगिता परीक्षा पर्षद (BCECEB) ने अंडरग्रेजुएट मेडिकल एडमिशन काउंसलिंग (UGMAC) 2025 की प्रक्रिया अस्थायी रूप से रोक दी है। यह काउंसलिंग राज्य की 85% मेडिकल सीटों के लिए 29 जुलाई 2025 से शुरू हुई थी, जिसमें निजी मेडिकल कॉलेजों की 50% सीटों का शुल्क सरकारी कॉलेजों के बराबर रखा गया था।
हाई कोर्ट की रोक
निजी मेडिकल कॉलेजों ने इस आदेश के खिलाफ पटना हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी। सुनवाई के बाद 5 अगस्त 2025 को कोर्ट ने विभागीय आदेश पर रोक लगा दी।
स्वास्थ्य विभाग से निर्देश की प्रतीक्षा
BCECEB ने कहा कि आगे की प्रक्रिया स्वास्थ्य विभाग से मिले निर्देशों के बाद ही शुरू होगी। नई तारीखों और अपडेट के लिए उम्मीदवारों को पर्षद की वेबसाइट और समाचार पत्रों पर नजर रखने की सलाह दी गई है।
काउंसलिंग के लिए जरूरी दस्तावेज
- NEET (UG)-2025 का एडमिट कार्ड और स्कोर कार्ड
- मैट्रिक और इंटर के प्रमाण पत्र/अंक पत्र
- आवासीय और जाति प्रमाण पत्र
- पासपोर्ट आकार के 6 फोटो
- UGMAC-2025 ऑनलाइन आवेदन पत्र का प्रिंट
- आधार कार्ड और बायोमेट्रिक पहचान रिपोर्ट
- विशेष श्रेणी प्रमाण पत्र (DQ, SMQ, EWS) — यदि लागू हो
सभी दस्तावेज मूल रूप में प्रस्तुत करना अनिवार्य है।
ऑनलाइन आवेदन प्रक्रिया
- आधिकारिक वेबसाइट (bceceboard.bihar.gov.in) पर जाएं
- “UGMAC-2025 Online Application” लिंक चुनें
- रजिस्ट्रेशन करें और लॉगिन क्रेडेंशियल्स प्राप्त करें
- व्यक्तिगत व शैक्षिक जानकारी भरें
- आवश्यक दस्तावेज स्कैन करके अपलोड करें
- कॉलेज और कोर्स की प्राथमिकता चुनें
- सबमिशन से पहले विवरण जांचें
- ऑनलाइन भुगतान करें
- अंतिम आवेदन पत्र का प्रिंट निकालकर सुरक्षित रखें
विश्व संस्कृत दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि उनकी सरकार ने पिछले दस वर्षों में संस्कृत के प्रचार-प्रसार के लिए कई अहम कदम उठाए हैं। उन्होंने संस्कृत को “ज्ञान का अत्यंत प्राचीन स्रोत” बताते हुए कहा कि इसका प्रभाव जीवन के हर पहलू में देखा जा सकता है।
मोदी ने इस अवसर को संस्कृत सीखने और इसे लोकप्रिय बनाने में जुटे सभी लोगों के प्रयासों को सम्मान देने का अवसर बताया। यह दिवस हर साल ‘श्रावण पूर्णिमा’ के दिन मनाया जाता है।
प्रधानमंत्री ने सरकार की पहलें गिनाते हुए केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना, संस्कृत शिक्षण केंद्रों का विस्तार, विद्वानों को अनुदान, और प्राचीन पांडुलिपियों के डिजिटलीकरण जैसे कदमों का उल्लेख किया। उनके अनुसार, इन प्रयासों से असंख्य छात्रों और शोधकर्ताओं को लाभ मिला है।
उन्होंने याद दिलाया कि हिंदू महाकाव्यों समेत अनेक महान ग्रंथ संस्कृत में रचे गए हैं—एक ऐसी भाषा जो आज मुख्यतः धार्मिक कार्यों में प्रयुक्त होती है, लेकिन जिसकी प्रासंगिकता सदियों से बनी हुई है।
इस गर्मी, पंजाब की मिनर्वा अकादमी के अंडर-14 लड़के जब यूरोप के लिए उड़ान पर सवार हुए, तो उनके बैग में सिर्फ फुटबॉल किट और पासपोर्ट नहीं थे—वे अपने साथ उस देश की उम्मीदें भी लेकर चले थे, जो बरसों से वैश्विक फुटबॉल में नाम कमाने का सपना देख रहा है।
वापस लौटते समय, उन्होंने भारतीय युवा खेल इतिहास का एक सुनहरा अध्याय लिख दिया—लगातार तीन सबसे प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय जूनियर फुटबॉल टूर्नामेंट जीतकर—गॉथिया कप (स्वीडन), डाना कप (डेनमार्क) और नॉर्वे कप।
सब कुछ दांव पर लगाने वाला कोच
इन नन्हे खिलाड़ियों की इस परीकथा जैसे सफर के पीछे खड़े हैं रणजीत बजाज—एक ऐसा नाम, जो अपने जज्बे और खिलाड़ियों के लिए किसी भी हद तक जाने की तत्परता के लिए जाना जाता है।
अपनी टीम को अंतरराष्ट्रीय मंच पर मौका दिलाने के लिए उन्होंने अपनी पत्नी के गहने गिरवी रखे और ₹56 लाख का निजी कर्ज लेकर यूरोप दौरे की व्यवस्था की। जीत की कोई गारंटी नहीं थी—अगर असफल होते तो कर्ज का बोझ पक्का था। लेकिन बजाज के शब्दों में- "अगर मुझे विश्वास है कि मेरे लड़के दुनिया के बेहतरीन को हरा सकते हैं, तो मुझे पूरी तरह उनका साथ देना होगा।"
जज़्बा और जीत का संगम
सफर आसान नहीं था। “वर्ल्ड यूथ कप” कहे जाने वाले गॉथिया कप में मिनर्वा को ब्राज़ील, स्पेन और स्वीडन जैसे फुटबॉल महाशक्तियों की अकादमियों का सामना करना पड़ा। भारतीय लड़कों ने न सिर्फ मुकाबला किया, बल्कि आक्रामक खेल और अनुशासित डिफेंस से उन्हें पछाड़ते हुए खिताब जीता।
गॉथिया कप की जीत के बाद उनका आत्मविश्वास और बढ़ा। उन्होंने डाना कप और नॉर्वे कप भी अपने नाम कर लिए—एक ही सीज़न में ये तीनों खिताब जीतने वाली भारत की पहली टीम बनकर। हर जीत के बाद यूरोपीय आसमान में लहराता तिरंगा सिर्फ एक झंडा नहीं था—वह एक घोषणा थी कि भारत अब फुटबॉल में भी चुनौती देने आया है।
स्कोरलाइन से आगे की कहानी
ये जीत सिर्फ मेडल या ट्रॉफी की नहीं, बल्कि इस बात की गवाही है कि अगर भारतीय जमीनी प्रतिभाओं को मौका और मंच मिले, तो वे दुनिया के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों के बराबर खड़े हो सकते हैं।
ज्यादातर खिलाड़ी साधारण पृष्ठभूमि से आते हैं। उनके लिए यह दौरा सिर्फ फुटबॉल नहीं, बल्कि बड़े सपनों, छात्रवृत्तियों और इस विश्वास का टिकट था कि उनका खेल उन्हें दुनिया में कहीं भी ले जा सकता है।
रणजीत बजाज उम्मीद करते हैं कि इस सफलता से भारत में जूनियर फुटबॉल में निवेश बढ़ेगा। वे कहते हैं- "हमने दिखा दिया है कि क्या संभव है। अब देश को इन बच्चों पर विश्वास करना होगा।"
एक विरासत की शुरुआत
जब मिनर्वा की अंडर-14 टीम मेडल गले में डालकर और अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों के साथ घर लौटी, तो उन्होंने सिर्फ इतिहास नहीं रचा—उन्होंने उम्मीद जगाई। और इसी उम्मीद में छुपा है वह भविष्य, जिसमें शायद एक दिन दुनिया के सबसे बड़े फुटबॉल मंच पर भारत की मौजूदगी और भी मजबूत होगी।
कर्मचारी चयन आयोग (SSC) ने CGL 2025 परीक्षा को स्थगित कर दिया है। यह परीक्षा पहले 13 अगस्त से शुरू होने वाली थी, लेकिन अब इसे सितंबर के पहले सप्ताह में आयोजित किया जाएगा। आयोग ने यह निर्णय हाल ही में हुई चयन चरण 13 परीक्षा के दौरान हुए कुप्रबंधन और बढ़ते विरोध प्रदर्शनों के बीच लिया है। SSC ने कहा है कि परीक्षा का संशोधित शेड्यूल जल्द जारी किया जाएगा।
परीक्षा कुप्रबंधन पर SSC की सफाई
अपने नवीनतम नोटिस में SSC ने कई अहम मुद्दों पर स्थिति स्पष्ट की है। आयोग ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के तहत कंप्यूटर आधारित परीक्षाओं (CBT) के आयोजन के तरीके में सुधार किए गए हैं। इसके तहत एक संशोधित परीक्षा मॉडल अपनाया गया, जिसकी शुरुआत चयन पद/चरण XIII परीक्षा 2025 से हुई। यह परीक्षा 24 जुलाई से 1 अगस्त तक देशभर के 194 केंद्रों पर आयोजित की गई थी।
आधार प्रमाणीकरण और सुरक्षा उपाय
SSC ने बताया कि 11.50 लाख आवेदकों में से 5.50 लाख से अधिक उम्मीदवारों ने मैट्रिक, उच्च माध्यमिक और स्नातक स्तर की परीक्षाओं में भाग लिया। परीक्षा में प्रतिरूपण और कदाचार से निपटने के लिए उम्मीदवारों और परीक्षा कर्मियों के लिए आधार प्रमाणीकरण की व्यवस्था भी की गई थी।
प्रभावित उम्मीदवारों को दोबारा मौका
परीक्षा के दौरान तकनीकी और संचालन संबंधी समस्याओं के कारण कई उम्मीदवारों को बाधाओं का सामना करना पड़ा। आयोग ने बताया कि ऐसे उम्मीदवारों की पहचान कर उनकी परीक्षाएं पुनर्निर्धारित की गईं और उन्हें 1 अगस्त तक की अगली पालियों में शामिल किया गया। इसके अलावा, 2 अगस्त को भी तीन पालियों में परीक्षा आयोजित कर लगभग 8000 उम्मीदवारों को शामिल होने का अवसर दिया गया।
OTR अपडेट पर नई जानकारी
SSC ने स्पष्ट किया है कि 2025 भर्ती चक्र की परीक्षाओं के लिए आवेदन प्रक्रिया के दौरान OTR (One Time Registration) में किसी प्रकार का बदलाव संभव नहीं होगा। हालांकि, भविष्य के आवेदनों के लिए OTR में 14 अगस्त से 31 अगस्त 2025 तक संशोधन की सुविधा दोबारा उपलब्ध कराई जाएगी।
मेडिकल काउंसलिंग कमेटी (MCC) ने NEET UG 2025 काउंसलिंग के पहले राउंड की चॉइस फिलिंग की अंतिम तारीख एक बार फिर बढ़ा दी है। अब उम्मीदवार 9 अगस्त 2025 तक अपनी पसंद के कोर्स और कॉलेज का चयन आधिकारिक वेबसाइट mcc.nic.in पर जाकर कर सकते हैं।
NRI और कोर्ट मामलों को देखते हुए लिया गया फैसला
MCC ने एक आधिकारिक नोटिस में कहा, “NRI और CW (Children of War Widows) उम्मीदवारों से मिले कई अनुरोधों और चल रहे अदालती मामलों के मद्देनजर, सक्षम प्राधिकारी ने NEET UG 2025 राउंड-1 की चॉइस फिलिंग की समय सीमा बढ़ाने का निर्णय लिया है।”
11 अगस्त को आएगा राउंड-1 का सीट आवंटन रिजल्ट
MCC के अनुसार, राउंड-1 का सीट आवंटन परिणाम 11 अगस्त 2025 को जारी किया जाएगा। यह सूची अभ्यर्थियों द्वारा दर्ज की गई प्राथमिकताओं (choices) के आधार पर तैयार की जाएगी।
चॉइस लॉकिंग 9 अगस्त शाम 6 बजे से
उम्मीदवार 9 अगस्त को शाम 6 बजे से रात 12 बजे तक अपनी चॉइस लॉक कर सकेंगे। MCC ने सभी अभ्यर्थियों को सलाह दी है कि वे समय से पहले अपनी चॉइस लॉक कर लें, ताकि किसी भी तकनीकी गड़बड़ी या अन्य समस्या से बचा जा सके।
सीट आवंटन पीडीएफ में होगा जारी
NEET UG 2025 राउंड-1 का सीट आवंटन परिणाम ऑनलाइन मोड में पीडीएफ प्रारूप में जारी किया जाएगा। उम्मीदवार इसे काउंसलिंग पोर्टल पर जाकर देख और डाउनलोड कर सकेंगे। अंतिम परिणाम जारी होने के बाद, उन्हें सीट आवंटन आदेश (Allotment Letter) भी डाउनलोड करना होगा।
CUET-UG में 100 परसेंटाइल स्कोर करने वाली अंतरा पाण्डेय का इंटरव्यू
एक बेहद खास और प्रेरणादायक शख्सियत— अंतरा पाण्डेय। अमेठी के फुरसतगंज स्थित फुटवियर डिजाइन एंड डेवलपमेंट इंस्टीट्यूट (FDDI) में कार्यरत नलिन पांडे की पुत्री अंतरा ने कॉमन यूनिवर्सिटी एंट्रेंस टेस्ट (CUET-UG) 2025 में बायोलॉजी विषय में 100 परसेंटाइल स्कोर कर एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है।
देशभर से इस प्रतिष्ठित परीक्षा में 10.7 लाख विद्यार्थियों ने भाग लिया था, जिनमें से केवल 2679 छात्र ही 100 परसेंटाइल प्राप्त कर पाए। इस कठिन प्रतिस्पर्धा में अंतरा की सफलता न केवल उनके परिवार, बल्कि पूरे क्षेत्र के लिए गर्व की बात है।
उनकी माँ भूमिका पाण्डेय के अनुसार, यह उपलब्धि अंतरा की कड़ी मेहनत, समर्पण और आत्मविश्वास का परिणाम है। अंतरा का सपना एक वैज्ञानिक बनकर देश की सेवा करना है — और आज उनके इस सफर की शुरुआत का हम साक्षात्कार करने जा रहे हैं। उनसे बात की एडइनबॉक्स के संपादक रईस अहमद 'लाली' ने।
चलिए, जानते हैं अंतरा की इस प्रेरणादायक यात्रा के बारे में, उन्हीं की ज़ुबानी।
प्रश्न 1. अंतरा, सबसे पहले आपको इस उपलब्धि पर बहुत बधाई! कैसा लग रहा है?
उत्तर: बहुत अच्छा लग रहा है। यह मेरी मेहनत और मेरे माता-पिता के आशीर्वाद का नतीजा है। खुशी है कि मैंने उनके विश्वास को कायम रखा।
प्रश्न 2. CUET-UG की तैयारी आपने कब और कैसे शुरू की थी?
उत्तर: मैंने 12वीं क्लास से ही नींव मजबूत करना शुरू कर दिया था। नियमित पढ़ाई, एनसीईआरटी पर फोकस और मॉक टेस्ट मेरी तैयारी का अहम हिस्सा रहे।
प्रश्न 3. बायोलॉजी में 100 परसेंटाइल लाना बेहद कठिन होता है। आपकी रणनीति क्या रही?
उत्तर: बायोलॉजी मुझे शुरू से पसंद रहा है। मैंने हर चैप्टर को गहराई से पढ़ा, चार्ट्स और डायग्राम्स से याद किया, और NCERT को 3-4 बार दोहराया।
प्रश्न 4. आपने किसी कोचिंग की मदद ली या सेल्फ स्टडी पर भरोसा किया?
उत्तर: मैंने सीमित ऑनलाइन कोचिंग ली, लेकिन मुख्य रूप से सेल्फ स्टडी की। खुद पर भरोसा और अनुशासन सबसे अहम रहा।
प्रश्न 5. पढ़ाई के दौरान समय प्रबंधन और तनाव को कैसे हैंडल किया?
उत्तर: समय का शेड्यूल बनाकर चलती थी। बीच-बीच में ध्यान, योग और परिवार से बात करके मानसिक संतुलन बनाए रखा।
प्रश्न 6. आपके माता-पिता की भूमिका इस यात्रा में कितनी महत्वपूर्ण रही?
उत्तर: मेरी माँ भूमिका पाण्डेय और पापा नलिन पांडे ने मुझे हमेशा मोटिवेट किया। जब भी थकान महसूस होती, उनका साथ मुझे ऊर्जा देता था।
प्रश्न 7. आपने वैज्ञानिक बनने का सपना क्यों चुना?
उत्तर: मुझे हमेशा से शोध में रुचि रही है। मैं बायोलॉजिकल रिसर्च में योगदान देना चाहती हूँ, खासकर देश की स्वास्थ्य और पर्यावरण व्यवस्था के लिए।
प्रश्न 8. भविष्य में आप किस यूनिवर्सिटी या संस्थान को चुनना चाहेंगी?
उत्तर: मेरा लक्ष्य देश के टॉप रिसर्च इंस्टीट्यूट्स, जैसे IISc बेंगलुरु या JNU की लाइफ साइंसेज फैकल्टी में जाना है।
प्रश्न 9. सोशल मीडिया या अन्य distractions से आपने कैसे दूरी बनाई?
उत्तर: मैंने सोशल मीडिया को एक टारगेट के बाद ही देखने का नियम बनाया। पढ़ाई के समय उसे दूर रखा।
प्रश्न 10. अंत में, CUET की तैयारी कर रहे छात्रों को आप क्या संदेश देना चाहेंगी?
उत्तर: एकाग्रता और निरंतरता सबसे बड़ी कुंजी है। हर दिन कुछ नया सीखने की कोशिश करें। और सबसे जरूरी – खुद पर विश्वास रखें।
प्रोफ़ेसर (डॉ.) संजय द्विवेदी मीडिया शिक्षा के क्षेत्र में एक जानी-मानी शख्सियत हैं। वे भारतीय जन संचार संस्थान (IIMC) दिल्ली के महानिदेशक रह चुके हैं। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के प्रभारी कुलपति और कुलसचिव बतौर भी उन्होंने अपनी सेवाएं दी हैं। मीडिया शिक्षक होने के साथ ही प्रो.संजय द्विवेदी ने सक्रिय पत्रकार और दैनिक अखबारों के संपादक के रूप में भी भूमिकाएं निभाई हैं। वह मीडिया विमर्श पत्रिका के कार्यकारी संपादक भी हैं। 35 से ज़्यादा पुस्तकों का लेखन और संपादन भी किया है। सम्प्रति वे माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल के जनसंचार विभागमें प्रोफेसर हैं। मीडिया शिक्षा, मीडिया की मौजूदा स्थिति, नयी शिक्षा नीति जैसे कई अहम् मुद्दों पर एड-इनबॉक्स के लिए संपादक रईस अहमद 'लाली' ने उनसे लम्बी बातचीत की है। प्रस्तुत हैं इस बातचीत के सम्पादित अंश :
- संजय जी, प्रथम तो आपको बधाई कि वापस आप दिल्ली से अपने पुराने कार्यस्थल राजा भोज की नगरी भोपाल में आ गए हैं। यहाँ आकर कैसा लगता है आपको? मेरा ऐसा पूछने का तात्पर्य इन शहरों से इतर मीडिया शिक्षा के माहौल को लेकर इन दोनों जगहों के मिजाज़ और वातावरण को लेकर भी है।
अपना शहर हमेशा अपना होता है। अपनी जमीन की खुशबू ही अलग होती है। जिस शहर में आपने पढ़ाई की, पत्रकारिता की, जहां पढ़ाया उससे दूर जाने का दिल नहीं होता। किंतु महत्वाकांक्षाएं आपको खींच ले जाती हैं। सो दिल्ली भी चले गए। वैसे भी मैं जलावतन हूं। मेरा कोई वतन नहीं है। लेकिन मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की जमीन मुझे बांधती है। मैंने सब कुछ यहीं पाया। कहने को तो यायावर सी जिंदगी जी है। जिसमें दिल्ली भी जुड़ गया। आप को गिनाऊं तो मैंने अपनी जन्मभूमि (अयोध्या) के बाद 11 बार शहर बदले, जिनमें बस्ती, लखनऊ,वाराणसी, भोपाल, रायपुर, बिलासपुर, मुंबई, दिल्ली सब शामिल हैं। जिनमें दो बार रायपुर आया और तीसरी बार भोपाल में हूं। बशीर बद्र साहब का एक शेर है, जब मेरठ दंगों में उनका घर जला दिया गया, तो उन्होंने कहा था-
मेरा घर जला तो
सारा जहां मेरा घर हो गया।
मैं खुद को खानाबदोश तो नहीं कहता,पर यायावर कहता हूं। अभी भी बैग तैयार है। चल दूंगा। जहां तक वातावरण की बात है, दिल्ली और भोपाल की क्या तुलना। एक राष्ट्रीय राजधानी है,दूसरी राज्य की राजधानी। मिजाज की भी क्या तुलना हम भोपाल के लोग चालाकियां सीख रहे हैं, दिल्ली वाले चालाक ही हैं। सारी नियामतें दिल्ली में बरसती हैं। इसलिए सबका मुंह दिल्ली की तरफ है। लेकिन दिल्ली या भोपाल हिंदुस्तान नहीं हैं। राजधानियां आकर्षित करती हैं , क्योंकि यहां राजपुत्र बसते हैं। हिंदुस्तान बहुत बड़ा है। उसे जानना अभी शेष है।
- भोपाल और दिल्ली में पत्रकारिता और जन संचार की पढ़ाई के माहौल में क्या फ़र्क़ महसूस किया आपने?
भारतीय जन संचार संस्थान में जब मैं रहा, वहां डिप्लोमा कोर्स चलते रहे। साल-साल भर के। उनका जोर ट्रेनिंग पर था। देश भर से प्रतिभावान विद्यार्थी वहां आते हैं, सबका पहला चयन यही संस्थान होता है। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय इस मायने में खास है उसने पिछले तीस सालों से स्नातक और स्नातकोत्तर के रेगुलर कोर्स चलाए और बड़ी संख्या में मीडिया वृत्तिज्ञ ( प्रोफेसनल्स) और मीडिया शिक्षक निकाले। अब आईआईएमसी भी विश्वविद्यालय भी बन गया है। सो एक नई उड़ान के लिए वे भी तैयार हैं।
- आप देश के दोनों प्रतिष्ठित पत्रकारिता संस्थानों के अहम् पदों को सुशोभित कर चुके हैं। दोनों के बीच क्या अंतर पाया आपने ? दोनों की विशेषताएं आपकी नज़र में ?
दोनों की विशेषताएं हैं। एक तो किसी संस्था को केंद्र सरकार का समर्थन हो और वो दिल्ली में हो तो उसका दर्जा बहुत ऊंचा हो जाता है। मीडिया का केंद्र भी दिल्ली है। आईआईएमसी को उसका लाभ मिला है। वो काफी पुराना संस्थान है, बहुत शानदार एलुमूनाई है , एक समृध्द परंपरा है उसकी । एचवाई शारदा प्रसाद जैसे योग्य लोगों की कल्पना है वह। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय(एमसीयू) एक राज्य विश्वविद्यालय है, जिसे सरकार की ओर से बहुत पोषण नहीं मिला। अपने संसाधनों पर विकसित होकर उसने जो भी यात्रा की, वह बहुत खास है। कंप्यूटर शिक्षा के लोकव्यापीकरण में एमसीयू की एक खास जगह है। देश के अनेक विश्वविद्यालयों में आप जाएंगें तो मीडिया शिक्षकों में एमसीयू के ही पूर्व छात्र हैं, क्योंकि स्नातकोत्तर कोर्स यहीं चल रहे थे। पीएचडी यहां हो रही थी। सो दोनों की तुलना नहीं हो सकती। योगदान दोनों का बहुत महत्वपूर्ण है।
- आप लम्बे समय से मीडिया शिक्षक रहे हैं और सक्रिय पत्रकारिता भी की है आपने। व्यवहारिकता के धरातल पर मौजूदा मीडिया शिक्षा को कैसे देखते हैं ?
एक समय था जब माना जाता है कि पत्रकार पैदा होते हैं और पत्रकारिता पढ़ा कर सिखाई नहीं जा सकती। अब वक्त बदल गया है। जनसंचार का क्षेत्र आज शिक्षा की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण हो गया है।
मीडिया शिक्षा में सिद्धांत और व्यवहार का बहुत गहरा द्वंद है। ज्ञान-विज्ञान के एक अनुशासन के रूप में इसे अभी भी स्थापित होना शेष है। कुछ लोग ट्रेनिंग पर आमादा हैं तो कुछ किताबी ज्ञान को ही पिला देना चाहते हैं। जबकि दोनों का समन्वय जरूरी है। सिद्धांत भी जरूरी हैं। क्योंकि जहां हमने ज्ञान को छोड़ा है, वहां से आगे लेकर जाना है। शोध, अनुसंधान के बिना नया विचार कैसे आएगा। वहीं मीडिया का व्यवहारिक ज्ञान भी जरूरी है। मीडिया का क्षेत्र अब संचार शिक्षा के नाते बहुत व्यापक है। सो विशेषज्ञता की ओर जाना होगा। आप एक जीवन में सब कुछ नहीं कर सकते। एक काम अच्छे से कर लें, वह बहुत है। इसलिए भ्रम बहुत है। अच्छे शिक्षकों का अभाव है। एआई की चुनौती अलग है। चमकती हुई चीजों ने बहुत से मिथक बनाए और तोड़े हैं। सो चीजें ठहर सी गयी हैं, ऐसा मुझे लगता है।
- नयी शिक्षा निति को केंद्र सरकार नए सपनों के नए भारत के अनुरूप प्रचारित कर रही है, जबकि आलोचना करने वाले इसमें तमाम कमियां गिना रहे हैं। एक शिक्षक बतौर आप इन नीतियों को कैसा पाते हैं ?
राष्ट्रीय शिक्षा नीति बहुत शानदार है। जड़ों से जोड़कर मूल्यनिष्ठा पैदा करना, पर्यावरण के प्रति प्रेम, व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाना यही लक्ष्य है। किंतु क्या हम इसके लिए तैयार हैं। सवाल यही है कि अच्छी नीतियां- संसाधनों, शिक्षकों के समर्पण, प्रशासन के समर्थन की भी मांग करती हैं। हमें इसे जमीन पर उतारने के लिए बहुत तैयारी चाहिए। भारत दिल्ली में न बसता है, न चलता है। इसलिए जमीनी हकीकतों पर ध्यान देने की जरूरत है। शिक्षा हमारे ‘तंत्र’ की कितनी बड़ा प्राथमिकता है, इस पर भी सोचिए। सच्चाई यही है कि मध्यवर्ग और निम्न मध्यवर्ग ने भी अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों से हटा लिया है। वे सरकारी संस्थानों से कोई उम्मीद नहीं रखते। इस विश्वास बहाली के लिए सरकारी संस्थानों के शिक्षकों, प्रबंधकों और सरकारी तंत्र को बहुत गंभीर होने की जरूरत है। उत्तर प्रदेश के ताकतवर मुख्यमंत्री प्राथमिक शिक्षकों की विद्यालयों में उपस्थिति को लेकर एक आदेश लाते हैं, शिक्षक उसे वापस करवा कर दम लेते हैं। यही सच्चाई है।
- पत्रकारिता में करियर बनाने के लिए क्या आवश्यक शर्त है ?
पत्रकारिता, मीडिया या संचार तीनों क्षेत्रों में बनने वाली नौकरियों की पहली शर्त तो भाषा ही है। हम बोलकर, लिखकर भाषा में ही खुद को व्यक्त करते हैं। इसलिए भाषा पहली जरूरत है। तकनीक बदलती रहती है, सीखी जा सकती है। किंतु भाषा संस्कार से आती है। अभ्यास से आती है। पढ़ना, लिखना, बोलना, सुनना यही भाषा का असल स्कूल और परीक्षा है। भाषा के साथ रहने पर भाषा हममें उतरती है। यही भाषा हमें अटलबिहारी वाजपेयी,अमिताभ बच्चन, नरेंद्र मोदी,आशुतोष राणा या कुमार विश्वास जैसी सफलताएं दिला सकती है। मीडिया में अनेक ऐसे चमकते नाम हैं, जिन्होंने अपनी भाषा से चमत्कृत किया है। अनेक लेखक हैं, जिन्हें हमने रात भर जागकर पढ़ा है। ऐसे विज्ञापन लेखक हैं जिनकी पंक्तियां हमने गुनगुनाई हैं। इसलिए भाषा, तकनीक का ज्ञान और अपने पाठक, दर्शक की समझ हमारी सफलता की गारंटी है। इसके साथ ही पत्रकारिता में समाज की समझ, मिलनसारिता, संवाद की क्षमता बहुत मायने रखती है।
- मीडिया शिक्षा में कैसे नवाचारों की आवश्यकता है ?
शिक्षा का काम व्यक्ति को आत्मनिर्भर और मूल्यनिष्ठ मनुष्य बनाना है। जो अपनी विधा को साधकर आगे ले जा सके। मीडिया में भी ऐसे पेशेवरों का इंतजार है जो ‘फार्मूला पत्रकारिता’ से आगे बढ़ें। जो मीडिया को इस देश की आवाज बना सकें। जो एजेंड़ा के बजाए जन-मन के सपनों, आकांक्षाओं को स्वर दे सकें। इसके लिए देश की समझ बहुत जरूरी है। आज के मीडिया का संकट यह है वह नागरबोध के साथ जी रहा है। वह भारत के पांच प्रतिशत लोगों की छवियों को प्रक्षेपित कर रहा है। जबकि कोई भी समाज अपनी लोकचेतना से खास बनता है। देश की बहुत गहरी समझ पैदा करने वाले, संवेदनशील पत्रकारों का निर्माण जरूरी है। मीडिया शिक्षा को संवेदना,सरोकार, राग, भारतबोध से जोड़ने की जरूरत है। पश्चिमी मानकों पर खड़ी मीडिया शिक्षा को भारत की संचार परंपरा से जोड़ने की जरूरत है। जहां संवाद से संकटों के हल खोजे जाते रहे हैं। जहां संवाद व्यापार और व्यवसाय नहीं, एक सामाजिक जिम्मेदारी है।
- देश में मीडिया की मौजूदा स्थिति को लेकर आपकी राय क्या है ?
मीडिया शिक्षा का विस्तार बहुत हुआ है। हर केंद्रीय विश्वविद्यालय में मीडिया शिक्षा के विभाग हैं। चार विश्वविद्यालय- भारतीय जन संचार संस्थान(दिल्ली), माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विवि(भोपाल), हरिदेव जोशी पत्रकारिता विवि(जयपुर) और कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विवि(रायपुर) देश में काम कर रहे हैं। इन सबकी उपस्थिति के साथ-साथ निजी विश्वविद्यालय और कालेजों में भी जनसंचार की पढ़ाई हो रही है। यानि विस्तार बहुत हुआ है। अब हमें इसकी गुणवत्ता पर ध्यान देने की जरूरत है। ये जो चार विश्वविद्यालय हैं वे क्या कर रहे हैं। क्या इनका आपस में भी कोई समन्वय है। विविध विभागों में क्या हो रहा है। उनके ज्ञान, शोध और आइडिया एक्सचेंज जैसी व्यवस्थाएं बनानी चाहिए। दुनिया में मीडिया या जनसंचार शिक्षा के जो सार्थक प्रयास चल रहे हैं, उसकी तुलना में हम कहां हैं। बहुत सारी बातें हैं, जिनपर बात होनी चाहिए। अपनी ज्ञान विधा में हमने क्या जोड़ा। हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री ने भी एक समय देश में एक ग्लोबल कम्युनिकेशन यूनिर्वसिटी बनाने की बात की थी। देखिए क्या होता है।
बावजूद इसके हम एक मीडिया शिक्षक के नाते क्या कर पा रहे हैं। यह सोचना है। वरना तो मशहूर शायर अकबर इलाहाबादी हमारे लिए ही लिख गए हैं-
हम क्या कहें अहबाब क्या कार-ए-नुमायाँ कर गए।
बी-ए हुए नौकर हुए पेंशन मिली फिर मर गए।।
- आज की मीडिया और इससे जुड़े लोगों के अपने मिशन से भटक जाने और पूरी तरह पूंजीपतियों, सत्ताधीशों के हाथों बिक जाने की बात कही जा रही है। इससे आप कितना इत्तेफ़ाक़ रखते हैं?
देखिए मीडिया चलाना साधारण आदमी को बस की बात नहीं है। यह एक बड़ा उद्यम है। जिसमें बहुत पूंजी लगती है। इसलिए कारपोरेट,पूंजीपति या राजनेता चाहे जो हों, इसे पोषित करने के लिए पूंजी चाहिए। बस बात यह है कि मीडिया किसके हाथ में है। इसे बाजार के हवाले कर दिया जाए या यह एक सामाजिक उपक्रम बना रहेगा। इसलिए पूंजी से नफरत न करते हुए इसके सामाजिक, संवेदनशील और जनधर्मी बने रहने के लिए निरंतर लगे रहना है। यह भी मानिए कोई भी मीडिया जनसरोकारों के बिना नहीं चल सकता। प्रामणिकता, विश्वसनीयता उसकी पहली शर्त है। पाठक और दर्शक सब समझते हैं।
- आपकी नज़र में इस वक़्त देश में मीडिया शिक्षा की कैसी स्थिति है ? क्या यह बेहतर पत्रकार बनाने और मीडिया को सकारात्मक दिशा देने का काम कर पा रही है ?
मैं मीडिया शिक्षा क्षेत्र से 2009 से जुड़ा हूं। मेरे कहने का कोई अर्थ नहीं है। लोग क्या सोचते हैं, यह बड़ी बात है। मुझे दुख है कि मीडिया शिक्षा में अब बहुत अच्छे और कमिटेड विद्यार्थी नहीं आ रहे हैं। अजीब सी हवा है। भाषा और सरोकारों के सवाल भी अब बेमानी लगने लगे हैं। सबको जल्दी ज्यादा पाने और छा जाने की ललक है। ऐसे में स्थितियां बहुत सुखद नहीं हैं। पर भरोसा तो करना होगा। इन्हीं में से कुछ भागीरथ निकलेंगें जो हमारे मीडिया को वर्तमान स्थितियों से निकालेगें। ऐसे लोग तैयार करने होंगें, जो बहुत जल्दी में न हों। जो ठहरकर पढ़ने और सीखने के लिए तैयार हों। वही लोग बदलाव लाएंगें।
- देश में आज मीडिया शिक्षा के सामने प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?
सबसे बड़ी चुनौती है ऐसे विद्यार्थियों का इंतजार जिनकी प्राथमिकता मीडिया में काम करना हो। सिर्फ इसलिए नहीं कि यह ग्लैमर या रोजगार दे पाए। बल्कि देश के लोगों को संबल, साहस और आत्मविश्वास दे सके। संचार के माध्यम से क्या नहीं हो सकता। इसकी ताकत को मीडिया शिक्षकों और विद्यार्थियों को पहचानना होगा। क्या हम इसके लिए तैयार हैं,यह एक बड़ा सवाल है। मीडिया शिक्षा के माध्यम से हम ऐसे क्म्युनिकेटर्स तैयार कर सकते हैं जिनके माध्यम से समाज के संकट हल हो सकते हैं। यह साधारण शिक्षा नहीं है। यह असाधारण है। भाषा,संवाद,सरोकार और संवेदनशीलता से मिलकर हम जो भी रचेगें, उससे ही नया भारत बनेगा। इसके साथ ही मीडिया एजूकेशन कौंसिल का गठन भारत सरकार करे ताकि अन्य प्रोफेशनल कोर्सेज की तरह इसका भी नियमन हो सके। गली-गली खुल रहे मीडिया कालेजों पर लगाम लगे। एक हफ्ते में पत्रकार बनाने की दुकानों पर ताला डाला जा सके। मीडिया के घरानों में तेजी से मोटी फीस लेकर मीडिया स्कूल खोलने की ललक बढ़ी है, इस पर नियंत्रण हो सकेगा। गुणवत्ता विहीन किसी शिक्षा का कोई मोल नहीं, अफसोस मीडिया शिक्षा के विस्तार ने इसे बहुत नीचे गिरा दिया है। दरअसल भारत में मीडिया शिक्षा मोटे तौर पर छह स्तरों पर होती है। सरकारी विश्वविद्यालयों या कॉलेजों में, दूसरे, विश्वविद्यालयों से संबंद्ध संस्थानों में, तीसरे, भारत सरकार के स्वायत्तता प्राप्त संस्थानों में, चौथे, पूरी तरह से प्राइवेट संस्थान, पांचवे डीम्ड विश्वविद्यालय और छठे, किसी निजी चैनल या समाचार पत्र के खोले गए अपने मीडिया संस्थान। इस पूरी प्रक्रिया में हमारे सामने जो एक सबसे बड़ी समस्या है, वो है किताबें। हमारे देश में मीडिया के विद्यार्थी विदेशी पुस्तकों पर ज्यादा निर्भर हैं। लेकिन अगर हम देखें तो भारत और अमेरिका के मीडिया उद्योगों की संरचना और कामकाज के तरीके में बहुत अंतर है। इसलिए मीडिया के शिक्षकों की ये जिम्मेदारी है, कि वे भारत की परिस्थितियों के हिसाब से किताबें लिखें।
- भारत में मीडिया शिक्षा का क्या भविष्य देखते हैं आप ?
मीडिया शिक्षण में एक स्पर्धा चल रही है। इसलिए मीडिया शिक्षकों को ये तय करना होगा कि उनका लक्ष्य स्पर्धा में शामिल होने का है, या फिर पत्रकारिता शिक्षण का बेहतर माहौल बनाने का है। आज के समय में पत्रकारिता बहुत बदल गई है, इसलिए पत्रकारिता शिक्षा में भी बदलाव आवश्यक है। आज लोग जैसे डॉक्टर से अपेक्षा करते हैं, वैसे पत्रकार से भी सही खबरों की अपेक्षा करते हैं। अब हमें मीडिया शिक्षण में ऐसे पाठ्यक्रम तैयार करने होंगे, जिनमें विषयवस्तु के साथ साथ नई तकनीक का भी समावेश हो। न्यू मीडिया आज न्यू नॉर्मल है। हम सब जानते हैं कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के कारण लाखों नौकरियां गई हैं। इसलिए हमें मीडिया शिक्षा के अलग अलग पहलुओं पर ध्यान देना होगा और बाजार के हिसाब से प्रोफेशनल तैयार करने होंगे। नई शिक्षा नीति में क्षेत्रीय भाषाओं पर ध्यान देने की बात कही गई है। जनसंचार शिक्षा के क्षेत्र में भी हमें इस पर ध्यान देना होगा। मीडिया शिक्षण संस्थानों के लिए आज एक बड़ी आवश्यकता है क्षेत्रीय भाषाओं में पाठ्यक्रम तैयार करना। भाषा वो ही जीवित रहती है, जिससे आप जीविकोपार्जन कर पाएं और भारत में एक सोची समझी साजिश के तहत अंग्रेजी को जीविकोपार्जन की भाषा बनाया जा रहा है। ये उस वक्त में हो रहा है, जब पत्रकारिता अंग्रेजी बोलने वाले बड़े शहरों से हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाओं के शहरों और गांवों की ओर मुड़ रही है। आज अंग्रेजी के समाचार चैनल भी हिंदी में डिबेट करते हैं। सीबीएससी बोर्ड को देखिए जहां पाठ्यक्रम में मीडिया को एक विषय के रूप में पढ़ाया जा रहा है। क्या हम अन्य राज्यों के पाठ्यक्रमों में भी इस तरह की व्यवस्था कर सकते हैं, जिससे मीडिया शिक्षण को एक नई दिशा मिल सके।
- तेजी से बदलते मीडिया परिदृश्य के सापेक्ष मीडिया शिक्षा संस्थान स्वयं को कैसे ढाल सकते हैं यानी उन्हें उसके अनुकूल बनने के लिए क्या करना चाहिए ?
मीडिया शिक्षण संस्थानों को अपने पाठ्यक्रमों में इस तरह के बदलाव करने चाहिए, कि वे न्यू मीडिया के लिए छात्रों को तैयार कर सकें। आज तकनीक किसी भी पाठ्यक्रम का महत्वपूर्ण हिस्सा है। मीडिया में दो तरह के प्रारूप होते हैं। एक है पारंपरिक मीडिया जैसे अखबार और पत्रिकाएं और और दूसरा है डिजिटल मीडिया। अगर हम वर्तमान संदर्भ में बात करें तो सबसे अच्छी बात ये है कि आज ये दोनों प्रारूप मिलकर चलते हैं। आज पारंपरिक मीडिया स्वयं को डिजिटल मीडिया में परिवर्तित कर रहा है। जरूरी है कि मीडिया शिक्षण संस्थान अपने छात्रों को 'डिजिटल ट्रांसफॉर्म' के लिए पहले से तैयार करें। देश में प्रादेशिक भाषा यानी भारतीय भाषाओं के बाजार का महत्व भी लगातार बढ़ रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार अंग्रेजी भाषा के उपभोक्ताओं का डिजिटल की तरफ मुड़ना लगभग पूरा हो चुका है। ऐसा माना जा रहा है कि वर्ष 2030 तक भारतीय भाषाओं के बाजार में उपयोगकर्ताओं की संख्या 500 मिलियन तक पहुंच जाएगी और लोग इंटरनेट का इस्तेमाल स्थानीय भाषा में करेंगे। जनसंचार की शिक्षा देने वाले संस्थान अपने आपको इन चुनौतियों के मद्देनजर तैयार करें, यह एक बड़ी जिम्मेदारी है।
- वे कौन से कदम हो सकते हैं जो मीडिया उद्योग की अपेक्षाओं और मीडिया शिक्षा संस्थानों द्वारा उन्हें उपलब्ध कराये जाने वाले कौशल के बीच के अंतर को पाट सकते हैं?
भारत में जब भी मीडिया शिक्षा की बात होती है, तो प्रोफेसर के. ई. ईपन का नाम हमेशा याद किया जाता है। प्रोफेसर ईपन भारत में पत्रकारिता शिक्षा के तंत्र में व्यावहारिक प्रशिक्षण के पक्षधर थे। प्रोफेसर ईपन का मानना था कि मीडिया के शिक्षकों के पास पत्रकारिता की औपचारिक शिक्षा के साथ साथ मीडिया में काम करने का प्रत्यक्ष अनुभव भी होना चाहिए, तभी वे प्रभावी ढंग से बच्चों को पढ़ा पाएंगे। आज देश के अधिकांश पत्रकारिता एवं जनसंचार शिक्षण संस्थान, मीडिया शिक्षक के तौर पर ऐसे लोगों को प्राथमिकता दे रहे हैं, जिन्हें अकादमिक के साथ साथ पत्रकारिता का भी अनुभव हो। ताकि ये शिक्षक ऐसा शैक्षणिक माहौल तैयार कर सकें, ऐसा शैक्षिक पाठ्यक्रम तैयार कर सकें, जिसका उपयोग विद्यार्थी आगे चलकर अपने कार्यक्षेत्र में भी कर पाएं। पत्रकारिता के प्रशिक्षण के समर्थन में जो तर्क दिए जाते हैं, उनमें से एक दमदार तर्क यह है कि यदि डॉक्टरी करने के लिए कम से कम एम.बी.बी.एस. होना जरूरी है, वकालत की डिग्री लेने के बाद ही वकील बना जा सकता है तो पत्रकारिता जैसे महत्वपूर्ण पेशे को किसी के लिए भी खुला कैसे छोड़ा जा सकता है? बहुत बेहतर हो मीडिया संस्थान अपने अध्यापकों को भी मीडिया संस्थानों में अनुभव के लिए भेजें। इससे मीडिया की जरूरतों और न्यूज रूम के वातावरण का अनुभव साक्षात हो सकेगा। विश्वविद्यालयों को आखिरी सेमेस्टर या किसी एक सेमेस्टर में न्यूज रूम जैसे ही पढ़ाई पर फोकस करना चाहिए। अनेक विश्वविद्यालय ऐसे कर सकने में सक्षम हैं कि वे न्यूज रूम क्रियेट कर सकें।
- अपने कार्यकाल के दौरान मीडिया शिक्षा और आईआईएमसी की प्रगति के मद्देनज़र आपने क्या महत्वपूर्ण कदम उठाये, संक्षेप में उनका ज़िक्र करें।
मुझे लगता है कि अपने काम गिनाना आपको छोटा बनाता है। मैंने जो किया उसकी जिक्र करना ठीक नहीं। जो किया उससे संतुष्ठ हूं। मूल्यांकन लोगों पर ही छोड़िए।
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) यानी कृत्रिम बुद्धिमत्ता विज्ञान का एक नया वरदान है। कंप्यूटर के क्षेत्र में नई तकनीक। जॉन मैकार्थी को इस आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का जनक माना जाता है। एक ऐसी विधा जिसमें मशीन से मशीन की बातें होती है। एक कंप्यूटर दूसरे कंप्यूटर से बात करता है। यह विज्ञान का अद्भुत चमत्कार है। मानव जीवन में तो इसका दखल बढ़ा ही है, करियर के लिहाज से भी इसका दायरा और और विस्तृत होता जा रहा है। इसमें मैकेनिकल इंजीनियरिंग, कंप्यूटर साइंस इंजीनियरिंग, अप्लाइड आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के साथ-साथ रोबोटिक ऑटोमेशन इंजीनियरिंग में डिप्लोमा, बैचलर डिग्री, मास्टर डिग्री और रिसर्च आदि में करियर विकल्प हैं।
अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक और फिनलैंड के सवोनिया यूनिवर्सिटी ऑफ एप्लाइड साइंस के प्रोफेसर डॉ राजीव कंठ से इस विषय पर हमने विस्तृत चर्चा की। उनसे चर्चा के क्रम में पता चलता है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आने वाले समय में हमारे जीवन में कितना महत्वपूर्ण हो जाएगा। बातचीत के कुछ अंश :
प्र. - सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नया क्या है?
उ. - सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आज हर दिन कुछ ना कुछ नया हो रहा है। यही वजह है कि इस क्षेत्र को पोटेंशियल डेवलपमेंट एरिया के रूप में देखा जा रहा है। अब तक मशीन से आदमी की बात होती थी। अब मशीन से मशीन की बात होती है। यह सबसे नई तकनीक है।
प्र. - इस क्षेत्र में सबसे बड़ी चुनौती क्या है?
उ. - इस क्षेत्र में जितनी नई चीजें आ रही हैं या कह सकते हैं कि जितनी नई चीजों पर शोध हो रहा है, उन चीजों का समुचित विकास करना सबसे बड़ी चुनौती है।
प्र. - इस क्षेत्र के कई आयाम हैं जैसे इंटरनेट, ई-बैंकिंग, ई-कॉमर्स, ईमेल आदि इन सब में सबसे बड़ी चुनौती किस क्षेत्र में है?
उ. - चुनौती तो सभी क्षेत्र में है। किसी भी चुनौती को कम नहीं कहा जा सकता लेकिन बैंकिंग क्षेत्र में ज्यादा कह सकते हैं। क्योंकि लोग मेहनत की कमाई बैंक में रखते हैं और हैकर्स सेकंडों में उसे उड़ा लेते हैं। इसलिए बैंकिंग के क्षेत्र में सबसे बड़ी चुनौती है।
प्र. - हैकरों से छुटकारा पाने के लिए क्या सुझाव देना चाहेंगे?
उ. - हैकरों से छुटकारा पाने के लिए सुझाव है कि पासवर्ड किसी से शेयर ना करें। पासवर्ड 3-4 लेयर का बनाएं और एक निश्चित समय अंतराल के बाद पासवर्ड को बदलते रहें। ये कुछ उपाय हैं जिससे हैकरों से बचा जा सकता है।
प्र. - युवाओं को करियर के लिए क्या सुझाव देना चाहेंगे?
उ. - करियर के लिहाज से यह क्षेत्र काफी अच्छा है। आज हर युवा जो इस फील्ड में करियर बनाना चाहता है उसकी पहली चॉइस कंप्यूटर साइंस होता है। जब वह कंप्यूटर साइंस से स्नातक करता है, उसके बाद सूचना प्रौद्योगिकी आथवा कृत्रिम बुद्धिमता या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मैं अपना कैरियर बनाना चाहता है। रोबोट बनाने की ख्वाहिश आज हर सूचना प्रौद्योगिकी पढ़ने वाले छात्र की होती है।
हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत की कुल आबादी का एक तिहाई से अधिक हिस्सा 15 से 25 वर्ष की आयु वर्ग के युवाओं का है। आशाओं और आकांक्षाओं से आच्छादित जीवन का यही वह दौर होता है जब एक युवा अपने करियर को लेकर गंभीर होता है। इसी के दृष्टिगत वह अपनी एक अलहदा राह का निर्धारण करता है, सीखने के लिए तदनुरूप विषय का चयन करता है और भविष्य में उसे जिन कार्यों को सम्पादित करना है, उसके मद्देनज़र निर्णय के पड़ाव पर पहुँचने का प्रयास करता है। और यही वह पूरी प्रक्रिया है जो उसे आत्मनिर्भर बनाती है। लिहाजा, जीवन के इस कालखंड में आवश्यक है कि कोई उसका हाथ थामे, उसका ज़रूरी मार्गदर्शन करे।
हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि इंजीनियरिंग, मेडिकल और मैनेजमेंट अब भी करियर-निर्माण के लिहाज से पसंदीदा क्षेत्र बने हुए हैं, जबकि सीखने, काम करने और अपने पेशेवर जीवन के निर्माण के लिए 99 अन्य विशिष्ट क्षेत्र भी हैं। इनमें डिजाइन, मीडिया, फोरेंसिक विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, अलाइड हेल्थकेयर, कृषि आदि शामिल हैं। दुर्भाग्यवश, करियर के इन क्षेत्रों को लेकर बहुत कम चर्चा होती है। कोई इस पर बात नहीं करता कि इन डोमेन में नवीनतम क्या है।
हम यह भी न भूलें कि लगभग 4 ट्रिलियन डॉलर की भारतीय अर्थव्यवस्था में भारतीय मीडिया की हिस्सेदारी करीब 1% की है। प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष 2 मिलियन से अधिक लोग किसी न किसी रूप में इससे सम्बद्ध हैं। मीडिया एक ऐसा क्षेत्र भी है, जो लोगों के दिलो-दिमाग पर गहरा प्रभाव छोड़ता है। लेकिन शायद ही कोई ऐसा समर्पित मीडिया मंच है जिसका मीडिया-शिक्षा और लर्निंग की दिशा में ध्यान केंद्रित हो। सार्वजनिक जीवन में शायद मीडिया-शिक्षा अभी भी सबसे उपेक्षित क्षेत्र है।
हमें नहीं भूलना चाहिए कि शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा, ये दो ऐसे क्षेत्र हैं जो वास्तव में बड़े देशों के बीच सबसे बड़ी युवा आबादी वाले देश में मानव संसाधन के लिए उत्तरदायी हैं। दुर्भाग्य कि इन क्षेत्रों पर शासन और देश की राजनीति का ध्यान सबसे कम केंद्रित होता है। आने वाले समय में इन पर सार्वजनिक तौर पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।
न भूलें कि भारत की उच्च शिक्षा का आज वृहद् दायरा है, जहां बारहवीं कक्षा से ऊपर के सौ मिलियन से अधिक शिक्षार्थी हैं, लेकिन इनमें अधिकांश की स्तर सामान्य और गुणवत्ता औसत है। अपवादस्वरूप, कुछ संस्थानों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराई जा रही है। ऐसे में यदि हम चाहते हैं कि हमारे पास मौजूद जनसांख्यिकीय लाभ का सकारात्मक परिणाम हमें प्राप्त हो तो गुणवत्ता के दायरे का तेजी से विस्तार अतिआवश्यक है।
और, यही वजह है कि उपरोक्त सन्दर्भों पर ध्यान केंद्रित करने और सर्वप्रथम भारत और तदुपरांत एशिया की उच्च शिक्षा (विशेष क्षेत्रों में ख़ास तौर पर ) में प्रगति को गति प्रदान करने के लिए, एक मई को श्रमिक दिवस पर एडइनबॉक्स हिंदी के साथ हम आपके समक्ष अपनी उपस्थिति दर्ज कर रहे हैं। शिक्षा के सामर्थ्य और श्रम की संघर्षशीलता को नमन करते हुए यह हमारी तरफ से इसका सम्मान है, एक उपहार।
साथ ही, इस मंच से हमारा प्रयास होगा बेहतर गुणवत्ता वाले उच्च शिक्षा संस्थानों का समर्थन करना और स्कूलों से निकलने वाले नौजवानों को ज्ञान, जानकारी और अंतर्दृष्टि के साथ उन्हें उनके सपनों के करियर और संस्थानों में प्रवेश की राह आसान बनाने में सहायता करना। इन क्षेत्रों के महारथियों की उपलब्धियों को भी सम्बंधित काउन्सिल के माध्यम से, संस्थानों और मार्गदर्शकों को सम्मानित कर उनकी महती भूमिका को लोगों के समक्ष रखने और उजागर करने का हमारा प्रयास होगा। हमारा इरादा हर क्षेत्र या डोमेन का एक इकोसिस्टम निर्मित करना है, धरातल पर भी और ऑनलाइन भी।
तो आइये, एडइनबॉक्स के साथ हम उच्च शिक्षा जगत की एक प्रभावी यात्रा पर अग्रसर हों।
--
प्रो उज्ज्वल अनु चौधरी
वाइस प्रेजिडेंट, वाशिंगटन यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी
एडिटर, एडइनबॉक्स (Edinbox.com)
पूर्व सलाहकार और प्रोफेसर, डैफोडिल इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी, ढाका
(इससे पूर्व एडमास यूनिवर्सिटी से प्रो वीसी के रूप में,
सिम्बायोसिस व एमिटी यूनिवर्सिटी, पर्ल अकादमी और डब्ल्यूडब्ल्यूआई के डीन,
और टीओआई, ज़ी, बिजनेस इंडिया ग्रुप से जुड़ाव के साथ भारत सरकार और डब्ल्यूएचओ/टीएनएफ के मीडिया सलाहकार रहे हैं।)
अगर आप भारत में फॉरेंसिक साइंस में करियर बनाना चाहते हैं, तो ऑल इंडिया फॉरेंसिक साइंस एंट्रेंस टेस्ट (AIFSET) आपके लिए एक बेहतरीन मौका है। यह परीक्षा आपको देश के टॉप विश्वविद्यालयों में B.Sc. और M.Sc. फॉरेंसिक साइंस प्रोग्राम में प्रवेश दिला सकती है। अगर आप AIFSET 2026 की तैयारी कर रहे हैं, तो यहां आपके लिए इसकी पूरी जानकारी है:
AIFSET क्या है?
AIFSET (ऑल इंडिया फॉरेंसिक साइंस एंट्रेंस टेस्ट) एक राष्ट्रीय स्तर की ऑनलाइन परीक्षा है, जो उन छात्रों के लिए है जो भारत के विभिन्न भागीदार विश्वविद्यालयों में B.Sc. या M.Sc. फॉरेंसिक साइंस प्रोग्राम में प्रवेश लेना चाहते हैं।
यह परीक्षा पूरी तरह ऑनलाइन मोड में होती है — आप इसे अपने मोबाइल, लैपटॉप या डेस्कटॉप से घर बैठे दे सकते हैं।
परीक्षा की अवधि: 60 मिनट
कुल प्रश्न: 100 बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs)
नेगेटिव मार्किंग नहीं है।
AIFSET 2025: मुख्य तथ्य
पात्रता:
B.Sc. के लिए: 12वीं (विज्ञान विषयों से) पास या appearing छात्र।
M.Sc. के लिए: संबंधित विषय में स्नातक डिग्री।
परीक्षा तिथि:
यह परीक्षा कई चरणों में होती है — सटीक तिथियां आधिकारिक वेबसाइट (aifset.com) से प्राप्त करें।
परीक्षा प्रारूप:
- 100 प्रश्न, प्रत्येक 1 अंक का
- 60 मिनट का समय
- ऑनलाइन मोड
- केवल अंग्रेज़ी भाषा में
- कोई नेगेटिव मार्किंग नहीं
आवेदन शुल्क: ₹2,000 (गैर-वापसी योग्य), केवल ऑनलाइन भुगतान
AIFSET का सिलेबस क्या है?
B.Sc. फॉरेंसिक साइंस के लिए:
बायोलॉजी: जीवों की विविधता, पादप/प्राणि जगत, कोशिका संरचना
केमिस्ट्री: परमाणु संरचना, रासायनिक बंधन, पदार्थ की अवस्थाएँ
फिजिक्स: इलेक्ट्रोस्टैटिक्स, चुंबकत्व, गति, ऊष्मागतिकी
मैथ्स: संबंध एवं फलन, त्रिकोणमिति (मूल स्तर)
फॉरेंसिक साइंस: परिभाषा, इतिहास, अपराध के प्रकार, पुलिस संगठन, क्राइम सीन, बैलिस्टिक्स, संदिग्ध दस्तावेज
साइकोमेट्रिक और एप्टीट्यूड: रीजनिंग, सामान्य अंग्रेज़ी, गणितीय क्षमता, याददाश्त और अधिगम
M.Sc. फॉरेंसिक साइंस के लिए:
इस स्तर पर सिलेबस और भी गहराई में होता है — सभी फॉरेंसिक शाखाओं, पुलिस विज्ञान, फॉरेंसिक बायोलॉजी/टॉक्सिकोलॉजी, अपराध स्थल प्रबंधन और उन्नत उपकरणों का अध्ययन शामिल होता है।
सटीक और अद्यतन सिलेबस के लिए आधिकारिक वेबसाइट से PDF डाउनलोड करना न भूलें।
AIFSET की तैयारी कैसे करें?
● सिलेबस और परीक्षा पैटर्न को अच्छी तरह समझें
सिलेबस को छोटे-छोटे हिस्सों में बांटकर रोज़ के लक्ष्य तय करें।
● विज्ञान के मूल कॉन्सेप्ट्स मज़बूत करें
- NCERT (कक्षा 11वीं–12वीं) की बायोलॉजी, फिजिक्स, केमिस्ट्री और आसान गणित की दोबारा पढ़ाई करें।
- जैनेटिक्स, सेल संरचना, रासायनिक अभिक्रियाएं, और आपराधिक कानून की मूल बातें ज़रूर समझें।
● फॉरेंसिक साइंस पर विशेष ध्यान दें
- फॉरेंसिक साइंस की शुरुआती किताबें या विश्वसनीय ऑनलाइन कंटेंट पढ़ें।
जैसे – क्राइम सीन जांच, टॉक्सिकोलॉजी के मूल सिद्धांत, बैलिस्टिक प्रक्रिया आदि।
● मॉक टेस्ट और पिछले वर्षों के पेपर हल करें
- आधिकारिक वेबसाइट या शैक्षणिक पोर्टलों पर 60 मिनट के मॉक टेस्ट दें।
- सैंपल पेपर आपकी गति और सटीकता बढ़ाते हैं, और कमज़ोर विषयों की पहचान में मदद करते हैं।
● स्मार्ट तरीके से रिवीजन करें
- महत्वपूर्ण टॉपिक की शॉर्ट नोट्स, फ्लैश कार्ड और फार्मूला लिस्ट बनाएं।
- DNA प्रोफाइलिंग, क्राइम सीन, टॉक्सिकोलॉजी आदि से जुड़े प्रश्नों पर विशेष ध्यान दें।
● नेगेटिव मार्किंग नहीं है — हर सवाल ज़रूर करें
- शंका हो तो समझदारी से अनुमान लगाकर उत्तर दें, खाली न छोड़ें।
● परीक्षा के दिन तैयार रहें
- इंटरनेट कनेक्शन और डिवाइस की पहले से जांच करें।
- समय से पहले लॉगिन करें, एडमिट कार्ड और रफ वर्क सामग्री साथ रखें।
- रात में अच्छी नींद लें, हल्का खाना खाएं और खुद पर विश्वास रखें।
जल्दी में चेकलिस्ट
- आधिकारिक वेबसाइट से सिलेबस डाउनलोड करें
- टाइमटेबल बनाएं और कमज़ोर विषयों को ज़्यादा समय दें
- NCERT और फॉरेंसिक बेसिक्स की दोहराई करें
- कम से कम 5 मॉक टेस्ट हल करें
- लॉगिन डिटेल्स और तकनीकी सेटअप सुनिश्चित करें
- आत्मविश्वास बनाए रखें और हर प्रश्न का उत्तर दें
प्रो टिप:
- AIFSET की वेबसाइट पर नियमित विज़िट करें — नोटिफिकेशन, गाइडलाइंस और मॉक टेस्ट के लिए।
- सफल सीनियर्स या स्टूडेंट फोरम्स से सलाह लें और परीक्षा से जुड़ी अपडेट्स पर नज़र रखें।
तो देर किस बात की? सही रणनीति के साथ AIFSET 2026 की तैयारी शुरू करें और इस परीक्षा में सफलता पाने का पूरा मौका अपने हाथों में लें!
डिज़ाइन क्षेत्र में करियर बनाने की योजना बना रहे हर छात्र के सामने सबसे अहम निर्णय होता है — सही संस्थान का चुनाव। भारत में डिज़ाइन इंडस्ट्री तेजी से विकसित हो रही है और फैशन, प्रोडक्ट, इंटीरियर, ग्राफिक और एनीमेशन जैसे क्षेत्रों में कुशल पेशेवरों की भारी मांग है। ऐसे में यह जानना जरूरी है कि कई प्राइवेट डिज़ाइन संस्थान आज न सिर्फ बेहतर पाठ्यक्रम प्रदान कर रहे हैं, बल्कि वे उद्योग की जरूरतों और भविष्य की मांगों के अनुरूप शिक्षा दे रहे हैं।
प्राइवेट डिज़ाइन शिक्षा में विकास और विविधता
भारत में वर्तमान में 1,200 से अधिक निजी डिज़ाइन कॉलेज हैं, जो डिप्लोमा से लेकर पीएचडी तक के कोर्स प्रदान करते हैं। इन संस्थानों में फैशन, इंटीरियर, विजुअल कम्युनिकेशन, प्रोडक्ट डिज़ाइन, UX/UI जैसे तमाम विशेषज्ञता वाले कोर्स उपलब्ध हैं।
शीर्ष संस्थानों में शामिल हैं:
- यूनाइटेडवर्ल्ड इंस्टिट्यूट ऑफ डिज़ाइन (UID), कर्णावती यूनिवर्सिटी
- वॉक्ससेन स्कूल ऑफ आर्ट्स एंड डिज़ाइन्स
- पर्ल एकेडमी
- एमिटी स्कूल ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी
- एपीजे इंस्टिट्यूट ऑफ डिज़ाइन
- अवंतिका यूनिवर्सिटी
इन कॉलेजों को उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा, इंडस्ट्री से जुड़ाव और आधुनिक इन्फ्रास्ट्रक्चर के लिए जाना जाता है।
प्रवेश प्रक्रिया, योग्यता और लचीलापन
ज्यादातर प्राइवेट डिज़ाइन कॉलेजों में प्रवेश प्रक्रिया अपेक्षाकृत सरल होती है। सरकारी संस्थानों के लिए NID DAT, AIDAT, UCEED, CEED जैसे कॉम्पिटिटिव एग्जाम जरूरी होते हैं, लेकिन कई निजी संस्थान पोर्टफोलियो के आधार पर भी प्रवेश देते हैं। इससे ज्यादा संख्या में रचनात्मक छात्र इन कॉलेजों में प्रवेश ले पाते हैं।
12वीं के बाद छात्र BDes, डिप्लोमा, शॉर्ट टर्म सर्टिफिकेशन और मास्टर से लेकर डॉक्टरेट स्तर तक के कोर्स कर सकते हैं। इस लचीलापन का लाभ उन्हें अपने पसंदीदा क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल करने में होता है।
उद्योग से जुड़ाव और कोर्स की गुणवत्ता
शीर्ष प्राइवेट डिज़ाइन कॉलेजों का उद्योग से गहरा तालमेल होता है। छात्र इंटर्नशिप, लाइव प्रोजेक्ट्स और अनुभवी डिज़ाइनरों की गेस्ट लेक्चर्स से सीखते हैं।
उदाहरण के तौर पर:
पर्ल एकेडमी इंडस्ट्री-स्पेसिफिक ट्रेनिंग देती है और ₹17 लाख से ₹20.2 लाख तक का प्लेसमेंट पैकेज उपलब्ध कराती है।
Strate School of Design प्रोडक्ट, ट्रांसपोर्टेशन और इंटरैक्शन डिज़ाइन जैसे खास विषयों में विशेषज्ञता प्रदान करता है और ₹10 लाख तक का औसत प्लेसमेंट देता है।
अंतरराष्ट्रीय अवसर, शिक्षा गुणवत्ता और संसाधन
अधिकांश प्राइवेट डिज़ाइन कॉलेजों में आधुनिक कैंपस, लेटेस्ट लैब्स, डिजिटल स्टूडियो और इंटरनेशनल टाई-अप्स होते हैं।
जैसे: World University of Design, Pearl Academy, Srishti Manipal
ये संस्थान विश्वस्तरीय डिज़ाइन स्कूलों से जुड़े हुए हैं, जिससे छात्रों को वैश्विक स्तर पर सीखने और करियर बनाने के बेहतर अवसर मिलते हैं।
शुल्क, स्कॉलरशिप और वित्तीय सहायता
प्राइवेट संस्थानों की फीस अपेक्षाकृत अधिक होती है। BDes जैसे चार वर्षीय कोर्स की कुल लागत ₹12 लाख (World University of Design) से ₹26 लाख (Strate School of Design) तक हो सकती है।
हालांकि, अधिकांश संस्थान मेरिट आधारित स्कॉलरशिप और वित्तीय सहायता भी प्रदान करते हैं, जिससे योग्य छात्रों को मदद मिलती है।
प्लेसमेंट और करियर के अवसर
शीर्ष निजी डिज़ाइन कॉलेजों का प्लेसमेंट रिकॉर्ड मजबूत है। ये कॉलेज फैशन, ई-कॉमर्स, आईटी और अन्य क्रिएटिव इंडस्ट्री में बेहतरीन प्लेसमेंट उपलब्ध कराते हैं।
जैसे UID और Pearl Academy के पास मजबूत प्लेसमेंट सेल हैं और छात्र राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय ब्रांड्स में जगह बनाते हैं।
हैं कुछ सीमाएं भी
हालांकि प्राइवेट कॉलेजों में सुविधाएं और लचीलापन अधिक होता है, फिर भी हर संस्थान की गुणवत्ता एक जैसी नहीं होती।
एप्रूवल, फैकल्टी की योग्यता, प्लेसमेंट का डाटा, और एलुमनाई की स्थिति को लेकर व्यक्तिगत स्तर पर जानकारी लेना जरूरी है।
इसके अलावा, सरकारी कॉलेजों की तुलना में फीस अधिक होती है, जो एक आर्थिक चुनौती बन सकती है।
रचनात्मक छात्रों के लिए उपयुक्त विकल्प
यदि आप एक रचनात्मक सोच रखने वाले छात्र हैं, जो लचीली प्रवेश प्रक्रिया और इंडस्ट्री एक्सपोजर की तलाश में हैं, तो प्राइवेट डिज़ाइन कॉलेज आपके लिए उत्तम विकल्प हो सकते हैं—बशर्ते आपने पूरी जानकारी और रिसर्च के साथ फैसला लिया हो।
AIDAT जैसे एग्जाम पास करके छात्र शीर्ष प्राइवेट डिज़ाइन कॉलेजों में प्रवेश पा सकते हैं, जहाँ उन्हें समकालीन शिक्षा, प्रभावशाली प्लेसमेंट और इंडस्ट्री से जुड़ाव का लाभ मिलता है।
समझदारी से सोचें, और अपनी ज़रूरत के अनुसार संस्थान चुनें।
जैसे-जैसे हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स, विशेष रूप से एलाइड हेल्थ साइंसेज (Allied Health Sciences) की माँग बढ़ रही है, भारतीय छात्र अब केवल पारंपरिक प्रवेश परीक्षाओं जैसे NEET पर निर्भर नहीं रह गए हैं। इसी बदलते परिदृश्य में, Global Allied Healthcare Entrance Test (GAHET 2025) भारत का पहला राष्ट्रीय स्तर का एलाइड हेल्थ एंट्रेंस एग्ज़ाम बनकर उभरा है।
लेकिन सवाल है — GAHET और NEET में क्या अंतर है? और आज के Gen Z मेडिकल स्टूडेंट्स के लिए कौन सा विकल्प बेहतर है?
NEET क्या है?
NEET (National Eligibility cum Entrance Test) भारत की सबसे प्रमुख मेडिकल प्रवेश परीक्षा है, जो MBBS, BDS, और कुछ एलाइड हेल्थ कोर्सेज़ में दाख़िले के लिए होती है। इसे राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी (NTA) द्वारा आयोजित किया जाता है। इसमें पूछे जाने वाले विषय होते हैं भौतिकी (Physics), रसायन विज्ञान (Chemistry) और जीव विज्ञान (Biology)।
योग्यता: 10+2 में PCB (Physics, Chemistry, Biology/Biotechnology) और अंग्रेजी पास होना अनिवार्य है।
परीक्षा तिथि: आमतौर पर मई में
आवेदन: NTA की NEET वेबसाइट पर
GAHET क्या है?
GAHET (Global Allied Healthcare Entrance Test) विशेष रूप से एलाइड हेल्थ साइंसेज के इच्छुक छात्रों के लिए डिज़ाइन की गई परीक्षा है। यह NEET के विपरीत, MBBS या BDS तक सीमित नहीं है, बल्कि यह विभिन्न पैरामेडिकल और हेल्थ टेक्नोलॉजी कोर्सेज के लिए प्रवेश का द्वार है।
विषय: Physics, Chemistry, Biology, और English
योग्यता: मान्यता प्राप्त बोर्ड से 10+2 विज्ञान (Physics, Chemistry, English, और Biology/Maths/ Botany/ Zoology में कम से कम 50%)
परीक्षा: हर महीने, सुविधानुसार दी जा सकती है
आवेदन: www.gahet.org पर ऑनलाइन
GAHET और NEET में अंतर
पैरामीटर GAHET NEET UG
फ़ोकस एलाइड हेल्थ / पैरामेडिकल कोर्सेज़ MBBS, BDS, कुछ Allied Health कोर्सेज़
विषय भौतिकी, रसायन, जीवविज्ञान, अंग्रेज़ी भौतिकी, रसायन, जीवविज्ञान
परीक्षा पैटर्न Gen Z फ्रेंडली, आधुनिक अप्टीट्यूड आधारित पारंपरिक MCQ आधारित
योग्यता 10+2 साइंस, कम से कम 50% अंकों के साथ 10+2 साइंस (PCB)
आवेदन प्रक्रिया ऑनलाइन (gahet.org) ऑनलाइन (NTA NEET पोर्टल)
परीक्षा आवृत्ति हर महीने साल में एक बार
संस्थान प्रमुख प्राइवेट एलाइड हेल्थ कॉलेज मेडिकल, डेंटल, कुछ पैरामेडिकल संस्थान
करियर ऑप्शंस EMT, Physiotherapist, Lab Tech, OTT, Rehab Counselor आदि Doctor, Surgeon, Dentist, Legal Med Advisor आदि
Gen Z के लिए GAHET क्यों है बेहतर विकल्प?
1. 100% ऑनलाइन और नो निगेटिव मार्किंग
GAHET पूरी तरह ऑनलाइन होता है, जिसमें नेगेटिव मार्किंग नहीं है — यह Gen Z छात्रों के लिए तनाव-मुक्त अनुभव सुनिश्चित करता है।
2. डॉक्टर या नर्स नहीं बनना चाहते? फिर भी हेल्थकेयर में करियर पक्का!
अगर आप मेडिकल फील्ड में काम करना चाहते हैं लेकिन MBBS या नर्सिंग आपकी पसंद नहीं है, तो पैरामेडिकल क्षेत्र में सैकड़ों विकल्प हैं — और GAHET से यह राह खुलती है।
3. रोज़गार-केंद्रित परीक्षा
GAHET का सिलेबस और मूल्यांकन तरीका मौजूदा हेल्थकेयर इंडस्ट्री की ज़रूरतों के अनुसार है, जिससे छात्र अधिक इंडस्ट्री-रेडी और एम्प्लॉयेबल बनते हैं।
4. राष्ट्रीय स्तर की पहली Allied Health परीक्षा
GAHET भारत की पहली राष्ट्रीय स्तर की Allied Health परीक्षा है, जो पूरी तरह से पैरामेडिकल प्रोफेशन को समर्पित है।
5. AIIMS पैरामेडिकल एग्ज़ाम से अलग
AIIMS की परीक्षा केवल AIIMS के कैंपस तक सीमित है, लेकिन GAHET में भारत के कई प्रमुख प्राइवेट पैरामेडिकल कॉलेजों तक पहुँच है।
तो कौन सी परीक्षा दें? NEET या GAHET?
अगर आप बनना चाहते हैं... तो यह परीक्षा दें:
MBBS या BDS डॉक्टर NEET अनिवार्य है
Allied Health में करियर (EMT, लैब टेक, फिजियो आदि) GAHET सर्वश्रेष्ठ विकल्प है
दोनों विकल्प खुले रखना चाहते हैं दोनों परीक्षाएं दें – आमतौर पर तिथियाँ नहीं टकरातीं
GAHET 2025: भविष्य की ओर एक कदम
GAHET केवल एक वैकल्पिक परीक्षा नहीं, बल्कि एक आधुनिक और समावेशी करियर मॉडल है जो आज के युवाओं के कौशल और दृष्टिकोण के अनुकूल है।
क्या आप एक Gen Z छात्र हैं जो हेल्थकेयर में करियर चाहता है पर NEET का बोझ नहीं उठाना चाहता?
तो GAHET आपके लिए सबसे स्मार्ट, आसान और व्यावहारिक विकल्प है।
GAHET 2025 की नवीनतम जानकारी और रजिस्ट्रेशन के लिए www.gahet.org पर विज़िट करें।
राष्ट्रीय फॉरेंसिक विज्ञान विश्वविद्यालय (NFSU) की प्रवेश परीक्षा उन उम्मीदवारों के लिए सबसे प्रतिष्ठित मानी जाती है, जो फॉरेंसिक साइंस, साइबर सिक्योरिटी, प्रबंधन, कानून आदि क्षेत्रों में करियर बनाना चाहते हैं।
जैसे-जैसे 2026 के प्रवेश चक्र की तैयारी शुरू हो रही है, यह जरूरी हो जाता है कि छात्र नई परीक्षा योजना और सिलेबस को समझें और प्रभावी तरीके से तैयारी करें। यह एक सूचनात्मक मार्गदर्शिका है जो आपको NFSU प्रवेश परीक्षा की तैयारी और उसमें सफलता पाने के लिए आवश्यक सभी जानकारी प्रदान करती है।
NFSU प्रवेश परीक्षा – संक्षिप्त जानकारी
विवरण जानकारी
परीक्षा मोड कंप्यूटर आधारित टेस्ट (CBT)
प्रश्न प्रारूप बहुविकल्पीय प्रश्न (MCQs)
समय 90 मिनट (1.5 घंटे)
कुल प्रश्न 100
मार्किंग स्कीम सही उत्तर पर +1, गलत उत्तर पर -0.25
पात्रता कार्यक्रम-विशिष्ट है; अधिक जानकारी के लिए NFSU की आधिकारिक वेबसाइट देखें
2026 के लिए NFSU प्रवेश परीक्षा सिलेबस
B.Sc./M.Sc. फॉरेंसिक साइंस व संबद्ध पाठ्यक्रम
भौतिकी: स्थिर विद्युत, तरंग प्रकाशिकी, ऊष्मा और उष्मागतिकी, गति, गुरुत्वाकर्षण, दोलन गति, ऊर्जा।
रसायन: ठोस अवस्था, घोल, विद्युरसायन, रासायनिक अभिक्रियाएँ, जैविक व अकार्बनिक रसायन, पॉलिमर, अल्कोहल, फिनॉल, ईथर, ऐल्डिहाइड, कीटोन, कार्बोक्सिलिक अम्ल।
जीवविज्ञान: विकास, जैव-अणु, कोशिकीय संगठन, अनुवांशिकी, इम्यूनोलॉजी, अनुप्रयुक्त जीवविज्ञान, पारिस्थितिकी, प्रयोगशाला कौशल।
फॉरेंसिक साइंस का परिचय: क्राइम सीन मैनेजमेंट, साक्ष्य संग्रह, फॉरेंसिक कानून, अपराधविज्ञान, फॉरेंसिक शाखाएं।
B.Tech./M.Tech. (साइबर सुरक्षा, कंप्यूटर साइंस, AI और डेटा साइंस)
मुख्य विषय (60–70%): नेटवर्किंग, OS, डेटा संरचना, प्रोग्रामिंग (C, C++, Java, Python, .Net), DBMS, वेब विकास, डिजिटल इलेक्ट्रॉनिक्स, AI/ML, IoT, ब्लॉकचेन, कंप्यूटर आर्किटेक्चर, सिद्धांत।
तर्कशक्ति और सामान्य ज्ञान (30–40%): मौखिक व अमौखिक तर्क, अंग्रेजी व्याकरण, अपठित बोध, पर्यायवाची/विलोम, करंट अफेयर्स और तकनीकी घटनाएं।
MBA और प्रबंधन कार्यक्रम
सामान्य ज्ञान: समाचार, भारतीय इतिहास, विज्ञान और तकनीक, पुरस्कार, खेल।
तार्किक क्षमता: श्रेणियाँ, कोडिंग-डिकोडिंग, रक्त संबंध, दिशा परीक्षण, वर्गीकरण।
गणितीय विवेचना: अनुपात, प्रतिशत, अंकगणित, संख्या पद्धति, डेटा पर्याप्तता।
प्रबंधन मूल सिद्धांत: व्यवसायिक संचार, विपणन, HR और वित्तीय प्रबंधन, सांख्यिकी।
LL.B. (ऑनर्स) कानून कार्यक्रम
अंग्रेजी भाषा: व्याकरण, कहावतें, पर्यायवाची/विलोम, वाक्य सुधार, वर्तनी।
विश्लेषणात्मक कौशल: गणना, प्रतिशत, औसत, ज्यामिति, वेन आरेख, सांख्यिकी।
कानूनी जागरूकता: कानूनी उक्तियाँ, भारतीय संविधान, अनुबंध अधिनियम।
सामान्य ज्ञान: करंट अफेयर्स, इतिहास, राजनीति, अर्थशास्त्र, पर्यावरण।
परीक्षा संरचना (विषयवार वेटेज)
अनुभाग वेटेज (%) मुख्य विषय
विषय-विशेष ज्ञान 60–70 चयनित कोर्स के मुख्य विषय
तर्कशक्ति और योग्यता 15–20 तार्किक विश्लेषण, रीजनिंग
अंग्रेजी और अपठित बोध 10–15 व्याकरण, शब्दावली, रीडिंग स्किल्स
सामान्य ज्ञान और जागरूकता 10–15 करंट अफेयर्स, राष्ट्रीय मुद्दे, विज्ञान और टेक्नोलॉजी
NFSU 2026 की तैयारी कैसे करें?
- NFSU की आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर चुने गए कार्यक्रम का नवीनतम सिलेबस डाउनलोड करें।
- उच्च वेटेज वाले टॉपिक्स पर प्राथमिकता से ध्यान दें।
- पिछले वर्षों के प्रश्न पत्रों का अभ्यास करें ताकि प्रश्नों की प्रकृति और कठिनाई का स्तर समझ सकें।
- फुल-लेंथ मॉक टेस्ट लगाएँ और टाइम मैनेजमेंट का अभ्यास करें।
- साइंस कार्यक्रम हेतु फिजिक्स, केमिस्ट्री, बायोलॉजी और गणित में मजबूत आधार बनाएं।
- टेक्नोलॉजी प्रोग्राम्स के लिए प्रोग्रामिंग और कंप्यूटर लिटरेसी पर ध्यान दें।
- समाचार पत्र पढ़ें, विज्ञान और तकनीकी समाचारों से अपडेट रहें।
- संक्षिप्त नोट्स तैयार करें, खासकर GK और तथ्य आधारित विषयों के लिए।
- कमजोर क्षेत्रों पर अधिक समय दें, लेकिन मजबूत हिस्सों की भी नियमित समीक्षा करें।
NFSU 2026 के लिए महत्वपूर्ण बिंदु
बढ़ती प्रतिस्पर्धा: फॉरेंसिक साइंस, साइबर सुरक्षा और कानून जैसे क्षेत्रों की मांग तेजी से बढ़ रही है, जिससे परीक्षा अधिक चुनौतीपूर्ण हो गई है।
आरक्षण नीति: सीट आवंटन भारत सरकार के आरक्षण नियमों के अनुसार किया जाता है।
दोहरी प्रवेश प्रणाली: कुछ PG कोर्सेज में प्रवेश NFSU की खुद की परीक्षा (NFAT) और GATE/CAT जैसे राष्ट्रीय स्तर की परीक्षाओं के जरिए होता है।
परीक्षा दिवस: एडमिट कार्ड, वैध फोटो पहचान पत्र और सभी दिशा-निर्देशों का पालन करें।
यदि आप फॉरेंसिक साइंस को लेकर गंभीर हैं, तो All India Forensic Science Entrance Test (AIFSET) में भी शामिल होना एक अच्छा विकल्प हो सकता है। इसमें भाग लेने वाले कई प्रमुख विश्वविद्यालय हैं और इसमें प्रवेश की संभावना भी अधिक होती है।
डिज़ाइन में करियर बनाना एक बड़ा और साहसिक कदम होता है, खासकर भारत में, जहां क्रिएटिव इंडस्ट्री तेज़ी से बढ़ रही है और हर साल नई-नई स्पेशलाइज़ेशन सामने आ रही हैं। पहले यह फैसला कला और शिल्प के बीच होता था, फिर इसमें डिज़ाइन भी जुड़ गया, और आज डिज़ाइन का क्षेत्र इतना विस्तृत हो गया है कि इसमें हर तरह की डिज़ाइन शाखाएँ शामिल हैं।
अगर आप एक डिज़ाइन स्टूडेंट हैं और यह तय नहीं कर पा रहे हैं कि बैचलर ऑफ़ डिज़ाइन (B.Des) लें, बैचलर ऑफ़ फाइन आर्ट्स (BFA) करें या डिप्लोमा इन डिज़ाइन, तो यह गाइड आपके लिए बेहद उपयोगी हो सकती है। इसमें इन कोर्सों की संरचना, करियर स्कोप, एंट्रेंस एग्ज़ाम और सैलरी ट्रेंड्स के आधार पर तुलना की गई है ताकि आप समझदारी और भविष्य को ध्यान में रखकर सही विकल्प चुन सकें।
B.Des क्या है?
बैचलर ऑफ डिज़ाइन (B.Des) एक पेशेवर डिग्री है, जो अप्लाइड डिज़ाइन जैसे प्रोडक्ट डिज़ाइन, UX/UI डिज़ाइन, फैशन डिज़ाइन, इंटीरियर डिज़ाइन और कम्युनिकेशन डिज़ाइन पर केंद्रित होती है। इसका कोर्स प्रैक्टिकल स्किल्स और टेक्नोलॉजी पर आधारित होता है, जिसमें क्रिएटिविटी और प्रॉब्लम-सॉल्विंग को जोड़कर छात्रों को इंडस्ट्री के लिए तैयार किया जाता है।
प्रवेश परीक्षाएँ: UCEED, NID DAT, NIFT, AIEED, AIDAT
स्पेशलाइज़ेशन: प्रोडक्ट, ग्राफिक, टेक्सटाइल, फैशन, UI/UX, इंडस्ट्रियल, इंटीरियर, ज्वेलरी आदि
प्रमुख भर्तीकर्ता: TCS, Infosys, Flipkart, Myntra, Tata Elxsi, डिज़ाइन स्टूडियोज़, MNCs
सैलरी रेंज: ₹3.3 लाख से ₹12.5 लाख प्रति वर्ष
उपयुक्त छात्र: वे जो आर्ट और टेक्नोलॉजी को साथ मिलाकर काम करना पसंद करते हैं और तेज़ी से बढ़ते डिज़ाइन क्षेत्र में हाई-पेइंग नौकरियाँ चाहते हैं
BFA क्या है?
बैचलर ऑफ फाइन आर्ट्स (BFA) एक अंडरग्रेजुएट डिग्री है जो विजुअल आर्ट्स और परफॉर्मिंग आर्ट्स पर आधारित होती है – जैसे पेंटिंग, स्कल्पचर, एनिमेशन, फोटोग्राफी आदि। यह कोर्स उन छात्रों के लिए उपयुक्त है जो कला, एनिमेशन या पढ़ाने के क्षेत्र में करियर बनाना चाहते हैं।
प्रवेश परीक्षाएँ: NID DAT, BHU UET, JMI, CUET, AIDAT
स्पेशलाइज़ेशन: पेंटिंग, स्कल्पचर, एप्लाइड आर्ट, एनिमेशन, फोटोग्राफी, विज़ुअल कम्युनिकेशन
करियर विकल्प: फाइन आर्टिस्ट, एनिमेटर, आर्ट डायरेक्टर, टीचर, गैलरी क्यूरेटर, मल्टीमीडिया आर्टिस्ट
सैलरी रेंज: ₹1.2 लाख से ₹8.7 लाख प्रति वर्ष (टॉप प्रोफाइल में ₹20 लाख/वर्ष तक)
उपयुक्त छात्र: वे जो गहरी क्रिएटिव सोच रखते हैं और कला, एनिमेशन या शिक्षण के क्षेत्र में काम करना चाहते हैं
डिप्लोमा इन डिज़ाइन क्या है?
डिज़ाइन डिप्लोमा प्रोग्राम्स 1 से 3 साल के छोटे और स्किल-बेस्ड कोर्स होते हैं। ये कम लागत में व्यावसायिक कौशल सिखाते हैं और उन छात्रों के लिए उपयोगी होते हैं जो जल्दी जॉब शुरू करना चाहते हैं या किसी स्पेशल स्किल में ट्रेनिंग लेना चाहते हैं।
योग्यता: 12वीं (किसी भी स्ट्रीम से)
करियर स्कोप: जूनियर डिज़ाइनर, असिस्टेंट, फ्रीलांसर, प्राथमिक विद्यालय शिक्षक
सैलरी रेंज: ₹1.8 लाख से ₹4 लाख प्रति वर्ष
उपयुक्त छात्र: वे जो जल्दी नौकरी शुरू करना चाहते हैं, UG डिग्री का खर्च वहन नहीं कर सकते, या स्किल डेवलपमेंट करना चाहते हैं
तीनों कोर्सों की तुलना एक नज़र में:
विशेषता B.Des BFA डिप्लोमा इन डिज़ाइन
अवधि 4 वर्ष 3–4 वर्ष 1–3 वर्ष
योग्यता 12वीं (किसी भी स्ट्रीम) 12वीं (किसी भी स्ट्रीम) 12वीं
प्रवेश परीक्षा UCEED, NID DAT, NIFT NID DAT, CUET, BHU UET संस्थान पर निर्भर करता है
मुख्य करियर प्रोडक्ट, फैशन, UI/UX आर्टिस्ट, एनिमेटर, टीचर जूनियर डिज़ाइनर, असिस्टेंट
सैलरी रेंज ₹3.3–12.5 लाख/वर्ष ₹1.2–8.7 लाख/वर्ष ₹1.8–4 लाख/वर्ष
टॉप कॉलेज NID, NIFT, IITs BHU, JMI, प्रेसिडेंसी Vogue, Parul, Oasis
तो कौन सा रास्ता सही है?
- B.Des चुनें अगर आप प्रोफेशनल डिज़ाइन करियर चाहते हैं, टेक्नोलॉजी, बिज़नेस और क्रिएटिव सॉल्यूशन में रुचि रखते हैं।
- BFA चुनें अगर आप कला प्रेमी हैं, एनिमेशन या शिक्षण में करियर बनाना चाहते हैं।
- डिप्लोमा चुनें अगर आप जल्दी जॉब शुरू करना चाहते हैं, कम बजट में पढ़ाई करना चाहते हैं, या किसी विशेष स्किल में मास्टरी चाहते हैं।
2025 की नवीनतम ट्रेंड्स और जानकारियाँ:
जनरेटिव AI और डिज़ाइन: अब B.Des और डिप्लोमा कोर्स में AI टूल्स का इस्तेमाल UX रिसर्च, डिजिटल आर्टवर्क और फास्ट प्रोटोटाइप के लिए होने लगा है।
हाइब्रिड करियर: B.Des ग्रैजुएट्स स्टार्टअप, ई-कॉमर्स और डिजिटल मार्केटिंग में जा रहे हैं, वहीं BFA ग्रैजुएट्स एनिमेशन, गेमिंग और OTT इंडस्ट्री में।
डिमांड: UX/UI डिज़ाइन, प्रोडक्ट डिज़ाइन और एनिमेशन – ये 2025 की सबसे ज़्यादा मांग और तनख्वाह वाली डिज़ाइन जॉब्स मानी गई हैं।
भारतीय डिज़ाइन शिक्षा में हर क्रिएटिव माइंड के लिए कुछ न कुछ है। चाहे आप B.Des, BFA या डिप्लोमा चुनें, यह ज़रूरी है कि आप अपनी रुचियों, क्षमताओं और करियर लक्ष्यों के अनुसार सही निर्णय लें। कॉलेज की रैंकिंग, इंटर्नशिप के अवसर, एंट्रेंस एग्ज़ाम की तैयारी और एक मजबूत पोर्टफोलियो बनाना न भूलें। भारतीय डिज़ाइन इंडस्ट्री का भविष्य उज्ज्वल है — सही रास्ता चुनें और डिज़ाइन की दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बनाएं।
भारत में मेडिकल करियर का सपना कई छात्रों के लिए बहुत ही उत्साहजनक होता है। लेकिन आज भी यह सवाल अक्सर सामने आता है — क्या सिर्फ MBBS ही एकमात्र रास्ता है या Allied Health Sciences को भी एक बेहतर विकल्प माना जा सकता है?
GAHET जैसे नए एंट्रेंस एग्जाम और हेल्थकेयर सेक्टर में आ रहे बदलावों को देखते हुए, करियर का सही चुनाव पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गया है। आइए, तथ्यों और ट्रेंड्स के आधार पर समझते हैं कि आपके लिए कौन सा रास्ता सही हो सकता है।
MBBS और Allied Health Sciences में अंतर
MBBS (बैचलर ऑफ मेडिसिन, बैचलर ऑफ सर्जरी):
- यह भारत की सबसे प्रतिष्ठित अंडरग्रेजुएट मेडिकल डिग्री है।
- इसमें दाखिले के लिए NEET (National Eligibility cum Entrance Test) अनिवार्य है।
- कुल कोर्स अवधि: 5 वर्ष की पढ़ाई + 1 वर्ष की इंटर्नशिप।
- डॉक्टर का मुख्य कार्य: रोगों की पहचान, उपचार और प्रबंधन।
Allied Health Sciences:
- यह मेडिकल सेक्टर में काम करने वाले तकनीकी और सहायता कर्मियों के लिए ट्रेनिंग प्रोग्राम्स प्रदान करता है।
- प्रोफेशनल्स: फिजियोथेरेपिस्ट, रेडियोग्राफर, लैब टेक्नोलॉजिस्ट, ऑप्टोमेट्रिस्ट, आदि।
- प्रवेश के लिए: GAHET, KCET जैसे विशेष एंट्रेंस एग्जाम या डायरेक्ट एडमिशन।
- कोर्स की अवधि: 3 से 4.5 साल, स्पेशलाइजेशन पर निर्भर।
भारत में दो प्रमुख मेडिकल एंट्रेंस एग्जाम: NEET और GAHET
NEET: MBBS और डेंटल जैसे कोर्सेस के लिए अनिवार्य परीक्षा, जिसमें लाखों छात्र सीमित सीटों के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं।
GAHET (Global Allied Healthcare Entrance Test): Allied Health Programs में एडमिशन के लिए एक नया और उभरता हुआ एग्जाम है।
GAHET स्कोर स्वीकार करने वाले प्रमुख संस्थान:
- Invertis University, बरेली
- Sahara Paramedical Institute, मेरठ
- Saraswati Group of Colleges, मोहाली
- Graphic Era University, देहरादून
- Rabindranath Tagore University, भोपाल
- JECRC University, जयपुर
और 100 से अधिक संस्थान पूरे भारत में...
करियर विकल्प: MBBS बनाम Allied Health
MBBS करियर विकल्प:
- डॉक्टर, सर्जन, विशेषज्ञ चिकित्सा अधिकारी
- सम्मानजनक पेशा, लेकिन पोस्टग्रेजुएट सीटों और सरकारी नौकरी के लिए भारी प्रतिस्पर्धा
- समाज में उच्च दर्जा और पहचान
Allied Health करियर विकल्प:
- फिजियोथेरेपिस्ट, रेडियोग्राफर, लैब टेक्नोलॉजिस्ट, ऑप्टोमेट्रिस्ट, एनेस्थेटिस्ट, एपिडेमियोलॉजिस्ट आदि
- अस्पतालों, लैब्स, रिसर्च इंस्टीट्यूट्स और क्लीनिक्स में बढ़ती मांग
- प्रारंभिक वेतन ₹2.5 से ₹10 लाख प्रति वर्ष (स्पेशलाइजेशन और स्थान पर निर्भर)
- विदेशों में अच्छी संभावनाएं, विशेष रूप से नर्सिंग और मेडिकल टेक्नोलॉजी में
रोज़गार के रुझान और भविष्य की संभावनाएं
MBBS: हमेशा मांग में रहते हैं, लेकिन सीटें सीमित हैं और कोर्स कठिन है।
Allied Health: नए टेक्नोलॉजी, प्रिवेंशन और डायग्नोस्टिक्स के विकास के कारण तेजी से बढ़ती मांग।
विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले वर्षों में अनुभवी Allied Health Professionals की आवश्यकता और बढ़ेगी।
वर्क-लाइफ बैलेंस की तुलना
MBBS: शुरुआती वर्षों में लंबी शिफ्ट, ऑन-कॉल ड्यूटी और मानसिक दबाव आम हैं।
Allied Health: आमतौर पर नियमित समय की शिफ्ट और व्यक्तिगत जीवन के लिए बेहतर संतुलन।
आपके लिए कौन सा विकल्प सही?
MBBS चुनें, अगर:
- आप डॉक्टर बनना चाहते हैं और प्रतियोगिता के लिए तैयार हैं।
- लंबी, कठिन और महंगी पढ़ाई के लिए मानसिक रूप से तैयार हैं।
- समाज में प्रतिष्ठा और उच्च आय के लिए प्रतिबद्ध हैं।
Allied Health चुनें, अगर:
- आप मेडिकल क्षेत्र में काम करना चाहते हैं, लेकिन कम समय और लागत में।
- आपको डायग्नोस्टिक्स, थेरेपी या मेडिकल टेक्नोलॉजी में रुचि है।
- आप संतुलित जीवनशैली के साथ एक व्यावसायिक करियर चाहते हैं।
सही निर्णय कैसे लें?
MBBS और Allied Health Sciences दोनों ही सम्मानजनक और समाज के लिए उपयोगी करियर विकल्प हैं। सही रास्ता आपकी रुचियों, क्षमताओं और जीवन के लक्ष्यों पर निर्भर करता है। GAHET जैसे नए अवसरों के चलते, यह सही समय है कि आप MBBS के अलावा भी मेडिकल क्षेत्र में मौजूद विकल्पों को गंभीरता से देखें।
सुझाव: विषय का अच्छी तरह अध्ययन करें, मेडिकल क्षेत्र में काम कर रहे लोगों से सलाह लें और उस स्ट्रीम का चुनाव करें जो आपको सबसे अधिक प्रेरित करती हो।
अभी भी उलझन में हैं?
GAHET पोर्टल https://gahet.org/ पर जाएं या करियर काउंसलिंग के लिए 08035018453 नंबर पर कॉल करें। निःशुल्क मार्गदर्शन उपलब्ध है।
Current Events
'सिटी ऑफ जॉय' कहे जाने वाले कोलकाता शहर में 16 अप्रैल का दिन वाकई उत्साह से भरा रहा, जब 'एडइनबॉक्स' ने अपना विस्तार करते हुए यहाँ के लोगों के लिए अपनी नई ब्रांच का शुभारम्भ किया। ख़ास बात यह रही कि इस मौके पर इटली से आये मेहमानों के साथ 'एडइनबॉक्स' की पूरी टीम मौजूद थी। पश्चिम बंगाल के कोलकाता में उदघाटित इस कार्यालय से पूर्व 'एडइनबॉक्स' की शाखाएं दिल्ली, भुवनेश्वर, लखनऊ और बैंगलोर जैसे शहरों में पहले से कार्य कर रही हैं।
कोलकाता में एडइनबॉक्स की नयी ब्रांच के उद्घाटन कार्यक्रम में इटली के यूनिमार्कोनी यूनिवर्सिटी के प्रतिनिधिमंडल की गरिमामयी उपस्थिति ने इस अवसर को तो ख़ास बनाया ही, सहयोग और साझेदारी की भावना को भी इससे बल मिला। विशिष्ट अतिथियों आर्टुरो लावेल, लियो डोनाटो और डारिना चेशेवा ने 'एडइनबॉक्स' के एडिटर उज्ज्वल अनु चौधरी, बिजनेस और कंप्यूटर साइंस के डोमेन लीडर डॉ. नवीन दास, ग्लोबल मीडिया एजुकेशन काउंसिल डोमेन को लीड कर रहीं मनुश्री मैती और एडिटोरियल कोऑर्डिनेटर समन्वयक शताक्षी गांगुली के नेतृत्व में कोलकाता टीम के साथ हाथ मिलाया।
समारोह की शुरुआत अतिथियों का गर्मजोशी के साथ स्वागत से हुई। तत्पश्चात दोनों पक्षों के बीच विचारों और दृष्टिकोणों का सकारात्मक आदान-प्रदान हुआ। डारिना ने पारम्परिक तरीके से रिबन काटकर आधिकारिक तौर पर कार्यालय का उद्घाटन किया और इस मौके को आपसी सहयोग के प्रयासों की दिशा में एक नए अध्याय की शुरुआत बताया। बाकायदा इस दौरान यूनिमार्कोनी विश्वविद्यालय के प्रतिनिधिमंडल और EdInbox.com टीम के बीच एक साझेदारी समझौते पर हस्ताक्षर भी हुआ। यह पहल शिक्षा के क्षेत्र में नवाचार और प्रगति के लिए साझा प्रतिबद्धता को दर्शाता है, साथ ही भविष्य में अधिक से अधिक छात्रों का नेतृत्व कर इस पहल से उन्हें सशक्त बनाया जा सकता है ताकि वे वैश्विक मंचों पर सफलता के अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकें।
समारोह के समापन की वेला पर दोनों पक्षों द्वारा एक दूसरे को स्मारिकाएं भेंट की गयीं। 'एडइनबॉक्स' की नई ब्रांच के उद्घाटन के साथ इस आदान-प्रदान की औपचारिकता से दोनों टीमों के बीच मित्रता और सहयोग के बंधन भी उदघाटित हुए।अंततः वक़्त मेहमानों को अलविदा कहने का था, 'एडइनबॉक्स' की कोलकाता टीम ने अतिथियों को विदा तो किया मगर इस भरोसे और प्रण के साथ कि यह नयी पहल भविष्य में संबंधों की प्रगाढ़ता और विकास के नए ठौर तक पहुंचेगी।
21वीं सदी में उत्पाद डिज़ाइन बेहद तेज़ी से बदल रहा है — और इसका कारण है टेक्नोलॉजी, स्थायित्व (sustainability), और यूज़र की बढ़ती मांगें। एक डिज़ाइन छात्र के रूप में, चाहे आप कोई रिसर्च प्रोजेक्ट बना रहे हों या अपने पोर्टफोलियो में कुछ नया जोड़ने की योजना बना रहे हों, इनोवेटिव सोच अपनाना आज के दौर की ज़रूरत है।
यहाँ पेश हैं 5 अनोखे और प्रासंगिक डिज़ाइन आइडिया, जो दुनियाभर के पेशेवर डिज़ाइनर्स की मांग और ट्रेंड्स पर आधारित हैं — और छात्रों के प्रोजेक्ट्स के लिए बेहतरीन विकल्प हो सकते हैं:
1. एआई आधारित कस्टमाइज़्ड उत्पाद
डिज़ाइन आइडिया: ऐसे उत्पाद तैयार करें जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का इस्तेमाल कर हर यूज़र के अनुभव को व्यक्तिगत (customized) बना सकें। उदाहरण के लिए, ऐसा स्मार्ट किचन उपकरण जो उपयोगकर्ता की पसंद के अनुसार खुद को ढाल सके, या AI आधारित मोबाइल ऐप जो यूज़र के व्यवहार के हिसाब से कार्य करे।
इस तरह के डिज़ाइन उपभोक्ताओं में तेजी से लोकप्रिय हो रहे हैं। आप अपने प्रोजेक्ट में जिम्मेदार AI, डेटा सुरक्षा, और मानव-केंद्रित डिज़ाइन जैसे विषयों की रिसर्च कर सकते हैं।
2. सस्टेनेबल और सर्कुलर डिज़ाइन
डिज़ाइन आइडिया: ऐसे प्रोडक्ट्स या पैकेजिंग डिज़ाइन करें जो न केवल टिकाऊ (eco-friendly) हों, बल्कि सर्कुलर इकॉनॉमी का हिस्सा भी बनें। इसमें बायोडिग्रेडेबल मटेरियल, रिपेयर या अपग्रेड की सुविधा वाले मॉड्यूलर डिज़ाइन, और कचरे को न्यूनतम करने वाली पैकेजिंग शामिल हैं।
समुद्री शैवाल (seaweed) से बनी पैकेजिंग, बायोडिग्रेडेबल कंटेनर या ऐसे उत्पाद जो आसानी से खोले और रिसायकल किए जा सकें — रिसर्च के लिए शानदार शुरुआत हो सकती है।
3. शहरी जीवन के लिए मॉड्यूलर समाधान
डिज़ाइन आइडिया: जैसे-जैसे शहरी क्षेत्र में जगह की कमी होती जा रही है, मॉड्यूलर और बहुउद्देशीय (multi-purpose) डिज़ाइनों की मांग बढ़ रही है। इस दिशा में आप मॉड्यूलर फर्नीचर, ट्रांसफॉर्मिंग वर्कस्पेस, या स्टैकेबल स्टोरेज डिज़ाइन पर काम कर सकते हैं।
टिकाऊ मटेरियल और स्मार्ट टेक्नोलॉजी के संयोजन से ऐसे डिज़ाइन बनाए जा सकते हैं जो कम जगह में अधिक उपयोगिता दें।
4. स्मार्ट हेल्थ और वेलनेस वियरेबल्स
डिज़ाइन आइडिया: आज के डिज़ाइन का फोकस केवल तकनीकी दक्षता नहीं, बल्कि यूज़र की संपूर्ण भलाई (well-being) पर है। ऐसे हेल्थ टेक वियरेबल्स डिज़ाइन करें जो आरामदायक, आकर्षक और प्रभावी हों — जैसे स्ट्रेस ट्रैकर, हाइड्रेशन चेकर्स, या नींद को ट्रैक करने वाले डिवाइसेज़।
आप यह भी रिसर्च कर सकते हैं कि कैसे इन वियरेबल्स को बायोडिग्रेडेबल स्ट्रैप, मॉड्यूलर अपग्रेड आदि के जरिए और अधिक स्मार्ट और पर्यावरण के अनुकूल बनाया जा सकता है।
5. ऐक्सेसिबल डिज़ाइन और इमोशनल डिज़ाइन
डिज़ाइन आइडिया: भविष्य के उत्पाद न केवल कार्यकुशल होंगे, बल्कि भावनात्मक रूप से जुड़ाव भी उत्पन्न करेंगे। ऐसे डिज़ाइन तैयार करें जो समावेशी (inclusive) हों और यूज़र को संवेदना का अनुभव कराएं।
इसमें आप टैक्टाइल (स्पर्श से जुड़ी) और विज़ुअली इंगेजिंग डिज़ाइन, इमोशन-सेंसिंग इंटरफेसेज़, दिव्यांगों के लिए सहायक उपकरण या डिजिटल रूप से जुड़ने वाले भावनात्मक वस्तुओं पर काम कर सकते हैं।
विशेष सुझाव:
हर डिज़ाइन आइडिया पर काम करते समय, मौजूदा यूज़र ज़रूरतों को समझें, अवॉर्ड-विनिंग डिज़ाइनों का केस स्टडी करें, और यूज़र टेस्टिंग व फीडबैक को प्राथमिकता दें — ये सभी आधुनिक डिज़ाइन प्रक्रिया के मूल तत्व हैं।
इन इनोवेटिव डिज़ाइन विचारों को अपनाकर न केवल आपका पोर्टफोलियो प्रमुख डिज़ाइन स्कूलों और संभावित एम्प्लॉयर्स को आकर्षित करेगा, बल्कि आप वास्तविक जीवन की समस्याओं को इंसानी और रचनात्मक तरीकों से हल करने में भी योगदान देंगे।
शोध पत्रों की वापसी (retraction) के मामले में भारत का अमेरिका और चीन के बाद दुनिया में तीसरे स्थान पर आना चिंता का विषय है। यह स्थिति हताशा नहीं, बल्कि आत्ममंथन की मांग करती है। जितनी चिंता इस बढ़ती संख्या को लेकर होनी चाहिए, उतनी ही संस्थागत सुस्ती को लेकर भी होनी चाहिए, जिसने वर्षों तक शैक्षणिक अनियमितताओं को अनदेखा किया।
मात्रा बनाम गुणवत्ता: रैंकिंग प्रणाली में बदलाव की ज़रूरत
अब तक, नेशनल इंस्टीट्यूशनल रैंकिंग फ्रेमवर्क (NIRF) ने गुणवत्ता की बजाय मात्रा को प्राथमिकता दी है, जिसके चलते संस्थानों ने शोध पत्रों की संख्या को तरजीह दी, शैक्षणिक ईमानदारी को नहीं। हालांकि, यह नीति अब बदल रही है।
2025 से NIRF, वापिस लिए गए शोध पत्रों के आधार पर संस्थानों को दंडित करेगा। यह एक सकारात्मक लेकिन देर से लिया गया फैसला है।
JNU विवाद और प्रोफेसर बनाम शोधार्थी की लड़ाई
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) फिर सुर्खियों में है, जहां सेवानिवृत्त प्रोफेसर राजीव कुमार ने अपने पूर्व पीएचडी छात्र ओम प्रकाश पर आरोप लगाया है कि उन्होंने उनकी अनुमति के बिना उनका शोध चुरा कर IEEE जर्नल में प्रकाशित कर दिया।
यह शोध पत्र — “Detection of Fake Accounts on Social Media Using Multimodal Data With Deep Learning” — 7 अगस्त 2023 को सात सह-लेखकों के साथ प्रकाशित हुआ, जिनमें से सभी अन्य संस्थानों से हैं।
प्रश्न उठता है: सम्मानित संस्थानों के प्रोफेसर अनैतिक क्यों हो रहे हैं? क्या वे इसके लिए मजबूर हैं?
IIT रुड़की का उदाहरण: प्रणालीगत विफलता का प्रतीक
IIT रुड़की के प्रोफेसर ज़िल्लुर रहमान का मामला इस व्यापक समस्या का प्रतीक है। 2004 से 2020 के बीच उनके 5 शोध पत्रों को प्लेगियारिज़्म, डुप्लीकेशन और संदिग्ध डेटा के चलते वापिस लिया गया, फिर भी वह मई 2025 तक डीन के पद पर बने रहे।
जब India Research Watchdog के अचल अग्रवाल ने इस मामले को उठाया, तब संस्थान ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी — न प्रोफेसर ने, न संस्थान ने।
आंकड़े: समस्या कितनी गहरी है?
सांख्यिकी वेबसाइट Post-Pub के आंकड़ों के मुताबिक, भारत में प्रत्येक 1,000 शोध पत्रों पर वापसी की दर 2012 में 1.5 से बढ़कर 2022 में 3.5 हो गई।
इसका एक कारण शोधार्थियों और युवा शिक्षकों पर "छापने का दबाव" है। लेकिन असली मुद्दा है — संस्थागत और कानूनी संरक्षण का अभाव।
दुनिया के मुकाबले भारत पीछे क्यों है?
जहां डेनमार्क और ब्रिटेन जैसे देशों में स्वतंत्र एजेंसियां अनुसंधान में गड़बड़ी की जांच करती हैं, वहीं भारत में शिकायतें UGC और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग जैसे निकायों के बीच उलझकर रह जाती हैं — और अक्सर उन पर कोई कार्रवाई नहीं होती।
प्राइवेट कॉलेजों की भूमिका और रैंकिंग का दबाव
सरकारी विश्वविद्यालयों की स्थिति भले खराब हो, निजी कॉलेजों में हालात और भी चुनौतीपूर्ण हैं।
NIRF रैंकिंग में ऊपर आने की होड़ में ये संस्थान बिना समुचित फंडिंग दिए शोध पत्रों की मांग करते हैं, जिससे निम्न गुणवत्ता वाले, जल्दबाज़ी में किए गए शोध प्रकाशित होते हैं — अक्सर प्रिडेटरी जर्नल्स में, जिनमें कोई गुणवत्ता जांच नहीं होती।
कुछ सकारात्मक प्रयास — लेकिन काफी नहीं
BITS पिलानी जैसे संस्थान Research Integrity Offices स्थापित कर रहे हैं और एथिक्स ट्रेनिंग में निवेश कर रहे हैं, जिससे शिक्षकों और छात्रों में विश्वास और नैतिकता बढ़े।
हालांकि, ये प्रयास अकेले इस प्रणालीगत भ्रष्टाचार को सुधारने के लिए पर्याप्त नहीं हैं।
HECI से उम्मीदें, लेकिन संदेह भी
आगामी Higher Education Commission of India (HECI) से कुछ उम्मीदें जरूर हैं, लेकिन यह सवाल बना हुआ है कि क्या यह आयोग बिना राज्यों की भागीदारी के प्रभावी होगा?
शोध में ईमानदारी कोई विकल्प नहीं, अनिवार्यता है
अगर भारत को वैश्विक अनुसंधान केंद्र बनना है, तो शैक्षणिक ईमानदारी को अनिवार्य बनाना होगा। अनैतिकता के मामलों में कड़े, करियर-बदलने वाले दंड तय करने होंगे।
अन्यथा, भारत की शोध में साख धीरे-धीरे खत्म होती जाएगी — निगाहों से छुपकर, लेकिन लगातार।
वक्त कितनी जल्दी करवट बदलता है, यह अगर देखना हो तो मध्य प्रदेश के इंजीनियरिंग कॉलेजों की हालत पर एक नजर डाल लीजिए। कभी ये कॉलेज युवा सपनों का केंद्र हुआ करते थे—जहां दाखिले के लिए लंबी लाइनें लगती थीं, सीट पाने की होड़ मचती थी, और मां-बाप लाखों खर्च करने को तैयार रहते थे। आज वही परिसर वीरान हैं। ऐसा लगता है जैसे किसी समय के भव्य महल अब खंडहर में बदल रहे हों।
एक दौर था जब इंजीनियर बनना सपना था
इंजीनियरिंग की डिग्री कभी “सेट फ्यूचर” की गारंटी मानी जाती थी। समाज में इसका रुतबा था और नौकरी की संभावनाएं भी मजबूत लगती थीं। लेकिन अब वह आकर्षण खो चुका है। युवाओं का इंजीनियरिंग से मोहभंग हो चुका है। यह कोई भावनात्मक आकलन नहीं है, बल्कि आंकड़े इसकी गवाही दे रहे हैं।
मध्य प्रदेश के इंजीनियरिंग कॉलेजों की 73,412 सीटों में से लगभग 40,000 सीटें अब भी खाली हैं। यानी राज्य के आधे से ज्यादा छात्र अब इंजीनियरिंग में दिलचस्पी ही नहीं दिखा रहे हैं। दो चरण की काउंसलिंग के बाद भी यह हाल है और अब तीसरे चरण की CLC काउंसलिंग शुरू की गई है ताकि बची सीटें किसी तरह भर जाएं।
खाली क्लासरूम, बंद होने की कगार पर कॉलेज
प्रदेश में 124 इंजीनियरिंग कॉलेज हैं, लेकिन छात्रों के अभाव में कई कॉलेजों का संचालन ही खतरे में आ गया है। प्राइवेट कॉलेजों की हालत तो और भी चिंताजनक है—कई संस्थान बंद होने की कगार पर हैं या फिर गैर-इंजीनियरिंग कोर्सों की ओर रुख कर चुके हैं।
युवाओं की प्राथमिकताएं बदली हैं
सवाल यह है कि आखिर ऐसा हुआ क्यों? जवाब सीधा है—रोजगार की अनिश्चितता और आउटडेटेड पाठ्यक्रम। आज की पीढ़ी यूट्यूब, डिजिटल मार्केटिंग, डेटा साइंस, AI, ग्राफिक डिजाइन जैसे क्षेत्रों में अधिक रुचि ले रही है। वहीं दूसरी ओर, इंजीनियरिंग की पढ़ाई अब भी उसी ढर्रे पर चल रही है जो दो दशक पहले था।
अब बदलाव का वक्त है
अगर सरकार और शैक्षणिक संस्थान अब भी नहीं जागे तो इंजीनियरिंग शिक्षा का यह ढांचा पूरी तरह ढह जाएगा। पाठ्यक्रम को उद्योग की जरूरतों के अनुसार अपडेट करना होगा, स्टूडेंट्स को स्किल-बेस्ड लर्निंग देनी होगी और सबसे जरूरी बात—इंजीनियरिंग को एक बार फिर "सपनों की डिग्री" बनाना होगा।
वरना वो दिन दूर नहीं जब इंजीनियरिंग कॉलेजों का जिक्र सिर्फ बीते जमाने की बातों में ही मिलेगा।
भारत में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) के क्षेत्र में वैश्विक नेतृत्व स्थापित करने के लक्ष्य के साथ, सरकार ने पीएचडी स्कॉलर्स, ग्रेजुएट और पोस्टग्रेजुएट छात्रों को सहयोग देने की घोषणा की है। इसके साथ ही टियर-2 और टियर-3 शहरों में एआई लैब्स की स्थापना की योजना भी बनाई गई है। इस बारे में जानकारी इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी राज्य मंत्री जितिन प्रसाद ने राज्यसभा में लिखित उत्तर के माध्यम से दी।
AI इकोसिस्टम को मिलेगा बढ़ावा
मंत्री ने बताया कि भारत की AI रणनीति का उद्देश्य एक समावेशी और मजबूत एआई इकोसिस्टम बनाना है, जो देश को इस क्षेत्र में वैश्विक नेता बना सके।
उन्होंने आगे बताया कि सरकार 500 पीएचडी स्कॉलर्स, 5,000 पोस्टग्रेजुएट छात्र, 8,000 ग्रेजुएट छात्रों को सहयोग प्रदान करेगी, ताकि एक मजबूत और कुशल एआई टैलेंट पूल तैयार किया जा सके।
बढ़ेगा बुनियादी ढांचा, छोटे शहरों पर फोकस
सरकार की इस पहल में खास ध्यान महानगरों से बाहर के क्षेत्रों पर दिया गया है। मंत्री ने बताया कि “IndiaAI” और NIELIT के सहयोग से देशभर के 27 टियर-2 और टियर-3 शहरों में IndiaAI डेटा और एआई लैब्स स्थापित की जा रही हैं।
साथ ही, राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों ने 174 आईटीआई/पॉलीटेक्निक संस्थानों को भी इन लैब्स के लिए नामित किया है।
एआई के बेसिक कोर्स होंगे शुरू
इन लैब्स में NCVET (National Council for Vocational Education and Training) द्वारा अनुमोदित डेटा एनोटेशन, डेटा क्यूरेशन और एआई के मूलभूत कोर्स शुरू किए गए हैं। इसका उद्देश्य भविष्य की कार्यशक्ति को एआई के लिए तैयार करना है।
जातिवाद हमारे समाज की एक गहरी और पुरानी समस्या है। आज़ादी के 75 साल बाद भी यह सोच पूरी तरह से खत्म नहीं हुई है। सिनेमा अक्सर समाज का आईना होता है और जब कोई फिल्म जातिगत भेदभाव जैसे गंभीर विषय को उठाती है, तो उससे उम्मीद की जाती है कि वह दर्शकों को सोचने पर मजबूर करे। ‘धड़क 2’ भी एक ऐसी ही कोशिश है — यह फिल्म तमिल क्लासिक ‘परियेरुम पेरुमल’ से प्रेरित है, जिसने जाति आधारित अन्याय को गहराई और प्रभाव के साथ दर्शाया था। हालांकि, हिंदी में वह असर कुछ कम महसूस होता है।
कहानी है नीलेश (सिद्धांत चतुर्वेदी) की, जो एक दलित परिवार से है और वकील बनने का सपना देखता है। पढ़ाई के दौरान उसकी मुलाकात विधि (तृप्ति डिमरी) से होती है, जो ऊंची जाति से ताल्लुक रखती है। दोनों के बीच प्यार पनपता है, लेकिन समाज की जातिवादी सोच धीरे-धीरे उनके रिश्ते के बीच दीवार खड़ी कर देती है। असली संघर्ष तब शुरू होता है जब विधि के भाई रॉनी को इस रिश्ते की भनक लगती है। इसके बाद शुरू होता है अपमान, हिंसा और अस्तित्व की लड़ाई। कहानी सुनने में भले ही ‘सैराट’ जैसी लगे, लेकिन उसकी तीव्रता और गहराई ‘धड़क 2’ में उतनी नहीं झलकती।
सिद्धांत चतुर्वेदी ने नीलेश के किरदार को पूरी ईमानदारी और सच्चाई से निभाया है। उनका दर्द, गुस्सा और चुप्पी — तीनों की अभिव्यक्ति बेहद सधी हुई है। खासकर फिल्म के दूसरे भाग में उनका टूटना दर्शकों को भीतर तक छूता है। तृप्ति डिमरी ने विधि के किरदार में अच्छी शुरुआत की है, लेकिन जैसे-जैसे कहानी बढ़ती है, उनका किरदार सीमित होता चला जाता है — शायद स्क्रिप्ट की वजह से।
सौरभ सचदेवा विलेन के रूप में सबसे बड़ी सरप्राइज हैं। उन्होंने कम संवादों में भी खामोश नफरत के ज़रिए डर पैदा किया है। विपिन शर्मा (नीलेश के पिता) और जाकिर हुसैन (कॉलेज डीन) जैसे कलाकारों का अभिनय छोटा होते हुए भी प्रभावशाली है।
शाजिया इकबाल का निर्देशन सराहनीय है, खासकर यह देखते हुए कि यह उनकी पहली फिल्म है। उन्होंने संवेदनशील दृश्यों को सादगी और ईमानदारी से दिखाने की कोशिश की है — जैसे नीलेश का अकेले टूटना या पिता-पुत्र के बीच का भावनात्मक रिश्ता। हालांकि, फिल्म की गति शुरुआत में धीमी लगती है, और कुछ ज़रूरी दृश्य दर्शकों को पूरी तरह झकझोर नहीं पाते। निर्देशन में इरादा साफ है, लेकिन गहराई थोड़ी कम महसूस होती है।
फिल्म का संगीत कहानी के मूड से मेल खाता है। 'ये कैसा इश्क', 'दुनिया अलग', 'बस एक धड़क' और 'प्रीत रे' जैसे गीत अच्छे हैं, लेकिन ज़हन में लंबे समय तक नहीं टिकते। 'बावरिया' थोड़ी ऊर्जा लाता है। तनुज टिकु का बैकग्राउंड स्कोर सधा हुआ है — न बहुत भारी, न हल्का।
जातिवाद जैसे विषय पर फिल्म बनाना साहस की बात है, लेकिन इसे प्रभावी ढंग से प्रस्तुत करना और भी चुनौतीपूर्ण होता है। ‘धड़क 2’ इस कोशिश में आधा सफर तय कर पाती है। कई दृश्यों में फिल्म की मंशा साफ दिखती है, लेकिन वह दर्शकों को पूरी तरह प्रभावित नहीं कर पाती। ऐसा लगता है जैसे फिल्म एक ज़रूरी मुद्दा छूती है, पर उसकी तह तक नहीं पहुंच पाती।
‘धड़क 2’ एक ईमानदार प्रयास है, जिसमें सिद्धांत चतुर्वेदी का बेहतरीन अभिनय और एक संवेदनशील सामाजिक विषय है। अगर आपने ‘सैराट’ या ‘परियेरुम पेरुमल’ देखी है, तो यह फिल्म आपको थोड़ी हल्की लग सकती है। लेकिन अगर आप जातिवाद पर आधारित सिनेमा देखना चाहते हैं या सोच की शुरुआत करना चाहते हैं, तो इसे एक बार देखा जा सकता है।
टूरिज्म सेक्टर उत्तर प्रदेश की समृद्धि के सारथी की भूमिका में है। पर्यटकों की बढ़ती संख्या के अनुसार ही इस सेक्टर से होने वाला राजस्व भी बढ़ा है। प्रयागराज महाकुंभ में आए 66.30 करोड़ पर्यटकों और इनसे इस सेक्टर को हासिल राजस्व को अपवाद मान लें तो भी उत्तर प्रदेश में आने वाले पर्यटकों, खासकर घरेलू पर्यटकों की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
अगले तीन वर्षों में 80 करोड़ पर्यटकों के आने का अनुमान
आंकड़ों के मुताबिक 2023 में उत्तर प्रदेश आने वाले पर्यटकों की संख्या करीब 48 करोड़ थी। प्रदेश सरकार के आंकड़ों के मुताबिक इसमें से 28.790 करोड़ पर्यटक का तो सिर्फ अयोध्या, वाराणसी, मथुरा, और प्रयागराज में आना हुआ। वर्ष 2025 में इन शहरों में आने वाले पर्यटकों की संख्या बढ़कर 41.56 करोड़ हो गई। प्रयागराज महाकुंभ में 66.30 करोड़ पर्यटकों के आने और उनके उलट प्रवाह के नाते 2025 का रिकॉर्ड ब्रेक होना तय है। एक अनुमान के मुताबिक वर्ष 2028 तक पर्यटकों की संख्या बढ़कर 80 करोड़ तक पहुंच सकती है।
श्रद्धालुओं में बढ़ा,अयोध्या, मथुरा, प्रयाग, नैमिष, गोरखपुर और विंध्यधाम का क्रेज
पर्यटन के लिहाज से वाराणसी, अयोध्या, मथुरा, प्रयागराज, नैमिष, गोरखपुर, मीरजापुर स्थित विंध्यधाम नए केंद्र बनकर उभरे हैं। केंद्र सरकार ने देश के जिन 100 शहरों को संभावना वाले शहरों में शामिल किया है उनमें उत्तर प्रदेश के चार शहरों में काशी और अयोध्या भी हैं। इनके अलावा बाकी दो शहरों में प्रदेश की राजधानी लखनऊ और कानपुर हैं। इन सबके विकास पर डबल इंजन (मोदी एवं योगी) की सरकार का खास फोकस भी है। ये सारे शहर वैश्विक स्तर की कनेक्टिविटी से जुड़ चुके हैं।
कनेक्टिविटी को और बेहतर बना रही है सरकार
योगी सरकार धार्मिक स्थलों की कनेक्टविटी को और बेहतर बनाने का लगातार प्रयास कर रही है। चंद रोज पहले वाराणसी और चंदौली के दो दिवसीय दौरे के दौरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा एक्सप्रेसवे के संबंध में की गई घोषणाएं इसका प्रमाण हैं। चंदौली की एक जनसभा में उन्होंने कहा था कि चंदौली और सोनभद्र भी पूर्वांचल एक्सप्रेसवे से जुड़ेगे। उल्लेखनीय है कि अरबों वर्षों की पुरानी फासिल्स और प्राकृतिक सुंदरता वाले सोनभद्र को सरकार पहले ही यूपी का स्विट्ज़रलैंड बनाने की घोषणा कर चुकी है। इसमें यह कनेक्टिविटी मील का पत्थर साबित हो सकती है। इसी क्रम में उन्होंने निर्माणाधीन गंगा एक्सप्रेसवे को भी मीरजापुर, भदोही, वाराणसी, चंदौली और गाजीपुर तक विस्तारित करने की घोषणा की। साथ ही यह भी कहा कि काशी को कोलकाता से जोड़ने वाला ग्रीन फील्ड एक्सप्रेसवे भी चंदौली से जुड़ेगा।
बेहतर कनेक्टिविटी के साथ प्रदेश सरकार पर्यटकों की सुविधा और सुरक्षा के अनुसार बुनियादी सुविधाएं भी विकसित कर रही है। नियोजित विकास और बेहतर मॉनिटरिंग के लिए प्रमुख धार्मिक स्थलों के लिए सरकार ने तीर्थ विकास परिषदों का गठन कर रखा है। कॉरिडोर्स, प्रमुख मेलों का प्रांतीयकरण, अलग-अलग क्षेत्रों के लिए बने सर्किट का भी यही मकसद है।
यूपी को दुनिया का पर्यटन हब बनाने की है मंशा
कुल मिलाकर आने वाले समय में उत्तर प्रदेश मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मंशा के अनुसार दुनिया का पर्यटन हब बनेगा। देश का तो बन ही चुका है। पिछले कुछ वर्षों से घरेलू पर्यटकों के लिहाज से देश में पहले पायदान पर बने रहना इसका सबूत है। अयोध्या को लेकर बार-बार मुख्यमंत्री कह भी चुके हैं कि वह इसे धार्मिक पर्यटन के लिहाज से दुनिया का सबसे खूबसूरत शहर बनाना चाहते हैं। इसी मंशा से वहां काम भी हो रहे हैं।
अर्थव्यवस्था में बढ़ेगा टूरिज्म सेक्टर का योगदान
पर्यटकों की संख्या के हिसाब से अर्थव्यवस्था में इस सेक्टर का योगदान भी बढ़ेगा। मसलन महाकुंभ में आए पर्यटकों के नाते अर्थव्यवस्था में तीन लाख करोड़ से अधिक का योगदान मिला। आंकड़ों के मुताबिक 2016-2017 में टूरिज्म सेक्टर का प्रदेश की अर्थव्यवस्था में योगदान करीब 11 हजार करोड़ रुपये का था। 2028 में यह 70 हजार करोड़ रुपये तक पहुंच जाएगा। इसके नाते इससे जुड़े हॉस्पिटैलिटी, ट्रांसपोर्ट आदि को भी लाभ होगा। स्थानीय स्तर पर रोजी रोजगार के भी अवसर बढ़ेंगे।
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