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28 जून 2025 को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने पटना के बापू सभागार में आयोजित समारोह में 21,391 नव नियुक्त पुलिसकर्मियों को नियुक्ति पत्र सौंपे। इस अवसर पर उपमुख्यमंत्री सम्राट चौधरी, विजय कुमार सिन्हा सहित कई गणमान्य अतिथि और वरिष्ठ पुलिस अधिकारी मौजूद थे। कार्यक्रम के दौरान नव नियुक्त पुलिसकर्मियों ने शपथ भी ली।

मुख्यमंत्री ने नियुक्ति पत्र सौंपने के बाद पुलिसकर्मियों को संबोधित करते हुए कहा कि वे पूरी निष्ठा और ईमानदारी से अपने कर्तव्यों का पालन करें और राज्य में कानून व्यवस्था को सुदृढ़ बनाएं। उन्होंने कहा, "नवनियुक्त पुलिसकर्मियों को मेरी ओर से हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं। मुझे विश्वास है कि वे राज्यवासियों को बेहतर और सुरक्षित माहौल प्रदान करने में सफल होंगे।"

इस मौके पर उपमुख्यमंत्रियों सम्राट चौधरी और विजय कुमार सिन्हा ने भी नव नियुक्त पुलिस बल को शुभकामनाएं दीं और उनके योगदान की महत्ता पर बल दिया।

पुलिस बल विस्तार की प्रक्रिया तेज
मुख्यमंत्री ने बताया कि राज्य सरकार पुलिस बल के विस्तार पर तेज़ी से कार्य कर रही है। उन्होंने कहा, "अब तक 2.29 लाख से अधिक पदों का सृजन किया गया है। हमारा लक्ष्य है कि स्वीकृत बल के अनुसार सभी रिक्त पदों को वर्ष के अंत तक भर दिया जाए। इससे राज्य के युवाओं को रोजगार के अवसर मिलेंगे और बिहार पुलिस की ताकत भी बढ़ेगी।"

केरल सरकार द्वारा छात्रों में तनाव कम करने और उन्हें नशे जैसी आदतों से दूर रखने के उद्देश्य से स्कूलों में ज़ुंबा डांस कार्यक्रम शुरू करने की पहल विवादों में घिर गई है। मुख्यमंत्री पिनराई विजयन की सिफारिश पर शुरू की गई इस फिटनेस योजना को राज्य के कुछ मुस्लिम संगठनों ने सांस्कृतिक और नैतिक आधार पर चुनौती दी है।

मुख्यमंत्री ने सुझाव दिया था कि कक्षा 8 से ज़ुंबा सत्र स्कूलों में शुरू किए जाएं। इसके तहत शिक्षा विभाग ने शिक्षकों को ज़ुंबा की ट्रेनिंग देने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। लेकिन कुछ मुस्लिम संगठनों का कहना है कि लड़के-लड़कियों के एक साथ डांस करने से यह कार्यक्रम "नैतिक मूल्यों" को प्रभावित कर सकता है।

धार्मिक संगठनों की आपत्तियाँ
सुन्नी विद्वानों के संगठन समस्था केरल जमीयतुल उलेमा के नेता अब्दुल समद पूकोट्टूर ने ज़ुंबा को एक "पश्चिमी सांस्कृतिक प्रभाव" बताया और कहा कि कई देशों में इसे प्रतिबंधित किया गया है। उन्होंने सोशल मीडिया पोस्ट में इस कार्यक्रम को भारतीय परंपरागत तनाव निवारण तरीकों से बदलने की वकालत की।

इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग से संबद्ध मुस्लिम स्टूडेंट्स फेडरेशन (MSF) ने आरोप लगाया कि सरकार ने यह निर्णय बिना पर्याप्त शोध और विमर्श के लिया है। कुछ अन्य संगठनों ने भी इसे "नैतिकता के विरुद्ध" बताया।

सरकार का पक्ष
राज्य के सामान्य शिक्षा मंत्री वी. शिवनकुट्टी ने इन आपत्तियों को खारिज करते हुए कहा कि “इस तरह की मानसिकता समाज में ऐसा जहर भरती है जो नशे से भी ज्यादा घातक है।” उन्होंने स्पष्ट किया कि छात्र ज़ुंबा सत्र के दौरान स्कूल यूनिफॉर्म में ही भाग लेते हैं, और यह पूरी तरह अनुशासित और मर्यादित प्रक्रिया है। मंत्री ने ज़ोर दिया कि व्यायाम और खेल छात्रों के मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाते हैं और उनके समग्र विकास में सहायक हैं।

उच्च शिक्षा मंत्री आर. बिंदु ने भी आलोचनाओं को अनुचित बताते हुए कहा, “ज़ुंबा एक वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित फिटनेस पद्धति है और इसे नैतिकता से जोड़ना अनुचित है।”

शिक्षा विभाग की सफाई
शिक्षा विभाग के अधिकारियों का कहना है कि ज़ुंबा एक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार्य और लोकप्रिय फिटनेस फॉर्म है, जिसका उद्देश्य केवल छात्रों को स्वस्थ, ऊर्जावान और तनावमुक्त बनाना है। विभाग ने बताया कि राज्य में पहले से कई जगहों पर ज़ुंबा ट्रेनिंग सेंटर्स हैं और छात्रों में इसकी रुचि भी देखी गई है।

आईआईटी मद्रास परिसर में 25 जून की शाम एक 20 वर्षीय महिला प्रशिक्षु के साथ कथित रूप से यौन उत्पीड़न की घटना सामने आई है। पुलिस के अनुसार, आरोपी 22 वर्षीय युवक संस्थान के फूड कोर्ट में अनुबंधित कर्मचारी के रूप में कार्यरत था।

पीड़िता की शिकायत के आधार पर कोट्टूरपुरम पुलिस ने आरोपी की पहचान महाराष्ट्र निवासी रोशन कुमार के रूप में की और उसे 26 जून को गिरफ्तार कर रिमांड पर ले लिया गया है। मामले की जांच जारी है।

पुलिस के अनुसार, यह घटना उस समय हुई जब पीड़िता शाम लगभग साढ़े सात बजे परिसर में अकेली टहल रही थी। आरोपी ने उसके पास आकर दुर्व्यवहार किया और बाल खींचने की कोशिश की, जिसके बाद पीड़िता ने शोर मचाया। कैंपस में मौजूद सुरक्षाकर्मियों ने तुरंत मौके पर पहुंचकर आरोपी को पकड़ लिया और पुलिस के हवाले कर दिया।

राष्ट्रीय महिला आयोग ने इस मामले का स्वत: संज्ञान लेते हुए तमिलनाडु के डीजीपी को पत्र लिखा है। आयोग की अध्यक्ष विजया रहाटकर ने भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), 2023 के तहत निष्पक्ष और समयबद्ध जांच की मांग की है। आयोग ने पीड़िता को तत्काल चिकित्सकीय और मनोवैज्ञानिक सहायता सुनिश्चित करने के निर्देश भी दिए हैं।

आईआईटी मद्रास प्रशासन ने इस घटना पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा, "25 जून को हमारे परिसर में एक संविदा कर्मचारी द्वारा बाहरी संस्थान से आई छात्रा के साथ अनुचित व्यवहार किया गया। संस्थान ने तुरंत कार्रवाई करते हुए आरोपी को पुलिस के हवाले किया। संस्थान यौन उत्पीड़न के प्रति शून्य सहनशीलता की नीति का पालन करता है और एक सुरक्षित परिसर सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है।"

उत्तर प्रदेश के परिषदीय प्राथमिक और कंपोजिट विद्यालयों में संचालित बाल वाटिका कार्यक्रम को और मजबूत करने के लिए 8800 अर्ली चाइल्डहुड केयर एंड एजुकेशन (ECCE) एजुकेटरों की भर्ती की जाएगी। शिक्षा मंत्रालय ने इस पहल को स्वीकृति देते हुए 113.30 करोड़ रुपये का बजट भी मंजूर किया है। ये भर्तियां 11 महीने की संविदा पर की जाएंगी और चयनित एजुकेटरों को प्रति माह 10,313 रुपये का मानदेय दिया जाएगा।

बाल वाटिका में होंगे प्रशिक्षित शिक्षक
राज्य के 1.33 लाख परिषदीय स्कूलों में से 70 हजार से अधिक स्कूलों में आंगनबाड़ी केंद्र को-लोकेटेड हैं, जहां 3 से 6 वर्ष के बच्चों को पूर्व-प्राथमिक शिक्षा दी जाती है। अभी तक इस जिम्मेदारी को आंगनबाड़ी कार्यकर्ता या संबंधित शिक्षक निभाते हैं। लेकिन अब ये कार्य प्रशिक्षित ECCE एजुकेटरों को सौंपा जाएगा, जो बाल वाटिका को एक प्रभावी लर्निंग स्पेस में बदलेंगे।

चयन प्रक्रिया: डीएम की अध्यक्षता में होगी समिति
एजुकेटरों का चयन जिलाधिकारी की अध्यक्षता वाली आठ सदस्यीय समिति द्वारा किया जाएगा, जिसमें DIET प्राचार्य, बीएसए, जिला कार्यक्रम अधिकारी, सेवायोजन अधिकारी आदि शामिल होंगे।

योग्यता और आयु सीमा:
शैक्षिक योग्यता:
- स्नातक डिग्री (मुख्य विषय गृह विज्ञान) के साथ न्यूनतम 50% अंक, या
- नर्सरी टीचर ट्रेनिंग (NTT), सीटी नर्सरी, DPSE, या ECCE जैसे दो वर्षीय डिप्लोमा।
अधिकतम आयु सीमा: 40 वर्ष

पहले से चल रही है 10684 पदों पर चयन प्रक्रिया
वित्तीय वर्ष 2024-25 के लिए भी केंद्र सरकार द्वारा 10684 ECCE एजुकेटरों की भर्ती को मंजूरी दी गई है, जिसकी प्रक्रिया पहले से चल रही है। नए शैक्षणिक सत्र में बाल वाटिका कार्यक्रम में कुल लगभग 20,000 प्रशिक्षित एजुकेटरों की तैनाती हो सकेगी।

ECCE एजुकेटरों की मुख्य जिम्मेदारियां:
- 3 से 6 वर्ष के बच्चों को औपचारिक शिक्षा के लिए तैयार करना
- 5 से 6 वर्ष आयु वर्ग पर विशेष ध्यान देकर निपुण भारत मिशन के लक्ष्यों को पूरा करना
- अभिभावकों से संवाद और बच्चों की प्रगति से उन्हें अवगत कराना
- बच्चों के समग्र विकास के लिए चाइल्ड प्रोफाइल और इंडिकेटर आधारित मूल्यांकन तैयार करना

यह पहल न केवल बच्चों की बुनियादी शिक्षा को मजबूत करेगी, बल्कि शिक्षा व्यवस्था में गुणवत्ता भी सुनिश्चित करेगी।

 


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नेशनल टेस्टिंग एजेंसी (NTA) ने स्वयं के तहत आयोजित जनवरी 2025 की सेमेस्टर परीक्षाओं के परिणाम जारी कर दिए हैं। ये परीक्षाएं कंप्यूटर बेस्ड टेस्ट (CBT) मोड में आयोजित की गई थीं। जो उम्मीदवार इन परीक्षाओं में शामिल हुए थे, वे अब अपना रिजल्ट आधिकारिक वेबसाइट exam.nta.ac.in/swayam पर जाकर देख सकते हैं।

एनटीए प्रत्येक सत्र में स्वयं ऑनलाइन सर्टिफिकेशन कोर्सेज के लिए सीबीटी और हाइब्रिड मोड में परीक्षाएं आयोजित करता है। जनवरी 2025 सत्र की परीक्षा इस वर्ष 17, 18, 24, 25 और 31 मई को कुल 10 सत्रों में आयोजित की गई थी।

इस बार परीक्षा का आयोजन देशभर के 227 शहरों के 310 परीक्षा केंद्रों पर किया गया। कुल 589 कोर्सेज के लिए परीक्षाएं आयोजित की गईं, जिनमें से 524 कोर्स कंप्यूटर बेस्ड (CBT) मोड में और शेष 65 कोर्स हाइब्रिड मोड में कराए गए।

अगर उम्मीदवारों को किसी भी तरह की जानकारी या स्पष्टीकरण चाहिए, तो वे This email address is being protected from spambots. You need JavaScript enabled to view it. पर ईमेल कर सकते हैं या 011-40759000 पर एनटीए हेल्प डेस्क को कॉल कर सकते हैं।

ऐसे चेक करें रिजल्ट
उम्मीदवार निम्नलिखित स्टेप्स को फॉलो करके अपना रिजल्ट आसानी से देख सकते हैं:
- सबसे पहले आधिकारिक वेबसाइट nta.ac.in/swayam पर जाएं।
- होमपेज पर "SWAYAM January 2025 Semester Result" के लिंक पर क्लिक करें।
- अब नया पेज खुलेगा, जहां आपको अपना एप्लिकेशन नंबर और जन्म तिथि (Date of Birth) दर्ज करनी होगी।
- कैप्चा कोड भरने के बाद "Submit" बटन पर क्लिक करें।
- आपका रिजल्ट स्क्रीन पर दिखाई देगा। आप चाहें तो इसे डाउनलोड करके प्रिंट भी कर सकते हैं।

पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता के कस्बा इलाके में एक महिला लॉ छात्रा से कॉलेज परिसर में कथित सामूहिक दुष्कर्म का सनसनीखेज मामला सामने आया है। इस मामले में तीन युवकों को गिरफ्तार किया गया है, जिनमें दो वर्तमान छात्र और एक पूर्व छात्र शामिल है। पुलिस के अनुसार, घटना 25 जून की शाम को घटी, जब छात्रा को कॉलेज परिसर के एक कमरे में ले जाकर उसके साथ दुष्कर्म किया गया।

आरोपियों की पहचान और गिरफ्तारी
गिरफ्तार आरोपियों में 31 वर्षीय मोनोजीत मिश्रा (कॉलेज की पूर्व इकाई का अध्यक्ष), 19 वर्षीय जैब अहमद और 20 वर्षीय प्रमित मुखर्जी (प्रमित मुखोपाध्याय) शामिल हैं। मोनोजीत और जैब को 26 जून की शाम को कोलकाता के तालबगान क्रॉसिंग के पास गिरफ्तार किया गया, जबकि प्रमित को अगले दिन सुबह उसके घर से पकड़ा गया। तीनों के मोबाइल फोन जब्त कर लिए गए हैं और कोर्ट ने उन्हें 1 जुलाई तक पुलिस हिरासत में भेज दिया है।

पुलिस का बयान
कोलकाता पुलिस के एक अधिकारी ने पुष्टि की कि पीड़िता की शिकायत के आधार पर प्राथमिकी दर्ज की गई है और मामले की जांच जारी है। फिलहाल पीड़िता का मेडिकल परीक्षण किया जा रहा है। पुलिस ने बताया कि जांच प्रारंभिक चरण में है और सभी आरोपी पुलिस हिरासत में हैं।

भाजपा ने ममता सरकार पर साधा निशाना
इस मामले को लेकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने राज्य सरकार को कठघरे में खड़ा किया है। पार्टी के नेता अमित मालवीय ने आरोप लगाया कि आरोपी तृणमूल कांग्रेस से जुड़े हुए हैं, हालांकि उन्होंने इसके पक्ष में कोई सबूत नहीं दिया। उन्होंने कहा कि “ममता बनर्जी के शासन में महिलाएं असुरक्षित महसूस कर रही हैं।”

राष्ट्रीय महिला आयोग की सख्ती
घटना पर राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW) ने स्वतः संज्ञान लेते हुए कोलकाता पुलिस आयुक्त को पत्र लिखा है। आयोग ने मामले की तेजी से जांच करने और पीड़िता को न्याय, मुआवजा और सभी प्रकार की सहायता प्रदान करने का निर्देश दिया है। साथ ही तीन दिन में विस्तृत रिपोर्ट मांगी गई है।

10 महीने पहले आरजी कर मेडिकल कॉलेज में हुई थी भयावह घटना
यह मामला उस दर्दनाक घटना के करीब 10 महीने बाद सामने आया है, जब कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज में एक महिला प्रशिक्षु डॉक्टर के साथ दुष्कर्म और हत्या हुई थी। उस मामले में दोषी संजय रॉय को उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी।

इस ताजा घटना ने एक बार फिर राज्य में महिला सुरक्षा को लेकर गहरी चिंता पैदा कर दी है। जांच के निष्कर्ष और प्रशासन की कार्रवाई पर सभी की नजरें टिकी हैं।

 

प्रोफ़ेसर (डॉ.) संजय द्विवेदी मीडिया शिक्षा के क्षेत्र में एक जानी-मानी शख्सियत हैं। वे भारतीय जन संचार संस्थान (IIMC) दिल्ली के महानिदेशक रह चुके हैं। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के प्रभारी कुलपति और कुलसचिव बतौर भी उन्होंने अपनी सेवाएं दी हैं। मीडिया शिक्षक होने के साथ ही प्रो.संजय द्विवेदी ने सक्रिय पत्रकार और दैनिक अखबारों के संपादक के रूप में भी भूमिकाएं निभाई हैं। वह मीडिया विमर्श पत्रिका के कार्यकारी संपादक भी हैं। 35 से ज़्यादा पुस्तकों का लेखन और संपादन भी किया है। सम्प्रति वे माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, भोपाल के जनसंचार विभागमें प्रोफेसर हैं। मीडिया शिक्षा, मीडिया की मौजूदा स्थिति, नयी शिक्षा नीति जैसे कई अहम् मुद्दों पर एड-इनबॉक्स के लिए संपादक रईस अहमद 'लाली' ने उनसे लम्बी बातचीत की है। प्रस्तुत हैं इस बातचीत के सम्पादित अंश : 

 

- संजय जी, प्रथम तो आपको बधाई कि वापस आप दिल्ली से अपने पुराने कार्यस्थल राजा भोज की नगरी भोपाल में आ गए हैं। यहाँ आकर कैसा लगता है आपको? मेरा ऐसा पूछने का तात्पर्य इन शहरों से इतर मीडिया शिक्षा के माहौल को लेकर इन दोनों जगहों के मिजाज़ और वातावरण को लेकर भी है। 

अपना शहर हमेशा अपना होता है। अपनी जमीन की खुशबू ही अलग होती है। जिस शहर में आपने पढ़ाई की, पत्रकारिता की, जहां पढ़ाया उससे दूर जाने का दिल नहीं होता। किंतु महत्वाकांक्षाएं आपको खींच ले जाती हैं। सो दिल्ली भी चले गए। वैसे भी मैं जलावतन हूं। मेरा कोई वतन नहीं है। लेकिन मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की जमीन मुझे बांधती है। मैंने सब कुछ यहीं पाया। कहने को तो यायावर सी जिंदगी जी है। जिसमें दिल्ली भी जुड़ गया। आप को गिनाऊं तो मैंने अपनी जन्मभूमि (अयोध्या) के बाद 11 बार शहर बदले, जिनमें बस्ती, लखनऊ,वाराणसी, भोपाल, रायपुर, बिलासपुर, मुंबई, दिल्ली सब शामिल हैं। जिनमें दो बार रायपुर आया और तीसरी बार भोपाल में हूं। बशीर बद्र साहब का एक शेर है, जब मेरठ दंगों में उनका घर जला दिया गया, तो उन्होंने कहा था-

मेरा घर जला तो

सारा जहां मेरा घर हो गया।

मैं खुद को खानाबदोश तो नहीं कहता,पर यायावर कहता हूं। अभी भी बैग तैयार है। चल दूंगा। जहां तक वातावरण की बात है, दिल्ली और भोपाल की क्या तुलना। एक राष्ट्रीय राजधानी है,दूसरी राज्य की राजधानी। मिजाज की भी क्या तुलना हम भोपाल के लोग चालाकियां सीख रहे हैं, दिल्ली वाले चालाक ही हैं। सारी नियामतें दिल्ली में बरसती हैं। इसलिए सबका मुंह दिल्ली की तरफ है। लेकिन दिल्ली या भोपाल हिंदुस्तान नहीं हैं। राजधानियां आकर्षित करती हैं , क्योंकि यहां राजपुत्र बसते हैं। हिंदुस्तान बहुत बड़ा है। उसे जानना अभी शेष है।

 

- भोपाल और दिल्ली में पत्रकारिता और जन संचार की पढ़ाई के माहौल में क्या फ़र्क़ महसूस किया आपने?

भारतीय जन संचार संस्थान में जब मैं रहा, वहां डिप्लोमा कोर्स चलते रहे। साल-साल भर के। उनका जोर ट्रेनिंग पर था। देश भर से प्रतिभावान विद्यार्थी वहां आते हैं, सबका पहला चयन यही संस्थान होता है। माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता विश्वविद्यालय इस मायने में खास है उसने पिछले तीस सालों से स्नातक और स्नातकोत्तर के रेगुलर कोर्स चलाए और बड़ी संख्या में मीडिया वृत्तिज्ञ ( प्रोफेसनल्स) और मीडिया शिक्षक निकाले। अब आईआईएमसी भी विश्वविद्यालय भी बन गया है। सो एक नई उड़ान के लिए वे भी तैयार हैं।

 

- आप देश के दोनों प्रतिष्ठित पत्रकारिता संस्थानों के अहम् पदों को सुशोभित कर चुके हैं। दोनों के बीच क्या अंतर पाया आपने ? दोनों की विशेषताएं आपकी नज़र में ?

दोनों की विशेषताएं हैं। एक तो किसी संस्था को केंद्र सरकार का समर्थन हो और वो दिल्ली में हो तो उसका दर्जा बहुत ऊंचा हो जाता है। मीडिया का केंद्र भी दिल्ली है। आईआईएमसी को उसका लाभ मिला है। वो काफी पुराना संस्थान है, बहुत शानदार एलुमूनाई है , एक समृध्द परंपरा है उसकी । एचवाई शारदा प्रसाद जैसे योग्य लोगों की कल्पना है वह। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय(एमसीयू) एक राज्य विश्वविद्यालय है, जिसे सरकार की ओर से बहुत पोषण नहीं मिला। अपने संसाधनों पर विकसित होकर उसने जो भी यात्रा की, वह बहुत खास है। कंप्यूटर शिक्षा के लोकव्यापीकरण में एमसीयू की एक खास जगह है। देश के अनेक विश्वविद्यालयों में आप जाएंगें तो मीडिया शिक्षकों में एमसीयू के  ही पूर्व छात्र हैं, क्योंकि स्नातकोत्तर कोर्स यहीं चल रहे थे। पीएचडी यहां हो रही थी। सो दोनों की तुलना नहीं हो सकती। योगदान दोनों का बहुत महत्वपूर्ण है।

 

- आप लम्बे समय से मीडिया शिक्षक रहे हैं और सक्रिय पत्रकारिता भी की है आपने। व्यवहारिकता के धरातल पर मौजूदा मीडिया शिक्षा को कैसे देखते हैं ?

एक समय था जब माना जाता है कि पत्रकार पैदा होते हैं और पत्रकारिता पढ़ा कर सिखाई नहीं जा सकती। अब वक्त बदल गया है। जनसंचार का क्षेत्र आज शिक्षा की दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण हो गया है। 

मीडिया शिक्षा में सिद्धांत और व्यवहार का बहुत गहरा द्वंद है। ज्ञान-विज्ञान के एक अनुशासन के रूप में इसे अभी भी स्थापित होना शेष है। कुछ लोग ट्रेनिंग पर आमादा हैं तो कुछ किताबी ज्ञान को ही पिला देना चाहते हैं। जबकि दोनों का समन्वय जरूरी है। सिद्धांत भी जरूरी हैं। क्योंकि जहां हमने ज्ञान को छोड़ा है, वहां से आगे लेकर जाना है। शोध, अनुसंधान के बिना नया विचार कैसे आएगा। वहीं मीडिया का व्यवहारिक ज्ञान भी जरूरी है। मीडिया का क्षेत्र अब संचार शिक्षा के नाते बहुत व्यापक है। सो विशेषज्ञता की ओर जाना होगा। आप एक जीवन में सब कुछ नहीं कर सकते। एक काम अच्छे से कर लें, वह बहुत है। इसलिए भ्रम बहुत है। अच्छे शिक्षकों का अभाव है। एआई की चुनौती अलग है। चमकती हुई चीजों ने बहुत से मिथक बनाए और तोड़े हैं। सो चीजें ठहर सी गयी हैं, ऐसा मुझे लगता है।

 

- नयी शिक्षा निति को केंद्र सरकार नए सपनों के नए भारत के अनुरूप प्रचारित कर रही है, जबकि आलोचना करने वाले इसमें तमाम कमियां गिना रहे हैं। एक शिक्षक बतौर आप इन नीतियों को कैसा पाते हैं ?

राष्ट्रीय शिक्षा नीति बहुत शानदार है। जड़ों से जोड़कर मूल्यनिष्ठा पैदा करना, पर्यावरण के प्रति प्रेम, व्यक्ति को आत्मनिर्भर बनाना यही लक्ष्य है। किंतु क्या हम इसके लिए तैयार हैं। सवाल यही है कि अच्छी नीतियां- संसाधनों, शिक्षकों के समर्पण, प्रशासन के समर्थन की भी मांग करती हैं। हमें इसे जमीन पर उतारने के लिए बहुत तैयारी चाहिए। भारत दिल्ली में न बसता है, न चलता है। इसलिए जमीनी हकीकतों पर ध्यान देने की जरूरत है। शिक्षा हमारे ‘तंत्र’ की कितनी बड़ा प्राथमिकता है, इस पर भी सोचिए। सच्चाई यही है कि मध्यवर्ग और निम्न मध्यवर्ग ने भी अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों से हटा लिया है। वे सरकारी संस्थानों से कोई उम्मीद नहीं रखते। इस विश्वास बहाली के लिए सरकारी संस्थानों के शिक्षकों, प्रबंधकों और सरकारी तंत्र को बहुत गंभीर होने की जरूरत है। उत्तर प्रदेश के ताकतवर मुख्यमंत्री प्राथमिक शिक्षकों की विद्यालयों में उपस्थिति को लेकर एक आदेश लाते हैं, शिक्षक उसे वापस करवा कर दम लेते हैं। यही सच्चाई है।

 

- पत्रकारिता में करियर बनाने के लिए क्या आवश्यक शर्त है ?

पत्रकारिता, मीडिया या संचार तीनों क्षेत्रों में बनने वाली नौकरियों की पहली शर्त तो भाषा ही है। हम बोलकर, लिखकर भाषा में ही खुद को व्यक्त करते हैं। इसलिए भाषा पहली जरूरत है। तकनीक बदलती रहती है, सीखी जा सकती है। किंतु भाषा संस्कार से आती है। अभ्यास से आती है। पढ़ना, लिखना, बोलना, सुनना यही भाषा का असल स्कूल और परीक्षा है। भाषा के साथ रहने पर भाषा हममें उतरती है। यही भाषा हमें अटलबिहारी वाजपेयी,अमिताभ बच्चन, नरेंद्र मोदी,आशुतोष राणा या कुमार विश्वास जैसी सफलताएं दिला सकती है। मीडिया में अनेक ऐसे चमकते नाम हैं, जिन्होंने अपनी भाषा से चमत्कृत किया है। अनेक लेखक हैं, जिन्हें हमने रात भर जागकर पढ़ा है। ऐसे विज्ञापन लेखक हैं जिनकी पंक्तियां हमने गुनगुनाई हैं। इसलिए भाषा, तकनीक का ज्ञान और अपने पाठक, दर्शक की समझ हमारी सफलता की गारंटी है। इसके साथ ही पत्रकारिता में समाज की समझ, मिलनसारिता, संवाद की क्षमता बहुत मायने रखती है।

 

- मीडिया शिक्षा में कैसे नवाचारों की आवश्यकता है ?

शिक्षा का काम व्यक्ति को आत्मनिर्भर और मूल्यनिष्ठ मनुष्य बनाना है। जो अपनी विधा को साधकर आगे ले जा सके। मीडिया में भी ऐसे पेशेवरों का इंतजार है जो ‘फार्मूला पत्रकारिता’ से आगे बढ़ें। जो मीडिया को इस देश की आवाज बना सकें। जो एजेंड़ा के बजाए जन-मन के सपनों, आकांक्षाओं को स्वर दे सकें। इसके लिए देश की समझ बहुत जरूरी है। आज के मीडिया का संकट यह है वह नागरबोध के साथ जी रहा है। वह भारत के पांच प्रतिशत लोगों की छवियों को प्रक्षेपित कर रहा है। जबकि कोई भी समाज अपनी लोकचेतना से खास बनता है। देश की बहुत गहरी समझ पैदा करने वाले, संवेदनशील पत्रकारों का निर्माण जरूरी है। मीडिया शिक्षा को संवेदना,सरोकार, राग, भारतबोध से जोड़ने की जरूरत है। पश्चिमी मानकों पर खड़ी मीडिया शिक्षा को भारत की संचार परंपरा से जोड़ने की जरूरत है। जहां संवाद से संकटों के हल खोजे जाते रहे हैं। जहां संवाद व्यापार और व्यवसाय नहीं, एक सामाजिक जिम्मेदारी है।

 

- देश में मीडिया की मौजूदा स्थिति को लेकर आपकी राय क्या है ?

मीडिया शिक्षा का विस्तार बहुत हुआ है। हर केंद्रीय विश्वविद्यालय में मीडिया शिक्षा के विभाग हैं। चार विश्वविद्यालय- भारतीय जन संचार संस्थान(दिल्ली), माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विवि(भोपाल), हरिदेव जोशी पत्रकारिता विवि(जयपुर) और कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विवि(रायपुर) देश में काम कर रहे हैं। इन सबकी उपस्थिति के साथ-साथ निजी विश्वविद्यालय और कालेजों में भी जनसंचार की पढ़ाई हो रही है। यानि विस्तार बहुत हुआ है। अब हमें इसकी गुणवत्ता पर ध्यान देने की जरूरत है। ये जो चार विश्वविद्यालय हैं वे क्या कर रहे हैं। क्या इनका आपस में भी कोई समन्वय है। विविध विभागों में क्या हो रहा है। उनके ज्ञान, शोध और आइडिया एक्सचेंज जैसी व्यवस्थाएं बनानी चाहिए। दुनिया में मीडिया या जनसंचार शिक्षा के जो सार्थक प्रयास चल रहे हैं, उसकी तुलना में हम कहां हैं। बहुत सारी बातें हैं, जिनपर बात होनी चाहिए। अपनी ज्ञान विधा में हमने क्या जोड़ा। हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री ने भी एक समय देश में एक ग्लोबल कम्युनिकेशन यूनिर्वसिटी बनाने की बात की थी। देखिए क्या होता है।

    बावजूद इसके हम एक मीडिया शिक्षक के नाते क्या कर पा रहे हैं। यह सोचना है। वरना तो मशहूर शायर अकबर इलाहाबादी हमारे लिए ही लिख गए हैं-

हम क्या कहें अहबाब क्या कार-ए-नुमायाँ कर गए।

बी-ए हुए नौकर हुए पेंशन मिली फिर मर गए।।

 

- आज की मीडिया और इससे जुड़े लोगों के अपने मिशन से भटक जाने और पूरी तरह  पूंजीपतियों, सत्ताधीशों के हाथों बिक जाने की बात कही जा रही है। इससे आप कितना इत्तेफ़ाक़ रखते हैं?

देखिए मीडिया चलाना साधारण आदमी को बस की बात नहीं है। यह एक बड़ा उद्यम है। जिसमें बहुत पूंजी लगती है। इसलिए कारपोरेट,पूंजीपति या राजनेता चाहे जो हों, इसे पोषित करने के लिए पूंजी चाहिए। बस बात यह है कि मीडिया किसके हाथ में है। इसे बाजार के हवाले कर दिया जाए या यह एक सामाजिक उपक्रम बना रहेगा। इसलिए पूंजी से नफरत न करते हुए इसके सामाजिक, संवेदनशील और जनधर्मी बने रहने के लिए निरंतर लगे रहना है। यह भी मानिए कोई भी मीडिया जनसरोकारों के बिना नहीं चल सकता। प्रामणिकता, विश्वसनीयता उसकी पहली शर्त है। पाठक और दर्शक सब समझते हैं।

 

- आपकी नज़र में इस वक़्त देश में मीडिया शिक्षा की कैसी स्थिति है ? क्या यह बेहतर पत्रकार बनाने और मीडिया को सकारात्मक दिशा देने का काम कर पा रही है ?

मैं मीडिया शिक्षा क्षेत्र से 2009 से जुड़ा हूं। मेरे कहने का कोई अर्थ नहीं है। लोग क्या सोचते हैं, यह बड़ी बात है। मुझे दुख है कि मीडिया शिक्षा में अब बहुत अच्छे और कमिटेड विद्यार्थी नहीं आ रहे हैं। अजीब सी हवा है। भाषा और सरोकारों के सवाल भी अब बेमानी लगने लगे हैं। सबको जल्दी ज्यादा पाने और छा जाने की ललक है। ऐसे में स्थितियां बहुत सुखद नहीं हैं। पर भरोसा तो करना होगा। इन्हीं में से कुछ भागीरथ निकलेंगें जो हमारे मीडिया को वर्तमान स्थितियों से निकालेगें। ऐसे लोग तैयार करने होंगें, जो बहुत जल्दी में न हों। जो ठहरकर पढ़ने और सीखने के लिए तैयार हों। वही लोग बदलाव लाएंगें।

 

- देश में आज मीडिया शिक्षा के सामने प्रमुख चुनौतियाँ क्या हैं?

सबसे बड़ी चुनौती है ऐसे विद्यार्थियों का इंतजार जिनकी प्राथमिकता मीडिया में काम करना हो। सिर्फ इसलिए नहीं कि यह ग्लैमर या रोजगार दे पाए। बल्कि देश के लोगों को संबल, साहस और आत्मविश्वास दे सके। संचार के माध्यम से क्या नहीं हो सकता। इसकी ताकत को मीडिया शिक्षकों और विद्यार्थियों को पहचानना होगा। क्या हम इसके लिए तैयार हैं,यह एक बड़ा सवाल है। मीडिया शिक्षा के माध्यम से हम ऐसे क्म्युनिकेटर्स तैयार कर सकते हैं जिनके माध्यम से समाज के संकट हल हो सकते हैं। यह साधारण शिक्षा नहीं है। यह असाधारण है। भाषा,संवाद,सरोकार और संवेदनशीलता से मिलकर हम जो भी रचेगें, उससे ही नया भारत बनेगा। इसके साथ ही मीडिया एजूकेशन कौंसिल का गठन भारत सरकार करे ताकि अन्य प्रोफेशनल कोर्सेज की तरह इसका भी नियमन हो सके। गली-गली खुल रहे मीडिया कालेजों पर लगाम लगे। एक हफ्ते में पत्रकार बनाने की दुकानों पर ताला डाला जा सके। मीडिया के घरानों में तेजी से मोटी फीस लेकर मीडिया स्कूल खोलने की ललक बढ़ी है, इस पर नियंत्रण हो सकेगा। गुणवत्ता विहीन किसी शिक्षा का कोई मोल नहीं, अफसोस मीडिया शिक्षा के विस्तार ने इसे बहुत नीचे गिरा दिया है। दरअसल भारत में मीडिया शिक्षा मोटे तौर पर छह स्तरों पर होती है। सरकारी विश्वविद्यालयों या कॉलेजों में, दूसरे, विश्वविद्यालयों से संबंद्ध संस्थानों में, तीसरे, भारत सरकार के स्वायत्तता प्राप्त संस्थानों में, चौथे, पूरी तरह से प्राइवेट संस्थान, पांचवे डीम्ड विश्वविद्यालय और छठे, किसी निजी चैनल या समाचार पत्र के खोले गए अपने मीडिया संस्थान। इस पूरी प्रक्रिया में हमारे सामने जो एक सबसे बड़ी समस्या है, वो है किताबें। हमारे देश में मीडिया के विद्यार्थी विदेशी पुस्तकों पर ज्यादा निर्भर हैं। लेकिन अगर हम देखें तो भारत और अमेरिका के मीडिया उद्योगों की संरचना और कामकाज के तरीके में बहुत अंतर है। इसलिए मीडिया के शिक्षकों की ये जिम्मेदारी है, कि वे भारत की परिस्थितियों के हिसाब से किताबें लिखें।

 

- भारत में मीडिया शिक्षा का क्या भविष्य देखते हैं आप ?

मीडिया शिक्षण में एक स्पर्धा चल रही है। इसलिए मीडिया शिक्षकों को ये तय करना होगा कि उनका लक्ष्य स्पर्धा में शामिल होने का है, या फिर पत्रकारिता शिक्षण का बेहतर माहौल बनाने का है। आज के समय में पत्रकारिता बहुत बदल गई है, इसलिए पत्रकारिता शिक्षा में भी बदलाव आवश्यक है। आज लोग जैसे डॉक्टर से अपेक्षा करते हैं, वैसे पत्रकार से भी सही खबरों की अपेक्षा करते हैं। अब हमें मीडिया शिक्षण में ऐसे पाठ्यक्रम तैयार करने होंगे, जिनमें विषयवस्तु के साथ साथ नई तकनीक का भी समावेश हो। न्यू मीडिया आज न्यू नॉर्मल है। हम सब जानते हैं कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के कारण लाखों नौकरियां गई हैं। इसलिए हमें मीडिया शिक्षा के अलग अलग पहलुओं पर ध्यान देना होगा और बाजार के हिसाब से प्रोफेशनल तैयार करने होंगे। नई शिक्षा नीति में क्षेत्रीय भाषाओं पर ध्यान देने की बात कही गई है। जनसंचार शिक्षा के क्षेत्र में भी हमें इस पर ध्यान देना होगा। मीडिया शिक्षण संस्थानों के लिए आज एक बड़ी आवश्यकता है क्षेत्रीय भाषाओं में पाठ्यक्रम तैयार करना। भाषा वो ही जीवित रहती है, जिससे आप जीविकोपार्जन कर पाएं और भारत में एक सोची समझी साजिश के तहत अंग्रेजी को जीविकोपार्जन की भाषा बनाया जा रहा है। ये उस वक्त में हो रहा है, जब पत्रकारिता अंग्रेजी बोलने वाले बड़े शहरों से हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाओं के शहरों और गांवों की ओर मुड़ रही है। आज अंग्रेजी के समाचार चैनल भी हिंदी में डिबेट करते हैं। सीबीएससी बोर्ड को देखिए जहां पाठ्यक्रम में मीडिया को एक विषय के रूप में पढ़ाया जा रहा है। क्या हम अन्य राज्यों के पाठ्यक्रमों में भी इस तरह की व्यवस्था कर सकते हैं, जिससे मीडिया शिक्षण को एक नई दिशा मिल सके।

 

- तेजी से बदलते मीडिया परिदृश्य के सापेक्ष मीडिया शिक्षा संस्थान स्वयं को कैसे ढाल सकते हैं यानी उन्हें उसके अनुकूल बनने के लिए क्या करना चाहिए ?

 मीडिया शिक्षण संस्थानों को अपने पाठ्यक्रमों में इस तरह के बदलाव करने चाहिए, कि वे न्यू मीडिया के लिए छात्रों को तैयार कर सकें। आज तकनीक किसी भी पाठ्यक्रम का महत्वपूर्ण हिस्सा है। मीडिया में दो तरह के प्रारूप होते हैं। एक है पारंपरिक मीडिया जैसे अखबार और पत्रिकाएं और और दूसरा है डिजिटल मीडिया। अगर हम वर्तमान संदर्भ में बात करें तो सबसे अच्छी बात ये है कि आज ये दोनों प्रारूप मिलकर चलते हैं। आज पारंपरिक मीडिया स्वयं को डिजिटल मीडिया में परिवर्तित कर रहा है। जरूरी है कि मीडिया शिक्षण संस्थान अपने छात्रों को 'डिजिटल ट्रांसफॉर्म' के लिए पहले से तैयार करें। देश में प्रादेशिक भाषा यानी भारतीय भाषाओं के बाजार का महत्व भी लगातार बढ़ रहा है। एक रिपोर्ट के अनुसार अंग्रेजी भाषा के उपभोक्ताओं का डिजिटल की तरफ मुड़ना लगभग पूरा हो चुका है। ऐसा माना जा रहा है कि वर्ष 2030 तक भारतीय भाषाओं के बाजार में उपयोगकर्ताओं की संख्या 500 मिलियन तक पहुंच जाएगी और लोग इंटरनेट का इस्तेमाल स्थानीय भाषा में करेंगे। जनसंचार की शिक्षा देने वाले संस्थान अपने आपको इन चुनौतियों के मद्देनजर तैयार करें, यह एक बड़ी जिम्मेदारी है।

 

- वे कौन से कदम हो सकते हैं जो मीडिया उद्योग की अपेक्षाओं और मीडिया शिक्षा संस्थानों द्वारा उन्हें उपलब्ध कराये जाने वाले कौशल के बीच के अंतर को पाट सकते हैं?

 

 भारत में जब भी मीडिया शिक्षा की बात होती है, तो प्रोफेसर केईपन का नाम हमेशा याद किया जाता है। प्रोफेसर ईपन भारत में पत्रकारिता शिक्षा के तंत्र में व्यावहारिक प्रशिक्षण के पक्षधर थे। प्रोफेसर ईपन का मानना था कि मीडिया के शिक्षकों के पास पत्रकारिता की औपचारिक शिक्षा के साथ साथ मीडिया में काम करने का प्रत्यक्ष अनुभव भी होना चाहिए, तभी वे प्रभावी ढंग से बच्चों को पढ़ा पाएंगे। आज देश के अधिकांश पत्रकारिता एवं जनसंचार शिक्षण संस्थान, मीडिया शिक्षक के तौर पर ऐसे लोगों को प्राथमिकता दे रहे हैं, जिन्हें अकादमिक के साथ साथ पत्रकारिता का भी अनुभव हो। ताकि ये शिक्षक ऐसा शैक्षणिक माहौल तैयार कर सकें, ऐसा शैक्षिक पाठ्यक्रम तैयार कर सकें, जिसका उपयोग विद्यार्थी आगे चलकर अपने कार्यक्षेत्र में भी कर पाएं।  पत्रकारिता के प्रशिक्षण के समर्थन में जो तर्क दिए जाते हैं, उनमें से एक दमदार तर्क यह है कि यदि डॉक्टरी करने के लिए कम से कम एम.बी.बी.एस. होना जरूरी है, वकालत की डिग्री लेने के बाद ही वकील बना जा सकता है तो पत्रकारिता जैसे महत्वपूर्ण पेशे को किसी के लिए भी खुला कैसे छोड़ा जा सकता है? बहुत बेहतर हो मीडिया संस्थान अपने अध्यापकों को भी मीडिया संस्थानों में अनुभव के लिए भेजें। इससे मीडिया की जरूरतों और न्यूज रूम के वातावरण का अनुभव साक्षात हो सकेगा। विश्वविद्यालयों को आखिरी सेमेस्टर या किसी एक सेमेस्टर में न्यूज रूम जैसे ही पढ़ाई पर फोकस करना चाहिए। अनेक विश्वविद्यालय ऐसे कर सकने में सक्षम हैं कि वे न्यूज रूम क्रियेट कर सकें।

 

- अपने कार्यकाल के दौरान मीडिया शिक्षा और आईआईएमसी की प्रगति के मद्देनज़र आपने क्या महत्वपूर्ण कदम उठाये, संक्षेप में उनका ज़िक्र करें।

मुझे लगता है कि अपने काम गिनाना आपको छोटा बनाता है। मैंने जो किया उसकी जिक्र करना ठीक नहीं। जो किया उससे संतुष्ठ हूं। मूल्यांकन लोगों पर ही छोड़िए।

 

 

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) यानी कृत्रिम बुद्धिमत्ता विज्ञान का एक नया वरदान है। कंप्यूटर के क्षेत्र में नई तकनीक। जॉन मैकार्थी को इस आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का जनक माना जाता है। एक ऐसी विधा जिसमें मशीन से मशीन की बातें होती है। एक कंप्यूटर दूसरे कंप्यूटर से बात करता है। यह विज्ञान का अद्भुत चमत्कार है। मानव जीवन में तो इसका दखल बढ़ा ही है, करियर के लिहाज से भी इसका दायरा और और विस्तृत होता जा रहा है। इसमें मैकेनिकल इंजीनियरिंग, कंप्यूटर साइंस इंजीनियरिंग, अप्लाइड आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के साथ-साथ रोबोटिक ऑटोमेशन इंजीनियरिंग में डिप्लोमा, बैचलर डिग्री, मास्टर डिग्री और रिसर्च आदि में करियर विकल्प हैं। 

अंतरराष्ट्रीय वैज्ञानिक और फिनलैंड के सवोनिया यूनिवर्सिटी ऑफ एप्लाइड साइंस के प्रोफेसर डॉ राजीव कंठ से इस विषय पर हमने विस्तृत चर्चा की। उनसे चर्चा के क्रम में पता चलता है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आने वाले समय में हमारे जीवन में कितना महत्वपूर्ण हो जाएगा। बातचीत के कुछ अंश :

प्र. - सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में नया क्या है?

उ. - सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आज हर दिन कुछ ना कुछ नया हो रहा है। यही वजह है कि इस क्षेत्र को पोटेंशियल डेवलपमेंट एरिया के रूप में देखा जा रहा है। अब तक मशीन से आदमी की बात होती थी। अब मशीन से मशीन की बात होती है। यह सबसे नई तकनीक है।


प्र. - इस क्षेत्र में सबसे बड़ी चुनौती क्या है?

उ. - इस क्षेत्र में जितनी नई चीजें आ रही हैं या कह सकते हैं कि जितनी नई चीजों पर शोध हो रहा है, उन चीजों का समुचित विकास करना सबसे बड़ी चुनौती है।


प्र. - इस क्षेत्र के कई आयाम हैं जैसे इंटरनेट, ई-बैंकिंग, ई-कॉमर्स, ईमेल आदि इन सब में सबसे बड़ी चुनौती किस क्षेत्र में है?

उ. - चुनौती तो सभी क्षेत्र में है। किसी भी चुनौती को कम नहीं कहा जा सकता लेकिन बैंकिंग क्षेत्र में ज्यादा कह सकते हैं। क्योंकि लोग मेहनत की कमाई बैंक में रखते हैं और हैकर्स सेकंडों में उसे उड़ा लेते हैं। इसलिए बैंकिंग के क्षेत्र में सबसे बड़ी चुनौती है।


प्र. - हैकरों से छुटकारा पाने के लिए क्या सुझाव देना चाहेंगे?

उ. - हैकरों से छुटकारा पाने के लिए सुझाव है कि पासवर्ड किसी से शेयर ना करें। पासवर्ड 3-4 लेयर का बनाएं और एक निश्चित समय अंतराल के बाद पासवर्ड को बदलते रहें। ये कुछ उपाय हैं जिससे हैकरों से बचा जा सकता है।


प्र. - युवाओं को करियर के लिए क्या सुझाव देना चाहेंगे?

उ. - करियर के लिहाज से यह क्षेत्र काफी अच्छा है। आज हर युवा जो इस फील्ड में करियर बनाना चाहता है उसकी पहली चॉइस कंप्यूटर साइंस होता है। जब वह कंप्यूटर साइंस से स्नातक करता है, उसके बाद सूचना प्रौद्योगिकी आथवा कृत्रिम बुद्धिमता या आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मैं अपना कैरियर बनाना चाहता है। रोबोट बनाने की ख्वाहिश आज हर सूचना प्रौद्योगिकी पढ़ने वाले छात्र की होती है।

 

हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि भारत की कुल आबादी का एक तिहाई से अधिक हिस्सा 15 से 25 वर्ष की आयु वर्ग के युवाओं का है। आशाओं और आकांक्षाओं से आच्छादित जीवन का यही वह दौर होता है जब एक युवा अपने करियर को लेकर गंभीर होता है। इसी के दृष्टिगत वह अपनी एक अलहदा राह का निर्धारण करता है, सीखने के लिए तदनुरूप विषय का चयन करता है और भविष्य में उसे जिन कार्यों को सम्पादित करना है, उसके मद्देनज़र निर्णय के पड़ाव पर पहुँचने का प्रयास करता है। और यही वह पूरी प्रक्रिया है जो उसे आत्मनिर्भर बनाती है। लिहाजा, जीवन के इस कालखंड में आवश्यक है कि कोई उसका हाथ थामे, उसका ज़रूरी मार्गदर्शन करे।

हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि इंजीनियरिंग, मेडिकल और मैनेजमेंट अब भी करियर-निर्माण के लिहाज से पसंदीदा क्षेत्र बने हुए हैं, जबकि सीखने, काम करने और अपने पेशेवर जीवन के निर्माण के लिए 99 अन्य विशिष्ट क्षेत्र भी हैं। इनमें डिजाइन, मीडिया, फोरेंसिक विज्ञान, सामाजिक विज्ञान, अलाइड हेल्थकेयर, कृषि आदि शामिल हैं। दुर्भाग्यवश, करियर के इन क्षेत्रों को लेकर बहुत कम चर्चा होती है। कोई इस पर बात नहीं करता कि इन डोमेन में नवीनतम क्या है।

हम यह भी न भूलें कि लगभग 4 ट्रिलियन डॉलर की भारतीय अर्थव्यवस्था में भारतीय मीडिया की हिस्सेदारी करीब 1% की है। प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष  2 मिलियन से अधिक लोग किसी न किसी रूप में इससे सम्बद्ध हैं। मीडिया एक ऐसा क्षेत्र भी है, जो लोगों के दिलो-दिमाग पर गहरा प्रभाव छोड़ता है। लेकिन शायद ही कोई ऐसा समर्पित मीडिया मंच है जिसका मीडिया-शिक्षा और लर्निंग की दिशा में ध्यान केंद्रित हो। सार्वजनिक जीवन में शायद मीडिया-शिक्षा अभी भी सबसे उपेक्षित क्षेत्र है।

हमें नहीं भूलना चाहिए कि शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा, ये दो ऐसे क्षेत्र हैं जो वास्तव में बड़े देशों के बीच सबसे बड़ी युवा आबादी वाले देश में मानव संसाधन के लिए उत्तरदायी हैं। दुर्भाग्य कि इन क्षेत्रों पर शासन और देश की राजनीति का ध्यान सबसे कम केंद्रित होता है। आने वाले समय में इन पर सार्वजनिक तौर पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।

न भूलें कि भारत की उच्च शिक्षा का आज वृहद् दायरा है, जहां बारहवीं कक्षा से ऊपर के सौ मिलियन से अधिक शिक्षार्थी हैं, लेकिन इनमें अधिकांश की स्तर सामान्य और गुणवत्ता औसत है। अपवादस्वरूप,  कुछ संस्थानों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराई जा रही है। ऐसे में यदि हम चाहते हैं कि हमारे पास मौजूद जनसांख्यिकीय लाभ का सकारात्मक परिणाम हमें प्राप्त हो तो गुणवत्ता के दायरे का तेजी से विस्तार अतिआवश्यक है।

और, यही वजह है कि उपरोक्त सन्दर्भों पर ध्यान केंद्रित करने और सर्वप्रथम भारत और तदुपरांत एशिया की उच्च शिक्षा (विशेष क्षेत्रों में ख़ास तौर पर ) में प्रगति को गति प्रदान करने के लिए, एक मई को श्रमिक दिवस पर एडइनबॉक्स हिंदी के साथ हम आपके समक्ष अपनी उपस्थिति दर्ज कर रहे हैं। शिक्षा के सामर्थ्य और श्रम की संघर्षशीलता को नमन करते हुए यह हमारी तरफ से इसका सम्मान है, एक उपहार।

साथ ही,  इस मंच से हमारा प्रयास होगा बेहतर गुणवत्ता वाले उच्च शिक्षा संस्थानों का समर्थन करना और स्कूलों से निकलने वाले नौजवानों को ज्ञान, जानकारी और अंतर्दृष्टि के साथ उन्हें उनके सपनों के करियर और संस्थानों में प्रवेश की राह आसान बनाने में सहायता करना। इन क्षेत्रों के महारथियों की उपलब्धियों को भी सम्बंधित काउन्सिल के माध्यम से, संस्थानों और मार्गदर्शकों को सम्मानित कर उनकी महती भूमिका को लोगों के समक्ष रखने और उजागर करने का हमारा प्रयास होगा। हमारा इरादा हर क्षेत्र या डोमेन का एक इकोसिस्टम निर्मित करना है, धरातल पर भी और ऑनलाइन भी। 

तो आइये, एडइनबॉक्स के साथ हम उच्च शिक्षा जगत की एक प्रभावी यात्रा पर अग्रसर हों। 

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प्रो उज्ज्वल अनु चौधरी
वाइस प्रेजिडेंट, वाशिंगटन यूनिवर्सिटी ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी 
एडिटर, एडइनबॉक्स (Edinbox.com) 
पूर्व सलाहकार और प्रोफेसर, डैफोडिल इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी, ढाका
(इससे पूर्व एडमास यूनिवर्सिटी से प्रो वीसी के रूप में,
सिम्बायोसिस व एमिटी यूनिवर्सिटी, पर्ल अकादमी और डब्ल्यूडब्ल्यूआई के डीन,
और टीओआई, ज़ी, बिजनेस इंडिया ग्रुप से जुड़ाव के साथ भारत सरकार और डब्ल्यूएचओ/टीएनएफ के मीडिया सलाहकार रहे हैं।)

डिज़ाइन में करियर बनाना एक बड़ा और साहसिक कदम होता है, खासकर भारत में, जहां क्रिएटिव इंडस्ट्री तेज़ी से बढ़ रही है और हर साल नई-नई स्पेशलाइज़ेशन सामने आ रही हैं। पहले यह फैसला कला और शिल्प के बीच होता था, फिर इसमें डिज़ाइन भी जुड़ गया, और आज डिज़ाइन का क्षेत्र इतना विस्तृत हो गया है कि इसमें हर तरह की डिज़ाइन शाखाएँ शामिल हैं।

अगर आप एक डिज़ाइन स्टूडेंट हैं और यह तय नहीं कर पा रहे हैं कि बैचलर ऑफ़ डिज़ाइन (B.Des) लें, बैचलर ऑफ़ फाइन आर्ट्स (BFA) करें या डिप्लोमा इन डिज़ाइन, तो यह गाइड आपके लिए बेहद उपयोगी हो सकती है। इसमें इन कोर्सों की संरचना, करियर स्कोप, एंट्रेंस एग्ज़ाम और सैलरी ट्रेंड्स के आधार पर तुलना की गई है ताकि आप समझदारी और भविष्य को ध्यान में रखकर सही विकल्प चुन सकें।

B.Des क्या है?
बैचलर ऑफ डिज़ाइन (B.Des) एक पेशेवर डिग्री है, जो अप्लाइड डिज़ाइन जैसे प्रोडक्ट डिज़ाइन, UX/UI डिज़ाइन, फैशन डिज़ाइन, इंटीरियर डिज़ाइन और कम्युनिकेशन डिज़ाइन पर केंद्रित होती है। इसका कोर्स प्रैक्टिकल स्किल्स और टेक्नोलॉजी पर आधारित होता है, जिसमें क्रिएटिविटी और प्रॉब्लम-सॉल्विंग को जोड़कर छात्रों को इंडस्ट्री के लिए तैयार किया जाता है।

प्रवेश परीक्षाएँ: UCEED, NID DAT, NIFT, AIEED, AIDAT
स्पेशलाइज़ेशन: प्रोडक्ट, ग्राफिक, टेक्सटाइल, फैशन, UI/UX, इंडस्ट्रियल, इंटीरियर, ज्वेलरी आदि
प्रमुख भर्तीकर्ता: TCS, Infosys, Flipkart, Myntra, Tata Elxsi, डिज़ाइन स्टूडियोज़, MNCs
सैलरी रेंज: ₹3.3 लाख से ₹12.5 लाख प्रति वर्ष
उपयुक्त छात्र: वे जो आर्ट और टेक्नोलॉजी को साथ मिलाकर काम करना पसंद करते हैं और तेज़ी से बढ़ते डिज़ाइन क्षेत्र में हाई-पेइंग नौकरियाँ चाहते हैं

BFA क्या है?
बैचलर ऑफ फाइन आर्ट्स (BFA) एक अंडरग्रेजुएट डिग्री है जो विजुअल आर्ट्स और परफॉर्मिंग आर्ट्स पर आधारित होती है – जैसे पेंटिंग, स्कल्पचर, एनिमेशन, फोटोग्राफी आदि। यह कोर्स उन छात्रों के लिए उपयुक्त है जो कला, एनिमेशन या पढ़ाने के क्षेत्र में करियर बनाना चाहते हैं।

प्रवेश परीक्षाएँ: NID DAT, BHU UET, JMI, CUET, AIDAT
स्पेशलाइज़ेशन: पेंटिंग, स्कल्पचर, एप्लाइड आर्ट, एनिमेशन, फोटोग्राफी, विज़ुअल कम्युनिकेशन
करियर विकल्प: फाइन आर्टिस्ट, एनिमेटर, आर्ट डायरेक्टर, टीचर, गैलरी क्यूरेटर, मल्टीमीडिया आर्टिस्ट
सैलरी रेंज: ₹1.2 लाख से ₹8.7 लाख प्रति वर्ष (टॉप प्रोफाइल में ₹20 लाख/वर्ष तक)
उपयुक्त छात्र: वे जो गहरी क्रिएटिव सोच रखते हैं और कला, एनिमेशन या शिक्षण के क्षेत्र में काम करना चाहते हैं

डिप्लोमा इन डिज़ाइन क्या है?
डिज़ाइन डिप्लोमा प्रोग्राम्स 1 से 3 साल के छोटे और स्किल-बेस्ड कोर्स होते हैं। ये कम लागत में व्यावसायिक कौशल सिखाते हैं और उन छात्रों के लिए उपयोगी होते हैं जो जल्दी जॉब शुरू करना चाहते हैं या किसी स्पेशल स्किल में ट्रेनिंग लेना चाहते हैं।

योग्यता: 12वीं (किसी भी स्ट्रीम से)
करियर स्कोप: जूनियर डिज़ाइनर, असिस्टेंट, फ्रीलांसर, प्राथमिक विद्यालय शिक्षक
सैलरी रेंज: ₹1.8 लाख से ₹4 लाख प्रति वर्ष
उपयुक्त छात्र: वे जो जल्दी नौकरी शुरू करना चाहते हैं, UG डिग्री का खर्च वहन नहीं कर सकते, या स्किल डेवलपमेंट करना चाहते हैं

तीनों कोर्सों की तुलना एक नज़र में:
विशेषता                     B.Des                               BFA                          डिप्लोमा इन डिज़ाइन
अवधि                          4 वर्ष                                3–4 वर्ष                               1–3 वर्ष
योग्यता                12वीं (किसी भी स्ट्रीम)         12वीं (किसी भी स्ट्रीम)                      12वीं
प्रवेश परीक्षा        UCEED, NID DAT, NIFT      NID DAT, CUET, BHU UET    संस्थान पर निर्भर करता है
मुख्य करियर        प्रोडक्ट, फैशन, UI/UX        आर्टिस्ट, एनिमेटर, टीचर            जूनियर डिज़ाइनर, असिस्टेंट
सैलरी रेंज            ₹3.3–12.5 लाख/वर्ष            ₹1.2–8.7 लाख/वर्ष                    ₹1.8–4 लाख/वर्ष
टॉप कॉलेज             NID, NIFT, IITs                BHU, JMI, प्रेसिडेंसी                Vogue, Parul, Oasis

तो कौन सा रास्ता सही है?
- B.Des चुनें अगर आप प्रोफेशनल डिज़ाइन करियर चाहते हैं, टेक्नोलॉजी, बिज़नेस और क्रिएटिव सॉल्यूशन में रुचि रखते हैं।

- BFA चुनें अगर आप कला प्रेमी हैं, एनिमेशन या शिक्षण में करियर बनाना चाहते हैं।

- डिप्लोमा चुनें अगर आप जल्दी जॉब शुरू करना चाहते हैं, कम बजट में पढ़ाई करना चाहते हैं, या किसी विशेष स्किल में मास्टरी चाहते हैं।

2025 की नवीनतम ट्रेंड्स और जानकारियाँ:
जनरेटिव AI और डिज़ाइन: अब B.Des और डिप्लोमा कोर्स में AI टूल्स का इस्तेमाल UX रिसर्च, डिजिटल आर्टवर्क और फास्ट प्रोटोटाइप के लिए होने लगा है।

हाइब्रिड करियर: B.Des ग्रैजुएट्स स्टार्टअप, ई-कॉमर्स और डिजिटल मार्केटिंग में जा रहे हैं, वहीं BFA ग्रैजुएट्स एनिमेशन, गेमिंग और OTT इंडस्ट्री में।

डिमांड: UX/UI डिज़ाइन, प्रोडक्ट डिज़ाइन और एनिमेशन – ये 2025 की सबसे ज़्यादा मांग और तनख्वाह वाली डिज़ाइन जॉब्स मानी गई हैं।


भारतीय डिज़ाइन शिक्षा में हर क्रिएटिव माइंड के लिए कुछ न कुछ है। चाहे आप B.Des, BFA या डिप्लोमा चुनें, यह ज़रूरी है कि आप अपनी रुचियों, क्षमताओं और करियर लक्ष्यों के अनुसार सही निर्णय लें। कॉलेज की रैंकिंग, इंटर्नशिप के अवसर, एंट्रेंस एग्ज़ाम की तैयारी और एक मजबूत पोर्टफोलियो बनाना न भूलें। भारतीय डिज़ाइन इंडस्ट्री का भविष्य उज्ज्वल है — सही रास्ता चुनें और डिज़ाइन की दुनिया में अपनी एक अलग पहचान बनाएं।

भारत में मेडिकल करियर का सपना कई छात्रों के लिए बहुत ही उत्साहजनक होता है। लेकिन आज भी यह सवाल अक्सर सामने आता है — क्या सिर्फ MBBS ही एकमात्र रास्ता है या Allied Health Sciences को भी एक बेहतर विकल्प माना जा सकता है?

GAHET जैसे नए एंट्रेंस एग्जाम और हेल्थकेयर सेक्टर में आ रहे बदलावों को देखते हुए, करियर का सही चुनाव पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गया है। आइए, तथ्यों और ट्रेंड्स के आधार पर समझते हैं कि आपके लिए कौन सा रास्ता सही हो सकता है।


MBBS और Allied Health Sciences में अंतर

MBBS (बैचलर ऑफ मेडिसिन, बैचलर ऑफ सर्जरी):
- यह भारत की सबसे प्रतिष्ठित अंडरग्रेजुएट मेडिकल डिग्री है।
- इसमें दाखिले के लिए NEET (National Eligibility cum Entrance Test) अनिवार्य है।
- कुल कोर्स अवधि: 5 वर्ष की पढ़ाई + 1 वर्ष की इंटर्नशिप।
- डॉक्टर का मुख्य कार्य: रोगों की पहचान, उपचार और प्रबंधन।

Allied Health Sciences:
- यह मेडिकल सेक्टर में काम करने वाले तकनीकी और सहायता कर्मियों के लिए ट्रेनिंग प्रोग्राम्स प्रदान करता है।
- प्रोफेशनल्स: फिजियोथेरेपिस्ट, रेडियोग्राफर, लैब टेक्नोलॉजिस्ट, ऑप्टोमेट्रिस्ट, आदि।
- प्रवेश के लिए: GAHET, KCET जैसे विशेष एंट्रेंस एग्जाम या डायरेक्ट एडमिशन।
- कोर्स की अवधि: 3 से 4.5 साल, स्पेशलाइजेशन पर निर्भर।


भारत में दो प्रमुख मेडिकल एंट्रेंस एग्जाम: NEET और GAHET
NEET: MBBS और डेंटल जैसे कोर्सेस के लिए अनिवार्य परीक्षा, जिसमें लाखों छात्र सीमित सीटों के लिए प्रतिस्पर्धा करते हैं।
GAHET (Global Allied Healthcare Entrance Test): Allied Health Programs में एडमिशन के लिए एक नया और उभरता हुआ एग्जाम है।

GAHET स्कोर स्वीकार करने वाले प्रमुख संस्थान:
- Invertis University, बरेली
- Sahara Paramedical Institute, मेरठ
- Saraswati Group of Colleges, मोहाली
- Graphic Era University, देहरादून
- Rabindranath Tagore University, भोपाल
- JECRC University, जयपुर
और 100 से अधिक संस्थान पूरे भारत में...


करियर विकल्प: MBBS बनाम Allied Health

MBBS करियर विकल्प:
- डॉक्टर, सर्जन, विशेषज्ञ चिकित्सा अधिकारी
- सम्मानजनक पेशा, लेकिन पोस्टग्रेजुएट सीटों और सरकारी नौकरी के लिए भारी प्रतिस्पर्धा
- समाज में उच्च दर्जा और पहचान

Allied Health करियर विकल्प:
- फिजियोथेरेपिस्ट, रेडियोग्राफर, लैब टेक्नोलॉजिस्ट, ऑप्टोमेट्रिस्ट, एनेस्थेटिस्ट, एपिडेमियोलॉजिस्ट आदि
- अस्पतालों, लैब्स, रिसर्च इंस्टीट्यूट्स और क्लीनिक्स में बढ़ती मांग
- प्रारंभिक वेतन ₹2.5 से ₹10 लाख प्रति वर्ष (स्पेशलाइजेशन और स्थान पर निर्भर)
- विदेशों में अच्छी संभावनाएं, विशेष रूप से नर्सिंग और मेडिकल टेक्नोलॉजी में


रोज़गार के रुझान और भविष्य की संभावनाएं
MBBS: हमेशा मांग में रहते हैं, लेकिन सीटें सीमित हैं और कोर्स कठिन है।
Allied Health: नए टेक्नोलॉजी, प्रिवेंशन और डायग्नोस्टिक्स के विकास के कारण तेजी से बढ़ती मांग।
विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले वर्षों में अनुभवी Allied Health Professionals की आवश्यकता और बढ़ेगी।


वर्क-लाइफ बैलेंस की तुलना
MBBS: शुरुआती वर्षों में लंबी शिफ्ट, ऑन-कॉल ड्यूटी और मानसिक दबाव आम हैं।
Allied Health: आमतौर पर नियमित समय की शिफ्ट और व्यक्तिगत जीवन के लिए बेहतर संतुलन।


आपके लिए कौन सा विकल्प सही?

MBBS चुनें, अगर:
- आप डॉक्टर बनना चाहते हैं और प्रतियोगिता के लिए तैयार हैं।
- लंबी, कठिन और महंगी पढ़ाई के लिए मानसिक रूप से तैयार हैं।
- समाज में प्रतिष्ठा और उच्च आय के लिए प्रतिबद्ध हैं।

Allied Health चुनें, अगर:
- आप मेडिकल क्षेत्र में काम करना चाहते हैं, लेकिन कम समय और लागत में।
- आपको डायग्नोस्टिक्स, थेरेपी या मेडिकल टेक्नोलॉजी में रुचि है।
- आप संतुलित जीवनशैली के साथ एक व्यावसायिक करियर चाहते हैं।


सही निर्णय कैसे लें?
MBBS और Allied Health Sciences दोनों ही सम्मानजनक और समाज के लिए उपयोगी करियर विकल्प हैं। सही रास्ता आपकी रुचियों, क्षमताओं और जीवन के लक्ष्यों पर निर्भर करता है। GAHET जैसे नए अवसरों के चलते, यह सही समय है कि आप MBBS के अलावा भी मेडिकल क्षेत्र में मौजूद विकल्पों को गंभीरता से देखें।

सुझाव: विषय का अच्छी तरह अध्ययन करें, मेडिकल क्षेत्र में काम कर रहे लोगों से सलाह लें और उस स्ट्रीम का चुनाव करें जो आपको सबसे अधिक प्रेरित करती हो।


अभी भी उलझन में हैं?
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यदि आपको इंटीरियर डिज़ाइन, फैशन, ग्राफिक डिज़ाइन या इसी प्रकार के किसी रचनात्मक क्षेत्र में रुचि है, तो यह स्पष्ट है कि भारत के सर्वश्रेष्ठ डिज़ाइन कॉलेजों में प्रवेश पाना बेहद चुनौतीपूर्ण हो सकता है। सौभाग्यवश, ऑल इंडिया डिज़ाइन एप्टीट्यूड टेस्ट (AIDAT) आपके लिए देश के प्रमुख डिज़ाइन संस्थानों में आवेदन करने का सबसे आसान तरीका है। 2025 में हर इच्छुक डिज़ाइनर को AIDAT परीक्षा क्यों देनी चाहिए, इसके पाँच प्रमुख कारण हैं:

भारत के सर्वश्रेष्ठ डिज़ाइन कॉलेजों में सीधा प्रवेश
AIDAT एक राष्ट्रीय स्तर की परीक्षा है, जिसे भारत के सभी प्रमुख डिज़ाइन विश्वविद्यालयों और कॉलेजों द्वारा स्वीकार किया जाता है। चाहे आप डिप्लोमा, बैचलर या मास्टर्स डिग्री करना चाहें, AIDAT एकमात्र परीक्षा के माध्यम से आपको अनेक टॉप कॉलेजों में आवेदन का अवसर देता है। अलग-अलग प्रवेश परीक्षाओं की चिंता करने की ज़रूरत नहीं – AIDAT आपके सभी एडमिशन चरणों को आसान बनाता है।

डिज़ाइन क्षेत्र में अनेक विकल्प
AIDAT के माध्यम से आप कई रचनात्मक पाठ्यक्रमों में प्रवेश ले सकते हैं – जैसे फैशन डिज़ाइन, इंटीरियर डिज़ाइन, ग्राफिक डिज़ाइन, प्रोडक्ट डिज़ाइन, कम्युनिकेशन डिज़ाइन, ट्रांसपोर्ट डिज़ाइन और यूज़र एक्सपीरियंस डिज़ाइन। चूंकि डिज़ाइन क्षेत्र में अनेक करियर विकल्प उपलब्ध हैं, आप एक ही परीक्षा के आधार पर अपनी रुचियों और भविष्य की आकांक्षाओं के अनुसार उपयुक्त विकल्प चुन सकते हैं।

पारदर्शी और निष्पक्ष चयन प्रक्रिया
AIDAT हर उम्मीदवार को समान अवसर प्रदान करता है। इसमें 60 मिनट में 100 बहुविकल्पीय प्रश्न हल करने होते हैं और सबसे अच्छी बात यह है कि इसमें कोई नकारात्मक अंकन (नेगेटिव मार्किंग) नहीं है। परिणाम आने के बाद, आप Edinbox द्वारा करियर काउंसलिंग ले सकते हैं, अपना पोर्टफोलियो प्रस्तुत कर सकते हैं और विशेषज्ञों के साथ साक्षात्कार में भाग लेकर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर सकते हैं।

हर छात्र के लिए उपयुक्त करियर मार्गदर्शन और कौशल विकास
AIDAT केवल परीक्षा नहीं, बल्कि एक संपूर्ण मार्गदर्शन प्रक्रिया है। पंजीकृत उम्मीदवारों को अध्ययन सामग्री और मॉक टेस्ट पेपर दिए जाते हैं। हमारे विशेषज्ञ आपकी सहायता सही संस्थान, कोर्स और पोर्टफोलियो चुनने में करते हैं, साथ ही डिज़ाइन इंडस्ट्री में मजबूत नेटवर्क बनाने में भी मदद करते हैं।

सफलता की मिसालें और सम्मान
AIDAT की सहायता से अब तक हजारों छात्रों ने भारत के प्रतिष्ठित डिज़ाइन संस्थानों में प्रवेश पाया है और देश की रचनात्मक इंडस्ट्री में शानदार करियर बनाया है। फैशन हो, इंटीरियर डिज़ाइन या डिजिटल पाठ्यक्रम – अनेक उद्योग विशेषज्ञ और प्रमुख शिक्षण संस्थान AIDAT को एक भरोसेमंद विकल्प मानते हैं और इसे प्रेरित छात्रों के लिए उपयुक्त मानते हैं।

यदि डिज़ाइनर बनना आपका सपना है, तो AIDAT परीक्षा आपको भारत के प्रसिद्ध डिज़ाइन कॉलेजों में स्थान पाने और रचनात्मक दुनिया में करियर बनाने का अवसर देती है। आज ही रजिस्टर करें और अपने जुनून को करियर में बदलें।

परीक्षा, अध्ययन सामग्री और पंजीकरण से संबंधित सभी जानकारी के लिए AIDAT की आधिकारिक वेबसाइट https://aidatexam.com/ पर जाएं या 08035018542 नंबर पर कॉल करें।

आज के समय में केवल नौकरी की सुरक्षा और स्थिर वेतन ही लोगों की प्राथमिकता नहीं है। 1997 से 2012 के बीच जन्मे युवाओं, जिन्हें "जनरेशन Z" कहा जाता है, ने एक संतोषजनक करियर की परिभाषा को ही बदल दिया है और सहयोगी स्वास्थ्य सेवाएँ यानी एलाइड हेल्थकेयर (Allied Healthcare) का क्षेत्र इस बदलाव में एक अहम भूमिका निभा रहा है। 

पैसे से ज़्यादा उद्देश्य प्रेरित करता है  Gen Z को
अगर आप सोचते हैं कि Gen Z केवल मोबाइल स्क्रीन से चिपके रहते हैं और कुछ भी गंभीरता से नहीं लेते, तो एक बार फिर सोचिए। आज के युवा नौकरी चुनते समय केवल वेतन नहीं, बल्कि उसके सामाजिक प्रभाव को भी प्राथमिकता देते हैं। एक सर्वेक्षण के अनुसार, 89% Gen Z युवा ऐसा करियर चाहते हैं जिसमें उद्देश्य हो। वे ऐसी नौकरियाँ चाहते हैं जो तकनीक से जुड़ी हों और समाज की सेवा करें— जैसे कि एलाइड हेल्थकेयर से जुड़ी नौकरियाँ। आज का युवा मानता है कि ‘अच्छे उद्देश्य वाली नौकरी’ कोई विशेषता नहीं बल्कि न्यूनतम अपेक्षा है।

एक उद्देश्यपूर्ण करियर जो बदल रहा भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था
डॉक्टरों और नर्सों की प्रशंसा अक्सर होती है, लेकिन भारत की स्वास्थ्य सेवाओं के तेज़ विकास में फिजियोथेरेपिस्ट, रेडियोग्राफर, मेडिकल टेक्नोलॉजिस्ट, न्यूट्रिशनिस्ट और अन्य सहयोगी स्वास्थ्यकर्मियों की बड़ी भूमिका है। और Gen Z इसे गंभीरता से देख रहा है!
कोविड-19 के बाद, Gen Z अब ‘अच्छे उद्देश्य’ वाले करियर की ओर अधिक झुका है।मार्च 2025 में भारत का स्वास्थ्य क्षेत्र 62% तक बढ़ा, खासकर डिजिटल स्वास्थ्य, AI आधारित डायग्नोस्टिक्स और टेलीमेडिसिन जैसी नई नौकरियों के कारण। यही तो वह क्षेत्र है, जिसमें Gen Z दिलचस्पी लेता है।

एलाइड हेल्थकेयर के प्रति दिलचस्पी के मुख्य कारण:
1. तकनीक का समावेश: Gen Z तकनीक के साथ बड़ी हुई है। ये ऐसे करियर की तलाश में हैं जहाँ AI, डेटा एनालिटिक्स और टेलीमेडिसिन के ज़रिए रोगियों की देखभाल बेहतर हो रही हो।
2. सामाजिक प्रभाव: Gen Z ऐसे कार्य चाहती है जिनसे लोगों के जीवन में प्रत्यक्ष रूप से सुधार हो, और सहयोगी स्वास्थ्य सेवाएँ यही करती हैं।

तेज़ी से बढ़ रही है मांग 
भारत में सहयोगी स्वास्थ्य सेवाएँ यानी एलाइड हेल्थकेयर तेज़ी से बढ़ रही हैं। अनुमान है कि भारत में हेल्थकेयर नौकरियाँ 2017 में 75 लाख से बढ़कर 2027 तक 90 लाख हो जाएंगी, जिनमें ज़्यादातर टेलीमेडिसिन और डेटा एनालिटिक्स के विकास से उत्पन्न होंगी।

इंडस्ट्री हायरिंग प्लान से भी इसकी पुष्टि होती है – 2025 की पहली छमाही में 52% कंपनियाँ भर्ती बढ़ाएंगी, जो 2024 के अंत की तुलना में 5% अधिक है।

इसके अलावा, आंकड़ों के अनुसार 75% से 84% Gen Z नौकरी चाहने वाले केवल उन्हीं नौकरियों के लिए आवेदन कर रहे हैं जिनमें रिमोट या हाइब्रिड वर्किंग का विकल्प हो, और सहयोगी स्वास्थ्य क्षेत्र इस मामले में सबसे आगे है क्योंकि यह वर्चुअल केयर और लचीले कार्य शेड्यूल को बढ़ावा देता है।

विविधता और समावेशन पर भी अब अधिक ध्यान दिया जा रहा है। अन्य क्षेत्रों की तुलना में, सहयोगी स्वास्थ्य क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी 38% तक पहुँच चुकी है — हालाँकि नेतृत्व के स्तर पर अब भी सुधार की आवश्यकता है।

एलाइड हेल्थकेयर की ओर क्यों आकर्षित है Gen Z?
सिर्फ ज़्यादा नौकरियाँ ही Gen Z को आकर्षित नहीं कर रहीं। उनके लिए "उद्देश्यपूर्ण करियर" कहीं ज़्यादा मायने रखता है। वे केवल प्रतिष्ठित संस्थानों में काम करने से ज़्यादा, ऐसे कार्य पसंद करते हैं जिनका ठोस और सकारात्मक असर हो। सहयोगी स्वास्थ्य सेवा ऐसा ही क्षेत्र है — यह लोगों के इलाज में मदद करता है, निर्णय प्रक्रिया तेज़ करता है और Gen Z के उस सपने को साकार करता है जिसमें वे समाज को बेहतर बनाना चाहते हैं।

भारत का भविष्य: Gen Z और एलाइड हेल्थकेयर के साथ
आने वाले वर्षों में एलाइड हेल्थकेयर का महत्व और भी बढ़ने वाला है। भारत की वृद्ध जनसंख्या 2050 तक लगभग 20% हो जाएगी, और स्वास्थ्य प्रणाली इलाज से रोकथाम (prevention) की ओर बढ़ेगी। ऐसे में सहयोगी स्वास्थ्यकर्मियों की भारी मांग होगी।

Gen Z की तकनीकी दक्षता, सहानुभूति और समाज के लिए बेहतर काम करने की प्रतिबद्धता उन्हें इस बदलाव का नेतृत्व करने के लिए पूरी तरह तैयार बनाती है।

Gen Z की करियर सोच को हल्के में मत लीजिए
अगर आपको लगता है कि एलाइड हेल्थकेयर सिर्फ एक विकल्प है, तो एक बार फिर सोचिए।
Gen Z ने यह जान लिया है कि यह क्षेत्र स्थिरता के साथ-साथ गहराई और सामाजिक महत्व भी देता है। वे ऐसे करियर चुन रहे हैं जहाँ वे दूसरों की मदद कर सकें, नई तकनीकों के साथ काम कर सकें और स्वास्थ्य सेवा को अधिक मानवीय बना सकें।

यदि आप भी नौकरी बाज़ार में प्रासंगिक बने रहना चाहते हैं, तो Gen Z से प्रेरणा लीजिए और एक संतोषजनक करियर की ओर कदम बढ़ाइए।

अधिक जानकारी के लिए GAHET की आधिकारिक वेबसाइट https://gahet.org/ पर जाएं या 08035018453 पर कॉल करें

क्या आप रंगों, आकारों और रचनात्मक सोच के साथ प्रयोग करना पसंद करते हैं? क्या वेबसाइट्स, सोशल मीडिया और उत्पादों पर दिखने वाले ग्राफिक्स और डिज़ाइन्स आपका ध्यान आकर्षित करते हैं? यदि हाँ, तो ग्राफिक डिज़ाइन आपके लिए एक आदर्श करियर विकल्प हो सकता है। दुनिया भर में ढेरों डिज़ाइन स्कूल मौजूद हैं, लेकिन आपके मन में यह सवाल ज़रूर आ रहा होगा: "क्यों पारुल यूनिवर्सिटी आपके ग्राफिक डिज़ाइन करियर की शुरुआत के लिए सबसे उपयुक्त स्थान हो सकता है?"
इस सवाल का जवाब हम उदाहरणों के साथ देंगे जो आपके अनुभव से जुड़ते हैं।

तेज़ी से फल-फूल रही है ग्राफिक डिज़ाइन इंडस्ट्री
2025 में ग्राफिक डिज़ाइन एक बेहतर करियर विकल्प होगा या नहीं — यह सवाल कई लोगों के मन में है। इसका उत्तर है– हां, बिल्कुल।
भारत के तेज़ी से बढ़ते डिजिटल मार्केट में कंपनियाँ ऐसे डिज़ाइनर्स की तलाश में हैं जो डिजिटल और पारंपरिक दोनों प्लेटफॉर्म्स के लिए आकर्षक विज़ुअल तैयार कर सकें। हर व्यवसाय को ऐसे डिज़ाइन्स चाहिए जो ग्राहकों का ध्यान आकर्षित करें।

आंकड़ों से स्पष्ट है कि ग्राफिक डिज़ाइन इंडस्ट्री विश्वभर में तेज़ी से बढ़ रही है और इसका मूल्य लगातार बढ़ रहा है। यदि आप रचनात्मक सोच रखते हैं और चीजों को विज़ुअली कल्पना करने में रुचि है, तो आप वेब डिज़ाइन, ब्रांडिंग, यूआई/यूएक्स या मोशन ग्राफिक्स जैसे क्षेत्रों में करियर शुरू कर सकते हैं।

पारुल यूनिवर्सिटी क्यों है विशेष?
अब जानते हैं कि ग्राफिक डिज़ाइन क्षेत्र के छात्रों के लिए पारुल यूनिवर्सिटी क्यों एक शीर्ष विकल्प है।

पारुल इंस्टिट्यूट ऑफ डिज़ाइन, जो कि पारुल यूनिवर्सिटी का हिस्सा है, छात्रों को प्रायोगिक अनुभव के ज़रिए सिखाता है। यहाँ आपको असली प्रोजेक्ट्स और हाथों-हाथ कार्य करने का अवसर मिलेगा। कक्षाएं केवल थ्योरी पर आधारित नहीं होतीं, बल्कि उद्योग के नवीनतम टूल्स के साथ रियल क्लाइंट्स पर प्रोजेक्ट्स करने का अनुभव देती हैं, जिससे आप एक नवोन्मेषी पोर्टफोलियो तैयार कर पाते हैं।

यहाँ का फैकल्टी दल अनुभवी प्रोफेशनल्स से बना है, जो जानते हैं कि इंडस्ट्री को किस तरह के डिज़ाइनर्स की आवश्यकता है। वे आपकी स्किल्स विकसित करने और जटिल प्रोजेक्ट्स को समझने में पूर्ण सहयोग प्रदान करते हैं।
पारुल यूनिवर्सिटी के स्टूडियोज़ और लैब्स में आपको लेटेस्ट टूल्स के साथ काम करने का अवसर मिलेगा।

यहाँ की शिक्षा प्रणाली का केंद्रबिंदु है– व्यावहारिक प्रशिक्षण
रियल क्लाइंट असाइनमेंट्स, साथी डिज़ाइनर्स के साथ सहयोग, और प्रोफेशनल मेंटर्स से मार्गदर्शन प्राप्त कर आप वास्तविक दुनिया के लिए पूरी तरह तैयार हो जाते हैं।
आपको वर्कशॉप्स, डिज़ाइन प्रतियोगिताओं और प्रतिष्ठित संस्थानों में इंटर्नशिप का भी मौका मिलता है, जिससे आपके कौशल और नेटवर्क दोनों विकसित होते हैं।

पारुल यूनिवर्सिटी में आप एक सृजनात्मक समुदाय का हिस्सा बनते हैं, जहाँ आप समान सोच वाले लोगों के साथ मिलकर सीख सकते हैं, विचार साझा कर सकते हैं और खुद को आगे बढ़ा सकते हैं। विश्वविद्यालय समय-समय पर अपना पाठ्यक्रम अपडेट करता है ताकि छात्रों को वही कौशल सिखाया जा सके जो वर्तमान समय में इंडस्ट्री में सबसे अधिक मांग में हैं।

करियर को लेकर चिंता करना छोड़ दीजिए
पारुल यूनिवर्सिटी छात्रों को विशेष प्लेसमेंट सहायता प्रदान करती है, जिससे उन्हें प्रसिद्ध डिज़ाइन फर्मों, टेक कंपनियों और ब्रांड्स में इंटर्नशिप और नौकरियाँ मिल सकें। इसके कई पूर्व छात्र भारत और विदेशों में डिज़ाइन और क्रिएटिविटी के क्षेत्र में सफल हो चुके हैं।

हम पारुल यूनिवर्सिटी की सिफारिश क्यों करते हैं?
एडइनबॉक्स (Edinbox) आठ एंट्रेंस एग्ज़ाम आयोजित करता है, जो भारत की 150 से अधिक प्रतिष्ठित यूनिवर्सिटीज़ में प्रवेश के लिए गेटवे का काम करते हैं।
हमने पारुल यूनिवर्सिटी का व्यक्तिगत रूप से दौरा किया है और वहाँ के शैक्षणिक और सामाजिक माहौल का गहराई से मूल्यांकन किया है। हमारे काउंसलर्स ने इसका संपूर्ण अनुभव लिया है, इसी वजह से हम यह कह सकते हैं कि पारुल यूनिवर्सिटी छात्रों के लिए एक आदर्श संस्थान है जो इंडस्ट्री से जुड़ाव और सपोर्टिव शिक्षा प्रदान करता है।

इसलिए हमारा मानना है कि हमें छात्रों को इस अनुभव और सिफारिश से अवगत कराना चाहिए, ताकि वे अपने लिए उपयुक्त कॉलेज चुन सकें।

यदि आप भी ऐसे ही छात्र हैं…
तो हमारी परीक्षाओं के बारे में ज़रूर जानें। AIDAT (ऑल इंडिया डिज़ाइन एप्टीट्यूड टेस्ट) में भाग लेकर आप पारुल यूनिवर्सिटी में प्रवेश प्राप्त कर सकते हैं – जहाँ आपको असली शिक्षा के साथ बेहतर करियर अवसर भी मिलते हैं।

यदि आप एलाइड हेल्थकेयर (Allied Healthcare) क्षेत्र में करियर बनाने की सोच रहे हैं, तो सही कॉलेज का चयन करना आपकी पहली और सबसे अहम कदम है। भारत में आज कई प्राइवेट कॉलेज सामने आ रहे हैं, जिससे यह तय करना मुश्किल हो गया है कि कौन-सा कॉलेज आपके लिए सबसे उपयुक्त है।

यहां 2025 के शीर्ष 10 प्राइवेट एलाइड हेल्थकेयर कॉलेजों की सूची दी गई है — जो रिसर्च और इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स की राय पर आधारित है — ताकि आप अपने करियर की अगली दिशा तय करने में बेहतर निर्णय ले सकें:

1. विवेकानंद ग्लोबल यूनिवर्सिटी (VGU), जयपुर
राजस्थान में हेल्थकेयर शिक्षा का उत्कृष्ट केंद्र मानी जाने वाली VGU को NAAC द्वारा A+ रेटिंग प्राप्त है। यह यूनिवर्सिटी उन्नत लैब्स, सिमुलेशन सेंटर्स और मजबूत इंडस्ट्री टाई-अप के लिए जानी जाती है।
एलाइड हेल्थकेयर में Ph.D. प्रोग्राम के साथ-साथ, यहां की प्रैक्टिकल ट्रेनिंग छात्रों को जॉब मार्केट के लिए पूरी तरह तैयार करती है। औसतन प्लेसमेंट पैकेज ₹4.6 लाख प्रति वर्ष है।

2. जेईसीआरसी यूनिवर्सिटी, जयपुर
JECRC की एलाइड हेल्थ साइंसेज की विशेष स्कूल और आधुनिक शिक्षण पद्धति इसे विशेष बनाती है। BPT, B.Sc., और BMLT जैसे कोर्स यहां लोकप्रिय हैं। प्रवेश CUET स्कोर के आधार पर होता है।
बेहतर प्लेसमेंट और शानदार कैंपस सुविधाएं छात्रों को एक समग्र अनुभव देती हैं।

3. एमिटी यूनिवर्सिटी, जयपुर (राजस्थान)
एमिटी परिवार का हिस्सा होने के नाते, यह यूनिवर्सिटी उन्नत सुविधाएं और वैश्विक शैक्षिक वातावरण प्रदान करती है। यहां BPT, BMLT सहित कई एलाइड हेल्थ कोर्स उपलब्ध हैं, जिनके लिए रिसर्च सेंटर, आधुनिक लैब्स और एक अत्याधुनिक स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स मौजूद हैं।

4. अपोलो इंस्टिट्यूट ऑफ हॉस्पिटल मैनेजमेंट एंड एलाइड साइंसेज, चेन्नई
अपोलो हॉस्पिटल ग्रुप से जुड़ा यह संस्थान इंडस्ट्री कनेक्शन और रियल-वर्ल्ड ट्रेनिंग के लिए प्रसिद्ध है। यहां B.Sc. Radiology, न्यूक्लियर मेडिसिन टेक्नोलॉजी और ऑपरेशन थिएटर टेक्नोलॉजी जैसे कोर्स कराए जाते हैं।
यहां की ट्रेनिंग और इंटर्नशिप छात्रों को प्रैक्टिकल ज्ञान और जॉब रेडी बनाती हैं।

5. एमिटी यूनिवर्सिटी, लखनऊ कैंपस
उत्तर प्रदेश में एलाइड हेल्थकेयर पढ़ने के लिए यह एक बेहतरीन विकल्प है। यहां साइकोलॉजी, क्लीनिकल रिसर्च सहित कई एलाइड हेल्थ साइंस कोर्स उपलब्ध हैं।
आधुनिक लैब्स, प्रोफेशनल फैकल्टी और शानदार इंटर्नशिप प्रोग्राम छात्रों को स्वास्थ्य क्षेत्र में कैरियर के लिए पूरी तरह तैयार करते हैं।

6. महर्षि मार्कंडेश्वर (डीम्ड टू बी यूनिवर्सिटी), अंबाला
हरियाणा की यह यूनिवर्सिटी एलाइड हेल्थकेयर शिक्षा के क्षेत्र में अग्रणी है। यहां BMLT, रेडियोलॉजी और फिजियोथेरेपी जैसे कोर्स उपलब्ध हैं।
इंडस्ट्री से गठजोड़, अत्याधुनिक हॉस्पिटल सुविधाएं और गहन क्लीनिकल एक्सपोजर छात्रों को व्यावसायिक दुनिया के लिए तैयार करते हैं।

7. सेज यूनिवर्सिटी, इंदौर
इंदौर स्थित SAGE यूनिवर्सिटी तेजी से एलाइड हेल्थ एजुकेशन में अग्रणी बन रही है। मेडिकल लैब टेक्नोलॉजी, रेडियोलॉजी और फिजियोथेरेपी जैसे कोर्स के लिए प्रसिद्ध, यह संस्थान इंडस्ट्री-फोकस्ड पाठ्यक्रम, आधुनिक इंफ्रास्ट्रक्चर और मजबूत प्लेसमेंट सेल के लिए जाना जाता है।

8. सेंचुरियन यूनिवर्सिटी, विजयनगरम
आंध्र प्रदेश की इस यूनिवर्सिटी की खासियत है प्रैक्टिकल स्किल डेवलपमेंट और हेल्थकेयर से जुड़ी इंडस्ट्री पार्टनरशिप। यहां छात्रों को आधुनिक लैब्स में ट्रेनिंग दी जाती है और वे वास्तविक स्वास्थ्य पेशेवरों के साथ काम करने का अनुभव प्राप्त करते हैं।

9. एआईपीएच यूनिवर्सिटी, भुवनेश्वर
AIPH यूनिवर्सिटी पब्लिक हेल्थ और मेडिकल लैब टेक्नोलॉजी जैसे विशेष कोर्सेस के लिए जानी जाती है।
यहां छात्र रिसर्च, आउटरीच प्रोग्राम्स और हैंड्स-ऑन प्रैक्टिस में भाग लेते हैं और ओडिशा के कई बड़े हेल्थकेयर संस्थानों के साथ मिलकर कार्य करते हैं।

10. चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी, मोहाली
पंजाब में स्थित यह यूनिवर्सिटी एलाइड हेल्थ साइंस की पढ़ाई के लिए एक प्रमुख विकल्प है। यहां की उन्नत प्रयोगशालाएं, इंडस्ट्री टाई-अप और कैंपस लाइफ छात्रों को एक संपूर्ण शैक्षणिक वातावरण प्रदान करती हैं।

क्या कॉलेज चुनना सिर्फ रैंकिंग का मामला है?
बिलकुल नहीं! सही कॉलेज चुनना केवल रैंक या इंफ्रास्ट्रक्चर का मामला नहीं है। यह इस बात पर निर्भर करता है कि कौन-सा संस्थान आपकी गति, रुचियों और करियर के लक्ष्यों के अनुरूप है।
ऊपर दिए गए कॉलेजों में से हर एक कुछ न कुछ अनोखा प्रदान करता है — जैसे कि अत्याधुनिक लैब्स, मजबूत इंडस्ट्री कनेक्शन, बेहतरीन प्लेसमेंट रिकॉर्ड और जीवंत कैंपस जीवन।

अब आपकी बारी है: जानकारी जुटाएं और सही फैसला लें
अपने लक्ष्य और ज़रूरतों के अनुसार कॉलेज की जानकारी लें, ओपन डे विज़िट करें, और जितना संभव हो उतना पढ़ें।
आपकी एलाइड हेल्थकेयर की यात्रा अभी शुरू हो रही है — और सही कॉलेज से शुरुआत आपको एक सार्थक और सफल करियर की ओर ले जाएगी।

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'सिटी ऑफ जॉय' कहे जाने वाले कोलकाता शहर में 16 अप्रैल का दिन वाकई उत्साह से भरा रहा, जब 'एडइनबॉक्स' ने अपना विस्तार करते हुए यहाँ के लोगों के लिए अपनी नई ब्रांच का शुभारम्भ किया। ख़ास बात यह रही कि इस मौके पर इटली से आये मेहमानों के साथ 'एडइनबॉक्स' की पूरी टीम मौजूद थी। पश्चिम बंगाल के कोलकाता में उदघाटित इस कार्यालय से पूर्व 'एडइनबॉक्स' की शाखाएं दिल्ली, भुवनेश्वर, लखनऊ और बैंगलोर जैसे शहरों में पहले से कार्य कर रही हैं।

कोलकाता में एडइनबॉक्स की नयी ब्रांच के उद्घाटन कार्यक्रम में इटली के यूनिमार्कोनी यूनिवर्सिटी के प्रतिनिधिमंडल की गरिमामयी उपस्थिति ने इस अवसर को तो ख़ास बनाया ही, सहयोग और साझेदारी की भावना को भी इससे बल मिला। विशिष्ट अतिथियों आर्टुरो लावेल, लियो डोनाटो और डारिना चेशेवा ने 'एडइनबॉक्स' के एडिटर उज्ज्वल अनु चौधरी, बिजनेस और कंप्यूटर साइंस के डोमेन लीडर डॉ. नवीन दास, ग्लोबल मीडिया एजुकेशन काउंसिल डोमेन को लीड कर रहीं मनुश्री मैती और एडिटोरियल कोऑर्डिनेटर समन्वयक शताक्षी गांगुली के नेतृत्व में कोलकाता टीम के साथ हाथ मिलाया। 

समारोह की शुरुआत अतिथियों का गर्मजोशी के साथ स्वागत से हुई। तत्पश्चात दोनों पक्षों के बीच विचारों और दृष्टिकोणों का सकारात्मक आदान-प्रदान हुआ। डारिना ने पारम्परिक तरीके से रिबन काटकर आधिकारिक तौर पर कार्यालय का उद्घाटन किया और इस मौके को आपसी सहयोग के प्रयासों की दिशा में एक नए अध्याय की शुरुआत बताया। बाकायदा इस दौरान यूनिमार्कोनी विश्वविद्यालय के प्रतिनिधिमंडल और EdInbox.com टीम के बीच एक साझेदारी समझौते पर हस्ताक्षर भी हुआ। यह पहल शिक्षा के क्षेत्र में नवाचार और प्रगति के लिए साझा प्रतिबद्धता को दर्शाता है, साथ ही भविष्य में अधिक से अधिक छात्रों का नेतृत्व कर इस पहल से उन्हें सशक्त बनाया जा सकता है ताकि वे वैश्विक मंचों पर सफलता के अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकें। 

समारोह के समापन की वेला पर दोनों पक्षों द्वारा एक दूसरे को स्मारिकाएं भेंट की गयीं।  'एडइनबॉक्स' की नई ब्रांच के उद्घाटन के साथ इस आदान-प्रदान की औपचारिकता से दोनों टीमों के बीच मित्रता और सहयोग के बंधन भी उदघाटित हुए।अंततः वक़्त मेहमानों को अलविदा कहने का था, 'एडइनबॉक्स' की कोलकाता टीम ने अतिथियों को विदा तो किया मगर इस भरोसे और प्रण के साथ कि यह नयी पहल भविष्य में संबंधों की प्रगाढ़ता और विकास के नए ठौर तक पहुंचेगी।  

आज के दौर में सोशल मीडिया एक लगातार चलने वाली डिजिटल डायरी और नेटवर्किंग प्लेटफ़ॉर्म बन चुका है, लेकिन अधिकतर छात्रों को इस बात का अंदाज़ा नहीं होता कि उनकी ऑनलाइन इमेज का उनकी पढ़ाई या कॉलेज एडमिशन पर भी असर पड़ सकता है। अमेरिका, ब्रिटेन और यहां तक कि भारत के शीर्ष कॉलेजों के एडमिशन पैनल अब छात्रों की सोशल मीडिया प्रोफाइल की समीक्षा को होलिस्टिक असेसमेंट का हिस्सा बना चुके हैं।

एथेना एजुकेशन की एसोसिएट पार्टनर मनाली डोगरा बताती हैं कि अब कॉलेज एडमिशन सिर्फ ग्रेड्स और निबंधों तक सीमित नहीं है – छात्र की सोशल प्रेज़ेंस एक सकारात्मक लेकिन अनौपचारिक कारक बन चुकी है।

एडमिशन ऑफिसर्स क्या देखना चाहते हैं?
1. जुनून, नेतृत्व और प्रेरणा की झलक:
यदि किसी छात्र का LinkedIn या ब्लॉग पेज पर रिसर्च पेपर, असाइनमेंट्स या वॉलंटियर वर्क है, तो वह आवेदन को मज़बूत करता है।

2. समुदाय के साथ जुड़ाव:
छात्र यदि ऑनलाइन डिबेट, वॉलंटियरिंग, या अपने लर्निंग सेटअप में विचार साझा करते हैं तो यह उनके समाज से जुड़ाव और संवाद कौशल को दर्शाता है।

3. परिपक्वता और प्रोफेशनल रवैया:
संवेदनशील मुद्दों पर जिम्मेदारी, विचारशीलता और बौद्धिक जिज्ञासा के साथ दिए गए उत्तर, चयनकर्ताओं को प्रभावित करते हैं।

4. चेतावनी संकेत (Red Flags):
अगर किसी प्रोफाइल पर अपमानजनक भाषा, जातिवादी मीम्स, बुलीइंग या संदिग्ध गतिविधियां दिखें, तो वह एडमिशन रिजेक्ट या ऑफर वापस लेने का कारण बन सकती हैं।

कैसे बनाएं एक सकारात्मक डिजिटल पहचान?
1. अपनी सोशल मीडिया प्रोफाइल की समीक्षा करें:
खुद को Google करें। Instagram, Twitter (X), LinkedIn, Facebook, TikTok, Reddit जैसे प्लेटफ़ॉर्म चेक करें और ऐसा कोई भी पोस्ट, ट्वीट या फोटो हटा दें जो आपकी छवि को नुकसान पहुंचा सकता है।

2. ऑनलाइन उपस्थिति में रखें स्थिरता:
आपकी कॉलेज एप्लिकेशन में जो भी जानकारी दी गई है, उसकी प्रतिध्वनि LinkedIn या अन्य प्रोफेशनल प्रोफाइल पर भी दिखनी चाहिए। अगर आपने पर्यावरण से जुड़े काम किए हैं तो उसे ट्विटर या इंस्टाग्राम पर साझा करें।

3. प्राइवेसी कंट्रोल्स का समझदारी से इस्तेमाल करें:
भले ही अकाउंट प्राइवेट हो, लेकिन टैग की गई फोटो और दोस्त आपकी पब्लिक इमेज को प्रभावित कर सकते हैं। कुछ भी ऐसा न डालें जिसे गलत तरीके से लिया जा सकता हो।

4. LinkedIn और पर्सनल वेबसाइट का करें उपयोग:
LinkedIn एक बेहतरीन प्लेटफ़ॉर्म है जहां आप अपनी उपलब्धियां, करियर लक्ष्यों और प्रोजेक्ट्स साझा कर सकते हैं। अगर आपके पास अपना ब्लॉग या वेबसाइट है तो वहां रिसर्च या रचनात्मक लेखन शेयर करें।

5. भड़काऊ और भ्रामक कंटेंट से बचें:
कॉलेज उन छात्रों की तलाश में हैं जो खुले विचारों वाले और समावेशी दृष्टिकोण रखते हों। जातिवादी टिप्पणी, अतिवादी विचारधारा या अनुचित जोक्स आपकी छवि को नुकसान पहुंचा सकते हैं।

डिजिटल पहचान बनाएं सीखने और नेतृत्व की प्रतीक
आज सोशल मीडिया सिर्फ फॉलोअर्स और लाइक्स का खेल नहीं, बल्कि आपकी नई पहचान का प्रमाणपत्र बन चुका है। यह ज़रूरी है कि छात्र अपनी ऑनलाइन छवि को ऐसा बनाएं जो उन्हें एक ज़िम्मेदार, जिज्ञासु और समर्पित विद्यार्थी के रूप में पेश करे।

याद रखें – अब आपके प्रोफाइल की तस्वीर भी आपके भविष्य की तस्वीर तय कर सकती है!

उत्तर प्रदेश सरकार किसानों की आय बढ़ाने के लिए लगातार नये आयाम स्थापित कर रही है। अब सरकार की पहल पर मशरूम की खेती को बढ़ावा देकर प्रदेश के किसानों को आत्मनिर्भर बनाया जा रहा है। प्रदेशभर में इसके तहत विशेष अभियान चलाया जा रहा है। जिसमें राजधानी लखनऊ समेत 08 जिलों में इस प्रॉफिटेबल बिजनेस ने रफ्तार भी पकड़ ली है। विशेष अभियान के तहत किसानों को मशरूम की खेती से जोड़कर न केवल रोजगार दिया जा रहा है, बल्कि उन्हें तकनीकी व वैज्ञानिक खेती की ओर भी अग्रसर किया जा रहा है।

महिलाएं बनीं उद्यमिता की मिसाल
मशरूम की खेती केवल पुरुषों तक सीमित नहीं रही, अब महिलाएं भी इस क्षेत्र में मजबूती से कदम रख रही हैं। मथुरा की गीता देवी और हरदोई की सोनाली सभरवाल प्रदेश की महिलाओं के लिए नई प्रेरणा बन गई हैं। गीता देवी ने ढाई साल पहले मशरूम की खेती की शुरुआत की थी। उन्होंने योगी सरकार के सहयोग से 1 करोड़ 61 लाख रुपये के प्रोजेक्ट की नींव रखी। उन्हें 70 लाख रुपये का लोन मिला और आज मथुरा से लेकर आगरा व दिल्ली तक उनकी उगाई गई मशरूम की सप्लाई हो रही है।

हर साल 25 लाख रुपये तक की कमाई
गीता देवी के इस प्रोजेक्ट से उन्हें हर साल 20 से 25 लाख रुपये तक की आय हो रही है। वे न केवल आसपास के लोगों के लिए बल्कि अन्य जिलों की महिलाओं के लिए भी प्रेरणास्रोत बन गई हैं। सोनाली सभरवाल ने भी हरदोई में मशरूम की खेती को एक मिशन के तौर पर अपनाया है और अन्य ग्रामीण महिलाओं को भी इसके लिए प्रेरित कर रही हैं।

इन आठ जिलों में हो रही लाखों की कमाई

लखनऊ, मथुरा, सहारनपुर, मिर्जापुर, जौनपुर, हरदोई, रायबरेली, भदोही

तकनीकी कृषि को मिल रहा बढ़ावा
राज्य सरकार तकनीकी और वैज्ञानिक खेती को बढ़ावा देने के उद्देश्य से आत्मनिर्भर कृषक समन्वित विकास योजना और एग्री इंफ्रास्ट्रक्चर फंड के जरिए किसानों को संसाधन और सहयोग दे रही है। इन योजनाओं से किसान न केवल पारंपरिक खेती से आगे बढ़ रहे हैं, बल्कि हाई प्रॉफिट वाले एग्री बिजनेस को भी अपना रहे हैं। एआईएफ के तहत लाभार्थी agriinfra.dac.gov.in पर ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं। जिसमें केंद्र सरकार द्वारा 3 प्रतिशत और उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 3 प्रतिशत ब्याज सहायता प्रदान की जा रही है।

किसानों को दी जा रही तकनीकी जानकारी
मशरूम उत्पादन को लेकर किसानों को ट्रेनिंग, वर्कशॉप और फील्ड विजिट के जरिए पूरी तकनीकी जानकारी दी जा रही है। विशेषज्ञ टीमें किसानों को वैज्ञानिक पद्धति से खेती करने के लिए लगातार मार्गदर्शन कर रही हैं। इससे उत्पादकता बढ़ने के साथ-साथ किसानों की आमदनी में भी इजाफा हो रहा है। उत्तर प्रदेश में तकनीकी कृषि और महिलाओं की भागीदारी से अब खेती केवल जीविकोपार्जन का साधन नहीं, बल्कि आत्मनिर्भरता और समृद्धि का माध्यम बन चुकी है।

भारत की उच्च शिक्षा प्रणाली पिछले कुछ वर्षों से बड़े बदलावों के दौर से गुजर रही है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के तहत शुरू किया गया चार वर्षीय स्नातक कार्यक्रम (Four-Year Undergraduate Programme – FYUP) इन बदलावों का एक बड़ा हिस्सा है। पारंपरिक तीन वर्षीय स्नातक पाठ्यक्रम की जगह अब छात्रों को चार वर्षीय, बहुविषयी (multi-disciplinary), कौशल-आधारित और अनुसंधान केंद्रित शिक्षा देने की दिशा में कदम उठाया जा रहा है। लेकिन यह बदलाव सबके लिए समान रूप से उपयोगी नहीं दिखाई देता। सवाल उठता है – क्या यह चार वर्षीय स्नातक कार्यक्रम वास्तव में एक वरदान है, या फिर यह भारतीय युवाओं के लिए एक नई चुनौती बनकर आया है?

क्या है चार वर्षीय स्नातक कार्यक्रम?
चार वर्षीय स्नातक कार्यक्रम छात्रों को अधिक व्यापक, लचीली और बहु-विषयक शिक्षा देने की सोच के साथ लाया गया है। इसमें छात्र अपने पसंद के मुख्य विषय (major) के साथ सहायक विषय (minor), कौशल आधारित पाठ्यक्रम, और अंतिम वर्ष में शोध परियोजना (research project) या इंटर्नशिप कर सकते हैं। साथ ही यह कार्यक्रम छात्रों को विभिन्न चरणों पर बाहर निकलने (multiple exit options) का विकल्प भी देता है – एक वर्ष बाद सर्टिफिकेट, दो वर्ष बाद डिप्लोमा, तीन वर्ष बाद स्नातक डिग्री, और चार वर्ष बाद 'ऑनर्स विद रिसर्च' डिग्री।

वरदान क्यों है?
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तुलनीयता: चार वर्षीय स्नातक डिग्री अमेरिका, कनाडा, यूरोप आदि देशों की शिक्षा प्रणाली के अनुरूप है। इससे भारतीय छात्रों के लिए विदेशी विश्वविद्यालयों में उच्च शिक्षा के अवसर बढ़ते हैं।

शोध व नवाचार को बढ़ावा: अंतिम वर्ष में शोध परियोजना शामिल होने से छात्रों को रिसर्च और इनोवेशन की समझ विकसित होती है, जो भारत में लंबे समय से शिक्षा प्रणाली की कमी रही है।

व्यावसायिक कौशल का विकास: लचीलापन और कौशल आधारित पाठ्यक्रम छात्रों को रोज़गार की बेहतर तैयारी देते हैं। इससे रोजगार क्षमता (employability) में सुधार संभव है।

पठन का लचीलापन: छात्र अपनी रुचि और करियर के अनुसार विषय चुन सकते हैं। एक कला का छात्र कंप्यूटर विज्ञान या डेटा एनालिटिक्स जैसी व्यावहारिक स्किल्स भी सीख सकता है।

लेकिन अभिशाप क्यों कहा जा रहा है?
वित्तीय बोझ: एक अतिरिक्त वर्ष का मतलब है अधिक ट्यूशन फीस, हॉस्टल, रहने और पढ़ाई का खर्च। यह आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के छात्रों के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकता है।

समय की कीमत: जो छात्र जल्दी नौकरी या करियर में प्रवेश करना चाहते हैं, उनके लिए चार वर्ष एक अतिरिक्त साल की देरी और अवसर की लागत (opportunity cost) है।

संरचना और संसाधनों की कमी: भारत के कई कॉलेजों और विश्वविद्यालयों में शिक्षकों, लैब्स और आधारभूत ढांचे की कमी पहले से ही है। ऐसे में इस विस्तारित प्रोग्राम को प्रभावी रूप से लागू करना कठिन हो सकता है।

कई छात्रों की अनिच्छा: छात्रों में यह भ्रम भी है कि तीन साल में ही उन्हें डिग्री मिल सकती है, तो चौथे साल में क्यों पढ़ें? ऐसे में शोध और इंटर्नशिप के लिए छात्रों का झुकाव कमजोर हो सकता है।

संतुलन की जरूरत
चार वर्षीय स्नातक कार्यक्रम दृष्टि से उत्कृष्ट और वैश्विक स्तर का विचार है, लेकिन इसे ज़मीन पर उतारने के लिए संरचनात्मक सुधार, शिक्षक प्रशिक्षण, वित्तीय सहायता और छात्रों के लिए मार्गदर्शन जरूरी है। बिना इन कदमों के यह बदलाव केवल शहरी, सक्षम वर्ग के छात्रों के लिए वरदान और बाकी के लिए अभिशाप बन सकता है।

चार वर्षीय स्नातक कार्यक्रम को न तो पूरी तरह वरदान कहा जा सकता है, और न ही पूर्णतः अभिशाप। यह भारत की उच्च शिक्षा को वैश्विक मानकों तक पहुँचाने की दिशा में एक साहसिक पहल है, लेकिन इसकी सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि इसे कितनी कुशलता और समानता के साथ लागू किया जाता है। यदि नीति निर्माता, शिक्षण संस्थान और समाज मिलकर इसे समावेशी और व्यावहारिक रूप में ढालें, तो यह भारतीय युवाओं के लिए अवसरों का नया द्वार बन सकता है।

 

केरल में इस साल मॉनसून 8 दिन पहले पहुंच गया, जबकि दिल्ली में येलो अलर्ट के बावजूद बारिश नहीं हुई। हिमाचल प्रदेश के कुल्लू और धर्मशाला में बादल फटने की घटनाओं से भारी तबाही हुई—दो लोगों की मौत हो गई और नौ लोग अब भी लापता हैं, जबकि दो हजार से अधिक पर्यटक फंसे हुए हैं। अगर समय पर सटीक मौसम पूर्वानुमान मिल जाता, तो शायद इस नुकसान को टाला जा सकता था।

अब ऐसा मुमकिन हो सकता है, क्योंकि IIT दिल्ली के वैज्ञानिकों ने एक नया आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) आधारित ट्रांसफॉर्मर मॉडल तैयार किया है, जो मॉनसून के आगमन का 18 दिन पहले अनुमान लगा सकता है। यह तकनीक पारंपरिक मौसम पूर्वानुमान प्रणालियों की तुलना में तेज, सटीक और कम संसाधन खपत वाली है।

किसने किया यह शोध?
इस रिसर्च का नेतृत्व प्रोफेसर डॉ. संदीप सुकुमारन और प्रोफेसर हरिप्रसाद कोडमाना ने किया, जिनके साथ दो पीएचडी स्कॉलर — केएम अनिरुद्ध और पंकज — जुड़े थे। यह प्रोजेक्ट भारत सरकार के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय द्वारा वित्तपोषित है और टीम ने भारतीय मौसम विभाग (IMD) के साथ मिलकर काम किया।

नया AI मॉडल क्यों है बेहतर?
प्रो. सुकुमारन के अनुसार, यह ट्रांसफॉर्मर आधारित न्यूरल नेटवर्क मॉडल, जो ChatGPT जैसी आधुनिक तकनीकों में भी उपयोग होता है, पारंपरिक मॉडल की तुलना में बहुत कम एरर ग्रोथ दिखाता है। अमेरिका और ब्रिटेन के मौजूदा मौसम पूर्वानुमान मॉडल्स से तुलना करने पर यह मॉडल बेहतर प्रदर्शन करता है। पारंपरिक मॉडल्स को चलाने के लिए जहां सुपरकंप्यूटर की ज़रूरत होती है, वहीं यह AI मॉडल साधारण GPU (जैसे गेमिंग लैपटॉप में होता है) पर भी आसानी से काम कर सकता है।इससे समय और संसाधनों की बचत होती है।

5 साल का डेटा और 40 चक्रवातों पर शोध
अनिरुद्ध ने बताया कि उन्होंने पिछले 5 साल के मौसम डेटा पर स्टडी की और AI मॉडल को पारंपरिक मॉडल्स से ज्यादा सटीक पाया। पंकज ने चार वर्षों में आए 40 चक्रवातों का विश्लेषण किया। पारंपरिक मॉडल्स जहां चक्रवात की स्थिति में 500 किमी तक की त्रुटि देते हैं, वहीं AI मॉडल ने इस त्रुटि को काफी हद तक घटा दिया।पारंपरिक मॉडल जहां केवल 4 दिन पहले तक की भविष्यवाणी करते हैं, वहीं नया AI मॉडल अधिक दिनों पहले और अधिक सटीक ट्रैक प्रिडिक्शन में सक्षम है।

भविष्य में बड़ा बदलाव
IIT दिल्ली का यह AI मॉडल देश में मौसम पूर्वानुमान प्रणाली के लिए एक क्रांतिकारी कदम माना जा रहा है। इससे लोगों को समय रहते चेतावनी मिल सकेगी, आपदाओं से जान-माल की हानि को टालने में मदद मिलेगी, और सरकार के बहुमूल्य संसाधनों की बचत होगी। इस तकनीक के जरिए भारत मौसम पूर्वानुमान के क्षेत्र में वैश्विक अग्रणी बन सकता है।

 

 

मिस्ट्री थ्रिलर सीरीज का जादू दर्शकों पर हमेशा से ही छाया रहता है। यह जॉनर रहस्यों और रोमांच से भरपूर होता है, जिसमें किसी अपराध या रहस्यमय घटना की गुत्थी सुलझाई जाती है। कहानी के अंत तक हर राज खुलते हैं, जिससे दर्शक बिना पलक झपकाए स्क्रीन से जुड़े रहते हैं। इसी वजह से मिस्ट्री थ्रिलर की लोकप्रियता लगातार बढ़ती रहती है।

2025 में ऐसी ही एक धमाकेदार वेब सीरीज ने ओटीटी प्लेटफॉर्म पर तहलका मचा दिया है — क्रिमिनल जस्टिस सीजन 4। इस सीजन के पहले तीन एपिसोड रिलीज होने के बाद मेकर्स ने हर हफ्ते गुरुवार को नया एपिसोड रिलीज करने का निर्णय लिया, जिससे दर्शकों में इस सीरीज को लेकर इंतजार और उत्साह और बढ़ गया। अब तक इसके सात एपिसोड स्ट्रीम हो चुके हैं और हर नया एपिसोड लोगों को बेइंतिहा पसंद आ रहा है।

आधी अधूरी सीरीज का बेसब्री से इंतजार
पंकज त्रिपाठी की यह वेब सीरीज जियो हॉटस्टार पर जमकर छाई हुई है। 26 जून 2025 को रिलीज हुए सातवें एपिसोड को दर्शकों से जबरदस्त प्रतिक्रिया मिली है। हर एपिसोड में हत्या से जुड़े नए रहस्यों का पर्दाफाश हो रहा है, जो कहानी को और भी दिलचस्प बनाता जा रहा है। लोग बेसब्री से सीजन के आखिरी एपिसोड का इंतजार कर रहे हैं।

क्रिमिनल जस्टिस सीजन 4 ने 2025 में सबसे ज्यादा देखी जाने वाली सीरीज बनने का गौरव हासिल किया है। इसमें पंकज त्रिपाठी के अलावा श्वेता बसु प्रसाद, मीता वशिष्ठ, राजेश खेरा, खुशबू अत्रे और आत्म प्रकाश मिश्रा जैसे अनुभवी कलाकार हैं। साथ ही मोहम्मद जीशान अय्यूब, सुरवीन चावला और आशा नेगी जैसे नए चेहरे भी दर्शकों को खूब प्रभावित कर रहे हैं।

कहानी की मुख्य धुरी है नर्स रोशनी सलूजा की हत्या, जिसका किरदार आशा नेगी ने निभाया है। मोहम्मद जीशान अय्यूब का किरदार डॉ. राज नागपाल इस अपराध का मुख्य संदिग्ध है। कहानी में एक नया मोड़ तब आता है जब सुरवीन चावला द्वारा निभाया गया अंजू नागपाल भी आरोपी बन जाता है, जिससे कहानी का रहस्य और भी जटिल हो जाता है और दर्शक इसे बांधे रखने में कामयाब हो रही है।

2025 की सबसे धमाकेदार मिस्ट्री सीरीज
क्रिमिनल जस्टिस मूल रूप से 2008 में आई ब्रिटिश टेलीविजन सीरीज का रीमेक है। इसका पहला सीजन 2019 में रिलीज हुआ था, जिसमें पंकज त्रिपाठी, विक्रांत मैसी, जैकी श्रॉफ और अनुप्रिया गोयनका प्रमुख भूमिकाओं में थे। दूसरा सीजन 2020 में आया जबकि तीसरा सीजन अगस्त 2022 में रिलीज़ हुआ। अब 2025 में चौथा सीजन दर्शकों के बीच तहलका मचा रहा है और मिस्ट्री थ्रिलर जॉनर की सबसे बेहतरीन प्रस्तुतियों में गिना जा रहा है।

इस साल की सबसे ज्यादा देखी गई इस सीरीज ने अपनी दमदार कहानी, सस्पेंस और शानदार एक्टिंग के ज़रिए ओटीटी पर क्रांति ला दी है और दर्शकों को हर गुरुवार नए एपिसोड का बेसब्री से इंतजार करने पर मजबूर कर दिया है।

दुनिया के सबसे प्राचीन जीवाश्म पार्क में शुमार सोनभद्र के सलखन फॉसिल्स पार्क को उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने विश्व धरोहर की संभावित सूची में शामिल करने में बड़ी उपलब्धि हासिल की है। सलखन फॉसिल पार्क का विवरण अब यूनेस्को की वेबसाइट  https://whc.unesco.org/en/tentativelists/6842/ पर देखा जा सकता है। इससे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पर्यटन को नयी उड़ान मिलेगी। फिलहाल सलखन फॉसिल्स पार्क को यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज की टेंटेटिव लिस्ट में शामिल किया गया है। वहीं सीएम योगी के निर्देश के क्रम में इको टूरिज्म डेवलपमेंट बोर्ड द्वारा फॉसिल्स पार्क को यूनेस्को की स्थायी सूची में शामिल करने के लिए डोजियर तैयार किया जा रहा है, जिसे जल्द भारत सरकार को सौंपा जाएगा। माना जा रहा है कि आगामी 2 वर्षों में फॉसिल्स पार्क यूनेस्को की स्थायी सूची में शामिल हो सकता है। 

यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज की टेंटेटिव लिस्ट में दर्ज हुआ फॉसिल्स पार्क
प्रमुख सचिव पर्यटन मुकेश मेश्राम ने बताया कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ प्रदेश में पयर्टन को बढ़ावा देने के लिए लगातार अहम कदम उठा रहे हैं। इसके साथ ही प्रदेश में इको टूरिज्म को भी बढ़ावा देने के लिए प्रयास किये जा रहे हैं। सीएम योगी के प्रयासों का ही नतीजा है कि इको पर्यटन विकास बोर्ड ने हाल ही में कतर्नियाघाट वन्यजीव अभयारण्य से दुधवा टाइगर रिजर्व तक रेल कनेक्टिविटी प्रदान करने वाली पर्यटक ट्रेन में विस्टाडोम कोच का संचालन शुरू किया है। वहीं सीएम योगी के नेतृृत्व में उत्तर प्रदेश इको पर्यटन विकास बोर्ड ने दुनिया के सबसे प्राचीन जीवाश्म पार्क में शुमार सोनभद्र के रॉबर्ट्सगंज से लगभग 15 किलोमीटर दूर  सलखान गांव के पास स्थित सलखन फॉसिल्स पार्क को यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज की टेंटेटिव लिस्ट में दर्ज कराने की बड़ी उपलब्धि हासिल की है।  उन्होंने बताया कि इसके लिए विभाग की ओर से एक साल से प्रयास किया जा रहा था। फॉसिल्स पार्क को यूनेस्को की लिस्ट में दर्ज कराने के लिए 26 जून 2024 को माननीय मुख्यमंत्री जी के नेतृत्व में उत्तर प्रदेश इको पर्यटन विकास बोर्ड एवं  राजधानी स्थित बीरबल साहनी पुरावनस्पति विज्ञान संस्थान के मध्य एमओयू साइन किया गया था। इसके तहत संस्थान की ओर से फॉसिल्स पार्क पत्थरों पर मौजूद जीवाश्म का अध्यन किया गया, जिसमें 1400 मिलियन वर्ष पुराने शैवाल और स्ट्रॉमैटोलाइट्स के जीवाश्म पाए गए, जो धरती पर प्राचीन जीवन के प्रमाण देते हैं। इन साक्ष्यों के आधार पर यूनेस्को की सूची में पार्क को शामिल करने के लिए अप्लाई किया गया। 

आगामी 2 वर्षों में यूनेस्को की स्थायी सूची में दर्ज हो सकता है सलखन फॉसिल्स पार्क
पर्यटन निदेशक प्रखर मिश्र ने बताया कि किसी भी धरोहर को यूनेस्को की विश्व धरोहर सूची में शामिल करने के लिए पहले उसे अस्थायी की सूची में शामिल किया जाता है। इसके बाद स्थायी सूची में दर्ज कराने के लिए डोजियर तैयार कर आगे की प्रक्रिया होती है। इस प्रक्रिया में करीब एक साल का समय लगता है। साथ ही यूनेस्को की टीम आ कर उस स्थान का अध्यन करती है, जिसे यूनेस्को की स्थायी सूची में शामिल किया जाता है। पर्यटन निदेशक ने बताया कि सोनभद्र के फॉसिल्स पार्क को यूनेस्को की स्थायी सूची में दर्ज कराने के लिए डोजियर तैयार किया जा रहा है, जिसे जल्द ही भारत सरकार को सौंप दिया जाएगा। इसके बाद इसे यूनेस्को को भेजा जाएगा। उन्होंने उम्मीद जतायी है कि आगामी 2 वर्षों  में फॉसिल्स पार्क को यूनेस्को की स्थायी सूची में स्थान मिल सकता है। इससे जहां अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रदेश को ख्याति प्राप्त होगी, वहीं वैश्विक स्तर पर पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा। उन्होंने बताया कि सलखन फॉसिल पार्क का विश्व के अन्य जीवाश्म पार्कों से  तुलनात्मक अध्ययन भी किया गया है। सलखन के जीवाश्म लगभग 140 करोड़ वर्ष पुराने हैं वहीं विश्व धारी सूची में पूर्व से सम्मिलित अमेरिका के येलो स्टोन पार्क के जीवाश्म लगभग 50 करोड़ वर्ष पुराने, कनाडा के मिस्टेकन प्वाइंट के जीवाश्म लगभग 55 करोड़ वर्ष पुराने तथा कनाडा के जॉगिंस फॉसिल क्लिफ के जीवाश्म 31 करोड़ वर्ष पुराने है। सलखन फॉसिल पार्क के जीवाश्म की महत्ता के दृष्टिगत इनके यूनेस्को विश्व धरोहर सूची में सम्मिलित होने की प्रबल संभावना है, जिसके लिए उत्तर प्रदेश इको पर्यटन विकास बोर्ड अनवरत कार्यरत है। 

यह है सोनभद्र फॉसिल्स पार्क का इतिहास
पृथ्वी की प्राचीन धरोहर में बढ़ती राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय रुचि के बीच, सलखन फॉसिल पार्क, जिसे सोनभद्र फॉसिल्स पार्क भी कहा जाता है, यूनेस्को विश्व धरोहर सूची में एक स्थायी स्थान प्राप्त करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठा रहा है। उत्तर प्रदेश के सोनभद्र के रॉबर्ट्सगंज से लगभग 15 किलोमीटर दूर स्थित सालखान गांव के पास स्थित यह पार्क, कैमूर वन्यजीव अभयारण्य और विंध्य पर्वत श्रृंखला के बीच एक सुंदर भू-भाग में स्थित है। 25 हेक्टेयर में फैली यह स्थल प्राचीन बलुआ पत्थर में संरक्षित कुछ सबसे पुरानी और सर्वश्रेष्ठ स्ट्रॉमैटोलाइट्स (प्राचीन, परतदार, सूक्ष्मजीवों से बने चट्टान के गठन) का घर है, जो लगभग 1.4 अरब वर्ष पुरानी हैं। ये जीवाश्म सूक्ष्मजीव संरचनाएं पृथ्वी पर जीवन के सबसे प्रारंभिक रूपों का प्रतिनिधित्व करती हैं और ग्रह के जैविक अतीत में महत्वपूर्ण अंतर्दृष्टि प्रदान करती हैं।

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